गुंजन सक्सेना की सिनेमाई उड़ान / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2020
श्रीदेवी और बोनी कपूर की पुत्री जाह्नवी कपूर ने गुंजन बायोपिक में अभिनय किया है। ‘गुंजन सक्सेना’ ने कठिन संघर्ष किया और प्रशिक्षण कैम्प में उन्हें पुरुषों के सदियों पुराने पूर्वाग्रह से भी जूझना पड़ा। कैम्पस में महिलाओं के लिए कोई शौचलय नहीं था। ज्ञातव्य है कि सुधा मूर्ति ने भी आई.आई.टी परिसर में यह परेशानी झेली थी। पूर्वाग्रह का शौचालय कभी स्वच्छ नहीं हो पाता, पुरुषों को भय रहता है कि महिला अपनी योग्यता से सीनियर अफसर बनेगी, तो उन्हें उसे सैल्यूट करना होगा। स्त्री के आदेश पर पुरुष को काम करना खटकता है। अमेरिका में भी महिला को मताधिकार लंबे संघर्ष के बाद मिला। ताजा खबर है कि कमला हैरिस उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं। कमला की मां श्यामला ने अमेरिका में पढ़ाई की थी, उन्होंने पी.एच.डी की उपाधि अर्जित की थी।
गुंजन सक्सेना ने शत्रु सेना के गुप्त ठिकानों की जानकारी प्राप्त की थी। युद्ध में घायल लोगों को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाने का कार्य किया था। उन्होंने उस प्रशिक्षक को भी सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया, जिसने प्रशिक्षण के समय गुंजन सक्सेना को बहुत परेशान किया था। बहरहाल जाह्नवी की सबसे बड़ी पूंजी उसकी मां श्रीदेवी की ख्याति है। उसे विरासत में बहुत कुछ मिला है। पिता बोनी कपूर उसके साथ खड़े हैंं व एक साधन संपन्न फिल्म निर्माता हैं। श्रीदेवी ने कड़ा संघर्ष किया था। फिल्म ‘जूली’ में श्रीदेवी नायिका की छोटी बहन बनी थीं।
अमोल पालेकर के साथ उनकी फिल्म ‘सोलहवां साल’ असफल रही। जीतेंद्र के साथ ‘हिम्मतवाल’ में उन्हें सफलता मिली। ‘जूली’ में अबोध बालिका की भूमिका से लेकर ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ में उसने बच्चों की मां की भूमिका तक का सफर तय किया। ‘मॉम’ में वे अपने शिखर पर पहुंच चुकी थीं। श्रीदेवी ने रजनीकांत, कमल हासन, ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन के साथ भी अभिनय किया है। जाह्नवी की छोटी बहन खुशी भी अभिनय क्षेत्र में आने वाली हैं। खुशी अमेरिका से प्रशिक्षित हैं। महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी की बायोपिक भी बनी है। रेखा ने भी पुलिस अफसर की भूमिका अभिनीत की है। दक्षिण की विजया शांति ने भी पुलिस अफसर की भमिका अभिनीत की है। लिंग भेद के सामाजिक रोग के बावजूद महिलाओं ने नाम कमाया है।
राजनीति क्षेत्र में भी इंदिरा गांधी को अपने मंत्री मंडल की एकमात्र ‘पुरुष’ माना गया है। उन्होंने बंगला देश के निर्माण में सहयोग करके पाकिस्तान की एक बांह ही तोड़ दी थी। भंडारनायके ने भी श्रीलंका में राज किया है। इजराइल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने भी नाम कमाया। मार्गरेट थैचर भी इंग्लैंड की प्रधानमंत्री रही हैं। पौरुष के दम्भ के प्रतीक पात्र को भी महिला के अधीन काम करना होता है। फिल्म निर्माण व निर्देशन क्षेत्र में भी नरगिस की मां जद्दनबाई, शोभना समर्थ से लेकर अपर्णा सेन, मीरा नायर, अरुणा राजे इत्यादि ने यादगार फिल्में बनाईं हैं।
अरुणा राजे की ‘रिहाई’, संभवत: सबसे साहसिक फिल्म रही । फिल्म का संवाद कि महिला से सीता मां के आचरण की उम्मीद करने वाले पुरुष स्वयं कभी राम सा आचरण करके दिखाएं। फिल्म संपादक रेणु सलूजा ने विधू विनोद चोपड़ा, सुधीर मिश्रा, कुंदन शाह जैसे फिल्मकारों की फिल्मों का संपादन कुशलता से किया है। फिल्मकार शरण शर्मा ने ‘गुंजन सक्सेना’ लिखी व निर्देशित की है। किसी भी फिल्म में सेना से संबंधित दृश्य होेने पर सेना के सहयोग के लिए रक्षा विभाग से अनुमति लेनी होती है। दिल्ली में डिफेंस का अपना सिनेमाघर भी है। सैनिक पात्रों के वस्त्र बनाने के विशेषज्ञ भी हैं। इस क्षेत्र में जरा सी भी भूल की गुंजाइश नहीं है।
‘गुंजन सक्सेना’ सिनेमा घरों में नहीं दिखाई जाएगी। इसलिए सेंसर से प्रमाण पत्र नहीं लिया है। वायु सेना द्वारा उठाई गई आपत्ति पर निर्माता को स्पष्टीकरण देना चाहिए। वर्तमान की धुंध में कुछ साफ नजर नहीं आता। इस विषय पर अमेरिकन फिल्म ‘जेंटलमेंन एंड ऑफिसर’ को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।