गुजरता दिन / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस दिन गुजरते हुए दिन ने आने वाले दिन से कहा-सुनो! जब मैं आया था तो सुबह मेरे पास बहुत से रंगीन सपने थे, बहुत-सी उमंगें लेकर आया था। पूरे चौबीस घंटे थे मेरे पास। आधा दिन मैंने यूं ही बेख्याली में गुजार दिया, ये सोच कर कि अभी तो सुबह है, दोपहर के बाद शाम भी बाकी है और कैसे दोपहर के बाद शाम मेरे हाथों से फिसल गयी। पता ही नहीं चला। सुबह कितनी प्यारी थी, इन्द्रधनुषी थी। मुझे कुछ रंग चुराने थे, पर ये हो ना सका। मैंने फूलों को खूब तोड़ा लेकिन उनकी खुशबू को कैद नहीं कर सका।

प्रेम मिला सुबह तो दोपहर तक उसे आजमाता रहा। शाम होने पर उसे समझ पाया। इससे पहले कि वह मुझे छूता, रात हो गयी। जाने का समय आ गया। दोस्त, तुम मेरी तरह अपना दिन बर्बाद मत करना। इन्द्रधनुष से रंग चुराना, फूलों से खुशबू। प्रेम को आजमाना मत, सिर्फ़ उसे महसूस करना। अपने पूरे दिन को इतना सुन्दर बनाना कि जाते समय चेहरे पर मुस्कान हो। मन में प्रेम का कलश भरा हो और आंखों में चमक। दिन सिर्फ़ गुजरे नहीं दोस्त यादगार रहे। मेरी पहचान बने लोग मुझे जानें और मेरा इंतजार करें। मेरे चले जाने पर उदास हो जायें और मेरे आने पर मुस्काएँ, है न?