गुड़ खाते हैं, गुलगुले से परहेज / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गुड़ खाते हैं, गुलगुले से परहेज
प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2020


फिल्मकार अनुभव सिन्हा की तापसी पन्नू अभिनीत ‘थप्पड़’ प्रदर्शन के लिए तैयार है। फिल्म में महिला समानता और सम्मान के मुद्दे को प्रस्तुत किया गया है। कहते हैं कि श्रीमती स्मृति ईरानी को थप्पड़ में उठाया गया मुद्दा पसंद नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी फरमाया है कि वे फिल्मकार अनुभव सिन्हा के राजनीतिक रुझान को पसंद नहीं करतीं और संकेत यह भी दिया है कि तापसी पन्नू के शाहीन बाग आंदोलन के समर्थन में खड़े होना भी उन्हें पसंद नहीं है। सारांश यह है कि उन्हें गुड़ से नहीं, गुलगुले से परहेज है। अनुभव सिन्हा की ऋषि कपूर और तापसी पन्नू अभिनीत ‘मुल्क’ सफल व सार्थक फिल्म मानी गई। फिल्म में मुस्लिम परिवार का एक युवक आतंकवादी है। वह मारा जाता है। उसके पिता और रिश्तेदारों को भी आतंकवादी करार देने के प्रयास होते हैं। उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया जाता है। उसके ताऊ को भी हिरासत में लिया जाता है। इस परिवार के लंदन में बसे युवा ने प्रेम विवाह किया है। जब उसकी पत्नी गर्भवती हुई तब पति ने सवाल किया कि जन्म लेने वाला बच्चा किस मजहब को मानेगा? उसकी पत्नी का कहना है कि प्रेम विवाह के समय मजहब आड़े नहीं आया तो बच्चे के जन्म के समय यह सवाल क्यों उठाया जा रहा है? अजन्मे बच्चे के मजहब के गैरजरूरी मुद्दे को उठाने के कारण खिन्न होकर पत्नी अपने ससुराल आई है, उसी समय यह घटना होती है। तापसी पन्नू पेशेवर वकील है और वह ससुराल पक्ष के लिए मुकदमा लड़ती है। अदालत के दृश्य में परिवार का उम्रदराज मुखिया बयान देता है कि प्राय: उसकी पत्नी उससे पूछती है कि क्या वह उससे प्रेम करता है और अगर करता है तो साबित करे। मुखिया जवाब देता है कि प्रेम करते हुए प्रेम जताया तो जाता है, पर इसे साबित कैसे किया जा सकता है? अगर प्रेम को मुकदमा बना दें तो सबूत कहां से लाएंगे। जिस तरह वह बिना साक्ष्य और सबूत के पत्नी से प्रेम करता है, उसी तरह अपने देश से भी करता है जिसे साबित करने की कोई जरूरत नहीं है। वर्तमान में हुक्मरान की जिद है कि देशप्रेम सिद्ध कीजिए। अपने जन्म स्थान और पूर्वजों का अस्तित्व सिद्ध करें।

फिल्म में सरकारी वकील एक शेर पढ़ता है- ‘हम उन्हें (मुस्लिम) अपना बनाएं किस तरह, वे (हिंदू) हमें अपना समझते ही नहीं’। बचाव पक्ष की वकील कहती है कि यह ‘हम’ और ‘वो’ में तमाम लोगों को बांट दिया गया है। ‘हम और वो’ एक चश्मा है जो सबको पहना दिया गया है। वह अदालत में प्रमाण देती है कि इस मुस्लिम परिवार ने अपना मकान 1927 में बनाया और 1946 में अपना वतन छोड़ने की बात ठुकरा दी। उनके पूर्वजों की हडि्डयां इस मिट्‌टी में दफन हैं। बचाव पक्ष की वकील यह साबित कर देती है कि इस परिवार का एक युवा आतंकवादी था, परंतु परिवार के अन्य सदस्यों को उसकी गलती में घसीटा नहीं जा सकता। मुकदमे के दरमियान यह भी सिद्ध होता है कि इस प्रकरण की तहकीकात एक मुस्लिम अफसर ने की जिस पर अपने आप को देश प्रेमी सिद्ध करने का ऐसा दबाव था कि गुनाहगार आतंकवादी को वह गिरफ्तार भी कर सकता था, परंतु उसने दबाव के कारण उसे गोली मार दी। जिंदा पकड़कर उस आतंकवादी से उसके संपर्क की जानकारी प्राप्त हो सकती थी। उनके नेटवर्क का पता लगाया जा सकता था। जज यह फैसला देता है कि परिवार के बाकी सदस्य निर्दोष हैं। जज अपने फैसले में यह भी कहता है कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने जन्म और धर्म को लेकर बनाए गए दबाव में न आकर विवेक और निष्पक्षता से कार्य करे। जज का यह कथन भी है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संसद में पूजा होने की बद्तर दशा से मुल्क को बचाना चाहिए।

बहरहाल, जब भी कोई व्यक्ति एक असुविधाजनक सवाल उछालता है, तब जवाब में उसे थप्पड़ मार दिया जाता है। तर्क के अभाव में थप्पड़ मार दिया जाता है। प्राय: देखा गया है कि स्कूल में बच्चा प्रश्न पूछता है तो शिक्षक समाधान नहीं करते हुए थप्पड़ मार देता है। थप्पड़ अज्ञान का प्रतीक है और जवाब देने के उत्तरदायित्व से बचने का भौंडा प्रयास है। एक कविता की पंक्ति है- ‘समझ सके तो समझ जिंदगी की उलझन को, सवाल उतने नहीं हैं जवाब जितने हैं।’ बलदेव राज चोपड़ा की फिल्म में भी एक गीत इस तरह था- ‘तुम एक सवाल करो, जिसका जवाब ही सवाल हो’। गालिब का शेर है- ‘ईमां मुझे रोके है, कुफ्र मुझे खींचे है, काबा मेरे पीछे है, कलीता (मिन्नत) मेरे आगे है। यह दौर ही सवालिया है।