गुण सुंदरी से सुल्तान तक धर्मनिरपेक्षता / जयप्रकाश चौकसे

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गुण सुंदरी से सुल्तान तक धर्मनिरपेक्षता
प्रकाशन तिथि :09 जुलाई 2016


विगत कुछ वर्षों से बॉक्स ऑफिस पर धार्मिक त्योहार की अतिरिक्त छुट्‌टी का लाभ उठाने के लिए सितारा सज्जित फिल्मों का प्रदर्शन होने लगा है। मनोरंजन के लिए विकल्प उपलब्ध होने के कारण फिल्मकारों के लिए त्योहार पर प्रदर्शन आवश्यक हो गया है। सामान्य दिनों पर सिनेमाघरों में भीड़ नहीं जुटती। इसीलिए पहले तीन दिन टििकट की दर अधिक होती है और सामान्य दिनों में टिकिट का मूल्य घटाया जाता है। कथा फिल्म के जन्म के बाद लगभग दो दशक तक मायथोलॉजिकल फिल्में बनती रहीं। उस दौर में शेयर बाजार के महारथी चंदूलाल शाह को अपने बीमार हुए भाई की फिल्म कंपनी में कुछ समय जाना पड़ा। एक दिन एक सिनेमा मालिक ने उन्हें पच्चीस हजार रुपए दिए कि ईद के अवसर के लिए कोई इस्लाम से प्रेरित फिल्म या अरेबियन नाइट्सनुमा फिल्म बना दे। चंदूलाल शाह ने 'गुण संुदरी' नामक फिल्म बना दी और वितरक ने कहा कि वह मुकदमा ठोकेंगे परंतु समय कम होने के कारण मजबूर होकर उसे ईद पर 'गुण संुदरी' लगानी पड़ी और फिल्म अत्यंत सफल रही गोयाकि मुसलमान दर्शकों ने भी 'गुण सुंदरी' को सराहा! इस घटना से दर्शक की संंपू्र्ण धर्मनिरपेक्षता सिद्ध होती है। विगत कई वर्षों से दीपावली पर शाहरुख अभिनीत फिल्में प्रदर्शित होती रही हैं और आमिर खान ने क्रिसमस की छुट्‌टी पर एकाधिकार कर लिया है।

फिल्म उद्योग में रमजान के महीने में निर्माता रोज़ा अफतारी के समय पूरे यूनिट के लिए नाश्ते की व्यवस्था करता है अौर सभी धर्मों को मानने वाले एकसाथ बैठकर भोजन करते हैं। दीपावली पर मेहबूब खान भी अपने कर्मचारियों को त्योहार का भत्ता देते थे। राज कपूर के स्टूडियो पर भगवा रंग का झंडा लगा हुआ है परंतु राज कपूर के नज़दीकी साथी हसरत जयपुरी, नरगिस, ख्वाजा अहमद अब्बास और ध्वनि विभाग के अलाउद्‌दीन खान रहे हैं। ज्ञातव्य है कि अलाउद्‌दीन खान किसी जमाने के सितारे याकूब के सगे भाई थे। खान साहब अपने काम में माहिर थे और अनेक निर्माता उन्हें आमंत्रित करते थे परंतु ताउम्र उनका जवाब यही होता था कि राज कपूर उन्हें इतना धन और सम्मान देते हैं कि उन्हें अन्यत्र काम करने की आवश्यकता ही नहीं। अलाउद्‌दीन खान साहब ने 'संगम' के एक दृश्य में विमान उड़ने की आवाज पार्श्व संगीत में प्रयुक्त की जब राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला हवाई दुर्घटना में राज कपूर अभिनीत पात्र की मृत्यु का समाचार सुनकर उसकी तस्वीर के सामने खड़े हैं।

'संगम' की विदेशों में शूटिंग के समय स्विट्जरलैंड में काम के बाद यूनिट पेरिस जा रही थी। राज कपूर को ज्ञात हुआ कि खान साहब किसी को दिल दे बैठे हैं, तो उन्होंने कहा कि वे मनचाहा समय स्विट्जरलैंड में गुजारें और पेरिस में उनका सहायक उनका विभाग संभाल लेगा। दोनों के बीच कुछ इस तरह का याराना था। सारांश यह कि फिल्म उद्योग में हमेशा धर्मनिरपेक्षता बनी रही है। महेश भट्‌ट के पिता भी अरेबियन नाइट्स प्रेरित फिल्में बनाते थे और उनके दो विवाह उस समय हुए थे, जब भारत में एक विवाह का कानून पारित नहीं हुआ था। उनकी एक पत्नी हिंदू एवं दूसरी इस्लाम मानने वाली थी। सलीम खान की पहली पत्नी हिंदू और दूसरी कैथोलिक हैं।

फिल्म उद्योग में केवल यह महत्वपूर्ण है कि आपको अपना काम आता है या नहीं। केवल कार्यकुशलता ही एकमात्र कसौटी है। राजेंद्र कुमार जैसा धनाढ्य व अनुभवी व्यक्ति अपने बेटे कुमार गौरव को सितारा नहीं बना पाया। शशधर मुखर्जी ने सबसे अधिक संख्या में युवा लोगों को अपनी फिल्मों में अवसर दिए परंतु अपने पुत्रों को सितारा नहीं बना पाए। विगत कुछ वर्षों में देश में धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को हानि पहुंची है और सभी धर्मों के मानने वालों में कट्‌टरता पनप रही है। सत्ता की होड़ में इस दुर्घटना को सोच-समझकर रचा गया है। भारत तो कबीर की बुनी चादर की तरह रहा है परंतु विगत कुछ समय में उसकी बुनावट से छेड़खानी की जा रही है। संविधान नामक चादर के रेशों में भी शरारत के प्रयास के मंसूबे तो हैं परंतु आपसी भाईचारे की बुनियाद बहुत मजबूत है।