गुदड़ी के लाल / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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वैसे ये मुल्क कमाल का है। कहा भी गया है ‘सब रंगों का समावेश, भारत देश हमारा देश।’ यहां सतरंगी दुनिया बसती है। दुनिया का अजूबा देश है भारत। सबसे ज़्यादा कोढ़ी भारत में पाए जाते हैं। अंधे भी यहां बेहिसाब हैं। सबसे ज्यादा अनपढ़ यहां रहते हैं। सबसे ज़्यादा मुकद्में यहां विचाराधीन हैं। सबसे ज़्यादा गरीबी और बेरोजगारी भी यहां हैं। सबसे ज़्यादा मरीज़ यहां हैं। सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं इस देश में ही होती हैं। सबसे ज़्यादा रोगी अस्पतालों में हमारे यहां पाए जाते हैं। कोई भी सूची बनाइए, भारत हर ऐसे-वैसे मामलों में कहीं न कहीं वरीयता में आ ही जाता है।

यहां तक तो ठीक है। कोई ये भी कह सकता है कि उपरोक्त कही गई सभी बातें गर्व करने वाली नहीं हैं। बल्कि इन्हें पढ़ने या सुनने से शरम जैसा सा अहसास सा होता है। लेकिन एक बात तो है, उपरोक्त को पढ़कर सामान्य ज्ञान में बढ़ोत्तरी तो होती ही है। सबसे ज़्यादा वाले मामलों में भारत का नाम आते ही दिल में कुछ-कुछ होता है।

अब आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है। भई साधरण-सी बात है। भारत इतना बढ़ा देश है। कुछ ही समय बाद यह देश दुनिया का सबसे आबादी वाला देश बनने वाला है।

विडम्बना देखिए। इसी देश में तैंतीस करोड़ से अध्कि लोग हैं, जो दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाते। सैकड़ों हैं जिनके पास सिर छिपाने के लिए छत नहीं है। किसी विभाग के पास ये रिकार्ड नहीं है कि हर साल ठंड से कितने लोग मरते हैं। वैसे दूसरे शब्दों में भूखे-नंगों के इस देश में इतनी विविध्ता है कि लिखें तो सबसे मोटा ग्रन्थ बन जाएगा। बात यहां खत्म नहीं होती। गरीब से गरीब और अमीर से अमीर इस देश में मिल जाएंगे। दुनिया के सबसे अमीर परिवारों की सूची में भारत के कई परिवार शामिल हैं। सबसे आस्थावान भी इसी देश में हैं। कुछ तो ऐसे हैं कि उनकी आस्था से भगवान भी हैरत में पड़ जाएं। एक परिवार की इच्छा है कि वे एक भगवान के चरणों में तीन कुंटल सोना चढ़ाना चाहता है। दान करना चाहता है। यह परिवार देश के नामचीन धर्मिक स्थलों में कई किलो सोना चढ़ा चुका है।

ऐसे हजारों परिवार हैं जो हर साल मंदिर के नाम पर सोना चढ़ाते हैं। लाखों रुपए दान में लिखवाते हैं। इसका दूसरा पक्ष भी है। ऐसे संपन्न वास्तव में भीतर से विपन्न है। ऐसे लोग भीतर से बेहद डरे हुए होते हैं। इन्हें गरीबों, असहायों और कष्ट में रह रहे लोगों से कोई लेना-देना नहीं होता। ये लोग ऐसे घरों में रहते हैं जो किसी जेल से कम नहीं। जहां हर आने-जाने वाले का हिसाब-किताब दर्ज होता है। जहां कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इनकी दुनिया इनकी गगनचुंबी इमारते होती हैं। ये बाहर की दुनिया से कोई मतलब नहीं रखते। ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जिन्हें सुनकर कानों में विश्वास ही नहीं होता कि ‘इतना बड़ा नाम और इतना छोटा काम!’ एक बानगी देखिए। ‘अ’ देश के करोड़पति हैं। दुनिया में उनका बड़ा नाम है। एक सामान्य सा आदमी भी इनकी सूरत से वाकिफ़ है। मगर सीरत से नहीं। इन अ के पिता मशहूर कवि थे। देश के कुछ साहित्यकार अ के पास गए। उन्हें याद दिलाया कि उनके पिता देश के नामचीन साहित्यकार रहे हैं। उनकी याद में एक छोटा सा साहित्यिक पुरस्कार रख दें। उभरते साहित्यकारों को बल मिलेगा। इस बहाने आपके पिता को हर साल स्मरण करने की परंपरा भी बनी रहेगी।

सुझाव अच्छा था। एक सम्पन्न पुत्रा के लिए ये छोटी सी बात थी। मगर अ को यह सुझाव पसंद नहीं आया। अ ने यह कहकर इंकार कर दिया कि उसके पास दान-धर्म और पुण्य के नाम पर एक ढेला भी नहीं है। इन्ही अ ने कुछ समय बाद अपने इकलोते पुत्रा का विवाह किया। विवाह की सी.डी. एक कंपनी ने खरीदी। लाखों रुपये में सौदा हुआ। अ के बेटे ने एक रात के लिए जो शेरवानी पहनी थी वो कई लाख रुपये के कपड़े से बनी थी। यही नहीं इस विवाह में एक ही रात में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये गए। अब इन अ महाशय से कोई पूछे कि क्या अपने बेटे के विवाह भोज में एक भी गरीब और भूखे को भोजन कराया?

ये धर्मिक स्थलों में सोना और नकदी चढ़ाने वालों से कोई ये नहीं पूछता कि क्या उन्होंने दस रुपये का भोजन किसी भूखे को कराया? ये और बात है कि इनके द्वारा दिया गया दान और सोना धर्मिक स्थलों में चाहे शोभायमान होते हों, लेकिन इतिहास गवाह है कि धर्मिक स्थलों में स्थापित स्वर्ण कलश या बहुमुल्य प्रतिमाएं कालान्तर में या तो चोरी हो जाती हैं या गायब करवा दी जाती हैं। यही नहीं इन धमिर्क स्थलों के रख-रखाव को गठित समितियां, मठ, आश्रम या संस्था झगड़े का कारण बन जाती हैं। इस देश में यदि अमीरों की पोटलियों से थोड़ा-थोड़ा ध्न छिटक जाए तो सैकड़ों घरों में शाम का चूल्हा जलने लगे।