गुदने के कारण चमड़ी का नीला पड़ना / जयप्रकाश चौकसे

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गुदने के कारण चमड़ी का नीला पड़ना
प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2019


शिल्पी बत्रा आडवाणी ने अपनी जड़ों की तलाश के लिए लंबी यात्राएं की हैं और उस पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई है। उनकी जाति के लोग अफगानिस्तान के रहने वाले हैं और वहां से पाकिस्तान होते हुए राजस्थान में बस गए हैं। वे स्वयं को मांसाहारी हिंदू पश्तून मानती हैं। पेशावर में रहने वाले पठानों से भिन्न है यह समुदाय। फिल्मकार फिरोज खान की पुश्तें बेंगलुरू में रही हैं और फिल्म उद्योग में सफलता पाने के बाद उन्होंने वहां एक फार्महाउस बनाया। ऋतिक रोशन और सुजैन का विवाह उसी फॉर्म हाउस में आयोजित किया गया था। शिल्पी जी के वृत्त चित्र में दिखाया गया है कि उनके समुदाय के लोग एक जगह एकत्रित होकर अपने पारम्परिक गीत गाते हैं। शिल्पी जी दिल्ली के विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय अपने समुदाय का इतिहास खोजने की इच्छा से प्रेरित हुईं। उनके वृतचित्र का नाम ' शीन खलाई- ब्लू स्किन' है। उर्दू में शिनाख्त शब्द परिचय के अर्थ में प्रयुक्त होता है। टीनू आनंद ने फिल्म 'कालिया' बनाने के पश्चात अमिताभ बच्चन अभिनीत 'शिनाख्त' फिल्म की घोषणा की थी परंतु फिल्म बनाई नहीं गई। कुछ लोगों का कहना है कि टीनू आनंद की फिल्म अंग्रेजी के लोकप्रिय उपन्यास 'द बॉर्न आइडेंटिटी' से प्रेरित है।

इस समुदाय की पारम्परिक पोशाक को 'काकरी कमीज' कहते हैं। फिल्मकार ने एक कमीज जुगाड़ ली और कनाडा के टेक्सटाइल रेस्टोरेशन विभाग को भेजी है। इस कमीज में जगह-जगह सिक्के टके होते हैं। कनाडा के विशेषज्ञ ने पोशाक में कीटाणु मारने के लिए उसे एक सप्ताह तक फ्रीजर में रखा। बाद में वस्त्र को मजबूती देने के लिए उसकी भीतरी परत पर सूती कपड़ा सी दिया गया। समुदाय की मान्यता यह थी कि वस्त्र में सिए गए सिक्के परिवार की आर्थिक हैसियत का परिचय देते थे। इसी स्रोत से समुदाय के खान-पान की जानकारी प्राप्त की गई। इसका आकलन भी किया गया कि किस तरह के मसालों का प्रयोग किया जाता था। समुदाय की महिलाएं अपने चेहरे पर गुदना करवाती थीं। दरअसल, शरीर पर गुदवाना जनजातियों में हमेशा लोकप्रिय रहा है और आधुनिक फैशन को इसकी प्रेरणा वहां से मिली है। ज्ञातव्य है कि महान साहित्यकार गुलशेर खान शानी लंबे समय तक बस्तर में रहे हैं। उनकी एक कथा में एक युवती अपनी मां को अनभिज्ञ रखकर अपनी जांघ पर गोदना करवाती है। रात में जांघ में दर्द होता है। उसकी कराह सुनकर मां जागती है और पूरी बात जान लेने पर गुदने पर तेल लगाती है। इस तरह मां अपनी बेटी की विवाह कामना को जान पाती है।

इस वृत्तचित्र के निर्माण में भारत-अफगानिस्तान फाउंडेशन ने आर्थिक सहयोग दिया है। समुदाय की भाषा बलूची कहलाती है। राज कपूर और दिलीप कुमार पेशावर में जन्मे थे और जब भी वे एक-दूसरे से मिलते थे तब अपनी मातृभाषा में बात करते थे। सामान्यतया मनुष्य अपने सपनों में अपनी मातृभाषा में स्वयं को बतियाता हुआ देखता है। बाजार और विज्ञापन युग ने अंग्रेजी हम पर लाद दी है। दुर्भाग्य यह है कि सही अंग्रेजी नहीं बोली जाती है। अधिकांश लोग गलत अंग्रेजी ही बोलते हैं। अब तो युवा वर्ग हिंग्लिश बोलता है और शायद स्वप्न में भी इसी भाषा में बतियाता भी है। विज्ञान की अधिकांश किताबें अंग्रेजी भाषा में लिखी गई हैं। अतः छात्र भी उसी भाषा को अपनाते हैं जो उन्हें नौकरी दिला सके।

इसके साथ यह तथ्य भी जुड़ा है कि आप जिस रोजगार में हैं, उस रोजगार से जुड़े शब्द आपकी बोलचाल में आ जाते हैं। सुनार यह कहते है कि यह सोना टंच खरा सोना है। एक बार एक मित्र के जन्मदिन पर दी गई दावत में शरीक नहीं हो पाया और फोन पर उन्हें बताया कि एक मित्र के क्लाइमैक्स की रील चल रही है। दरअसल, मित्र बीमार था और उसके बचने की आशा नहीं थी। जिस मित्र का जन्मदिन था वह कई दिन तक नाराज रहा, क्योंकि उसने यह समझा कि खाकसार किसी फिल्म का क्लाइमैक्स देख रहा था, इसलिए जन्मदिन की दावत में शरीक नहीं हुआ। कई दिन बाद आपस में बातचीत करने के बाद ही बात साफ हो पाई कि फिल्म के नहीं, जीवन के क्लाइमेक्स की बात थी। इस तरह हम जिस कारोबार से जुड़े होते हैं, उसके मुहावरे भी हमारी भाषा में शामिल हो जाते हैं।