गुनाहगार किताबें और अपराधी लेखक? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 अगस्त 2019
बुधवार 28 अगस्त को मुंबई में एक अजीबोगरीब मुकदमा कायम हुआ। वर्नन गोन्जाल्विस नामक व्यक्ति के घर से लियो कोलकाता के पत्रकार बिस्वजीत राय का उपन्यास 'वॉर एंड पीस इन जंगलमहाल : पीपल, स्टेट एंड माओइस्ट' मिला, जिसके आधार पर उन पर माओवादी होने का आरोप लगाया गया है। सरकार की निगाह में उनकी पृष्ठभूमि संदिग्ध रही है। उन्होंने यह किताब अपने घर पर क्यों रखी? आरोप है कि इस तरह की आपत्तिजनक किताब किस उद्देश्य से घर में रखी गई? इस तरह की किताब घर में रखना देश के विरुद्ध षड्यंत्र रचने की चेष्टा मानी जा सकती है। बचाव पक्ष की दलील है कि एक उपन्यास को घर में रखने का यह अर्थ नहीं कि वह माओवादी हिंसा करने का इरादा रखता है। उसके घर से कुछ सीडी भी मिली है अगर किसी व्यक्ति के घर फ्योदोर दोस्तोवस्की का उपन्यास 'क्राइम एंड पनिशमेंट' रखा मिले तो क्या उसे अपराधी माना जाएगा।
क्या किसी व्यक्ति के घर 'लोलिटा' या 'लेडी चैटरलीज लवर' मिलने पर उसे दुष्कर्म का इरादा रखने वाला माना जाएगा? आज से अनेक दशक पूर्व ब्रिटिश राज के समय दलितों ने ब्राह्मण समुदाय पर आक्रमण किया था। दलितों को भड़काया गया था- ऐसा संदेह व्यक्त किया गया था। ज्ञातव्य है कि फिल्मकार चैतन्य ताम्हाणे की फिल्म 'कोर्ट' में एक दलित जनगायक पर मुकदमा कायम किया गया था कि उसके गीतों के प्रभाव के कारण एक व्यक्ति ने आत्महत्या की। दरअसल, उस घटना में गटर साफ करने वाले व्यक्ति की मृत्यु गटर में फैली जहरीली गैस के कारण हुई थी। व्यवस्था अपने असंवैधानिक कामों के बचाव के लिए पतली गलियां खोज लेती है।
इस मुकदमे में जज ने पुलिस को फटकार लगाई है कि सीडी को सुने बिना ही साक्ष्य की तरह क्यों प्रस्तुत किया गया। यह मुकदमा याद दिलाता है सुभाष कपूर की फिल्म 'जॉली एलएलबी भाग दो' के मुकदमे की फिल्म में एक झूठे एनकाउंटर का पर्दाफाश किया गया है। पुलिस ने संदिग्ध व्यक्ति के घर से किताबें और सीडी जब्त की थी। बचाव पक्ष का वकील बताता है कि वह सीडी फैज अहमद फैज की शायरी की सीडी है तथा जिन किताबों को पुलिस ने आपत्तिजनक बाताया वे सब धार्मिक आख्यान हैं। उन किताबों में गीता का उर्दू अनुवाद भी शामिल था। मुगल शासक ने महाभारत का अनुवाद फारसी भाषा में कराया था। इरविंग वैलेस के उपन्यास 'सेवन मिनिट्स' में एक किशोरवय के अमीरजादे पर दुष्कर्म का मुकदमा कायम किया गया है। अमीरजादे को बचाने के लिए उसका वकील यह पक्ष रखता है कि एक किताब के प्रभाव में अमीरजादे ने यह काम किया गोयाकि किताब ही मुजरिम है। जेम्स जॉयस के उपन्यास 'यूलिसिस' पर अश्लील किताब होने का मुकदमा चलाया गया था। जस्टिस वूल्जे ने फैसला दिया था कि किसी भी किताब के एक अंश के आधार पर उसे अश्लील नहीं माना जा सकता । पूरी किताब के संपूर्ण प्रभाव का आकलन किया जाना चाहिए।
कानून की किताबों के विश्वसनीय प्रकाशक रतनलाल की इंडियन पीनल कोड के 29वें संस्करण में अश्लीलता संबंधित धाराएं 292, 293 और 294 का खुलासा दिया गया है। आश्चर्य की बात है कि कानून की किताब में अश्लीलता को परिभाषित नहीं किया गया है। कहा गया है कि वेबस्टर्स डिक्शनरी तृतीय के पृष्ठ 1557 पर दी गई परिभाषा पढ़ें। अश्लीलता घृणास्पद है, जुगुप्सा जगाती है और मोरेलिटी को नज़रअंदाज करती है। रतनलाल की किताब कहती है कि जज को लेखक के मन्तव्य को परखना चाहिए और साथ ही जज को अपने आपको पाठक के स्थान पर रखकर देखना चाहिए गोयाकि जज लेखक एवं पाठक दोनों के नज़रिये को समझे। विवादित किताब जज को दो बार पढ़नी होगी- लेखक एवं पाठक के स्थान पर स्वयं को रखकर। किसी स्त्री के वस्त्रहीन फोटो को आपत्तिजनक नहीं माना जा सकता। एक गरीब स्त्री सड़क निर्माण के काम में मजदूरी कर रही है और भारी वजन सिर पर उठाए वह चल रही है तब ऐसे में उसके आंचल के सरक जाने को अश्लील हरकत नहीं माना जा सकता। भारी बरसात के कारण झोपड़ी टूट गई है और स्त्री पूरी तरह भीग गई है, वस्त्र उसके शरीर से चिपक गए हैं। तब उसे अश्लीलता नहीं माना जा सकता। दरअसल, मनुष्य का अवचेतन अश्लीलता का निवास स्थान होता है।
'ग्रेप्स ऑफ रेथ' नामक उपन्यास में भारी बाढ़ का विवरण है। कुछ लोग ऊंचाई पर बने टूटे-फूटे मकान में आश्रय लेते हैं। एक सास के साथ उसकी बहू है, जिसका शिशु कुछ ही क्षणों पूर्व मर गया है। उस मकान में एक बूढ़ा व्यक्ति भूख के कारण मरने वाला है। सास अपनी बहू से कहती है कि बूढ़े को अपना दूध पिला दो। संभव है कि शीघ्र ही सहायता करे वाले आ जाएं। अब स्त्री का बूढ़े मरणासन्न व्यक्ति को दूध पिलाने को छद्म नैतिकतावादी व्यक्ति अश्लील काम मान सकता है।
यह भी गौरतलब है कि अश्लीलता के आरोप लगने वाली कोई भी रचना अदालत में अश्लील नहीं सिद्ध हो पाई है। ज्ञातव्य है कि चर्च किताबों की एक सूची समय-समय पर जारी करता है। इन किताबों से बचने का परामर्श दिया जाता है पर वह वैटीकन द्वारा जारी हुक्म नहीं होता।