गुप्तचर संसार मे प्रेम का जादू / जयप्रकाश चौकसे
गुप्तचर संसार मे प्रेम का जादू
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2012
आदित्य चोपड़ा और निर्देशक कबीर खान की सलमान खान व कैटरीना कैफ अभिनीत 'एक था टाइगर' दो देशों के बीच के अविश्वास और असुरक्षा के द्वारा जन्मी गुप्तचर संस्थाओं के निर्मम पाटों के बीच पिसते दो प्रेमियों की कहानी है। शांति के समय भी एक घिनौनी जंग जारी रहती है और गुप्तचरों की मृत्यु की खबर भी बाहरी दुनिया को नहीं होती। सभी देशों के गुप्तचरों के जाल फैले रहते हैं और उनके घात-प्रतिघात के बारे में अवाम को कुछ पता नहीं चलता। इयान फ्लेमिंग की 'बांड शृंखला' में शिखर गुप्तचर को हत्या का अधिकार प्राप्त है (लायसेंस टू किल) और उसके नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका कोड नंबर है- जैसे, जेम्स बांड- ००७। अमेरिका और रूस के बीच शीतयुद्ध के दिनों की उपज था जेम्स बांड- ००७ । ये संस्थाएं मनुष्य को एक अंक बना देती हैं और उन्हें भावनाशून्य बनाना उनके प्रशिक्षण का अनिवार्य हिस्सा है। यह एक तरह से मानव का मशीनीकरण है।
बहरहाल, 'एक था टाइगर' में दो दुश्मन देशों के गुप्तचरों के बीच प्रेम हो जाता है। वे अपने देश से कोई गद्दारी नहीं करना चाहते, परंतु उनकी संस्थाएं उनकी जान की दुश्मन हो जाती हैं। उन्हें भय है कि कहीं दिल के आदान-प्रदान के साथ गुप्त जानकारियां एक-दूसरे को न दे दें। गुप्तचर नाम और पहचान बदलकर काम करते हैं और इस प्रक्रिया में अपना असली नाम भी भूल जाते हैं। नफरत के व्यवसाय में नाम गुम जाना कोई बड़ी घटना नहीं है। कई खतरनाक व्यवसाय होते हैं- जैसे मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चलाना। सलमान भी जीवन को ऐसे ही खतरनाक खेल की तरह जीते हैं। अत: उनके लिए भूमिका आसान है।
कबीर खान ने दो घंटे तेरह मिनट की फिल्म में उत्तेजना बनाए रखी है और एक्शन के अभिनव दृश्यों के साथ ही मानवीय संवेदना का संप्रेषण किया है। दिल कभी नजरअंदाज नहीं किया है। प्रेम दृश्यों में अनुभूति की तीव्रता बनाए रखी है। यह प्रेम कहानी पत्थरों के बीच छूटी अत्यंत कम जगह में उगी कोंपल की तरह है। हिंसा के बादलों के ऊपर एक चांदी-सी चमकीली रेखा का आभास देने वाली प्रेमकथा है। गुप्तचरों के संसार के खतरों के बीच मानवीय रिश्ता बनता है और उस संसार के सारे लौहकपाटों को तोड़ता है। दो गुप्तचरों को सिखाया जाता है कि कहीं कोई मित्र नहीं है, कोई मित्र राष्ट्र नहीं है। फिल्म में एक गुप्तचर अपने आदेशों के विपरीत जाकर नायक की मदद करता है। गुप्तचर संसार में हत्या, अशांति फैलाना और लोगों की निजता में घुसपैठ जायज है। यह कितनी अजीब बात है कि सरकारें इन संस्थाओं पर खूब पैसा खर्च करती हैं। क्या इन संस्थाओं के हिसाब-किताब की जांच होती है? देश की सुरक्षा के नाजुक मामले के अधीन इनका हिसाब-किताब भी जाहिर नहीं किया जाता। इस रहस्यमय संसार के भीतर की झलक कबीर खान प्रस्तुत करते हैं। ऊपरवाले की पटकथा भी क्या खूब है कि इस अनकही को कहने फिर एक कबीर आया है। कहें कलयुग का कबीर!
फिल्म के एक दृश्य में संस्था के मुखिया के किरदार में गिरीश कर्नाड कहते हैं कि एक बार उन्हें प्रेम हुआ था, लड़की इतनी मासूम थी कि जीवनभर उसे सुख से रखूं, परंतु फर्ज के लिए मैंने शादी नहीं की। फिल्म के आखिरी दृश्य में नायक कहता है कि उसने प्रेम को चुना क्योंकि वह उनकी तरह सारा जीवन पछतावे में नहीं गुजारना चाहता था। बारह साल तक बिना एक भी दिन की छुट्टी के वह विदेशों में अपने देश की खातिर अनेक हत्याएं करता रहा है।
यह कबीर का कमाल है कि वह गुप्तचर संसार की निर्ममता के संकेत मात्र देकर अपनी प्रेमकथा को पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत करते हैं, यहां तक कि मारधाड़ के अभिनव दृश्यों में भी मानवीय स्पर्श है। ज्ञातव्य है कि उन्होंने अनेक वृत्तचित्र बनाने के बाद पहली कथा फिल्म 'काबुल एक्सप्रेस' बनाई थी, इसके बाद आई 'न्यूयॉर्क' और अब यह उनकी तीसरी फिल्म है। पहली फिल्म में आहत अफगानिस्तान, दूसरी फिल्म में न्यूयॉर्क में आतंकवाद और तीसरी फिल्म में गुप्तचरों की जिंदगी; एक तरह से तीनों ही फिल्मों में राजनीति द्वारा गढ़ी गई जद्दोजहद में फंसे व्यक्तियों की कहानियां हैं। जमीन पर खींची सरहदों से दिलों को बांटने की बात है।
सलमान खान ने अपनी विगत चार सफल फिल्मों में जिस तरह के चरित्र निभाए, उनसे अलग है यह चरित्र, परंतु आदित्य चोपड़ा और कबीर ने गीतों व एक्शन दृश्यों में उस छवि को कायम रखते हुए प्रेम दृश्य और नाटकीय दृश्यों में छवि के परे जाता हुआ सलमान प्रस्तुत किया है। संवादों में हास्य का पुट है। पहले एक्शन दृश्य के बाद सलमान के जख्मों से परे चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान है।
इस फिल्म में कैटरीना कैफ ने अपने अभिनय से बको आश्चर्यचकित कर दिया है। उन्होंने भावनाओं की तीव्रता को कमतर प्रयास से अभिव्यक्त किया है और आंखों से जुबान का काम लिया है। इसमें वह 'शीला की जवानी' और 'चिकनी चमेली' की शारीरिकता से उभरकर खतरे के साए में प्रेम में जीते हुए नजर आई हैं। आदित्य चोपड़ा और कबीर खान ने 'माशाअल्ला' में उनकी पुरानी छवि की स्मृति को बनाए रखने की चेष्टा की है। सितारे छवि से मुक्त होना चाहें तो छवि उन्हें नहीं छोड़ती, क्योंकि बॉक्स ऑफिस पर छवियां ही धन बरसाती हैं। यह व्यावसायिक सिनेमा का अपना विरोधाभास है।
प्रदर्शन के पहले दिन राष्ट्रीय अवकाश और सलमान खान की सितारा ताकत से फिल्म लगभग तीस करोड़ रुपए अर्जित कर चुकी है। बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रचने वाली इस फिल्म में सिनेमाई गुणवत्ता है। सतह के नीचे बहुत कुछ प्रवाहित है। आदित्य चोपड़ा और कबीर खान ने मास अपील और क्लास के बीच संतुलन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। मनोरंजन उद्योग में यह संतुलन ही कमाल है।