गुमनामी का दंश झेलते म्यूजिक अरेंजर्स / नवल किशोर व्यास
भारत में जैज़ और वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स को भारतीय फिल्म संगीत में शामिल करवाने का काम गोवा के कलाकारों ने किया। उन पर पुर्तगाली प्रभाव था। ये पश्चिमी संगीत के रसिक भी थे और इनमे मास्टरी भी थी नए तरह के साजो को बजाने और संगत कराने की। आजादी से पहले और उसके बाद की फिल्मों में धुन को साधारण तौर पर ही रिकॉर्ड किया जाता था। गाने की सजावट, इंटरल्यूड, ओपनिंग जैसा कुछ न था। कुछ मायनों में, यह संगीत बनाने और रिकॉर्ड करने का बहुत ही कच्चा तरीका था। गोवा के वायलिन प्लेयर एंथोनी गोंसाल्वेस ने शायद पहली बार भारत में संगीत बनाने का नया तरीका शुरू किया जिसे 'म्यूजिक अरेंजमेंट्स' के रूप में आज जाना जाता है। फिल्मी गानों को इससे उसका सौंदर्य मिला। इन्ही एंथोनी गोंसाल्वेन्स ने आरडी बर्मन और प्यारेलाल जी को वायलिन बजाना सिखाया और प्यारेलाल जी ने फिर एक दिन अपने गुरु को ट्रिब्यूट देते हुए अमर अकबर एंथोनी फिल्म के गाने में गाना बनाया-माई नेम इज एंथोनी गोंसाल्वेन्स।
अपनी विरासत की सिम्फनी को भारतीय रागों और धुनों के साथ मिलाने का प्रयास एंथोनी ने किया, वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स जोड़े और उसके बाद से हिंदुस्तानी फिल्म संगीत की सारी डिजाइन, सारा ककहरा ही बदल गया। इसके आने के बाद अब संगीतकार केवल धुन बनाता। धुन बनने के बाद अरेंजर इंटरल्यूड संगीत का निर्माण करता यानी गाने के बीच की कड़ियों को जोड़ने के लिए म्यूजिक के पीसेज। भारतीय संगीतकारों के लिए 'म्यूजिक नोटेशन' बनाने वाले भी एंथोनी शायद पहले आदमी थे। इसे कुछ ऐसे समझ सकते है कि संगीतकार एक राग गाएंगे और फिर एक हारमोनियम पर उस लाइन को धुन बना कर बाहर निकालते है। अरेंजर फिर इसे स्ट्रिंग्स, पियानो और बाकी इंस्ट्रूमेंट्स से गाने में नए पीस जोड़ते जाते है। बॉलीवुड संगीत को इससे एक अनूठा आकर्षण मिला और संगीतकारो को नाम। नौशाद, मदन मोहन, ओ पी नैयर जैसे शास्त्रीय और पारम्परिक संगीतकारो से लेकर आरडी, लक्ष्मी-प्यारे जैसे प्रयोगशील, सभी लोगो के साथ अरेंजर्स ने काम किया और उनके काम को परवाज लगाए। एंथोनी के अलावा क्रिस पैरी, चिक चॉकलेट, फ्रेंक फर्नार्ड, सबेस्टियन डिसूजा, अल्फ्रेड रोज, दत्ता नायक अरेंजर्स के प्रमुख नाम रहे।
सत्तर और अस्सी के दशक तो आरडी बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के बेहतरीन म्यूजिक अरेंजमेंट्स से गुलजार है। बाद में नब्बे के दशक में भी वेटरन लक्ष्मी प्यारे के गानो में इन अरेंजमेंट्स के कारण ही नयापन और ताजगी रही चाहे फिर वो फिल्म हम का गाना जुम्मा चुम्मा हो या मिस्टर इंडिया का गाना काटे नही कटते ये दिन रात गाने का ओपनिंग पीस जिसमे बांसुरी, सितार, काँगो और वायलिन के समूह से बने आलिजा म्यूजिक पर अलीशा चिनॉय की मदमाती आवाज। इनके अगुआ एंथोनी गोंसाल्वेस उस दौर के लगभग सभी संगीतकारो के साथ काम किया और अपने बीस साल के करियर में एक हजार से ज्यादा गानो में अपना योगदान दिया फिर भी कभी किसी टाइटल, किसी अवार्ड पर इनका नाम न आया। इनकी मेहनत और क्रिएटिविटी का सेहरा संगीतकारो के सिर सजता। अपने और अपने साथियों के अधिकारो को लेकर हमेशा सजग रहने वाली ये लता मंगेशकर ही थीं जिन्होंने संगीत कैसेट्स पर अरेंजर्स के योगदान को स्वीकार करने का आग्रह किया था पर बदकिस्मती से हुआ कुछ नही। अब लाइव रिकॉर्डिंग नही होती है। ऑडियो सॉफ्टवेयर का जमाना है। गाना अलग गाया जाता है और बाद मे उसके हिसाब से सॉफ्टवेयर से ही म्यूजिक पीसेज को जब-जैसा-जितना जोड़ दिए जाते है। सॉफ्टवेयर में 'ऑटोट्यून' का यूज करके गायक की आवाज में कमियों तक को दूर किया जा सकता है। इन सब से अरेंजर्स को काम कम मिलने लगा है।
एंथोनी से जुड़ा एक किस्सा और है। राज कपूर की फिल्म श्री 420 के गाने 'घर आया मेरा परदेसी' गाने की रिकॉर्डिंग चल रही थी। गाने के शुरू में एक हाई पिच पर वायलिन का पीस है जिसकी रिहर्सल एंथोनी शंकर-जयकिशन के लिए कर रहे होते है। इस दौरान राज कपूर आ गए। पीस पसन्द न आया तो लगभग चिल्ला कर बोले- ये क्या बकवास है? स्वाभिमान से भरे एंथोनी ने तुरंत अपने वायलिन को पैक किया और चले गये। बाद में शंकर-जयकिशन ने राज कपूर को बताया कि वे देश के सबसे बेहतरीन वायलिन प्लेयर में से एक है। राज कपूर गुणी लोगो की कद्र करते थे।तुरन्त बुलाया, माफी मांगी। सत्तर के दशक में एंथोनी अचानक से अमेरिका में सैट हो गए। आठ-दस साल बाद लौटे, लेकिन उन्होंने अपने साथियों को अपनी वापसी के बारे में नहीं बताया। कोई अजीब कारण रहा होगा जिससे उन्होने गुमनामी में रहना चुना होगा जैसे कि उसकी सारी बिरादरी अपनी विराट प्रतिभा और अतुलनीय योगदान के बावजूद आज तक गुमनामी में रह ही रही है