गुरिंदर चड्‌ढा की ताज़ा फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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गुरिंदर चड्‌ढा की ताज़ा फिल्म
प्रकाशन तिथि :18 अगस्त 2017


भारतीय मूल की विदेश में बसी फिल्मकार गुरिंदर चड्‌ढा की ताज़ा फिल्म 'पार्टीशन 1947' का आज प्रदर्शन होने जा रहा है। भारत और पाकिस्तान के अवचेतन के ठंडे पड़े तंदूर में राख के नीचे विभाजन के कोयले आज भी दहकते रहते हैं। साहित्य और सिनेमा में समय-समय पर इन दहकते कोयलों का प्रस्तुतिकरण होता रहता है। एक लोकप्रिय विचार यह है कि इन दहकते कोयलों को प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए गोयाकि जख्म की ऊपरी मलहमपट्‌टी करते रहें परंतु नश्तर लगाकर नीचे दबे मवाद को नहीं निकालें। उसे जस का तस रहने दें। दर्द की लहर को सतह के ऊपर उठने नहीं दें। इस तरह के मवाद को पूरी तरह निकल दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह मवाद ही सांप्रदायिकता के रूप में समाज की नसों में प्रवाहित रहता है और दंगों के स्वरूप में उभरता रहता है। यही मवाद दोनों देशों के अवाम को साधनहीन बनाता जाता है। हर सामाजिक व्याधि अर्थशास्त्र के फोड़े-फुंसियों को जन्म देती रहती है। गरीबी के उत्पाद को जारी रखने के लिए इस तरह के ईंधन की आवश्यकता होती है।

बताया जा रहा है कि गुरिंदर चड्‌ढा की इस फिल्म में विभाजन के लिए तत्कालीन हुकुमते बरतानिया पर दोषारोपण किया गया है। इसके बावजूद वर्तमान ब्रिटिश हुकूमत का धन इस फिल्म में लगा है। चारों ओर समुद्र से घिरा इंग्लैंड इस तरह के खुलेपन के कारण ही अपना अस्तित्व बनाए हुए है। वे आलोचना बर्दाश्त करते हुए शक्तिशाली होते जाते हैं और हमें ठकुर सुहाती और चमचागिरी पसंद है। हमें मायथोलॉजी के पात्र बने रहना पसंद है और सत्ता के 'बाहुबली' भी यही चाहते हैं।

मोहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस के सजग सिपाही रहे हैं और जाने कैसे लंदन में प्रायोजित दूसरी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में उन्हें शामिल नहीं किया गया। यह मुमकिन है कि तत्कालीन कांग्रेस संगठन में कुछ संकीर्णता से ग्रस्त लोग थे, जिन्होंने जिन्ना को उस कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करने दिया। इस बात से जिन्ना चिढ़ गए परंतु तब भी अलग देश मांगने की कोई इच्छा उनके मन में नहीं जागी। वे एक उदारवादी बुद्धिजीवी थे। यह संभव है कि 1937 में उत्तर प्रदेश में होम रूल के चुुनाव में एक दल के प्रचारकों ने गांव-गांव, शहर-शहर यह प्रचार किया कि गणतंत्र व्यवस्था में एक आदमी का एक ही मत होता है, इसलिए स्वतंत्र भारत में हमेशा बहुसंख्यक वर्ग की सरकारें बनेंगी। इस प्रचार ने विभाजन के बीज बोए और आज तक अल्पसंख्यकों को गणतंत्र व्यवस्था से दहशत होती है।

इसके साथ ही अल्पसंख्यक जमात ने लॉर्ड मैकाले द्वारा रचित शिक्षा प्रणाली से परहेज बरता है और शिक्षा के अभाव के कारण वे आर्थिक रूप से और अधिक पिछड़ गए। यह मुद्‌दा अलग है कि लॉर्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली केवल कारकूून पैदा करती रही गोयाकि वे छोटे नट-बोल्ट बनाती रही, जो हुकूमत की मशीन को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए जरूरी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने इस रोग की नाड़ी पर हाथ रखा है और ऑक्सफोर्ड की प्रोफेसर एमिरीटस आयशा जलाल ने भी इस महीन बुनावट का गहरा अध्ययन किया है।

फिल्म बनाने की आधारशिला का कायदा है कि किसी भी समस्या पर फिल्म बनाने के लिए यह जरूरी है कि उसमें निहित हो एक प्रेम-कथा। 'टाइटैनिक' की भव्यता व निर्माण में अपार खर्च के कारण उसने सफलता का इतिहास नहीं रचा वरन उसमें प्रस्तुत प्रेम-कथा ने उसे यादगार फिल्म बनाया है। भूत-प्रेत की हॉरर फिल्मों में भी एक अदद प्रेम-कथा होती ही है। अभी तक 'किंगकॉन्ग' के जितने भी संस्करण बने सबमें उस विशालकाय प्राणी की प्रेम-कथा रही है। विज्ञान फंतासी में भी प्रेम-कथा बुनी हुई होती है। सारी आक्रोश की फिल्मों में भी प्रेम कहानी जरूरी समझी गई है।

तमाम निर्मम तानाशाहों की भी प्रेम-कथाएं रही हैं। दूसरे विश्वयुद्ध में पराजय के क्षण में हिटलर के साथ ही उसकी प्रेमिका ने भी आत्महत्या की थी। हत्यारों, डाकुओं की भी प्रेम-कथा रही है। पागलों में भी प्रेमल हृदय लोग रहे हैं और प्रेम में पागल होने वालों की संख्या भी कम नहीं है। बहरहाल, विभाजन की त्रासदी पर अनेक किताबों की रचना हुई है, कुछ फिल्में भी बनी हैं। असगर वजाहत का नाटक ' जिन लाहौर नहीं वेख्या वो जन्माइ नई' अत्यंत प्रशंसित रचना है और सरहद की दोनों ओर वह नाटक अनेक बर मंचित भी हुआ है। इसी महान नाटक का एक गीत इस तरह है- और नतीजे में हिन्दोस्तां बंट गया/ये जमीं बंट गई आसमां बंट गया/तर्जे तहरीर तर्जे बयां बंट गया/ शाखे गुल बंट गई, आशियां बंट गया/हमने देखा था जो ख्वाब ही और था/अब जो देखा तो पंजाब ही और था।' असगर वजाहत साहब, ख्वाब भी टूट-फूट गए। कुछ आंखों में उस ख्वाब के टूटें रेजे अभी तक फंसे हैं। उससे जुड़ी सत्यकथा है कि एक औरत के टीयर डक्ट जन्म से ही सूखे थे और विशेषज्ञों की राय थी कि उन आंखों में आंसू कभी नहीं बहेंगे परंतु विभाजन की त्रासदी से उसे रोना आया और बंजर टीयर डक्ट से बौछार निकली। विभाजन में हुए अनाथ बिलखते बच्चों को देखकर कुछ उम्रदराज औरतों के सीनों से दूध भी छलक आया।