गुरुजी महान हैं / दीनदयाल शर्मा
डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ऐसी शख्सियत है जिन्होंने राष्टï्रपति पद से सेवा निवृत होने के बाद शिक्षक बनने का निर्णय लिया। धन्य है डॉ.कलाम..जिनकी न$जर में शिक्षक का पद इतना बड़ा है। संत कबीर ने सच्चे मार्गदर्शक गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया है। तभी तो अपने एक दोहे में कहते हैं-'गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागंू पांय। बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय॥'
-शास्त्रों में तो गुरु को परमब्रह्म माना है। जो इस दोहे में देखा जा सकता है-'गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्एव महेश्वर:। गुरुर्साक्षात्ï परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरुवे नम:॥'
-गुरु बिना ज्ञान नहीं। गुरु बिना मोक्ष नहीं। लेकिन आज के समय में एक दो को छोड़कर गुरु कम और 'मास्टर माइण्ड' ज्यादा हैं। हर काम में मास्टर। पुरानी पीढ़ी के कंजूस मास्टर। नई पीढ़ी के खर्चीले मास्टर। दोनों का ही सोचने का दायरा सीमित। खान-पान,रहन-सहन, कार्यकलाप और व्यवहार देखते ही पता चल जाता है कि मास्टर है।
-आज के मास्टर गुटखा, जर्दा, बीड़ी, सिगरेट, पान के अलावा शराब, शबाब और कबाब के भी पूरे शौकीन। कबीरजी अगर आज $िजन्दा होते तो उक्त दोहे को अपने रचनाक्रम से ही हटा देते।
-एक बार दो गुरुजन पीने के मूड में आ गए। मूड बनते ही 'पाउच' आ गए। सलाद के रूप में पापड़, प्याज और पपीता भी प्लेेेेेट में। 'पाउच' खत्म होते ही अंग्रेजी आ गई। अब सलाद खत्म। एक गुरुजी का मूड था कि सलाद में उबले अंडे खाएं। लेकिन खाएं कैसे! चेहरे पर शराब की खुमारी और ऊपर से पहचान का खतरा। उन्होंने जंक्शन से टाउन जाने का प्रोग्राम बनाया। वहां कोई नहीं पहचानेगा। यह सोचकर स्कूटर के लगाई किक। और स्कूटर अब साठ से ऊपर दौड़ रहा था। चार मिनट में टाउन आ गया।
-एक पतली सी अंधेरी गली में अण्डे वाली रेहड़ी लगी थी। दोनों ने देखा कि तीन-चार लोग रेहड़ीवाले के पास पहले से ही खड़े हैं। कुछ देर बाद सब लोग चले गए तो गुरुजन रेहड़ीवाले के पास पहुंचे।
-एक गुरुजी बोले, 'दो-दो उबले अण्डे बनाना। और ऐसा करना..मेरे वाले अण्डों पर काला नमक छिड़क देना।'
-रेहड़ीवाला मुस्कुराते हुए बोला, 'गुरुजी, मैंने आपको देखते ही काले नमक वाली शीशी बाहर निकाल ली थी। मुझे पता है कि आप अण्डों पर केवल काला नमक ही छिड़कवाते हैं।'
-अब गुरुजी की शक्ल देखने वाली थी। चेला चौथी कक्षा तक गुरुजी से पढ़ा था और गुरुजी की रग-रग से वाकि$फ था।
-हमारे परिचित एक गुरुजी हैं। वे बड़े गर्व से बताते हैं कि उनके जितने भी चेले हैं। सब एडजस्ट हैं। कोई चाय का ढाबा चलाता है। कोई अ$खबार बेचता है। कोई पालिस करता है। कोई सब्जी बेचता है। कोई कुल्फी बेचता है। कोई टैम्पू चलाता है। कोई पान बेचता है। कोई मीट बेचता है। कोई पानी-बिजली फिटिंग करता है। कोई तगारी उठाता है। कोई समाज सेवा करता है तो कोई जेबें काटता है यानी एक भी चेला खाली नहीं है।
-गुरुजी की बात रखने के लिए लोग 'हां-हंू'कह कर गली बदल लेते हैं।
-पढ़ाई और संस्कारों की शिकायत गुरुजी से कोई करे तो वे तर्क देते हैं कि चेले हमारे पास तो केवल 5-6 घण्टे ही रहते हैं। जबकि घरवालों के पास 18-19 घण्टे रहते हैं। अब आप ही बताएं कि हम बच्चे को कितनाक ज्ञान दे सकते हैं।
-हमारे एक और परिचित गुरुजी हैं। स्कूल में 'डेली' पीकर आते हैं। लेकिन मजाल है कि वे कभी बहके हों। गुरुजी की शक्ल देखकर कोई बता भी नहीं सकता कि गुरुजी ने ड्रिंक कर रखी है। वास्तव में गुरुजी महान हैं।