गुरुदत्त का गुफा द्वार: अबरार का हलफनामा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 दिसम्बर 2017
पत्रकार सत्या सरन ने अबरार अल्वी से बातचीत के आधार पर एक किताब लिखी है, 'गुरुदत्त के साथ दस वर्ष अबरार अल्वी की यात्रा।' अबरार अल्वी पटकथा को अपनी आवाज में टेप रिकॉर्ड करते थे और सभी पात्रों के संवाद भी अदा करते थे। वे अपनी आवाज में विविधता लाने में प्रवीण थे। खाकसार को उन्होंने टोपाज़ की फिल्म 'फिडलर ऑन द रूफ' का भारतीय संस्करण सुनाया। राज कपूर टोपाज का आदर करते थे और यह फिल्म उन्हें भी प्रिय थी। 'फिडलर' में प्रस्तुत है एक रहवासी क्षेत्र, जिसमें सारे परिवार ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं परंतु केवल एक यहूदी परिवार है, जिसकी अति संुदर कन्या से सारे ईसाई मन ही मन प्रेम करते हैं। अत: राज कपूर का विचार था कि इसके हिंदुस्तानी फिल्म संस्करण में बामन बहुल इलाके में एक घर हरिजन परिवार का हो, जिसकी कन्या सुंदर है। ऐसा करने पर फिल्म विवाद में फंस सकती है गोयाकि 'पद्मावती विरोध' किसी न किसी रूप में हमेशा मौजूद रहा है। यह संकीर्णता समाज की आंतों में उस सिस्ट की तरह है, जिसके प्रश्रय में अमीबा हमेशा रहता है और समाज का मिज़ाज़ दस्तावर हो जाता है। कुछ लोग आंख के बदले आंतों से आंसू बहाते हैं। आंसू संवेदनशील मनुष्य को खून से भी ज्यादा दहला देते हैं।
फिडलर का अर्थ वायलिन वादक होता है और जुगाड़ू या तिकड़मबाज भी होता है। सृजनधर्मी टोपाज का किरदार वायलिन वादक है। मसाला फिल्मकार तिकड़मबाज चरित्र रचते हैं। संगीत आत्मा को संवारता है। टोपाज की फिल्म में हम सुंदर नायिका को ही वायलिन मान लें तो प्रेमकथा को अधिक कशिश मिलती है। राज कपूर की बरसात में नायक की एक बांह पर नायिका झूल रही है तो दूसरे हाथ में वायलिन। उनके सिनेमा केंद्र भी महिला और वायलिन रहे हैं। हमारे यहां सिनेमा तिकड़मबाज अधिक रहा है परंतु समय-समय पर संगीत गूंजता रहता है। कभी-कभी तिकड़मबाज संगीतकार बन जाता है। कंप्यूटर जनित ध्वनियों के कारण कंपोजर इलेक्ट्रिशियन-सा नज़र आता है।
गुरुदत्त 'प्यासा' और 'कागज के फूल' की संजीदगी से उबरने के लिए 'अलीबाबा और चालीस चोर' की कथा को 'कनीज़' के नाम से बनाना चाहते थे। उनकी राज कपूर से कई मुुलाकातें हुईं और वे चाहते थे कि राज कपूर अलीबाबा का पात्र अभिनीत करें। एक रात अवसाद व नैराश्य में डूबे गुरुदत्त राज कपूर को फोन पर उनके घर आने का इसरार कर रहे थे परंतु राज कपूर शराबनोशी के कारण उस रात कहीं जाने की दशा में नहीं थे। यह संभव है कि गुरुदत्त ने नींद की एक गोली खाई परंतु नींद नहीं आने के कारण दूसरी गोली भी खाई और अनजाने ही शराब के साथ अधिक गोलियां खाते रहे। अगर उन्होंने आत्महत्या की तो उसका कारण भी आप उनकी फिल्म 'प्यासा' के एक गीत में देख सकते हैं, 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?'
धागे भीतर धागे वाले गुरुदत्त को समझने के लिए यह स्मरण रखना चाहिए कि वे उदयशंकर की नृत्य पाठशाला 'कल्पना' के छात्र रहे थे। यह नाट्यशाला अल्मोड़ा में स्थित थी। गुरुदत्त ने अपनी एक प्रस्तुति इस तरह की थी कि नाचते हुए पात्र के शरीर में एक नाग उनसे गंुथा हुआ है और उसके जहरीले फन को पात्र ने हाथ से पकड़ रखा है। पूरे नृत्य में पात्र नाचते हुए स्वयं को सांप द्वारा डसे जाने से बचता रहता है। यह द्वंद्व एक रिदम पर चलता है। क्या यह कम आश्चर्य की बात है कि सपेरा नृत्य गुरुदत्त की अंतरंग मित्र वहीदा रहमान ने विजय आनंद की 'गाइड' में प्रस्तुत किया था। काली साड़ी पहने वहीदा रहमान ने उस नृत्य से दर्शको मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीदा रहमान और गुरुदत्त का रिश्ता बर्नार्ड शॉ की कृति 'पिग्मेलियन' से प्रेरित 'माय फेयर लेडी' में हम देखते हैं कि गुरु अपनी छात्रा पर मुग्ध है गोयाकि उन्हें अपनी कृति पर गर्व हो रहा है। ईश्वर भी कई बार अपने बनाए मनुष्य को देखकर चकित हो जाता है। आजकल ईश्वर हैरान हो जाता है। जीवन की शतरंज पर मोहरे स्वयं अपने विवेक से आगे जाते हैं और खिलाड़ी का नियंत्रण समाप्त हो जाता है। स्वयंभू नेता भी ऐसा ही खिलाड़ी बन जाता है, जब मोहरे स्वयं विवेक से संचालित होने लगते हैं गोयाकि अब नाचता नज़र आ रहा है सपेरा! जिरह बख्तर में सुराख नज़र आने लगे हैं।
हम टोपाज के फिडलर में जातिवाद का जहर देखते हैं। जाति और धर्म मनुष्य के प्रेम की राह में स्पीडब्रेकर की तरह दिखाई पड़ता है। सारी सरहदें भी विभाजन ही करती हैं। अंग्रेजों द्वारा भारत को बांटकर राज करने वाली नीति आज भी जारी है और मजे की बात है कि जो आज भी उस पर अमल कर रहे हैं, उन्होंने कभी अंग्रेजों का भी विरोध नहीं किया।
बहरहाल अबरार अल्वी ने गुुरुदत्त के साथ दस वर्ष बिताने के बाद भी उन्हें समझने में चूक कर दी। कौन कहता है कि जो आपके सबसे करीब है, वह आपको सबसे अधिक जानता भी है। मनुष्य का यह अबूझ रहस्य बना रहना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।