गुरुदत्त की सृजन प्रक्रिया में गीता का गीत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :20 अप्रैल 2015
गीता दत्त का प्रसिद्ध गीत है, 'प्रीतम आन मिलो, दुखिया जिया बुलाए, प्रीतम आन मिलो, भीगी रात को पेड़ के नीचे आंख मिचौली खेल रचाए, प्रीतम आन मिलो।' गुरु दत्त की 'मिस्टर एंड मिसेज 55' में यह गीत पार्श्व में क्लाइमैक्स के दृश्यों के समय इस्तेमाल हुआ हैं। यह ओपी नैयर की पुरानी धुन है जो लाहौर रेडियो पर भी रिकॉर्ड की गई थी। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त और गीता दत्त की शादी गुरिल्ला युद्ध की तरह रही। जब भी पति या पत्नी को अवसर मिला, उन्होंने एक-दूसरे को हताहत किया और अपने अहंकार के पर्वतों के पीछे छुप गए। यह संभव है कि 'मिस्टर एंड मिसेज 55' के निर्माण के समय गुरुदत्त के मन में गीता को हताहत करने का पछतावा हो और इस गीत का प्रयोग सार्वजनिक क्षमा याचना की तरह हो। प्रेम-पत्रों का एक यह रूप भी है और सृजनधर्मी लोग इसी तरह प्रेम भी करते हैं और इसी तरह युद्ध भी करते हैं, जिसमें कोई लहूलूहान नहीं होता।
इस फिल्म के कुछ वर्ष पश्चात उन्होंने अपनी सबसे प्रिय एवं महत्वाकांक्षी फिल्म 'कागज के फूल' बनाई। उस समय तक शायद रिश्ते काफी बिगड़ चुके थे परंतु गुरुदत्त ने फिर गीता की ओर हाथ बढ़ाया और इस बार 'प्रीतम आन मिलो' की पंक्तियों से प्रेरित बिम्ब बनाए। याद कीजिए, 'कागज के फूल' में जब नायक पहली बार नायिका से मिलता है तब भारी वर्षा हो रही है और वृक्ष के नीचे खड़ा नायक अपनी कार का इंतजार कर रहा है। उसी वृक्ष के नीचे गरीब नायिका कुछ 'भीगी भागी-सी' वृक्ष के नीचे खड़ी है और नायक उस ठिठुरती गरीब स्त्री को अपना कोट पहना देता है। उसकी कार आ चुकी है, उसे कोट की आवश्यकता नहीं। क्या यह गीता के गीत 'भीगी रात को वृक्ष के नीचे क्या खेल रचाए' का बिम्ब अनुवाद नहीं है? इसी ओवरकोट की जेब में उस नायक का पता है और नायिका कोट लौटाने ही स्टूडियों आती है और उसके अनजाने ही वह चालू कैमरे के सामने आ जाती है। बाद में संपादन के समय नायक फिल्मकार उस अनिच्छुक लड़की को परदे पर देखता है और उस में अपनी पारो नजर आती है। उस समय वह 'देवदास' बना रहा था। 'कागज के फूल' का सारा घटनाक्रम 'भीगी रात में पेड़ के नीचे आंख मिचौली खेल रचाएं' गीत के बिम्ब अनुवाद से प्रारंभ होता है अर्थात जब गुरु दत्त की सृजन प्रक्रिया के केंद्र में वहीदा रहमान थीं तब भी अवचेतन की कंदरा के किसी छुपे कोने में गीता दत्त बैठी थीं। सृजक की यादें उसका औजार हैं और विज्ञान अभी तक सृजन प्रक्रिया के रहस्य को समझ नहीं पाया है। सृजन दैवी आशीर्वाद नहीं है, वह बड़े जतन से मनुष्य के द्वारा की गई खोज है। सृजन प्रक्रिया वह कस्तूरी है, जिससे स्वयं हिरण सारी उम्र अनभिज्ञ रहता है। सृजक भी अपनी खोज से अनभिज्ञ रहते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 'रामायण' और 'महाभारत' में महत्वपूर्ण प्रसंग हिरण से जुड़े हैं। सीता के आग्रह पर राम सोने के हिरण का पीछा करते हैं और 'महाभारत' में पांडू हिरण रूप में रति क्रिया करते महात्मा को अनजाने मार देते हैं। क्या हिरण के कस्तूरी रहस्य के कारण ही उसे बार-बार प्रतीक के रूप में महाकाव्यों में इस्तेमाल किया गया है? आज तो हमारे देश में हरे भरे वन ही विकास की भेंट चढ़ गए हैं, अत: हिरण खोजने विदेश जाना होगा।
इसी कॉलम में लिखा जा चुका है कि कैसे 'कालाबाजार' का क्लाइमैक्स ही अपने विराट रूप में 'गाइड' का क्लाइमैक्स बनता है। राज कपूर की पहली फिल्म 'आग' ही कुछ और परिमार्जित होकर 'मेरा नाम जोकर' के रूप में सामने आती है। मनुष्य के सारे कार्य कभी नहीं खत्म होने वाले टेप की तरह हृदय में बजते रहते हैं। पूरा जीवन ही एक आलाप है और सम पर आते ही खेल खत्म हो जाता है। व्यवस्था ऐसे हालात रचती है कि मनुष्य सारा समय विलाप ही करता रहता है, उसे आलाप का अवसर ही नहीं मिलता।