गुरु कृपा भवन / सुरेश सौरभ
मुख्य द्वार की घंटी बजी। "देखो कौन है?" साहब ने नौकर को आदेशित किया।
नौकर गेट की ओर दौड़ा। "आइए! आइए! ... आप की ही चर्चा, साहब जी, कर रहे थे।" गेट खोलते हुए नौकर ने, उससे कहा। वह दबे-दबे पैरों से आगे बढ़ा। ...सामने, लॉन में, साहब जी मोबाइल में अति व्यस्त थे। उनकी आँखें और उंगलियॉ मोबाइल की स्क्रीन पर निरन्तर नाच रहीं थीं। ...नमस्कार सर...दोनों हाथ जोड़े, अब वह साहब के सामने, मूर्ति-सा जड़वत खड़ा था। उचटती निगाहों से देखा साहब ने, सिर ऊपर-नीचे हिलाते-डुलाते हुए... हूॅ। हूॅ... मुँह में उनके पान मसाला भरा था, लिहाजा मूक भाषा में सामने बैठने का इशारा किया। वह बैठ गया।
मोबाइल पर सिर झुकाए-झुकाए साहब रोब में बोले-हाँ पन्द्रह हजार लाये हो?
" जी! जी! नहीं?-भय-विस्मय से थोड़ा हकलाते हुए।
पिच पिच... पास में रखी हरी डस्ट बिन में थूक, साहब बोले-और बुलाया घर पर किस लिए था? स्कूल समय से जाओगे नहीं? मिड डे मील बाँटने का शेड्यूल बता नहीं पा रहे हो। गंदगी इतनी है स्कूल में, ऐसा लगता है, स्कूल नहीं बिल्कुल तबेला है। "
" सर! उसी दिन लेट हो गया था। इसलिए हड़बड़ी में मीनू का क्रम भूल गया। सर जी! आप तो जानते हैं, स्कूल में बॉउंडीबाल नहीं है? इसलिए आवारा पशु घुस आते हैं और...
"अरे यार, उसकी बात बीच में ही काट... जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बिफरे," अब मुझे ज्यादा कहानी न समझओ। तुम जानते हो, मुझे ज्यादा बकलोली पसंद नहीं और न मेरे पास तुम्हारे जैसे फालतू लोगों के लिए इतना टाइम है?
" लेकिन सर...
"शटऑप...चार पाँच शिकायतें आईं हैं, तुम्हारे क्षेत्र से, मुख्यमंत्री पोर्टल पर अगर भिजवा दिया तो बढ़िया काम हो जाएगा तुम्हारा, समझे।"
फक्क...उसका चेहरा एकदम पीला पड़ गया। लरजते शब्दों में बोला-सर सर सर... अभी पैसे नहीं हैं। सैलरी आने पर...
"हाँ हाँ... एक हाथ मोबाइल से जुदा कर, थोड़ा ऊपर-नीचे उठाते हुए, उसे कुछ तसल्ली देते हुए," ठीक है... ठीक है...
"कुछ रियायत कर दें सर...आगे से ऐसा न होगा।" वह गिड़गिड़ाया।
साहब, पूरी तन्मयता से मोबाइल में घुसे थे। याचक पर रहम खा कर बोले-ठीक है, तुम बेटा दस हजार देना। तुम्हारे व्हाट्सअप पर अपना एकाउंट नं। भेज रहा हूँ, जैसे सेलैरी आए, फौरन गूगल पर से भेज देना, इससे ज्यादा अब कोई रियायत नहीं? नौकरी बची रहे, बस इसकी चिन्ता करो, वर्ना लकड़ी बनाने वाले पचासियों जने हैं। "
" जी जी! अनमने से बोलते हुए... साहब के आगे नतमस्तक होते हुए, जाने की उसने अनुमति ली। गेट के बाहर आया। उसका भयाक्रान्त चेहरा ऐसा लग रहा था, जैसे शेर की माँद से, बड़ी जद्दोजहद से, कोई मेमना बच कर निकला हो, तभी उसकी नजर साहब की ऊँची इमारत के नीचे गेट पर पड़ी, जहाँ लिखा था 'गुरु कृपा भवन' ... टिन्न... उसी वक्त फोन पर, सैलरी का मैसेज गिरा। अब मेमना भयमुक्त हो शेर की तरह शान से मूँछे तान चला जा रहा था।