गुरु जी का टाइम पास / दीनदयाल शर्मा
एक सरकारी स्कूल का दृश्य। स्कूल परिसर में दरी पर पांच गुरुजन और तीन मैडमें हैं। दो गुरुजन लेटे-लेटे बातों में मशगूल हैं। एक अ$खबार पढ़ रहे हैं। एक खर्राटे ले रहे हैं। एक गुरुजी मैडमों की न$जरें बचाकर जर्दा लगा रहे हैं। तीनों मैडमें बातें कम और हँस ज्यादा रही हैं।
-घण्टा लगे आठ मिनट बीत चुके हैं। जर्दा लगाने वाले गुरुजी धीरे-धीरे कदमों से पेशाबघर की ओर बढ़ रहे हैं। एक गुरुजी पेशाबघर में पहले से ही खड़े हैं। कुछ देर बाद भीतर वाले गुरुजी बाहर आ गए।
-पेशाब करना है?
-पेशाब क्या करना है यार? फिर वे मुस्कराते हुए बोले-हम तो बस टाइम पास कर रहे हैं।
-सब टाइम पास ही तो करते हैं।
-आजकल टाइम पास भी तो नहीं होता। पेशाब भी कितनी बार करें। मैं तीसरी बार आ रहा हंू। अ$खबार भी दो बार पढ़ लिया। दो बार चाय पी ली। घड़ी है कि चलने का नाम ही नहीं लेती। और जब स्कूल आना होता है तो घड़ी के मानो पंख ही लग जाते हैं। मैं तो रोज लेट हो जाता हंू।
-तुम क्या एक-दो को छोड़कर दुनिया लेट आती है। तुम मानते तो हो कि लेट आते हो। कुछ ऐसे भी हैं जो लेट भी आएं और रौब भी जमाएं। 'यथा राजा तथा प्रजा' वाली बात यहां लागू नहीं होती। यहां तो 'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' सटीक है।
-आओ...कक्षा की ओर चलते हैं। नहीं तो हैडसाब यंू ही 'प्यां-प्यां' करेंगे।
-इनकी तो आदत है 'प्यां-प्यां' करने की। दोनों साथ चल पड़ते हैं तभी एक बोला-क्या बात है पेशाब नहीं करोगे?
-ना रै...मैं तो यंू ही आ गया था इधर। जाना तो कक्षा में था। पर पता ही नहीं चला। यहां आने के बाद पता चला कि मैं पेशाबघर के पास हंू। चलो...आओ चलें।
-और वे बातें करते-करते पानी की टंकी के पास आ गए। दोनों ने हाथ धोए। कुल्ला किया। घण्टा लगे हुए अब पंद्रह मिनट हो गए। तभी एक लड़का उन दोनों गुरुजन के पास आया और बोला-सर, सारे बच्चे शोर कर रहे हैं जी।
-चल, मैं आ रहा हंू। एक गुरुजी बोले। लड़का कक्षा की तरफ जाने लगा। गुरुजन दबी आवा$ज में बातें करने लगे। एक बोला-बच्चों को मारना-पीटना मत। टाइम बहुत खराब है। पढ़ाई करवा कर तुम्हें कौनसे कलैक्टर बनाने हैं।
-तभी एक और लड़का आकर दूसरे गुरुजी से बोला-गुरुजी, हमारी कक्षा में सभी बच्चे शोर मचा रहे हैं जी।
-तो मैं क्या करूं?
-आपका पीरियड है जी।
-मेरा चुप करवाने का पीरियड नहीं है। चलो..कक्षा में चलो..मैं आ रहा हंू। बच्चा मायूस होकर कक्षा की तरफ जा रहा है।
-यार हैडसाब भी कम नहीं है...कोई पांच-चार मिनट कक्षा में नहीं पंहुचे तो बच्चे बुलाने आ जाते हैं।
-हां यार, हैडसाब सारे दिन 'डांग' ही रखते हैं। चलो, कक्षाओं में जाना तो पड़ेगा ही। और वे दोनों अपनी-अपनी कक्षाओं की तरफ जाने लगे। घण्टा लगे अब बीस मिनट हो चुके हैं।
-गुरुजी जैसे ही कक्षा के दरवाजे पर पहुंचे..बच्चों का शोर बंद। गुरुजी अब कक्षा में पधारे। बच्चे उनके सम्मान में खड़े हुए। गुरुजी बोले-बैठ जाओ..और अपनी-अपनी किताबें निकालो। जिनके पास किताबें नहीं हैं, वे खड़े हो जाओ। सात बच्चे खड़े हो गए।
-क्यंू भई, किताबें क्यंू नहीं लाए? पढऩा नहीं है क्या? जब सरकार फ्री में किताबें देती है, फिर लेकर क्यों नहीं आते? तुम इधर आओ..थोड़ प्रसाद ले लो। बिना किताब वाले सातों बच्चों की अच्छी तरह धुनाई करके गुरुजी हाथ झाड़ते हुए कक्षा से बाहर आ गए। कक्षा से जाते-जाते बोले-कल सब बच्चे किताबें लेकर आना..तभी पढ़ाऊंगा। समझे?
-'हां जी।' सब बच्चे एक साथ बोले।
-कोई भी लड़का शोर-शराबा नहीं करेगा। चुपचाप पढ़ाई करना। फिर एक लड़के की ओर इशारा करके बोले-तुम ऐसा करना.. शोर करने वाले बच्चे का नाम लिख लेना। और अब..गुरुजी विद्यालय परिसर में बिछी दरी की ओर बढ़ रहे थे।