गुलबिया, खण्ड-10 / आभा पूर्वे
ऊ दिन जबेॅ वें खेत जाय लेली तैयार होलोॅ छेलै, भाय नें खेत जाय सें मना करै छेलै। भाय के बात उठाय देनें छेलै आरो जाय लेॅ निकलै छै, ई देखी केॅ जोगबनी गुस्साय गेलोॅ छेलै। ओकरोॅ हाथ पकड़ी लेलेॅ छेलै आरो गाल पर एक थप्पड़ जड़ी देलेॅ छेलै। ओकरोॅ बादो वें केन्होॅ हाथ छोड़ाय केॅ भागै रोॅ कोशिश करलेॅ छेलै। ऊ गिरी पड़लोॅ छेलै। तखनिये भौजायो बिमली आबी गेलोॅ छेलै। ओकरा भर पांजा पकड़ी केॅ घर भीतरी लेॅ गेलोॅ छेलै। तखनी की रं बाघिन बनी केॅ वें अपनोॅ भौजाय केॅ बिछौना पर गिराय देलेॅ छेलै आरो पता नै वें अपनोॅ भौजाय केॅ की करी देलेॅ रहतियै जों तखनिये भैया नै आबी गेलोॅ रहतियै। भाइयो ओकरोॅ रूप देखी केॅ डरी गेलोॅ छेलै। हमरोॅ ऊ रूप-बिंडोवो वाला आंधी-तूफान वाला बडका-बड़का गाछी केॅ जड़ोॅ सें उखाड़ी दै वाला अंधड़ बताश। तहियो गोस्साय केॅ दांत पीसतें भैया बोलै छै, "आय संे तोरोॅ खेत जैवोॅ बंद।" हम्में गोस्साय केॅ पूछलेॅ छेलियै, "कैन्हें?"
भाय पूछनें छेलै, "कैन्हें, हौ की तोरोॅ आपनोॅ खेत छौ कि तों वहाँ जैबे करबे? ऊ के होय छौ तोरोॅ?"
'के होय छौ तोरोॅ' , ऊ ई बात सुनथैं तखनी की रं के होय गेलोॅ छेलै। ओकरा लागलोॅ छेलै की जीवन के आखरी बेला में ओकरा सें कोय एक सत्य बात पूछलेॅ रहै। आरो तब झूठ की बोलना छेलै। वहू मुंह फाड़ी केॅ साफ-साफ कही देलेॅ छेलै, " सुनै लेॅ चाहै छौ तेॅ सुनोॅ, बलेसर के होय छै हमरोॅ? बलेसर हमरोॅ होय वाला पति छेकै, हमरोॅ सुहाग। आरो सुनी लेॅ। हाँ, हाँ, ऊ हमरोॅ खेत छै। एत्ता दिन हम्में ऊ खेत सें अपने नै, तोरो दोनों के पेट भरलोॅ छेलियै। तखनी कैन्हे नै रोकलेॅ छेलौ, जे आय हमरा कैन्हे ऊ खेत जाय सें रोकी रहलोॅ छौ।
आय दोनों के अंतड़ी भरै वाला कोय दूसरोॅ घरोॅ में आबी गेलोॅ छै की? याकि हमरा घरोॅ में बांधी केॅ अब हमरोॅ देहोॅ के कमाय खाय लेॅ चाही छौ"।
हमरोॅ बात सुनथैं भैया केत्ता बाघ-चीता होय गेलोॅ छेलै। आरो ठीक बाघे नांखी ओकरोॅ गल्लोॅ पकड़ी लेलैॅ छेलै, जेना कि कोय बाघ अपनोॅ पंजा केॅ अपनोॅ शिकार पर राखी देलेॅ रहै। आरो केन्होॅ दहाड़तें हुवेॅ कहलेॅ छेलै, "हरमजादी, औरत जात होय केॅ मरदाना केॅ पोसै के बात करैं छैं। तोरोॅ हेनोॅ पचास औरत ई घरोॅ में होतै तेॅ हम्में असकेल्ला ओकरा खिलाबेॅ पारौं, ओकरा में तोरोॅ देह के कमाय हम्में खैबै"। पता नै भैया की करी देतियै। ऊ तेॅ संजोग रहै कि तखनिये कोय दरवाजा पर कुंडी खटखटैलेॅ रहै।
पटेल सिंह नें आबी केॅ हांक पारलकोॅ छेलै। हांक सुनथैं भैया द्वारी दिस हड़बड़ैलोॅ भागलोॅ छेलै। भैया आरो पटेल सिंह के बीच होय वाला सबटा बात हम्में ठीक-ठीक सुनलेॅ छेलियै। पटेल सिंह कही रहलोॅ छेलै, "देख रे जोगबनिया, तों अपनोॅ बहिन केॅ बांधी केॅ रख, कोय तरह के हंगामा खड़ा नै करैं। आरो जेत्ता जल्दी होय छौ ऐकरोॅ बीहा करी केॅ ई गाँव सें बाहर कर। ई बात हम्में तोरा कल्हो कही देलेॅ छेलियौ।" तेॅ भैया के आवाज सुनाय देलेॅ छेलै। वें पूछी रहलोॅ छेलै, "मतरकि मालिक, एत्ता जल्दी हम्में एकरोॅ बीहा कहाँ करबै।" पटेल सिंह नें गल्लोॅ आरो टांस करी बोललेॅ छेलै, "जेना भी हुवेॅ, बीहा तेॅ करै लेॅ पड़तौ, नै कोय मिलै छौ तेॅ तोंही बीहा करी लैं अपनोॅ बहिन सें"। भैया के मुंह के बोली जेना छिनाय गेलोॅ रहै। पर मरदानगी झाड़ै वाला भैया पटेल सिंह के सामना में मौगी नांखी गुड़मुड़ाय गेलोॅ छेलै।
तखनी भैया केत्ता घिघियैलोॅ आवाज में पटेल सिंह सें कहनै छेलै, "है की कहै छोॅ मालिक, कोय हिन्दू कि अपनोॅ बहिन सें भी बीहा करै छै। हेनोॅ पाप बोली कैन्हे बोलै छियै।" वैं एकदम चुपचाप होय गेलोॅ छेलै।
आरो नै जानौं तखनी भैया के बदला पटेल सिंह पर हम्में की रंग खंखूआय उठलोॅ छेलियै। कहलेॅ छेलियै, "ई विष के गाछ जंगलोॅ सें उखाड़ी देना चाहियोॅ, सौंसे जंगल माहूर-माहूर करी रहलोॅ छै।" हमरोॅ बात पटेल सिंह पर ठीक-ठाक लगलोॅ छेलै। मतरकि नै जानौं की सोची केॅ ऊ कुछु शांत बनलोॅ रहलोॅ छेलै। आरो जखनी भैया द्वारी सें ऐंगना दिस ऐलोॅ छेलै, ओकरोॅ अंटी मेंकुछु छेलै। ज़रूरे ऊ टका के गड्डी होतै। हमरा बेची दै वास्तेॅ पटेल सिंह नंे ऊ टका हमरोॅ भाय केॅ थमैलेॅ होतै।
"अरे, तों सिनी आदमी थोड़े छौ। आदमी के नाम पर एकटा कलंक छौ। पैसा आगू में सब ईमान-धरम बेची आबै छौ। तोरोॅ सिनी रोॅ तेॅ कुत्ता रंग जी लपलप करै छौं-जेना कुत्ता केॅ हड्डी कहीं नजर आबै छै, ओकरोॅ सौंसे बदन ओकरा पर लपकी पड़ै छै। तों सिनी पैसा आगू में कुत्ता नाँखी होय जाय छौ। जे टका वास्तें बहिन केॅ बेची दै, ऊ भाय की, मनुखो नै। कुत्ता हड्डी केॅ चबैतें अपनोॅ जबड़ा के खून चाटेॅ लगै छै। तोहों वहै रं छौ, अब पैसा लेली अपने बहिन केॅ बेची रहलोॅ छौ।"
भाय हमरोॅ ई सब बात सुनी केॅ आरो गोस्साय उठलोॅ छेलै। आरो गाल पर खींची केॅ दनादन केत्ता थप्पड़ मारलकोॅ छेलै। तखनी हम्मूं एकदम नागिन नांखी फंुफकारतें खाड़ी होय गेलोॅ छेलियै। आरो कहलेॅ छेलियै, "मरदानगी झाड़ै छौ, हम्मू अपनोॅ बलेसर केॅ बुलाय केॅ लानै छियाैं, फैसला करी लियौ की केत्तोॅ बड़ोॅ मरद? जनानी पर जोर दिखाय केॅ कोय मरद बनै छै।" आरो ई कही केॅ हम्में द्वारी दिस भागलोॅ छेलियै कि भाय नें झपटा दै केॅ हमरा पकड़ी ले लेॅ छेले।
...गुलबिया केॅ अनचोके अपनोॅ माथा के कोकड़ी में खूब दरद बुझाबै लागै छै..., भाय नंे की रं हमरोॅ बाल खींची वाहीं पर मोटोॅ-मोटोॅ रस्सी सें कस्सी केॅ बांधी देलेॅ छेलै। हम्में कसमसैतें रही गेलोॅ छेलियै। मतरकि टस सें मस नै हुवेॅ पारलोॅ छेलियै। आखिर मरद जात के बल के आगू जर-जनानी के ताकते की रही जाय छै। आरो हम्में विवश होय केॅ रही गेलोॅ छेलियै।
...ओकरा फिनू याद आबै छै बलेसर के. वें ज़रूर अपनोॅ खेत पर हमरोॅ आसरा देखतेॅ होतै, मतरकि कभीयो नै मिलेॅ पारलियै हम्में। ऊ दिन जे संझकी घर ऐलोॅ छेलियै, तखनिये बलेसर सें मिललोॅ छेलियै। केत्ता खुश छेलै। हमरा अपनोॅ बांही में बांधी केॅ कहलेॅ छेलै, "देखौ, गुलाबो, अब हमरोॅ तोरोॅ जिनगी के सबसें बड़ा सुख के दिन भी नगीच आबी रहलोॅ छै। जोॅन दिन ई खेत के सबटा केला बिकी जैतै, हम्में तोरोॅ घर पर आबी केॅ तोरोॅ भाय-भौजाय सें जिनगी भर वास्तें तोरोॅ हाथ मांगी लेबौं। हाँ, ऊ दिन बहुत जल्दिये ऐतै। जब हम्में अपनोॅ यही हाथोॅ सें तोरोॅ ई दुधिया सीती में फलाशे हेनोॅ सिनूर के रंग भरी देबौं।" ...ई बात याद ऐतैं गुलाबो के हाथ अपनोॅ मांगों पर चललोॅ जाय छै। ओकरा लागै छै अभियो ओकरोॅ मांग दूधिये बनलोॅ छै। एकदम सुन्नोॅ-सुन्नोॅ। केकरो हाथ सें सिनूर पिन्है के आकांक्षा में बेचैन।
...बलेसर केॅ केत्ता व्याकुल होय केॅ कहलेॅ छेलै, "हम्में तोरोॅ पास जलदिये ऐभौं।" केत्ता गद्गद होय गेलोॅ रहै हमरोॅ मन। मतरकि भगवान हमरे वाम होय गेलोॅ रहै। ऊ दिन सें घर ऐतैं कहीं सुख के पहिया एकाएक पलटी गेलोॅ छेलै आरो सुख कहीं उल्टी केॅ गिरी गेलोॅ छेलै। ऊ दिन सें आय दिन तांय खाली दुखे-दुख तेॅ देखलेॅ छेलै गुलबिया नें। एक्को दिन नै बढ़िया सें खैलकोॅ छेलै, नै बढ़िया सें सुतलेॅ छेलै। की हठाते ओकरा फेनू बलेसर के ख्याल आबी जाय छै-की होलोॅ होतै बलेसर के. ओकरोॅ खेत बिकलोॅ होतै की नै। ज़रूरे भूमि बाबू ओकरोॅ खेत बिकबाय देलेॅ होतै। चाहै भूमि बाबू रहै या पटेल सिंहµ एक राक्षस के दू आँख। ज़रूर बलेसर के सुख शांति घर-द्वार, सब संपत निगली गेलोॅ होतै।
बलेसर के तेॅ घरोॅ-द्वार रूक्का पर लिखबाय लेलेॅ छेलै। अब वें घर-द्वार सें लैकेॅ केला खेत तांय सब कुछ हारी गेलोॅ होतै। नै जानौं, कहाँ रहतेॅ होतै, की खैतेॅ होतै, हमरोॅ बिना तेॅ ऊ आरो टूटी केॅ रही गेलोॅ होतै।
हमरोॅ बिना एक्को दिन खाना नै खाय छेलै ऊ। जब तलक कौरी संेॅ खिलाय नै छेलियै, खाय नै छेलै। केत्ता मनाय-मनाय केॅ खिलाय लेॅ पड़ै छेलै। मरद के मन भी एत्ता जनानी रं होय छै, ई तेॅ हम्में पहली बार जानलेॅ छेलियै बलेसर के संग रही केॅ। सचमुच में मरद अर्धनारीश्वर होय छै, आधा मरद आरो आधा जनानी। अब ओकरा के खिलैतैॅ होतै। खैते होतै की नै खैतेॅ होतै। घर-द्वार सें टूटलोॅ आदमी केॅ के पूछै छै। हमरोॅ याद में तेॅ आरो पगलाय गेलोॅ होतै। कोय एकटा पंछियो नै मिललै, जेकरा सें ओकरोॅ हाल-चाल जानतियै।
ऊ जतना बलेसर के बारे में सोचै छै, ऊ उत्ते ओकरोॅ नेहोॅ में भींजलोॅ बनलोॅ जाय छै, जेना की पानी में मिसरी घुलतेॅ हुवेॅ, नोॅन घुलतेॅ हुवेॅ कि हठाते ओकरा लागै छै कि द्वारी पर बलेसर आबी केॅ खाड़ा होय गेलोॅ छै। हांक पारी रहलोॅ छै, "गुलाबो, हम्में आबी गेलियौ। कै रोज सें हम्में तोरोॅ बिना खाना नै खैलोॅ छियै। एक्को कौर खैले नै जाय छै गुलाबो, हम्में आबी गेलियौं।" ...गुलाबो है सोचै नै पारै कि ई इक सपना छेकै, ई सच नै छेकै, तहियो ऊ धड़फड़ाय केॅ उठै छै आरो द्वारी दिस भागै छै। मतरकि कोठरी के किबाड़ तेॅ बंद छै। वें माथोॅ पटकी-पटकी चीखना शुरू करै छै, "किबाड़ खोलौ। हमरोॅ बलेसर आबी गेलोॅ छै, द्वारी पर खाड़ोॅ हमरा हांक दै रहलोॅ छै। हम्में बलेसर बिना नै रहै पारौं।"
गुलाबो घंटा भरी आपनोॅ कपार किबाड़ पर पटकतेॅ रही छै बलेसर के नाम लै-लै केॅ। पहलके नाँखी द्वारी पर कुछु जर-जनानी जुटी गेलोॅ छै। बच्चो-बुतरू खेल-तमाश बुझी केॅ आबी गेलोॅ छै। बसंत आपनोॅ कोठरी में गुस्सा में साँपें नाँखी फंफकारी रहलोॅ छै, आपनोॅ सारा विष ओकरा पर उतारी केॅ ओकरा आय मारियै देतै। बसंत के माय अपनोॅ बेटा केॅ कसी केॅ पकड़लेॅ होलोॅ छै। कही रहलोॅ छै, " बेटा है नै करैं। मरी हेराय गेलौ तेॅ जिनगी भर वास्तंे कोर्ट-कचहरी आरो जेल देखै लेॅ पड़तै। आरो हुन्ने केबाड़ी पर गुलाबोॅ के माथोॅ पटकबोॅ, चिचियैबोॅ जारी छै पहिलके नांखी। कै दिनकोॅ नांखी।
ई बात के खबर समूचा गांमोॅ में फैली जाय छै। बसंत आपनोॅ कनियांय केॅ पागल करी देनें छै। हां, पागल करार करी देला के बादो बसंत गुलाबो केॅ रोजे-रोज मारबोॅ-पीटबोॅ भी नै छोड़ै छै। आरो गुलाबीयो जेना ई बातोॅ के अभ्यस्त होय गेलोॅ छै। ई देखी-जानी केॅ टोला-पड़ोस के जोर-जनानी बसंत माय केॅ समझैतें रहैै छै, "हेना नै करवाबोॅ बसंत माय, बसंत केॅ कुकर्म करै सें रोकोॅ। जल्लादो है रङ जीव-जंतु केॅ नै काटै छै जेना कि बसंत आपनोॅ कनियैनी केॅ पीटै छै। अबेॅ तेॅ ऊ तोरोॅ घरोॅ के इज्जत छेकौं। हेनोॅ जुलूम नै करौ, आखिर तेॅ ऊ एक जित्तोॅ इंसान छै। ई रङ गरजबोॅ अच्छा नै होय छै।" खाली टोला-पड़ोसे के जौर-जनानीये नैं जे आबै छै, है बात समझाबै छै, जवान-जुहान सें लै केॅ बड़ोॅ-बूढ़ोॅ तांय। आखिर में बसंत कुछू शांत भै जाय छै।
आरो जेना-जेना बसंत नरम पड़लोॅ जाय छै, होना-होना गुलबिया आरो उग्र होलोॅ जाय छै, जेना बिना कुछू फैसला के ऊ चुप नै बैठतै। ऊ सांझे जबेॅ तेतरी के दादी बसंत माय सें जोरन मांगै लेॅ ऐलोॅ छेलै तेॅ बाते-बात में पंचायतो के बाद खुली गेलै। बात शुरू करलेॅ छेलै बसंते माय नें, मतरकि अंत होलोॅ छेलै तेतरी दादी सें।
तेतरी दादी नें फुसफुसाय केॅ नै, मतरकि टनकोॅ गल्लोॅ सें कहलेॅ छेलै, "हेकरा में सोचै-विचारै के की ज़रूरत, देहोॅ पर है रङ गुरोॅ पालै के जगह फोड़ी केॅ बहाय देबौ ही अच्छा। पंच बैठाय लेॅ आरो जेकरोॅ पक्षोॅ में फैसला होतै, होकरे जीत।"
तेतरी दादी के बात सुनी केॅ बसंत माय कहनें छेलै, "धीरें बोलोॅ माजी, संपिनिया सब्भे सुनतें होथौं, सुतै के ढोंग करतें रहै छै, आरो जागले-जागले सब सुनतें रहै छै।"
मतरकि तेतरी दादी होने टनकोॅ गल्लोॅ सें कहनें छेलै, " अरे यै में सुनै, नै सुनै के की बात छै, पंच जे फैसला देतै, ऊ तेॅ सब्भे केॅ मानै लेॅ लगतै। आरो हमरा तेॅ लागै छौं पछियारी वाली कि फैसला तोरोॅ पुतैहिये के पक्षोॅ में होतौं। सौंसे गांव में हल्ला छौं कि बसंत रोजे आपनोॅ कनियैनी केॅ गाय-बैल नांखी डंगाबै छै। आरो फेनू तोरे बेटा यहू हल्ला करी देनें छै कि ओकरोॅ कनियांय पगलिया छै। आबेॅ पछियारी वाली तोहीं कहौ कि पगलिया केॅ घरोॅ में राखै सें की फायदा, हमरा तेॅ लागै छै कि पंच यही कहतौं कि गुलाबो केॅ ओकरोॅ नैहर जाय लेॅ देना चाहियौ, ओकरोॅ दिमाग ठीक होतै की खराबे रहतै, ओकरोॅ नैहरा वाला जानै।
तेतरी दादी जोरन लै केॅ चल्लोॅ गेलै, आरो आपनोॅ कोठरी मेंठिक्के सुतै के बहाना करतें गुलाबो नंे कान तेज करनें सब्भे सुनी लेनें छेलै, आरो ओकरोॅ चेहरा पर एक बारगिये ढेरे चमक उतरी गेलोॅ छेलै, जेना कै माघ महीना के कुहासा फाड़ी केॅ सुरूज के किरण गाछोॅ पर खिली गेलोॅ रहै। मतरकि गुलाबो नें आपनोॅ ई रूप आरो भाव एकदम छुपाय लेनें रहै आरो वै दिनोॅ के बादे सें ओकरोॅ पगलपंथी आरो बढ़ी गेलै।
अनचोके ई परिवर्तन सें बसंत माय आरो घबराय गेलोॅ छेलै। जे बातोॅ वास्तें ओकरोॅ मोॅन तैयार नै होय रहलोॅ छेलै, ओकरोॅ वास्तें ऊ एकदम तैयार छैµअच्छे होतै पंचा बैठाय लेबै। पंच पुतैहिया के पक्षो में फैसला नहियो देतै तेॅ कही सुनी केॅ दिलवाय देलोॅ जैतै। अबेॅ एकरोॅ है घरोॅ सें निकलिये जाना अच्छा होतै, जेत्तेॅ जल्दी हुवेॅ।
आरो सप्ताह भरी के बादे गांव के पछीयारी टोला के बरगद गाछी नीचें पंचायत बैठलोॅ छेलै। ठीक सांझ के पांच बजे पंच सिनी गाछी तरी जुटी गेलोॅ छै। पंच आबै के पहिनें टोला के सब्भे जोर-जनानीयो के भीड़ पहनें सें जुटी केॅ तैयार छै। सब्भे केॅ एक्के उत्सुकता छै कि आय पंचायत की फैसला करतै। फैसला गुलबिया के पक्ष में होतै की बसंतोॅ के पक्षोॅ में। यही उत्सकुता केॅ शांत करै लेली गांव के बड़ोॅ-बूढ़ोॅ सें लैकेॅ जवान-जुहान तक जुटी गेलोॅ छै।
पंचायत में तेतरी दादी सें लैकेॅ मुखिया शमशेर सिंह तांय आबी गेलोॅ छै। सब पंच सिनी गाछी के नीचू बनलोॅ पिंडा पर पालथी मारी केॅ बैठी जाय छै।
एक तरफ जनानी सिनी बड़का-बड़का घुंघटा डाली केॅ अंचरा मुँहोॅ में दबाय केॅ कनखी सें पंच के मँुह दिस ताकै छै, आरो दोसरोॅ तरफ मरादाना सीनी पंचोॅ तरफ मुंह करी केॅ बैठलोॅ छै। मतरकि भितरिया बात यही रहै कि सब कोय आधे मनोॅ सें पंचोॅ दिस देखी रहलोॅ छै आरो आधोॅ मोॅन तेॅ सबके बस गुलबिये पर गड़लोॅ होलोॅ छै।
गुलबिया जे बड़ी निसंकोच होय केॅ एक दिस आगू में बैठलोॅ होलोॅ छैµठीक पंचोॅ के आमना-सामनी। ओकरोॅ मरद ओकरा सें थोड़ा हटी केॅ वाहीं पर बैठलोॅ छै। मतरकि गुलबिया के चेहरा पर तनियो टा ई भाव नै छै ऊ आपनोॅ सोसरारी के कुल-परिवारोॅ के बीचोॅ में बैठली छै। ओकरोॅ चेहरा पर अनदिना सें कुछू ज्यादे चमक छै। ओकरोॅ चेहरा है बताय रहलोॅ छै, जेना ऊ बहुते कुछ जल्दीबाजी में कहना चाहै छै। गुलबिया के आँख कही रहलोॅ छै कि ओकरोॅ विश्वास छै, जीत ओकरे होतै, पंच ओकरे पक्षोॅ में बोलतै। आरो तबेॅ की छै। गुलबिया तेॅ मैना बगरो नांखी स्वतंत्र होय जैतै। एकदम सुग्गे नाखीं टांय-टांय करनें ऊ पिंजरा सें उड़ी जैतै आरो पहुँची जैतै आपनोॅ वही जंगल, जहाँ ओकरोॅ खोता छै। खोता में ओकरोॅ मरद कि रं जवान होय गेलोॅ होतै ओकरोॅ आसरा ताकतें-ताकतें। जखनी ऊ जंगल पहुँचतै, सौंसे जंगल ओकरोॅ टिटकारी सें गूंजी जैतै। ई सब बात सोचथैं गुलबिया तन-फन करेॅ लागलेॅ छेलै। आरो जखनी एक पंचे गुलबिया सें है पूछलेॅ छेलै कि तोंहे है बर्ताव कैन्हें करै छौ, बसंत केॅ तोहें आपनोॅ पति मानै छौ कि नै, आरो नै मानै छौ तेॅ कैन्हें?
यै पर गुलबिया खाड़ी होय केॅ जे बोलना शुरू करनें छेलै एक्के सुरोॅ में बोल्ले चल्लोॅ गेलोॅ छेलै, "सुनोॅ पंचसिनी, ई मरद जे हमरोॅ बगलोॅ में बैठलोॅ छै, ई आपनोॅ बहिन के मरद होतै, हमरोॅ नै। हेकरोॅ बहिन आरू यै नें मिली केॅ हमरोॅ जीवन के साथें खिलवाड़ करनें छै। कौन जनम के बदला निकाली रहलोॅ छै ई हमरा सें। हम्में तेॅ एकरा कभियो नै आपनोॅ मरद जानलियै कैन्हें कि ई हमरोॅ बिहोशी में हमरोॅ मांगोॅ में सिनूर भरनंे छै। आबेॅ है बीहा केॅ कौन बीहा कहलोॅ जैतै, जेकरा में एक पक्ष एकदम्मे शांत आरो मौन छै। पंच साहब, चुटकी भरी सिनूर जों कोय मरद कोय औरत के मांगोॅ में भरी दै आरो जनानी ओकरोॅ जिनगी भर लेली गुलाम होय जाय, जोरू होय जाय, तबेॅ तेॅ भै गेलै। तोहों सिनी एक-एक मुट्ठी सिनूर लै लेॅ आरो ई गांव भरी के जनानी सिनी के मांगोॅ में जाय केॅ पोती आबोॅ तेॅ सब जनानी तोरोॅ सिनी रोॅ जोरू होय जैतौं।"
गुलबिया के है रङ बरताव आरो बेपरद बात करतें देखी केॅ पंच सिनी तेॅ दंग छेबे करलै, सौंसे टोला-पड़ोस के आदमियों सिनी मूख बनी गेलोॅ छेलै। केकरो मुहोॅ सें बोल नै फूटी रहलोॅ छै। बोल फूटी रहलोॅ छै तेॅ बस गुलबिया के, ऊ बोलतें जाय रहलोॅ छै, "सुनोॅ पंच सिनी, तोरा सिनी तेॅ हमरोॅ बाप-दादा नांखी छौ आरो धरती पर न्याय-अन्याय केॅ देखै वास्तें देवता नांखी। जों तोहेंसिनी हमरोॅ न्याय नै करभौ, सत्य के पक्ष नै लेभौ तेॅ धरती पर विश्वास करै वास्तें बचिये की जैतै, जों तोरा सिनी आरो कुछू जानै लेॅ चाहै छौ तेॅ है जानी लेॅ कि बसंत हमरोॅ पति, हमरोॅ मरद कभीयो नै हुवेॅ पारै। ऊ अगर कोय होतै तेॅ वही होतै, जेकरा हम्में आपनोॅ मनोॅ सें मानी चुकलोॅ छियै आरो जे हमरा आपनोॅ मनोॅ सें आपनी कनियांय मानलेॅ छै। आरो कल हमरोॅ मांगोॅ में सही सिनूर पड़तै तेॅ ओकरे पड़तै।" गुलाबो के है सब बात सुनी केॅ सबनें आपनोॅ कानोॅ पर औंगरी राखी लेलकै। पंचो आपनोॅ मुंह फेरतेॅ हुवेॅ कहलकै, "हद होय गेलै, ई कुलच्छन तेॅ पाप बोली रहलोॅ छै आरो ई पाप जहां जैतै, वहीं गांव-घर केॅ खैतै। यै लेली है ज़रूरी छै कि हेकरा यही गामोॅ में राखलोॅ जाय ई पागल नै छै, पागल होय के ढोंग करै छै, ई छै तेॅ कुलच्छन वाली औरत आरो हेनोॅ औरत लेली पंचोॅ दिस सें एक्के फैसला हुवेॅ पारै कि बसंत, जे है जनानी के मरद छेकै, वें हेकरा घर लै जाव आरो साम, दाम, दंड, भेदµजेना भी हुवेॅ हेकरा, आपनोॅ बस में करै। हेनोॅ औरत केॅ रास्ता में लावै वास्तें जों होकरोॅ जानो चल्लोॅ जाय छै तेॅ पंच ई फैसला दै छै कि गामोॅ के मान-मर्यादा केॅ देखतें हुवेॅ बसंत पर कोय मुकदमा नै होतै।"
पंच के फैसला होय चुकलोॅ छेलै। सब्भे आपनोॅ घोॅर लौटी रहलोॅ छै आरो सब्भे रोॅ पीछू-पीछू बसंत गुलबिया के बांही धरनें, लगभग घसीटने-घसीटने घोॅर दिस लै चल्लोॅ जाय रहलोॅ छै। कुछू देर पहनें जे गुलबिया टन-टन करी केॅ बोली रहलोॅ छेलै पंचोॅ के बीच, जेना कोर्ट-कचहरी में कोय वकील बहस करतें रहै, वही गुलबिया अनचोके एकदम कुम्हलाय गेलोॅ छेलै। ओकरा ई जरियो टा विश्वास नै छेलै कि पंच के पक्ष ओकरोॅ विपक्ष में होतै, आबेॅ तेॅ जिनगी भर वास्तें सड़ी-गली केॅ यहेॅ गैर मरदोॅ के गोड़ोॅ नीचें रहना छै, बचै के बस एक्के रस्ता छै कि आपनोॅ देह-हाथ आपनोॅ दांतोॅ संे नोची-नोची केॅ मरी जाय याकि फेनू कहीं कोय नदी-पोखर में धौस दै जिनगी खतम करी लै। गुलबिया घसीटलोॅ-घसीटलोॅ चल्लोॅ जाय रहलोॅ छै, जेना कोय बकरी केॅ कोय कसाय रस्सी डाली केॅ खीचै छै आरो बकरी ओकरोॅ पीछू जाय लेॅ नै चाहै छै, ई दृश्य के देखवैयो कम नै छै, मतरकि बचवैया कोय नै। गांव टोला में औरत के साथें हेनोॅ व्यवहार, शायद हेकरा सें बढ़ी केॅ आरो तमाशा की हुवेॅ पारेॅ वहांकरोॅ लोगोॅ वास्तें।
जे भी हुवेॅ ऊ दिन के पंचोॅ के फैसला नें गुलाबो केॅ एकदम सें हिलाय केॅ राखी देनें छेलै। जखनी ऊ आपनोॅ घोॅर गेलोॅ छेलै, ठीक वही रातोॅ सें होकरोॅ स्वभाव में एक अजीबे परिवर्त्तन होय गेलोॅ छेलै। गुलाबो बोलै छै कुछू नै, मतरकि जेना-जेना ऊ पगलीया रङ पहनें करै छेलै, अबेॅ नै करै छै। ई सब देखी केॅ होकरोॅ सासे नै, बसंतो भीतरोॅ सें बड़ी खुश नजर आवै छै।
बसंत के माय तेॅ शीतला माय के थानोॅ सें लैकेॅ जख थानोॅ मेंकबूलती कबूली ऐलोॅ छै, "हे शीतला माय, जों हमरोॅ पुतोहू के पागलपन दूर करी दौ तेॅ जोड़ी कबूतर तोरा देबौं, हे जख बाबा जों हमरोॅ पुतोहू ठीक होय गेलै तेॅ जोड़ा पाठा के बली देबौ।" कौन-कौन देवता के सामने मनौती नै राखलेॅ होतै बसंत माय। ई देवी-देवता के असर रहै या जेकरोॅ भी, गुलाबो में बदलाव तेॅ ज़रूरे आबी रहलोॅ छै। यही बदलाव देखी केॅ एक दिन सास ओकरोॅ नगीच आबी केॅ कहलकै, " कनयांय, आबेॅ जे होलै से होलै, पहाड़ हेनोॅ जिनगी सामना में पड़लोॅ छौन, हेने केॅ गुमशुम बनी केॅ नै काटलौ जाबेॅ सकै। कोय नै काटेॅ पारै छै। जहिया हम्मू बीहा करी केॅ यै ऐंगना में ऐलोॅ छेलियै, हमरो मनोॅ में ढेरे बात छेलै, बात यहू सही छेलै कि ई घरोॅ में आबै के मने नै रहै, मतरकि जबेॅ यहीं हमरोॅ सुहाग बांधी देलोॅ गेलै तेॅ यही घरोॅ के पुरूख केॅ आपनोॅ सुहाग मानी केॅ जिनगी खपाय के बात सोची लेलियै। आरो वही संकल्प के है परिणाम छेकै कि है घर भरलोॅ-पुरलोॅ देखौ छौ। अबेॅ हमरोॅ जिनगी के की, दू बेटी छेलै दोनो बिहाय केॅ आपनोॅ-आपनोॅ जग्घोॅ पर छै। घरोॅ में एक्के वही बसंत बेटा, अबेॅ तेॅ एकरे सें वंश बढ़तै। आरो तोरोॅ बिना वंश कैन्होॅ?