गुलबिया, खण्ड-12 / आभा पूर्वे

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आखिर वहू दिन आबी गेलै कि बसन्त बाप बनी गेलै।

बसन्त माय के ऐंगन तेॅ गीत नाद सें गनगन करेॅ लागलै। झुनकी माय ऐंगना में ढोल पर ताल दै रहलोॅ छेलै आरो मधुरिया माय के कंठ सें शहद फूटी पड़लोॅ छेलै।

धन्य-धन्य राज अयोध्या कि धन्य राजा दशरथ हे

ललना रे, धन्य रे कौशिल्या जी के भाग कि रामजी

जनम लेल हे

ऐला जे पंडित पुरहित बैठला पलंग चढ़ी हे

ललना रे गुनि दियौ नुनुआ के दिन कि कौन तिथि

जनमल हे

अभी एक गीत खतम होवो नै करलोॅ छेलै कि सुरेखा माय दूसरोॅ गीत शुरू करलकै,

नवमी तिथि नुनुआ जनम लेल चैत मास बीतै हे

ललना रे बारहे बरष जब होयतै वनहि चलि जायत हे

एतना वचन जब सुनलनि अहो राजा दशरथ हे

ललना रे धरती खसल मुरूछाइ कि अब केना जीवत हे

सोइरी सेें बोलली कौशल्या रानी सुनु राजा दशरथ हे

ललना रे, कहौं जिए मोरा बेटा बांझी पन छूटल हे

"अगे माय, खाली गीते नाद चलतै कि आरो कुछू?"

"आरो कुछू की होतै, की चाहै छैं तोरासिनीµबसन्ता घोॅर-द्वार बेची केॅ सोना-जेवर लुटावै?"

"ई कहाँ कहै छियै, मजकि तोरासिनी भाँड़-भाड़िन के काम पूरा करी देभौ तेॅ भाँड़-भाड़िन की करतै?"

खूब हँसी ठिठोली होलै ऊ दिन।