गुलबिया, खण्ड-14 / आभा पूर्वे

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मधुरिया मांय सें नै रहलोॅ गेलै तेॅ एक दिन आपनोॅ मरद केॅ सब बात एक-एक करी केॅ सुनाय देलकै, "सुनै छोॅ, बसन्ता कनियैनी हमरा संे की कहलकै, कहलकै कि बड़ोॅ-बड़ोॅ शहरोॅ में जनानी किराया पर कोख दै छै। कोय्यो जनानी तीस हजार, पचास हजार, लाखो टका में कोय मरद के साथ रहै छै आरो दू जीवियोॅ बनी जाय छै आरो जबेॅ सोरी घरोॅ के काम पूरा होय जाय छै, तबेॅ ऊ जनानी ऊ मरद केॅ छोड़ी केॅ आपनोॅ मरद लुग चल्लोॅ जाय।" कहतें-कहतें ऊ रुकली आरो पूछलकी, "तोहीं बतावोॅµहेनोॅ भी होय छै की?"

"तिरिया चरित्त देवो नै जानै, हम्में की बतैयौं।" मधुरिया बापें कही केॅ पिण्ड छुड़ैलकै।

मजकि आभी मधुरिया माय के बात कहाँ खतम होलोॅ छेलै। लगें कहैलकै, "एतने बात नै नी छै। जानै छौ, बसन्ता कनियैन की कहैलकै? कहैलकैµहम्मू तेॅ वहा रँ ई मरद के बच्चा पेटोॅ में पाललेॅ छियै। हमरा की लेना-देना ई बच्चा सें, आरो हमरा की मोह। जेकरोॅ बच्चा छेकै, वैं जानौक। हमरोॅ मरद तेॅ परदेश में रहै छैµमजूरी करै लेॅ गेलोॅ छेलै। हमरा मालूम होलै कि दस महीना बाद घोॅर लौटतियै। आबेॅ हम्में दस महीना कहाँ जैतियै। पेट तेॅ पालनै छेलै, से ई मरद बसन्त के बच्चा केॅ पेटोॅ में पालना शुरू करी देलियै। आरो दुसरोॅ चार्है की छेलै। हम्में तेॅ जल्दिये आपनोॅ मरद के नगीच चल्लोॅ जैबै। वहीं जेना राखतै, रहबै। आखिर ऊ हमरोॅ मरद छेकै।"

कहतें-कहतें मधुरिया पत्थल नाँखी कुछ क्षण लेली बनी गेलै। होश ऐलै तेॅ पूछलकै, "की लागै छौं, ई ठिक्के भागी-उगी जैतै की?"

"यहू कहीं होय छै। कोय जनानी कोय्यो मरदोॅ संगंे कुँआरा में कत्तोॅ नगीची रहेॅ, बीहा होला के बाद सब सरोकार खतम होय जाय छै। ओकरोॅ वास्तें तेॅ बस ओकरोॅ पतिये परमेश्वर होय छै। बसन्ता कनियैनी जे भी तोरा बोललकौ, है केकरो सें नै कहियौ।"

मधुरिया माय तेॅ केकरौ सें नै कहलकै, मजकि दसमे दिन गाँव भरी में जे कुकहारोॅ मचलै, ओकरोॅ तेॅ कोय्यो थाहे पता नै रहलै।

रात केॅ दिशा-मैदान के नामोॅ पर गुलाबो जे बहियार गेलै तेॅ घुमी केॅ नै ऐलै।

एक घंटा, दू घंटा, आखिर की भेलै। कांही सांपे-बिच्छे तेॅ नै काटी लेलकै। बसन्ता के करेजोॅ धड़की उठलै। माय केॅ जाय केॅ कहलकै।

माय धड़फड़ैली सीधे बहियार दिश झटकली। "अगे माय, बहियारी में तेॅ कांही नै छै।" एक-एक झाड़-पतार खोजी लेलकी बसन्ता माय, तेॅ थक्की केॅ घोॅर आवी गेलै।

घोॅर भरी में सन्नाटा। मजकि कहिया तांय बात दबलोॅ रहेॅ पारै छेलै। गाँव के सब जोॅर-जनानी जुटेॅ लागलै। मरद के उप-सुप अलगे।

ऐंगन में सौ-पचास जनानी के झुण्ड। सबके चेहरा पर एक्के सवालµआखिर की होलै बसन्ता कनियैनी के? कहाँ जाबेॅ पारेॅ?

तखनिये मधुरिया माय खाड़ी होय केॅ मुखिया नाँखी फैसला सुनैलकी, "सुनोॅ बसन्ता माय, आबेॅ तोहें आपनी कनियैनी के मोह छोड़ी दा। ऊ तोरोॅ कनियैन छेवो नै करलौं, नै बसन्ता के जनानी। ऊ तेॅ आरो के जनानी छेलै, जेकरोॅ पास ऊ रातो-रात पहुँची गेलोॅ छै। ओकरोॅ खोज-खबर लेवोॅ भारी बदनामी के सिवा आरो कुछ नै। आबेॅ ई बच्चा के पालन-पोषण लेली यहेॅ अच्छा होतौं कि बसन्ता के बीहा करी दौ।"

बसन्ता आरो बसन्ता माय के मुँहोॅ पर तेॅ जेना ताला जड़ी गेलै आरो दुसरोॅ जनानी सिनी काना-फूसी करतें ऐंगनोॅ सें बाहर निकली गेलै।