गुलबिया, खण्ड-1 / आभा पूर्वे

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गर्मी आवी गेलोॅ छै, ऐन्होॅ-तैन्होॅ नै। तभियो हेनोॅ नै छै कि धूपोॅ में बैठला सें चमड़ी उधड़ी केॅ रही जाय। मजदूर सिनी खेतोॅ पर काम करै छै, ई बात अलग छै कि ओकरोॅ सिनी के देह घाम सें घमजोर होय जाय छै। वहीं मजदूर सिनी सें थोड़ोॅ हटी केॅ गुलबियो हाथोॅ में खुरपी लै केॅ माटी कोड़ी रहलोॅ छै। माटी कोड़ाय रहलोॅ छै कि नै कोड़ाय रहलोॅ छै, गुलबिया केॅ ई बातोॅ के तनियो होश नै छै।

गुलबिया खेतोॅ में काम तेॅ करी रहलोॅ छै, मतरकि मन में एकटा अजीब चिन्ता भी होय रहलोॅ छै, कैन्हें कि अभी तक बलेसर नै ऐलोॅ छै। बलेसर ई बात केॅ अच्छा सें जानै छै कि हम्में ओकरोॅ ई खेतोॅ में इंतजार करी रहलोॅ छी। आरो बलेसर केॅ तेॅ आने छै। कैन्हें कि कल्हे बलेसर बोली केॅ गेलोॅ छै कि ऊ हमरा सें मिलै वास्तें यहाँ ज़रूरे ऐतै। मतरकि जेना-जेना सुरुज के किरिण आपना आप केॅ समेटी रहलोॅ छै, गुलबिया के मनोॅ में एगो आशंका उठी रहलोॅ छै। रही-रही गुलबिया केरोॅ हाथ कली जाय छै, जेना कि ओकरोॅ हाथोॅ में कोय दम नै रहेॅ। कभी-कभी तेॅ ओकरोॅ देहो सिहरी जाय छै।

गुलबिया रोॅ मोॅन आबेॅ कामो ॅ में नै लगी रहलोॅ छै, रही-रही ओकरोॅ मनोॅ में एक्केटा भाव आवै छै कि आखिर बलेसर आभी तांय कैन्हें नी ऐलोॅ छै। बलेसर के मालिक जानी-बुझी केॅ कहीं ओकरा कोय दूसरोॅ काम में तेॅ नै भिड़ाय देलेॅ छै। हुवेॅ सकै छै कि मालिक हमरोॅ आरो बलेसर के बीच के परेम केॅ जानी गेलोॅ रहै। कैन्हें कि ऊ दिन मालिक पटेल सिंह हमरा बड़ी ध्यान सें देखी रहलोॅ छेलै। ओकरोॅ ई रङ देखै के मतलब ऊ समय हमरा समझ में नै ऐलोॅ छेलै। हुवेॅ सकै छै कि ई खेत के मजदूर सिनी मालिक सें कुच्छु बोली देलेॅ रहै, कैन्हें कि आदमी आरो साँप के पलटतें देर थोड़े लगै छै। अभी मुँहोॅ पर मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बोलतै आरो पीछू सें शिकायत करतै।

मन में उठी रहलोॅ शंका के कोय मतलब नै निकली रहलोॅ छेलै। जब तांय बलेसर आपने आवी केॅ कोय बात नै बोलै छै, तब तक कुच्छु नै सोचलोॅ जावेॅ सकै छै। बलेसर एत्तेॅ देरी कभियो नै करै छै। जबेॅ बोली केॅ जाय छेलै, समय रहतें आवी जाय छेलै। आय तेॅ ऐन्होॅ देर करी रहलोॅ छै कि मनोॅ में अजबे रङ के निराशा भरी जाय छै। तभियो गुलबिया बलेसर केॅ याद करी-करी केॅ आपनोॅ समय बिताय रहलोॅ छै। समय कि बिताय रहलोॅ छै, खून जराय रहलोॅ छै। आपनोॅ मन के विश्वास केॅ आरो बढ़ाय रहलोॅ छै कि जब तक बलेसर नै आवी जाय छै, ऊ ई खेतोॅ में काम करथैं रहतै। चाहे रातो कैन्हें नी होय जाय। आय ऊ घोॅर जैतै तेॅ बलेसर साथें जैतै। एकरोॅ वास्तें जत्तेॅ देर ठहरै लेॅ पड़तै, ऊ ठहरतै।

धीरें-धीरें कुछ मजदूर सिनी आपनोॅ समान समेटी केॅ जाय लेॅ तैयार होय जाय छै। मतरकि गुलबिया आपने चिन्ता में एत्तेॅ डूबलोॅ होलोॅ छै कि ओकरा आपनोॅ अगल-बगल होय वाला कोनो बात के खयाल नै छै कि के ओकरा देखी रहलोॅ छै आरो के की ओकरोॅ बारे में की बोली रहलोॅ छै। ई बात के ध्यान गुलबिया केॅ रहै, चाहेॅ नै रहेॅ, मतरकि ओकरोॅ सुख-दुख के सखी पारो केॅ ई बात के खूब ख्याल छै। पारो जेन्हैं मजदूर सिनी के आँखी में अचरज के चढ़ते-उतरतें भाव केॅ देखलकै, तैन्हें बात केॅ उड़ाय वास्तें मजदूर केॅ टोकी देलकै।

"की देखी रहलोॅ छोॅ तों सिनी गुलबिया केॅ। रोजे तेॅ आवै छै ई खेतोॅ पर काम करै लेली। रोजे तेॅ देखवे-सुनवे करै छोॅ, आय कोय नया बात होय गेलोॅ छै, जे तोरा सिनी गुलबिया केॅ ऐन्होॅ करी केॅ देखी रहलोॅ छोॅ। जा, जा आपनोॅ घर। बाज़ार दिस" ई बात कहतें-कहतें पारो के चेहरा पर एक गुस्सा के भाव उठी गेलोॅ छेलै।

आबेॅ है बात कि कोय जर-जनानी मर-मरदाना पर गोस्साय केॅ बोलै आरो मर-मरदाना सुनी केॅ चुप रही जाय। ई पर वही मरदाना सुनी केॅ रही जैतै, जे जर-जनानी सें डरै हुवै या जर-जनानी के बातोॅ के कोय माने नै लगातेॅ हुवै। दू-एक मजदूर जेकरा ई सब सें कोय मतलब नै छेलै, ऊ तेॅ आपनोॅ समान उठाय केॅ चललोॅ गेलै, मतरकि एगो मजदूर जेकरोॅ नाम सोमन छेलै आरो गुलबिया केॅ खूब बढ़िया सें जानै छेलै, हट्ठा-कट्ठा बदनवाला, समता रंग पर गोल-गोल बड़ोॅ-बड़ोॅ आँख सें गुर्राय केॅ पारो केॅ देखतें हुवेॅ आपनोॅ अंगुली मूँछ पर ताव देतें थोड़ा जोर सें बोललै,

"कैन्हें, हमरा सिनी केॅ भगवानोॅ रोॅ देलोॅ आँख सें देखै के हक नै बनै छै? आरो फिरू हम्में सिनी कोय गंदा बात तेॅ नै बोललेॅ छियै। खाली आँखोॅ सें तनी टा गुलबिया केॅ ताकलेॅ छेलियै। हेकरा में तोरा एत्तेॅ गोस्सा कथी लेॅ लगी गेलौ। मर-मरदाना के तेॅ कामे छै जर-जनानी केॅ देखना। साथे काम करतै तेॅ देखना-सुनना तेॅ होवे करतै। कहिया तक आँख मुनी केॅ रहतै। तोरोॅ सखी पानी एत्तेॅ कैन्हें पैलेॅ छौ। केकरो भी नजर पड़ी जैतै। फेनु गुलबिया कहिया केरोॅ ठकुराइन कि आम आदमी आँखो उठाय केॅ नै देखेॅ पारेॅ।" एतना कही केॅ सोमन चुपचाप उठी केॅ चल्लोॅ नै जैतियै, जे आय पारो सें सब सुनी लेतियै, जे सोमन आपनोॅ जिनगी में आपनोॅ मालिको सें नै सुनलेॅ होतियै।

पारो केॅ सोमन सें जे जवाब मिललोॅ छेलै, वै सें ओकरोॅ मन झनझनाय उठलै। मतरकि पारो सोचै छैµकरलो की जाय। आखिर ई मजदूर सिनी सें लड़ी केॅ की मिलतै। फिरू तेॅ यहेॅ खेतोॅ में काम करना छै ओकरा आरो गुलबिया केॅ।

पारो केॅ आबेॅ गुलबिया पर बहुत गुस्सा आवी रहलोॅ छेलै। है गुलबिया केॅ की होय गेलोॅ छै। ऊ गोस्सा सें गुलबिया दिश ताकलकै। गुलबिया आभियो खुरपी हाथ में लै केॅ वैन्हें बैठली होली छै। ओकरा आपनोॅ देहो के ख्याल नै छै कि साड़ी के अँचरा गिरी गेलोॅ छै। काम करतें-करतें समूचा बाल हिन्नें-हुन्नें बिखरी गेलोॅ छै। ओकरोॅ ई हालत देखी पारो के सब गोस्सा ठंडाय गेलै।

अनचोके पारो केॅ फेनू सोमन के बात के ख्याल आवी जाय छै, 'तोरोॅ सखी हेनोॅ पानी कैन्हें पैलेॅ छौ। केकरो नजर पड़ी जैतै' आरो पारो के अनचोके नजर आपनोॅ सखी गुलबिया पर पड़ी जाय छै। एकदम चकोर चनरमा केॅ देखै छै। आरो चकोर चनरमा केॅ की देखतै होतै, जेना कि गुलबिया। पारो गौर सें गुलबिया के मुँह देखै छै। सच्चे, आय गुलबिया बड़ी सुन्दर लगी रहलोॅ छेलै। गुलाबी रंग के साड़ी पर बुलु रंग के चोली में आय गुलबिया सच्चे में सभै के ध्यान खींचै छेलै। लगै छै, आय गुलाबो मिलै वास्तें एत्ता सजी-धजी के खेतोॅ में काम करैलेॅ ऐलोॅ छै।

गुलबिया नहियों सजै छै, तहियो एत्ते सुन्दर लगै छै। सहिये में गुलबिया सुन्दरता के एक प्रतीक छेकै। दूधो रंग, सफेद रंग भरलोॅ-भरलोॅ देहोॅ पर गोल-गोल भरलोॅ-भरलोॅ चेहरा। आँख बड़ोॅ-बड़ोॅ, नाक एकदम खड़ा नै तेॅ खड़े छै। आबेॅ ई रंग, सुन्दरता पर हम्में रीझेॅ सकै छियै तेॅ कोय मर-मरदाना आपना सें बाहर होय जाय तेॅ आचरज की। हेकरा में हैरानी के कोय बात नै छै।

मतरकि पारो केॅ आबेॅ गुलबिया पर बहुत गुस्सा आवी रहलोॅ छेलै। ई गुलबिया केॅ की होय गेलोॅ छै कि कोय बात के होश नै छै, आरो नै कोय बात के चिन्ता। नै घर जाय के ठिकाना छै, नै कोय सर-समान के चिन्ता, एकरोॅ ई हालत होय गेलोॅ छै कि छोड़ियो केॅ जाना मुश्किले होय छै। पारो गुलबिया के ई हालत देखी केॅ ओकरा होश में लाबै लेॅ खूब जोर सें झकझोरै छै,

"ऐ गुलाबो, गुलाबो।" मतरकि गुलाबो कोय जवाब नै दै छै। है बात नै छेलै कि गुलाबो बेहोश रहै, मतरकि होशो में बेहोशे रहै। पारो ओकरा एक बार फिरू झकझोरलकै, "गुलाबो।"

गुलबिया के बदन में कोय हरकत नै होय छै। हेनोॅ लगै छै, जेना सौंसे बदन एकटा पत्थर के मूरत रहै।

पारो गुलबिया के मुँह केॅ आपनोॅ दोनों हथेली सें पकड़ी केॅ आपनोॅ आँखी के एकदम नगीच लै आनै छै। मुँह केॅ आपनोॅ दिश घुमाय केॅ बोललकै, "गुलाबो, गुलाबो, देखैं केत्ता सांझ घिरी गेलोॅ छै। तों आरो हम्में ई खेतोॅ में अकेला बची गेलोॅ छियै। घर चल गुलाबो। कि है परेम-वरेम के चक्कर में फंसी गेलैं। कैन्हें आपनोॅ देहोॅ केॅ ई परेमोॅ में हिलाय रहलोॅ छैं। जानै छैं नी ई परेम सभैं करै लेॅ जानै छै। निभायवाला एके-दू टा होय छै। वही में मरदो में।"

गुलबिया अभियो वैन्हें बैठलोॅ छै। ओकरोॅ चेहरा पर आभियो एगो विश्वास के चमक छै। जब पारो बार-बार झोलै छै, तबेॅ गुलबिया कहै छै। गुलबिया पारो के हाथ पकड़ी केॅ बोललै, "हमरोॅ बलेसर ऐन्होॅ नै छै। हमरा सें ऊ बहुत परेम करै छै।"

पारो केॅ गुलबिया के ई बात पर जरियो टा भरोसा नै छै। सखी के ई हालत देखी केॅ ओकरोॅ मन नै मानै छै। मतरकि गुलाबो केॅ भी समझैलोॅ जाय। पारो गुलबिया केॅ समझावै लेली कहै छै, "गुलाबो, तों है कौन रोग लगाय लेलेॅ।"

गुलबिया के आँख में लोर डबडबाय गेलै। ऊ पारो के हाथ आपनोॅ हाथोॅ में लै केॅ बोललै, "तों नै बुझवैं पारो। हम्में तेॅ परेम करी केॅ जीवन भर रोग लगाय लेलियै। तों जानै छैं राधा केॅ, जे किशन केॅ परेम करै छेलै। ऊ तनीटा प्यार पैलकै आरो जीवन भर किशन के परेम में आपनोॅ जीवन गुजारी लेलकै। वैं की जानै छेलै कि ओकरोॅ है परेम एक दिन ऐन्होॅ रूप धरतै। आय हर परेम करै वाला आदमी के मुँहोॅ पर एके नाम आवै छैµराधे किशन।"

"गुलाबो, अब तों है परेम-तरेम के बात भुलाय केॅ घर दिस चल। कैन्हें कि अब सुरुज के किरिण भी आपनोॅ मुँह छिपाय रहलोॅ छै।" पारो गुलबिया के हाथ पकड़ी केॅ खीचीं केॅ उठाय रोॅ कोशिश करै छै।

मतरकि गुलबिया आरो ठसकी केॅ भुइयां पर आपनोॅ देह केॅ गोती लै छै। ऊ पारो के हाथ सें आपनोॅ हाथ छोड़ाय केॅ बोलेॅ लागलै, "जानै छैं पारो, हमरोॅ बलेसर केॅ हम्में मीरा जकां भजै छियै। ऊ हमरोॅ आँखी के सामना में मूर्ति रं हमेशा ठारोॅ रहै छै। हम्में ओकरा इहां असकल्ले छोड़ी केॅ केना जैबै। मीरा के किशन तेॅ पत्थर के छेलै, मतरकि हमरोॅ किशन तेॅ पत्थर के नै छै। जीता-जागता एगो इंसान छै। तोंही सोचैं ऊ हमरोॅ बिना केत्ता उदास होय जैतै" गुलबिया फेनू ऊ सड़क दिश ताकेॅ लागै छै, जौन रास्ता सें बलेसर आवै-जाय छै।

पारो गुलबिया के पागलोॅ रंग हरकत सें बहुत गुस्साय जाय छै। ऊ गुलबिया के हाथ पकड़ी केॅ जोर सें खींचै छै, आरो ओकरा उठाय छै। पारो आपनोॅ चेहरा पर राग के भाव लानी केॅ, मतरकि गुलाबोॅ लेली मने-मन प्रेम के भाव राखतें हुवेॅ थोड़ा समझैइयो केॅ बोललै, " गुलाबो, आय तों घर जैवैं की नै। आबेॅ हम्में तोरोॅ है परेम के गप्प नै सुनभौ। सांझ उतरी गेलोॅ छै। आबेॅ घरोॅ में संझवाती भकभकावेॅ लगलोॅ होतै। माय हमरोॅ आसरा देखतें होतै। आय खाली हमरोॅ बात मानी ले गुलाबो। तोरा हमरे किरिया छौ।

गुलबिया रोॅ मन अखिनियो भारी छै। ऊ जाय लेॅ नै चाही रहलोॅ छै। ई बात पारो खूब जानै छै। मतरकि आबेॅ नै ठहरबै। आरो ई मतैलोॅ गुलाबो केॅ भी नै रहै देवै। आय चाहे जे होय जाय। आबेॅ हम्में गुलबिया केॅ ई घनोॅ जंगल रङ खेतोॅ में नै रहै देवै। जेना-जेना पारो आपनोॅ मन केॅ कड़ा करै छै, ओकरोॅ हाथ के पकड़ गुलाबो पर जोर पकड़तें जाय छै।

मतरकि है कि गुलाबो तेॅ शिवजी रङ जमीन में धंसलोॅ जाय रहलोॅ छै। नै, नै, आय जेना भी होतै, ऊ शिवजी रङ धंसलोॅ गुलाबो केॅ आय यहाँ जमै लेॅ नै देतै। आबेॅ पारो गुलाबो के भर पंजा पकड़ी लै छै। आरो है की, पारो अचरज में डूबी जाय छै। गुलबिया के पत्थर रङ भारी शरीर रुइया रङ हौलोॅ होय गेलोॅ लगै छै। पारो गुलाबो के सौंसे बदन केॅ आपनोॅ बाहीं में लै केॅ खेत सें बाहर होय जाय छै। अब घिरलोॅ सांझ में खाली दू परछाई ं जैतेॅ दिखाय दै रहलोॅ छै। ऐन्होॅ लगै छै जेना गुलाबो बलेसर के बांही में बंधलोॅ दूर, बहुत दूर जाय रहलोॅ छै।