गुलबिया, खण्ड-2 / आभा पूर्वे
आय चौथोॅ दिन छै, जबेॅकि बलेसर के मालिक पटेल सिंह नें ओकरा चार बजे शाम तक नै छोड़लेॅ छै। ओकरोॅ चेहरा पर के सबटा हंसी अना बिलाय गेलोॅ छै। ऊ नै तेॅ केकरो सें बोली-बतियाय रहलोॅ छै, नै तेॅ खेते में काम करै में ओकरोॅ मन लगी रहलोॅ छै। मतरकि खड़ा-खड़ा शून्य में ताकी रहलोॅ छै।
सबसें बड़का बात ई छै कि आय बलेसर कोय मन पाट केॅ डांटी नै रहलोॅ छै। जबकि आन दिन मजदूर काम करै छेलै, ओकरो पर डांट पड़ी जाय छेलै। आय मजदूर सिनी मौका के फायदा उठैलकै। कामो बेसी नै करलकै आरो समय सें पहिलें जाय लेॅ हल्ला करेॅ लागलै। एक-दू मजदूर केॅ हल्ला करतें देखी सबनें वहेॅ रं करेॅ लागलै। आरो दिन वें चार बजे के बाद जाय छेलै, कैन्हें कि बलेसर छोड़तें-छोड़तें साढ़े चार बजाय दै देलै।
ई बात तहिया सें शुरू होलोॅ छै, जहिया सें बलेसर मजदूर सिनी के नेता बनी गेलोॅ छै। मालिक पटेल सिंह नें ओकरा खेतोॅ के मैनेजर बनाय देलेॅ छै। सब मजदूर सें काम कराय के ठीका ओकरे हाथोॅ में छै। बलेसर खूब रोब-दाब सें काम कराय छै। ऊ खूब बढ़िया सें जानै छै कि मजदूर सें केना काम लेलोॅ जाय छै। केत्तो कुछ होय जाय, ऊ मजदूर केॅ बेसी बैठै लेॅ नै दै छै। खूब मेहनत करवावै छै, यही बेरी बलेसर रोॅ मालिक पटेल सिंह ओकरा सें काम लै छै। आय भोर सें बलेसर केॅ ढेरे काम सौंपी देलेॅ छै। काम के भार देखी केॅ बलेसर ओकरा खूब जल्दी निवटाय लेॅ चाहै छै। निबटी जैतै तेॅ ऊ घड़ी भर गुलबिया के मंुह देखै लेॅ ऐतै, माफी मांगतै, सबटा शिकवा-शिकायत खतम होय जैतै। मतरकि काम छै कि निवटिये नै रहलोॅ छै। जे मजदूर जाय के इजाजत मांगै छै, बलेसर आय ओकरा हाथोॅ सें जाय के ईशारा करी दै छै। कुछ नै बोलै छै ऊ। ई देखी केॅ चमरू केॅ अचरज होय छै आरो दूर बैठलोॅ टुकुर-टुकुर सब देखतें रही जाय छै। चमरू मोटोॅ आरो करिया छेलै। उपरलका होंठ मोटा रोॅ साथ-साथ कुछ ऊँचा भी छेलै। ओकरोॅ मुँह देखी केॅ हेने बुझाय छेलै, जेना कोय बाघ रोॅ मुँह रहै। नाको बेसी ठड़ा नै रहै। आरो नाको हमेशा ऊपर-नीचें होतें रहै छेलै। ऊ आपनोॅ नाक केॅ ऊपर-नीचें कुत्ता रं करतेॅ हुवेॅ आपनोॅ हाथ केॅ कमर के पास लै जाय छै। कमर के लुंगी में खोसलोॅ कंघी निकाली केॅ बलेसर दिश ताकै छै। मतरकि बलेसर चमरू के ई व्यवहार सें एकदम अनजान छै। चमरू कंघी सें आपनोॅ बाल झाड़ै लेली आपनोॅ हाथ ऊपर उठाय छै। ई रोजकोॅ बात छेकै, जबेॅ चमरू केॅ खेत सें जाय के होय छै, ऊ हेने करतैं बलेसर के नगीच सें निकली जाय छै। काफी दबंग छै चमरू, शायद यही कारणें बलेसर नै टोकै छै। मतरकि आय सीधे निकलै के बदला चमरू बलेसर के नगीच आवी केॅ खड़ा होय जाय छै आरो पूछै छै। ओकरोॅ बोली में साफ-साफ कटाक्ष छै। चमरू नें बलेसर सें पूछै छै, "बलेसर, आय तोरोॅ मुँहोॅ के सबटा पानी कैन्हें सुखी गेलोॅ छौं। घरोॅ में कोय बात होय गेलोॅ छै।"
आय बलेसर के ई हालत देखी केॅ सबटा मजदूर सिनी टक-टक ओकरे ताकी रहलोॅ छै। मतरकि बलेसर के मन के भीतर होय वाला तूफान केॅ कोय नै समझी रहलोॅ छै। बलेसर केकरो बात के कोय जवाब नै दै छै, मतरकि मन सें बस इतने टा कहै छै, "तों सिनी आपनोॅ पैसा मालिक पटेल सिंह सें लै लियौ।" आरो झटकी केॅ आपनोॅ घर दिस चललोॅ जाय छै।
रास्ता में कत्तेॅ लोग बलेसर केॅ टोकलकै, मतरकि बलेसर केकरो बात नै सुनै छै, आरो नै तेॅ केकरो सें कुछ बोलै छै। सोहन ओकरोॅ रूप देखी केॅ अचरज करै छै। अनदिना ओकरोॅ रूप कत्तेॅ खिल्लोॅ रहै छेलै, आरो बलेसर काका केॅ टोकै छेलै, "की काका, आय काकी नें बड़ी परेम सें मछरी खिलाय केॅ खेत पर भेजलौं रहौं। अभियो तांय मुँहोॅ पर वहेॅ चमक बिखरलोॅ छोैं।" आरो काका बलेसर के ई रं कुढ़ाय पर हंसी केॅ रही जाय छेलै। मतरकि आय बलेसर नें काका केॅ नै टोकलेॅ छेलै, यहाँ तक कि टोकलौ पर ओकरोॅ कोय जवाब नै मिलै छै। काकी भी आचरज करी रहलोॅ छै कि आय बलेसर ओकरा सें कोय बात कैन्हें नी करलकै, आय ओकरा चिढ़ैलकै कैन्हें नी?
हांलांकि सोहन काका के कनियैन गांव के रिश्ता सें बलेसर के काकी लगै छै, मतरकि उमर में बलेसर के बराबरे होला के कारण दोनों के बात-व्यवहार में खुलापन ज़्यादा छै। काकी बलेसर के हाथ पकड़ी केॅ टोकलकै, जबकि अनदिना बलेसर ओकरे हाथ पकड़ी केॅ टोकै छेलै कि काकी, आय काका खूब मानलकौं की नैं? जानै छियौं, रात केॅ तों आरो काका थियेटर देखै लेॅ गेलोॅ छेलौ। बलेसर काकियो सें कुछ नै बोलै छै। आपनोॅ हाथ धीरें सें छोड़ाय केॅ ऊ आगू बढ़ी जाय छै। आय बलेसर केॅ नै काकी केॅ टोकना अच्छा लगी रहलोॅ छै आरो नै रास्ता-पैड़ा केकरो हाथ पकड़ना। बलेसर यहू नै चाहै छै कि कोय ओकरोॅ ई दशा देखी केॅ कुच्छु सोचै आरो बोलै।
बलेसर आपनोॅ घर पहुंची केॅ चुपचाप आपनोॅ कोठरी में आबी केॅ भुइयां पर बिछलोॅ चटाय पर बैठै छै, बैठै छै कि धम्म सें गिरी पड़ै छै। अनदिना नाँखी नै तेॅ ऊ दीया बारै छै आरो नै ऊ धुपकाठिये जलाय छै। ई बलेसर के रोजके नियम छेलै, जेन्हें ओकरोॅ नजर धूपकाठी पर पड़ै छै, हठाते ओकरा याद आवेॅ लागै छै ऊ दिन, जोॅन दिन ऊ आपनोॅ मालिक पटेल सिंह सें यहेॅ रं देरी सें छोड़ै लेली झगड़ा करी केॅ घर चललोॅ ऐलोॅ छेलै। बलेसर केॅ ई बात एकदम अच्छा नै लगै छै कि वें सब मजदूर के गेला के बादो काम करै। ओकरोॅ मालिक पटेल सिंह बराबर बहाना बनाय केॅ ओकरा रोकी लै छै। यही वास्तें ऊ दिन बलेसर आपनोॅ खेत सें काम छोड़ी केॅ भागी गेलोॅ छेलै। मनेमन सोची लेलेॅ देलै कि अब ई खेतोॅ में काम नै करतै। केत्ता समझेलेॅ छेलै ओकरा मजदूर सिनी कि तों है काम छोड़ी केॅ अच्छा नै करी रहलोॅ छैं, कैन्हें कि है काम छोड़ी केॅ आरो करभैं की? मालिक जों हटाय देतौ तेॅ आपनोॅ पेट केना चलैभैं। मतरकि बलेसर के ऊपर ओकरोॅ सिनी के समझावै के कोय असर नै होलोॅ छेलै। कैन्हें कि बलेसर ई बात खूब अच्छा सें जानै छै कि दुनिया में मरद रोॅ दुए हाथ बहुत होय छै।
वें खेत के काम छोड़ी घर पकड़ी लेलेॅ छेलै, मजकि दोसरे दिन ओकरा मालिक खुशामद करी खेत पर लै गेलोॅ छेलै। आरो तेॅ आरो, ऊ दिन सें मालिक पटेल सिंह नें ओकरा खेत के मैनेजर बनाय देलेॅ छेलै। ऊ दिन मालिकें ओकरा समझाय केॅ बोललेॅ छेलै, "तों तेॅ जानभे करै छै कि तों ई खेत में सबसें बेसी काम करै वाला आरो ईमानदार मजदूर छैं। आरो यहू बात जानै छै कि हमरोॅ सारा काम तोरे ऊपर छौ। आय सें हम्में तोरा ई खेत के मैनेजर बनाय दै छिहौ। आबेॅ सें तों ई खेत के अच्छा-बुरा समझिहैं।" आरो वही दिन सें बलेसर खेत रोॅ मैनेजर होय गेलोॅ रहै।
यहू बात छेलै कि बलेसर मैनेजरी की, ऊ खेत के मालिकी भी नै स्वीकारतियै, स्वीकारी लेलकै तेॅ कुच्छु बात रहै। जों खेत पर काम करबोॅ छोड़ी देतियै तेॅ गुलबिया के दर्शनो मुहाल। गुलबिया केॅ देखलेॅ बिना बलेसर पर की बीतै छै, ई सिर्फ़ बलेसर जानै छै या जानै छै गुलबिया।
आरो ठीक वहेॅ दिन कोय सपने नाँखी गुलबिया खपरैल घरोॅ के टटिया हटाय बलेसर घरोॅ में चललोॅ ऐलोॅ छेलै। बलेसर तेॅ हतप्रभ छेलै। मिनिट भरी तांय ऊ यहेॅ सोचतें रही गेलोॅ छेलै कि ऊ सपना छोड़ी आरो कुच्छू नै देखी रहलोॅ छै। सच पूछोॅ तेॅ गुलबिया ओकरोॅ आंखी पर आपनोॅ हाथ नै राखी देतियै तेॅ बलेसर के आँख ओकरा देखतेॅ रही जैतियै, नै जानौं कत्तेॅ देर। पहलें गुलबिया नें सन्नाटा केॅ भंग करनें छेलै, आरो कहनें छेलै, "हमरा सब मालूम होय गेलोॅ छै, तोहें मैनेजर बाबू बनी गेलोॅ छौ, मतरकि मैनेजर बाबू के ई हालत? चादर अलगनी पर आरो मैनेजर बाबू चटाय पर। दूसरा गली के दुर्गन्ध आवी रहलोॅ छै आरो धूपकाठी कोन्टा में राखलोॅ छै।" की-की नै गुलबिया बोलतें चललोॅ गेलोॅ छेलै आरो बोलथैं-बोलथैं एक धूपकाठी जलतें दिया सें सुगंधित करी मोखा में खोसी देलेॅ देलै। आरो फेरू ई कही कि 'हम्में पूबारी चाची साथें ऐलोॅ छियै, हुनी कमली माय सें मिलै लेॅ गेलोॅ छै, छुपाय केॅ ऐलोॅ छी, बस चलै छियौं' सपने नाँखी गुलबिया ऊ सांझे अलोपित होय गेलोॅ छेलै...बलेसर के दिमाग में ऊ सब बात एक-एक करी चक्कर काटेॅ लागै छै।
भोरकोॅ लाली फूटथैं बलेसर के झपकलोॅ आँख अचकचाय केॅ खुली जाय छै। रात भर ऊ सुतेॅ नै पारलेॅ छेलै। पटेलसिंह के दबदबा के कारण मैनेजर नै, ऊ बंधुआ मजूर बनी केॅ रही गेलोॅ छेलै। ऊ मने मन सोचलेॅ छेलै। आबेॅ ऊ बंधुवा मजूर बनी केॅ नै रहतै।
बलेसर मने-मन फैसला करी लेलकै। आबेॅ ऊ खेत में काम नै करतै, कैन्हें कि पटेल सिंह के दवाब में ऊ ओझराय केॅ रही गेलोॅ छै। आरो ई फैसला करथैं ओकरोॅ चेहरा खिली गेलै। कै दिन सें माथा पर पहाड़ रङ एकठो बोझा छेले। अब माथा रुइया रङ हौलोॅ होय गेलोॅ छेलै। चार-पांच दिन सें जे घर बलेसर केॅ काटै लेॅ दौड़ै छेलै, आबेॅ वहेॅ घर चम्पा कटेली फूल नाँखी ही नै, मतरकि गुलाबो रङ नाँखी महकलोॅ-महकलोॅ लागी रहलोॅ छेलै। गुलाब के महक सें भींजलोॅ माहौल में ओकरा गुलाबो के ख्याल आवी जाय छै। ओकरोॅ हाथोॅ सें बिछैलोॅ चादर आय बड़ा सुख दै रहलोॅ छै। ऊ चादर केॅ धुवी-धुवी हेने महसूस करै छै कि गुलाबो ओकरे नगीच बैठलोॅ छै। आरो वें चादर पर ऊँगली नै फेरी रहलोॅ छै, फेरी रहलोॅ छै गुलाबो के मुलायम हाथोॅ पर, जे हाथोॅ सें गुलाबो चादर बिछाय गेलोॅ छेलै एक रात।
बाहर चिड़िया चुनमुन के चहचहैबोॅ तेज होय गेलोॅ छेलै। बलेसर बिछौना सें उठी केॅ बड़ा परेम सें चादर लपेटी केॅ उठाय दै छै। ऊ नै चाहै छै कि गुलाबो के हाथ सें बिछलोॅ चादर गंदा होय। गंदा केना नै होतै। दिन भर केत्तेॅ कोशी के बालू हवा संग उड़ी केॅ सीधे घर ऐतेॅ रहै छै। जरा-सा आरो बेर होना छै बस। घर तेॅ जेना कोशी माय के बिछौना होय जाय छै। वें गंदा नै करै लेॅ चाहै छै। हठाते ऊ एकटा पंक्ति गुनगुनाय उठै छै, 'दास कबीर जतन संे ओढ़ी, जस की तस दीनी चदरिया।' बलेसर ई चादर केॅ गंदा नै होय लेॅ देतै। गंदा होय गेलै तेॅ परेम की। पहलें वें चादर केॅ अलगनी पर रखै छै, मतरकि ओकरा वहाँ चादर रखवोॅ अच्छा नै लगै छै। फिरू ओकरोॅ मन में की होय छै कि ऊ चादर केॅ उठाय केॅ खूंटी पर रखी दै छै, वै खूंटी पर जेकरा पर ओकरोॅ कमीज कुछ देर पहलें टंगलोॅ रहै आरो अब वें उतारी केॅ आपनोॅ देहोॅ पर रखी लेलेॅ छै आरो चुपचाप घरोॅ सें निकली पड़लैµहवा आरो चिड़िया के चहचहैबोॅ केॅ पीछू छोड़ी करी केॅ कोशी दिस।
घ्र सें बाहर निकली टटिया ओड़काय केॅ आय बलेसर के मन में की होय छै कि भोरकवा उगै के पहिलें करली कोशी दिस जाय छै। जब सें सेठ के मैनेजर बनलोॅ छेलै, ओकरोॅ जीवन बंधलोॅ-बंधलोॅ होय गेलोॅ छेलै। उजास होलै तेॅ आकाश में चिड़िया सिनी केॅ उड़तें देखी केॅ आय होकरा होने लागी रहलोॅ छेलै, जेना ऊ एगो आजाद पंछी होय गेलोॅ छै। सच, आजादी-आजादी होय छै। सब तरह के बंधन सें मुक्त। केत्तोॅ बढ़िया खाना मिलै आरो सोना के पिंजरा में बांधी केॅ राखलोॅ जाय, मन पर एक बोझा रही जाय छै। चिड़िया केॅ घुमी-फिरी केॅ खैवोॅ अच्छा लगै छै, कैन्हें कि आजाद होय केॅ रहना सब्भे चाहै छै। आय कै महीना सें बलेसर पर कटलोॅ चिड़िया होय गेलोॅ छेलै। सब तरह के शान-शौकत छेलै। मजदूर सिनी ओकरा सें थरथर कांपै छेलै। मतरकि ओकरे आजादी कहूँ कैद होय गेलोॅ छेलै। आय केत्ता दिनां पर वें नदी दिस ऐलोॅ छै। पहलें वें पटेल सिंह के खेते पर जाय केॅ खजूर के डंटी सें मुँह धोय छेलै। आय केत्ता दिना के बाद ऊ बांस के बेंत सें धोतै। बित्ता भर बांस हाथ में लै केॅ वें चारो दिश हेरै छै। सच्चे, आय सब चीज केत्ता बढ़िया लगी रहलोॅ छै। चैत महीना में खुललोॅ आरो साफ आकाश। ऐन्होॅ बुझाय छेलै, जेना आकाश भी निफिकर छै। ओकरो कहीं जाय के धड़फड़ी नै छै। छिनमन बलेसर रं।
'गंगा स्नान करै लेॅ चलली गगल है निया गंगा माय' के गीत गैतेॅ चललोॅ आबी रहलोॅ छै। बलेसर कान लगाय केॅ सुनै छै। बचपने सें ओकरा गीत गैवोॅ आरो सुनवोॅ बढ़िया लगै छै। आरो यही कारण छै कि गंगन हैनिया के गीत सुनथैं वहू गुनगुनाय उठै छै, मतरकि गंगा माय के गीत नै, ऊ गीत जै में गुलबिया के मन बसै छै।
गीत गैतेॅ ऊ पुबारी टोला दिस बढ़ी जाय छै। ओकरा देखी केॅ सबटा भौजाय रस्ता छोड़ी दै छै। पता नै बलेसर की कही बैठै। मतरकि ननकी भौजी केॅ रहलोॅ नै जाय छै आरो आपनोॅ ठोर दाबी केॅ मुस्काय केॅ पूछै छै, ' कि बलेसर दियोर, आय हिन्नें आवै के फुरसत मिली गेलौं। जब सें मैनेजर बनलोॅ छोॅ, भौजी सिनी केॅ तेॅ भुलाय गेलोॅ छौ। दियोर भुली जाय तेॅ भुली जाय भौजी केॅ, मतरकि भौजी आपनोॅ दियोर केॅ नै भुलाय छै। हम्में सिनी रोज तोरा याद करै छियौं। तोरा तेॅ हमरा सिनी केॅ ताकै सें फुरसत नै मिलै छेलौं। "
बलेसर ननकी भौजी के मजाक रोॅ जवाबो मजाके में दै छै, 'भौजी, तोरा सिनी सें बात करै वास्तें हमरोॅ मोॅन छटपटाय गेलै। तोरा सिनी साथें ई गंगा नदी में नहाय के मजा कुछु आरो छै। तोरोॅ दिल्लगी हमरा बहुत बढ़िया लगै छै। ई रं हंसी-मजाक हमरा खेत में कहाँ मिलतियै। पटेल सिंह के मैनेजरी करी केॅ हमरोॅ सब चीज छुटी गेलोॅ छेलै। चलोॅ, आय गेठ जोड़ी केॅ गंगे नहाय लेलोॅ जाय।' ननकियो कम नै छेलै। बलेसर के बात सुनी वहू टन सना बोली उठलै, "गंेठ जोड़ै में हमरा कोय दिक्कत नै। मतरकि, जब गुलाबो खबर लेतै तखनी।" सबटा भौजाय एक्के साथ ठिठियावेॅ लागलेॅ छेलै। गीत के सुर बदली गेलोॅ छेलै, ई बात सुनी केॅ बलेसर अवाक रही जाय छै।
है की? ननकी भौजी केॅ भीतरिया बात केना मालूम? हठाते ओकरा लगै छै कि ओकरा पर बारिश होय गेलोॅ छै। मतरकि तुरंते वें आपना पर काबू पावी लै छै। पता नै की सोची केॅ। हुवेॅ नै हुवेॅ, ननकी भौजी नें हेने मजाक करी देलेॅ होतै आरो हमरोॅ मन के चोर सहमी गेलै। आरो जों जानिये गेलै तेॅ ठीक, हाते बात खुलतियै, ओकरा सें यही अच्छा छै कि लोगें पहलें सें कुच्छु-कुच्छु जानै। आरू ऊ मुस्कुराय पड़लै अपने आप। एक बार सब्भे भौजी दिश आँख कोनियाय केॅ देखलकै आरो फिरू पटेल सिंह के खेत दिश मलकलोॅ बढ़ी गेलै।
जखनी बलेसर खेत पहुंचलोॅ छेलै, वहाँ खेत में आभियो तांय एकठो मजदूर नै ऐलोॅ छेलै। बलेसर केॅ आचरज लागै छै कि आय तेॅ वें घर सें नहाय-धोहाय के बाद रास्ता भर झूमतें-झूमतें ऐलोॅ छै, तभियो खेत पर सवेरे पहुंची गेलोॅ छै। अनदिना तेॅ धड़फड़ैले आवै देलै, तभियो मजदूर सिनी खेत पर आवी जाय चुकै छेलै। कहीं ई ओकरोॅ मन के भ्रम तेॅ नै छै। ऊ मने मन सोचै छै। ई बात एकदम सच छै कि ऊ आय खेत पर सवेरे आवी गेलोॅ छै। लागै छै, आय ऊ भिनसरे सें सब काम जल्दी-जल्दी करी लेलेॅ छै। अनदिना नाँखी देर नै करलेॅ छै। या यहू हुवेॅ पारै कि आय ओकरा कोय काम नै छै खेतोॅ में, यही लेली आय ओकरा सब चीजे इनठिकानोॅ लगी रहलोॅ छै। आबेॅ धीरे-धीरे सब मजदूर आवी रहलोॅ छै। आय मजदूर सिनी बलेसर केॅ खेत में बैठलोॅ देखी केॅ भ्रम में पड़ी जाय छै। कोय सवेरें आरो कोय देरी सें ऐलै। मजदूर सिनी मने-मन सोचै छै कि बलेसर ज़रूर ई देखै लेॅ ऐलोॅ छै कि के की करी रहलोॅ छै। के देरी सें आवै छै आरो के सवेर। सब बलेसर के नगीच आवी केॅ आपनोॅ देरी सें आवै के कारण बतावेॅ लागै छै। बलेसर सब कुछ समझी रहलोॅ छै। यै लेली मने-मन मुस्कुराय रहलोॅ छै, मतरकि बलेसर केकरो सें कुछ नै बोलै छै। आपनोॅ-आपनोॅ कारण बताय सब मजदूर आपनोॅ-आपनोॅ ढंग सें काम में भिड़ी जाय छै। कुछ देर पहलें जे भय छेलै, ऊ खतम होय गेलोॅ छै आरो कामोॅ में फेरू वहेॅ ढीलाय-सीलाय। आय बलेसर खेत में काम करै लेली केकरो डांटै-डपटै भी नै छै। जब सें मैनेजर बनलोॅ छेलै, मजदूर पर बहुत गोस्सा आरू रोआब छेलै। चमरू, मंगरू, बसंता, मंदर, सीतबिया आरो सब मजदूर आपनोॅ-आपनोॅ काम करी रहलोॅ छै। काम की करी रहलोॅ छै, दिन काटी रहलोॅ छै। बलेसर केॅ आय यहू बात के कटियो टा फिकिर नै छै। बलेसर सब मजदूर केॅ काम करतें देखी-देखी मनेमन सोचै छै। इस सब मजदूर हमरे रं एगो मजदूरे छै, फेरू हममें एकरा सिनी केॅ कैन्हें डांटवै-फटकारवै। मंगरू केॅ जल्दी-जल्दी हाथ चलैतें देखी केॅ ओकरोॅ नगीच आवै छै आरो ओकरोॅ हाथ पकड़ी लै छै। ओकरोॅ हाथ सें कोदार आपनोॅ हाथ में लै केॅ बोलै छै, " की मंगरू, एत्तेॅ जल्दी की छै काम के, होतै न। आरो एत्तेॅ जल्दी काम खतम करी केॅ की होतै। हां, बेसी काम करै सें मालिक बेसी पैसा देतियै तेॅ, ई एगो बात होतियै। बेसी पैसा के लोभ में देहो खटैलोॅ जावेॅ सकै छै। मतरकि काम के कानो कीमत दै। दिन भर खटियो केॅ वहेॅ अजरे टका मिलतै। यहेॅ लेली बेसी काम नै करोॅ। समांग बचावोॅ, समांग सें ई दुनिया-संसार छै, आरो जब तक ई समांग ठीक रहथौं, तबेॅ तक घर-परिवार सें लै केॅ मालिक-मुख्तियार पूछथौं। ई बात बहुत पुराना बूढ़ोॅ-बुजुर्ग कही गेलोॅ छै आरो ई दुनियां के सबसें बड़का सच भी छेकै।
बलेसर हेनै करी-करी सब मजदूर सिनी केॅ बहलाय काम कराय रहलोॅ छै। ऊ नै चाहै छै कि मजदूर सिनी बेसी खटै। आपनोॅ मनोॅ में केत्तेॅ बात गुनी रहलोॅ छै। मजकि मजदूर सिनी बलेसर के ई रूप देखी केॅ अचरज में छै। ओकरोॅ सिनी रोॅ समझ में नै आवी रहलोॅ छै कि ई बलेसर केॅ आखिर होय कि गेलोॅ छै। कभी गोस्सा देखाय छै तेॅ कभी परेम-भाव। मतरकि कोय बोलै नै छै। चमरू बलेसर केॅ देखी केॅ आपनोॅ आँख उठाय केॅ ओकरोॅ मुँहोॅ रोॅ भाव पढ़ै रोॅ कोशिश करै छै, मतरकि कोय भीतरिया बात पढ़े नै सकै छै। आय बलेसर केकरो पर जरियो-टा मैनिजरियो नै छांटी रहलोॅ छै। दिन चढ़थैं कि देर लागै छै। देखतें-देखतें सुरुज भगवान एकदम माथे पर आवी जाय छै। सब मजदूर सिनी आपनोॅ-आपनोॅ खाना निकाली केॅ खाय रोॅ तैयारी करी रहलोॅ छै। मतरकि बलेसर एक दिश खाड़ोॅ रहै छै। जबेॅ ऊ चमरू नांखी खाली एक मजदूर छेलै तेॅ वहू साथें मिली केॅ खाय छेलै। आपनोॅ साथ लानलोॅ चूड़ा या सत्तू कोय चीजोॅ के पोटली खोली दै, मतरकि कुछू दिनोॅ सें बलेसर के खाना-पीना मजदूर सें हटिये केॅ होय रहलोॅ छेलै। आय नै ऊ कन्हौं हटलोॅ छै, नै कुछु साथ लानलोॅ छै।
आपनोॅ मनोॅ में पता नै की-की सोचै छै मजदूरो सिनी आरो आपनोॅ-आपनोॅ पोटरी नै खोली रहलोॅ छै कि तखनिये बलेसर चमरू सें बोलै छै, "की चमरू दा, आय हमरा खाय पर नै बैठैभौ की?" एतना कही बलेसर ऊ सबके बीच अनचोके आवी केॅ बैठी जाय छै। आरो चमरू के पोटरी खोली केॅ चौरो के भुंजा के एक फांक मारी केॅ कहै छै, "सब्भे आपनोॅ-आपनोॅ पोटरी निकालोॅ। मिली-जुली खैभै। 'मंगरू, बसंता, चमरू, मंुदर, सीतबिया सब्भे आपनोॅ सत्तू निकालै छै, आरो एके जगह नोन मिरचाय लगाय केॅ सानै छै। तबेॅ बलेसर फेरू कहै छै,' आय हम्में तोरे सिनी के बीच बैठी केॅ खैभौं। बहुत दिन होय गेलौं, तोरोॅ सिनी रोॅ साथें खैलोॅ-पीलोॅ। चौरोॅ के भुंजा बलेसर दांतोॅ सें चबैलेॅ जाय छै आरो कहलेॅ जाय छै," हम्में तों एक्के जाति के चिड़िया छियै न मंगरू। अब तोंही सोचैं कि मालिक पटेल सिंह नंे शिकारी नाँखी केत्तेॅ चालाकी सें हमरा तोरा सिनी सें अलग करी देलकौं। हम्में तेॅ छेलियै तोरे सिनी के बीच के चिरैया। आरो बनाय देलकै हमरा बाज कि तोरे सिनी पर आक्रमण करेॅ सकौं। कैन्हें कि हम्में अपने चिड़िया जाति में फूट डालियै। अब तेॅ पटेल सिंह तभिये खुश होय छै, जबेॅकि लोग सिनी रोॅ खून-पसीना चूसी-चूसी केॅ आपनोॅ शिकारी केॅ देतेॅ रहियै। तभे ऊ हमरो सें खुश रहै छै। "
बलेसर जखनी ई बात कही रहलोॅ छेल्है, तखनी चमरू आँख गड़ाय-गड़ाय केॅ बलेसर के बात सुनी रहलोॅ छेलै। बलेसर आपनोॅ मनोॅ रोॅ बात कही केॅ हौला होय लेॅ चाहै छेलै। केत्ता दिनोॅ सें ओकरोॅ मनोॅ में एकटा बोझ छेलै। अपने भाय आरो बंधु-बांधव सें दूर होय गेलोॅ छेलै। केत्ता अच्छा लगी रहलोॅ छै। मन में एकटा उमग उठी रहलोॅ छेलै। पटेल सिंह ओकरा मैनेजर बनाय केॅ कत्तेॅ सजा देलेॅ छै। आपने सब सें दूर करी देलेॅ छेलै। आय ओकरोॅ आरो मजदूर के बीच के सबटा बंधन टूटी गेलोॅ छै। चमरू बलेसर के बात सुनी केॅ बड्डी खुश होय छै। बलेसर के बात खतम नै हुवेॅ पारै छै कि ओकरोॅ बात लोकतै मंगरू आपनोॅ अनुभव सुनावेॅ लागै छै।
मंगरू गेहुंआ रंग के नाटा कद के मजदूर छै। बदन भरलोॅ आरो माथा ठो चौड़ा रं छै। माथा पर कारोॅ-कारोॅ घनोॅ बाल। नाक चौड़ा आरो मोटा। ठोर थोड़ोॅ चौड़ा, मतर पतरा। आँख खूब बड़ा नै, मतरकि छोटो नै। हरदम चेहरा पर एगो हंसी बिखरलोॅ रहै छै। आरो मन में एकटा दंभ भी रहै छै कि ऊ कलकत्ता शहर सें घूमी केॅ ऐलोॅ छै। ओकरोॅ किस्मत साथ देतियै तेॅ ऊ मजदूरी नै खटतियै। जानै छै कि मजदूर सिनी रोॅ हैसियत की होय छै। चाहै तेॅ बहुत बड़ोॅ काम करेॅ सकै छै ई बिना पढ़लोॅ-लिखलोॅ, अनपढ़ गंवार। खाली होकरोॅ मन में एकटा संकल्प होना चाहियोॅ। मंगरू आपनोॅ पुड़िया सें खैनी निकाली निचलका ठोरोॅ के जड़ी में राखतें कहै छै, "एकदम ठीक कहै छैं बलेसर। तोरा सिनी जानबे करै छैं कि हम्में दस बरस तक कलकत्ता में मजदूरी करलियै। तोरा सिनी नै जानै छै वहाँ कुमनिष्ट शासन करै छै। हमरोॅ सिनी नाँखी मजदूरोॅ के हिमायती मंत्री सिनी वहाँ रहै छै। सांझे जखनी हमरा सिनी खोली में लौटियै तेॅ एक बड़का कामरेड हमरा सिनी के ढेर सिनी बात सुनलै। वही बात सिनी में एक कहानी कहलेॅ छेलै, जे कहानी हमरा हठाते याद आवी गेलोॅ छै, बलेसर तोरोॅ बात सुनी केॅ। जानै छैं, ई किस्सा हमरोॅ देश के नै छै। ई किस्सा छै बहुत दूर देश के. कही छै कि सात समुन्दर पार एकटा देश छै, की तेॅ ओकरोॅ नाम बतैनें छेलै। देखैं भुतलाय गेलियै। ' आरो मंगरू आपनोॅ माथा पर जोर डालतें हुवेॅ याद करै के कोशिश करै छै। थोड़ा देर बाद बोलै छै," की बतैय्यौ, ई खैनी तेॅ हमरोॅ माथा के सबटा बुद्धिये भुतलाय दै छै। "याद ऐथैं माथा झकझोरी केॅ बोलै छै," हां, याद ऐलौ, ऊ देश के नाम छै रोमान। तखनी वहाँ आदमी खरीदलोॅ जाय छेलै, जेना कि हम्में सिनी भेड़ो-बकरी किनै छियै।
वहां केरोॅ राजा-महाराजा आदमी सिनी किनी केॅ ओकरा सें गुलामी करवावै छेलै। बिकलोॅ आदमी वहाँ केरोॅ राजा के ताकत आरो पैसा के आधार छेलै। की जिनगी होय छेलै ऊ आदमी के, जे बाज़ार में ककड़ी-खीरा रं बिकै छेलै आरो खरीदैवाला के मन मोताबिक कटी-मरी जाय छेलै। "
मंगरू के कहानी सुनै में बसंता हेने मगन होय गेलै कि ओकरोॅ हाथोॅ रोॅ कौर हाथे में रही गेलै। यहू होश नै छै कि ऊ खाना खाय रहलोॅ छै। सीतबिया, जे तनी दूर बैठलोॅ छेलै आरो नगीच आवी जाय छै। ओकरोॅ उत्सुकता एत्तेॅ बढ़ी जाय छै कि दांतोॅ के बीच के भुंजा अभियो तांय वहीं फंसलोॅ छै। मुंदर मंगरू के मुंहोॅ केॅ बड़ा गौर सें देखी रहलोॅ छेलै। जेन्हैं मंगरू तनियो टा चुप होय, ओकरोॅ उत्सुकता आरो बढ़ी जाय। मुंदर नें पूछलकै, "फेनू की होलै?" "ई रं के जीवन में जेकरा सें आपनोॅ मनोॅ के कुछ नै करै सकौं, भीतरे-भीतर एक आग सुलगाय रहलोॅ छेलै। मतरकि कोय गुलाम कुच्छु बोलेॅ नै सकै छेलै। हां, वहाँ केरोॅ गुलाम केॅ मालिक तरफ सें बहुत तरह के सुविधा मिलै छेलै। छिनमान बलेसरे रं। जेना कि मालिक पटेल सिंह ने हेकरा मैनेजर बनाय केॅ कत्तेॅ सुविधा देलेॅ छेलै। आपनोॅ रं खाना-पीना खिलैबोॅ, कखनियो बोरा-बखत कुछु ज़रूरत-दरकार पड़लौं, तेॅ तुरंते सब चीज जुटाय केॅ देना। देखैं छेलै, जखनी बलेसर केॅ मैनेजर बनैलकै, तखनिये सें हमरासिनी सें बेसी सुविधा हेकरा मिलेॅ लागलै। हम्में सिनी कभियो पटेल सिंह के घर दिश जाय छियै। मतरकि बलेसर बिना कोय रोक-टोक होकरोॅ घर जावेॅ पारेॅ।"
मंगरू जखनी कहानी सुनाय रहलोॅ छेलै, ओकरोॅ आँखी में एगो चमक उभरै छै। "मतरकि हेत्तेॅ सुविधा मिलला के बादो एक चीज बहुत अखरै छेलै कि ऊ आपनोॅ मन के कभियो कुछ नै बोलेॅ सकै छै, आरो नै तेॅ करेॅ सकै छै। जे मालिक चाहतै, वहेॅ गुलाम केॅ करै लेॅ पड़तै। गुलाम के शरीर खूब मस्त आरो मजबूत बनाय लेली ओकरा बढ़िया सें बढ़िया खाना मिलै छेलै। कसरत करवैलोॅ जाय छेलै। ओकरा सिखाय-पढ़ाय लेली एगो मास्टर देलोॅ जाय छेलै, जेकरा कि नानिस्ता कहलोॅ जाय छेलै।"
चमरू जे थोड़ोॅ ज़्यादा होशियार छै, मंगरू के बात पर बेसी विश्वास नै करै छै। वें पूछै छै कि तबेॅ वहाँ खाली यहेॅ करवावै छेलै वहाँ के राजा। तबेॅ मंगरू फेरू आपनोॅ बात केॅ सच्चा साबित करै लेली बोलै छै, "नै चमरू, जब गुलाम तैयार होय जाय छेलै, तेॅ ओकरा आपस में लड़ाय छेलै। खाली लड़ाय देखै वास्तें वहाँ अखाड़ा तैयार करलोॅ जाय छेलै। वहाँ केरोॅ राजा-महराजा आरो बड़का-बड़का लोग ई लड़ाय देखै वास्तें दूर-दूर सें आवै छेलै। ई लड़ाय देखै लेली वहाँ के राजा केॅ गुलाम के मालिक केॅ ढेरी पैसा दै लेॅ पड़ै छेलै। थीरिस देश के गुलाम एगो छोटोॅ ऐसनोॅ छुरा चलाय में बहुत होशियार होय छेलै। एगो देश अफरीका के गुलाम मछरी पकड़ै के जाल आरो त्रिशूल चलाय में बहुत तेज होय छेलै। दोनों देशोॅ के ई तरह के लड़ाय देखै लेली खूब लोग जमा होय छेलै। ई तरह के लड़ाय में जे गुलाम जीतै छेलै, ओकरा थोड़ोॅ देर वास्तें आजाद छोड़ी देलोॅ जाय छेलै। मतरकि आखिर ई सब केत्ता दिन चलतियै। आपने समान बंधु-बांधव केॅ मारी केॅ कोय केत्तेॅ दिन रहतियै। एक समय हेनोॅ ऐलै कि ई तरह के काम करै लेली ओकरोॅ मन तैयार नै होय छेलै। हेने एकठो गुलाम छेलै, जेकरोॅ नाम छेलैµइसपाटाकस। होकरा जबेॅ अखाड़ा में उतारलोॅ गेलै तेॅ अपने रं गुलाम केॅ मरतें देखी केॅ ओकरोॅ मनोॅ में एकटा बदला के भाव जगी उठलै। वें देखलकै कि ओकरे समान गुलाम केॅ वहाँ लड़वैलोॅ जाय रहलोॅ छै। ओकरोॅ अंदर एक आग सुलगेॅ लागलै।" ई बात कहतें-कहतें मंगरू रोॅ चेहरा भी लाल भभूका रं होय गेलै। सौंसे बदन एकदम फड़फड़ाय उठलै। जेना कि पटेल सिंह के ओकरा सिनी सें गुलामी कराय छै। ई तरह के गुलामी में मालिक केॅ केत्तेॅ सुख मिलै छै, मतरकि गुलाम के तेॅ देहोॅ के खूने बहै छै आरो ओकरोॅ जानो जाय छै।
फिरू आपनोॅ कहानी केॅ आगू बढ़ैतें हुवेॅ बोलै छै कि जानै छैं चमरू, इसपाटाकस नें की करलकै। तेॅ चमरू अचकचाय केॅ पूछै छै, "की करलकै मंगरू ऊ गुलाम नें।" तबेॅ मंगरू आपनोॅ मन के अंदर उठी रहलोॅ एक ज्वार केॅ दबैतें हुवेॅ बोललै, जेना कि ओकरा ई बात बोलै लेली कत्तेॅ मेहनत करै लेॅ पड़ी रहलोॅ छै, छिनमन इसपाटाकस नाँखी, "केत्ता मन बनाय लेॅ पड़लोॅ छेलै ओकरा ई रं सोचै आरो करै में। जहां गुलाम सिनी केॅ बेदर्दी सें काटी-मारी देलोॅ जाय छेलै आरो वहीं अखाड़ा में लटकाय देलोॅ जाय छेलै। मतरकि इसपाटाकस के मनोॅ पर एकरोॅ उल्टा प्रभाव पड़लै, हेनै कि वें ई बात केॅ मानै लेली तैयार होय गेलै। जब मरने छै तेॅ कैन्हें नी आपनोॅ अंदर के आग बाहर निकाली केॅ मरौं। जे होतै, देखलोॅ जैतै। आरो इसपाटाकस केॅ जेन्हैं मैदान में उतारलोॅ गेलै, ऊ आपनोॅ मालिके पर हमला करी देलकै।" मंगरू के कहानी खतम होय जाय छै, मतरकि सबटा जन-पाट के कहानी खतम होय के होशे नै रही छै, सब टुकुर-टुुकुर मुँह ताकते रही जाय छै। ओकरा सिनी केॅ देखी केॅ हेने बुझाय छै जेना कि वें संझली चौपाल में बैठलोॅ छै। खेतोॅ में काम करै लेली नै ऐलोॅ छै। मंगरू आपनोॅ खिस्सा खतम करथैं बलेसर सें पूछै छै कि बलेसर, कहानी जे सुनैलियौ, हमरे सिनी रं मजदूर के खिस्सा छेलै नी। अब तों की सोचलैं? तबेॅ बलेसर जे कहीं आपनोॅ दुनिया में कहीं भुतलैलोॅ छेलै, अकचकाय केॅ पूछै छै, "तों कुछू बोललै मंगरू?"
मंगरू बलेसर के मुँह देखी केॅ अचरज करै छै, कैन्हें कि बलेसर के मुँहोॅ पर एक विचित्र मुस्कान आवी गेलोॅ छै। हांलांकि हेना केॅ बलेसर मंगरू के कहानी नै सुनलेॅ रहै, मतरकि ओकरोॅ उत्तर मंगरुये के जवाब नाँखी छेलै। बलेसर ओकरा सें कहै छै, "हां मंगरू, तों ठीके कहै छैं, आखिर गुलामी के करै लेॅ चाहैै छै। हम्मूं नै चाहै छियै। हम्में आबेॅ पटेल सिंह के खेत में काम नै करवै। आबेॅ हम्में आपनोॅ खेती करवै। ऊ दिन नत्थू काका हमरा खेती वास्तें लोन लै लेॅ बताय रहलोॅ छेलै। हम्में आबेॅ लोन लै केॅ खेती करेॅ पारौं। तों ठीक कहै छैं मंगरू।" तबेॅ मंगरू जे बलेसर के सबटा बात सुनी रहलोॅ छेलै, आपनोॅ मन के बात केॅ दोहरैतें हुवेॅ बोललै, " आय तेॅ है खेती-बारी आरो छोटोॅ-मोटोॅ काम करै लेॅ केत्तेॅ नी लोन मिलै छै। पंचायत के मुखिया ऋण दै छै, बैंक ऋण दै छै, जवाहर रोजगार योजना छै, एन आर पी ई ऋण दै छै, ओकरा सें गरीबोॅ केॅ सहायता मिलै छै। खाली काम करै वाला के मन में संकल्प होना चाहियोॅ। आरो यहू नै तेॅ तों जानै छै न बलेसर, बिलाक के बीडिओ लोन दै सकै छै। आरो सब के बात सुनला-समझला के बाद बलेसर मने-मन फैसला करै छै, की वें कोय तरह सें, कहिंयो सें लोन लै केॅ आपनोॅ खेती करतै। आपनोॅ खेती करै में केत्तेॅ सुख छै।
आरो फेनू बलेसर जे फैसला करी लेलकै, से करी लेलकै। आय सें वें खेत रोॅ काम नै करतै। आरो बलेसर बिना कुच्छु बोलले उठी केॅ चुपचाप खेत सें बाहर आवी जाय छै। आय बलेसर केॅ खेत के कोय चीज नै बान्हेॅ पारी रहलोॅ छै। नै गाछ, नै बिरिछ, नै पोखर, नै बोरिंग सें निकलतें पानी। कुछ दिन पहलें तक बलेसर केॅ यहेॅ चीज कत्तेॅ प्यारो रहै आरो आय वही सब एकदम वीरानोॅ होय गेलोॅ रहै। बलेसर सब कुछ छोड़ी केॅ, सब कुछ भुलाय केॅ एकदम मुँह फेरी केॅ आगू बढ़ी गेलोॅ छेलै, जेना मशान में कोय अपने आदमी केॅ जराय-पकाय होकरा पंचकाठ दै आगू बढ़ी जाय छै। बलेसर छिनमान होने आगू बढ़ी जाय छै।