गुलबिया, खण्ड-3 / आभा पूर्वे

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चैत-बैशाख के महीना चली रहलोॅ छै। गरम रोॅ महीना आवी गेलोॅ छै। भोरकुआ पर तनी टा बढ़ियां लगै छै, कैन्हेंकि ऊ समय मौसम थोड़ा ठंडा रही छै, मतरकि जेना-जेना समय आगू बढ़ै छै, भोरकोॅ ठंडा हवा कपूर नाँखी उड़ी जाय छै आरो धीरे-धीरे वातावरण में धूप के प्रभाव बढ़लोॅ जाय छै। जैन्हें-जैन्हें सुरज भगवान ऊपर उठना शुरू होय छै, देह-हाथ घामे-घाम होय जाय छै। कैन्हो अजीब मौसम होय छै ई चैत-बैशाख रोॅ महीना। न तन शीतल होय पारै छै आरो नै तेॅ मने शांत रहेॅ सकै छै। जेना-जेना धूप रोॅ परभाव बढ़ै छै, वैन्हें-वैन्हें मन के व्याकुलता बढ़ेॅ लागै छै। हेने बुझाय छै जेना कि धूप सें बचै लेली धरती में समाय जांव या फिरू ठंडा पानी सें भरलोॅ नदी-पोखर में डूबलोॅ सारा दिन बिताय दियै। मतरकि हेनोॅ हुवेॅ कहाँ पारै छै। एकरा लेॅ समय कहाँ मिलै छै। खेती-बाड़ी आरो काम-धंधा या फिरू पेट बांधी केॅ रहलोॅ जावेॅ सकै छै की? काम तेॅ करै लेॅ पड़तै। आरो बलेसर सबकुछ जानतैं-बुझतैं काम शुरू करी दै छै।

आय सें बलेसर लोन लेली दौड़-धूप शुरू करी दै छै। बलेसर आगा-पीछा देखले बिलाक दिश बढ़ी जाय छै। बिलाक घर सें आठ किलोमीटर दूर छै। मतरकि आय बलेसर के मनोॅ में एकटा विश्वास छै कि वें जेना भी हुवेॅ, लोन लै केॅ रहतै, से आय वें धूपोॅ-बताशोॅ के ख्याल नै करै छै। बिलाक तक जैतेॅ-जैतेॅ बलेसर घाम सें तरबतर होय जाय छै। कुर्ता के एको कोना भींजै सें नै बचलोॅ रहै छै। एत्ता धूप छेलै बाहर में की, अभी तक तेॅ केला रोॅ खेतोॅ में बैठलोॅ-बैठलोॅ बुझाय नै छेलै। मतरकि केला के खेत सें अब बाहर ऐतैं बाहर के धूप-बताश नें बलेसर के सौंसे देहोॅ केॅ भिंजाय देलेॅ छेलै। बैशाख के धूप रोॅ बाते कुछ आरो होय छै। आरो वहू में कोशी माय के गोदी के. चलै लेली तेॅ चली देलकै बलेसर, मतरकि हेत्ता ख्याल नै करेॅ सकलै कि वें रास्ता में हेत्ता धूप में पड़ी जैतै। अखनी भगवान बलेसर रोॅ सीधा मुँहोॅ पर पड़ी रहलोॅ छै। आँखी पर घाम चुवी-चुवी केॅ आँखी रोॅ पिपनी पर गिरी रहलोॅ छै आरो बलेसर रोॅ आँख बीचोॅ-बीचोॅ में बंद होय जाय छै। जखनी घाम चूवी केॅ आँखोॅ के कोरी में घुसी जाय छै, तखनी बलेसर के डिमी हेने लहरेॅ लागै छै, जेना कोय आँखी में मिरचाय रगड़ी देलेॅ रहै। घाम पोछै लेली आपनोॅ कंधा पर के गमछा उतारी केॅ आँख-मुँह पोछै छै आरो ओकरा मने-मन ख्याल आवै छै कि यहेॅ गमछा सें एक दिन गुलबिया नें हाथ पोछलेॅ रहै। आरो जबेॅ ऊ गमछा सें आपनोॅ मुँहोॅ केॅ पोछै छै तेॅ ओकरा हेने बुझाय छै कि गुलबिया आपनोॅ मुलायम-मुलायम हाथोॅ सें ओकरोॅ देहोॅ रोॅ घाम पोछी रहलोॅ छै। बड़ा सुख मिलै छै बलेसर केॅ। ओकरा एक मिनटोॅ लेली लागै छै कि धूप अनचोके नरम पड़ी गेलोॅ रहै। एकदम नरम। गुलबिया के याद में अद्भुत असर छै, मतरकि धूप तेॅ धूपे छै। सब कोमल भाव केॅ उलाय-पकाय केॅ राखी दै वाला। बलेसर केॅ लागै छै कि ओकरोॅ देह कुम्हारोॅ के आवा बनलोॅ जाय रहलोॅ छै। वें पसीना सें भीजलोॅ आपनोॅ कमीजोॅ के बदन खोलै छै आरो जोर-जोर सें फूक मारी देह-हाथ केॅ ठंडा करै के कोशिश करै छै। आरो चलतें-चलतें बलेसर केन्हौ करी केॅ बिलाक पहुँचिये जाय छै, मतरकि बिलाक तक पहुँचतें-पहुँचतें आखिरकार बलेसर थकी केॅ चूर-चूर होय जाय छै। एत्तेॅ घामे-घाम होला के बादो बलेसर आपनोॅ देहोॅ पर के सबटा पसीना पोछी केॅ आफिस के बाहर एक बार थकथकाय केॅ बैठी जाय छै। ओकरा छाँव में आवी गेला के बादो चैन नै मिली रहलोॅ छै। वें कमीज खोलै छै आरो गमछे नाखी पसीना केॅ निचोड़ी दै छै। फेनू बदन पर राखी लै छै आरो कुछ देर लेली आँख बंद करी लै छै, जेना देहोॅ में बरफ के ख्याल करतेॅ रहै। आपनोॅ साँसोॅ केॅ, जे अभी तेज चली रहलोॅ छै, संभारै छै। आफिस के सीढ़ी पर बैठलोॅ-बैठलोॅ दू-तीन मिनट में केत्ता बात सोची लै छै। भीतर सें आदमी आवी रहलोॅ छै आरो केत्ता नी आदमी भीतर जाय रहलोॅ छै। आदमी सिनी रोॅ तांता लगलोॅ छै। बलेसर भी उठी केॅ भीतर जाय छै। बलेसर देखै छै कि वहाँ कोठली में एकटा टेबुल पर एगो मोटोॅ ऐसनोॅ आदमी बैठलोॅ छै। हेने बुझाय छै कि ऊ बड़ा बाबू रहै। कैन्हेंकि सबटा आदमी ओकरे आस-पास बैठलोॅ या खड़ा छै। दत्ता बाबू यहेॅ बतैलेॅ छेलै कि मोटोॅ रंग के आदमी मिलतौं भीड़ोॅ सें घिरलोॅ, वहेॅ बड़ा बाबू होथौं। बलेसर दत्ते बाबू सें एगो आवेदन-पत्रो लिखवैनें ऐलोॅ छै, जेकरा वें बड़ी हिफाजत सें प्लास्टिक के झोली में लेनें छेलै कि कहीं घामोॅ सें भींजी नै जाय। वें कमरोॅ सें ऊ झोली निकाली लै छै आरो झोली सें ऊ चपोतलोॅ कागजो, जेकरा लै ऊ बड़ा बाबू दिस बढ़ै सें पहिलें एक बार फेनू आपनोॅ विश्वास लेली दूसरोॅ आदमी सें पूछै छै। ऊ आदमी बताय छै, "हों, टेबुल पर जे मोटोॅ रं के आदमी बैठलोॅ छै, ऊ ई बिलाक के बड़ा बाबू छै। ओकरोॅ नाम सुमेर सिंह छै, अभिये दस रोज पहिलें ऐलोॅ छै।" वें आदमी एक्के सुरोॅ में एत्तेॅ जानकारी दै-दै छै। बलेसर देखै छै कि एक-दू टा आदमी, जे पैंट-कुरता में रहै, वहीं पर कुरसी पर बैठलोॅ चाय सुड़की रहलोॅ छै। बलेसर ऊ बड़ा बाबू केॅ बड़ा गौर सें देखै छै।

ओकरा ख्याल आवै छै कि ई आदमी केॅ छः-सात रोज पहिलें वें पटेल सिंह कन देखलेॅ छेलै। पटेल सिंह-सुमेर सिंह। हुवेॅ सकै छै कि रिश्तेदारी में रहेॅ। बलेसर मने-मन विचारोॅ के विन्डोवोॅ में उड़ेॅ लागै छै। काम हुवैं पारेॅ। जों ऊ आपनोॅ पता-ठिकाना बतावै छै तेॅ सुमेर सिंह ओकरोॅ मदद करेॅ पारेॅ। बलेसर के मन में यहू बात उठै छै कि कहीं सुमेर सिंह ने पटेल सिंह केॅ है सब बात बताय देलकै तेॅ ओकरा जोहो लोन मिलै वाला होतै, वहू नै मिलतै। पटेल सिंह तेॅ कभियो है नै चाहेॅ पारेॅ कि हमरोॅ केला के एकड़-दू एकड़ के खेती रहै। मतरकि सुमेर सिंह भला ई सब बात पटेल सिंह केॅ कैन्हें कहतै। यहाँ तेॅ कामे छै गरीबोॅ के मदद करना। तबेॅ हमरा कैन्हें नी करतै। वें पटेल सिंह के नाम कहतै, तबेॅ बड़ा बाबू ज़रूरे ध्यान देतै। आरो यही सब सोचतें हुवेॅ बलेसर बड़ा बाबू के नगीच आवी केॅ आपनोॅ आवेदन-पत्र केॅ सुमेर सिंह के आगू बढ़ाय छै छै।

सुमेर सिंह दूसरोॅ आदमी सें बात करै में मशगूल छेलै। से ऊ बलेसर रोॅ आवेदन-पत्र लै केॅ आपनोॅ टेबुल पर फाइल रोॅ नीचूं रखी दै छै। बलेसर ई देखी केॅ कि सुमेर सिंह ओकरोॅ आवेदन-पत्र फाइल के नीचू में राखलोॅ छै, ज़रूरे हमरोॅ काम करतै, सोची खुश होय जाय छै। सुमेर सिंह ठीक सें बलेसर केॅ देखले बिना ओकरा हाथ सें बैठै के ईशारा करी दै छै आरो फिरू आपनोॅ बात में मगन होय जाय छै। बलेसर बहुत आशा आरो उम्मीद लै केॅ वहीं बाहर में आवी केॅ बैठी जाय छै। लोग बेद केॅ ऐतेॅ-जैतेॅ देखी केॅ ओकरोॅ विश्वास जमै छै कि यहाँ एत्तेॅ आदमी आवी-जाय रहलोॅ छै, ज़रूरे लोन लेली ऐतेॅ-जैतेॅ हुवै।

थोड़ा देर के बाद बलेसर के भीतर सें बुलाहट होय छै। बलेसर मने-मन बहुत खुश होय छै कि अब ओकरोॅ बुलाहट होय गेलोॅ छै। अब ओकरा लोन ज़रूरे मिली जैतै। हुन्नें सुमेर सिंह आपनोॅ कुर्सी पर ओठगांय केॅ बैठलोॅ छै। बलेसर ओकरोॅ सामना में जाय केॅ हाथ जोड़ी केॅ खड़ा होय जाय छै। सुमेर सिंह होने कुरसी पर ओठगेलोॅ हुवेॅ बैठलोॅ पूछै छै, "तोरोॅ नाम की?"

बलेसर हाथ जोड़लेॅ-जोड़लेॅ धीरे सें बोलै छै, "बलेसर।"

"तोरोॅ बापोॅ रोॅ नाम की।"

"शिवचरण।"

"की शिवचरण।"

"शिवचरण मंडल।"

"तेॅ होना केॅ नै बोलै। खाली शिवचरण कहला सें भगवानो कुछ समझेॅ पारतौं की?"

"तों काम की करै छैं।"

"खेती-बाड़ी रोॅ काम।"

"तों की चाहै छैं।"

"लोन।"

"कथी लेली।"

"खेती-बाड़ी करै लेली।"

"खेती-बाड़ी लेेलेॅ लोन।" बड़ा बाबू रोॅ आँख तेॅ जेना कौड़ी नाँखी फैली केॅ रही गेलै। आरू फिरू आँख केॅ घोंघा नाँखी चलैतेॅ हुवेॅ कहलेॅ छेलै, "अरे बलेसर, बारी जोगै लायक तेॅ ऋण नै उठावेॅ पारै छैं, तेॅ खेती लोन लेभैं तेॅ चुकाबेॅ पारभैं की।" आरो हठातें फिरू सोचतें आपनोॅ बातोॅ केॅ बदलतें हुवेॅ बड़ा बाबू बड़ी नरमी सें कहेॅ लागै छै, "केत्तेॅ लेना छै।"

"बीस हजार।"

"मतरकि एत्ता पैसा लै लेली पहलें चार-पाँच हजार यै टेबुल पर खर्च करै लेॅ पड़तौ, करेॅ पारभैं।"

"बाबू, हम्में सिनी ठहरलां गरीब जन-मजूर, कहाँ सें एत्तेॅ पैसा खरच करेॅ पारभौं।"

"तबेॅ है लोन लै लेली कथी लेॅ ऐलोॅ छैं। है लोन-फोन एत्तेॅ आसान नै छै, जेत्ता आसान तों बुझी रहलोॅ छैं।"

"हुजूर, मतरकि हमरे गामोॅ के कैएक आदमी केॅ है लोन मिललोॅ छै। जे हमरे नाँखी गरीब छै।" "मिललोॅ छै तेॅ हेनैं? गलैलकै तेॅ पानी निकललै। पानी लेॅ पहलें लावै के जोड़ बैठावैं बलेसर।"

सुमेर सिंह आबेॅ ज़्यादा बहस करै लेॅ नै चाहै छै, कैन्हेंकि ओकरोॅ आस-पास ढेरो लोग के भीड़ जमा होय गेलोॅ छै। ऊ बलेसर केॅ टालै लेली एक हफ्ता बाद आवै लेली कहै छै, "ठीक छै, तों पाँच-छोॅ रोज बाद ऐहियौ। तालुक हम्में बीडिओ साहब सें बात करी केॅ राखभौं।"

आरो बलेसर आशा-निराशा के बीच झूलतें बाहर निकली जाय छै। बाहर अभियो भी ओत्ते रौदा छेलै। चार बजी रहलोॅ छै। मतरकि रौदा देखी केॅ मन हेने बुझाय छै कि भगवान दिस नजरी उठाय केॅ भी नै देखै। रुकौ तेॅ नै सकै छै। फिरू बलेसर आपनोॅ गमछा सें मुँहोॅ केॅ ढाकतें हुवेॅ बांधी लेलकै आरो निकली पड़लै घर दिस।

आय बलेसर घर ऐतेॅ-ऐतेॅ एत्तेॅ थकी केॅ चुर होय जाय छै। ओकरोॅ देहोॅ के एक-एक हाड़ चिनकी रहलोॅ छै, जेना देह सें टूटी केॅ बाहर निकली जैतै। वें आपनोॅ हाथ पीछू करी केॅ रीढ़ केॅ सहलावेॅ लागै छै। ओकरा लागै छै कि केत्ता अच्छा होतियै कि कोय ओकरोॅ चूर-चराहते बदनकेॅ आहिस्ता-आहिस्ता मलतियै कि हठाते ओकरा गुलाबो के याद आवी जाय छै। आय गुलबिया पास होतियै तेॅ ऊ कि हेने दर्द सें बेचैन रहतियै। देहोॅ के एक-एक गिरेहोॅ पर मुलायम हाथ ससारी-ससारी केॅ सबटा दर्द बिछी लेतियै। मतरकि गुलबिया आय ओकरोॅ पास कहाँ छै। बलेसर मने-मन सोचै छै कि आय नै छै तेॅ की, कल तेॅ गुलबिया हमरोॅ पास होतै घड़ी-दू-घड़ी आरो एक-दू दिन-रात वास्तें नै, सौसें जिनगी लेली। आरो ई सोचतें-सोचतें बलेसर के मोॅन भटकी जाय छै आरो देखथैं-देखथैं दरद भी टीसना कुछु कम होय जाय छै। बलेसर दरद के जगह में ओकरोॅ मुलायम हाथ केरोॅ स्पर्श महसूस करै छै।