गुलबिया, खण्ड-4 / आभा पूर्वे
आय हफ्ता रोज गुजरी गेलोॅ छै। आय के दिन सुमेर सिंह नें बलेसर केॅ बुलैनें छेलै। ऐत्ता दिन बलेसर केना काटलकै, वहीं जानै छै। दिनोॅ में पचीसो बार औंगरी पर दिन गिनतें रहै छेलै। आय दिन पुरथैं ओकरोॅ चेहरा पर आशा आरो खुशी के अद्भुत प्रकाश छेलै। ऊ एकदम भोर उठलोॅ छै। सबटा काम निबटाय लेलेॅ छै आरो गमछी में पाव भरी सतू बांधी केॅ बिलाक दिस ओरियाय जाय छै। ओकरा मालूम छै कि जरा-सा दिन चढ़थैं धूप केन्होॅ तीखोॅ होय जाय छै। आगिन में जरला सें तेॅ अच्छा यही छै कि तीन घंटा बिलाक के बाहरे बैठलोॅ जाय।
बिलाक खुलथैं बड़ा बाबू हाजिर होय गेलोॅ छै। मतरकि बलेसर सबसें पहिलें केना घुसतियै। ई सोची केॅ कुछु देर बाहरे बैठलोॅ रही जाय छै आरो हुन्नें बड़का बाबू होने आदमी सें घिरलोॅ चल्लोॅ जाय छै। केत्ता आदमी केॅ निवटैला के बाद बलेसर के बुलाहट होय छै। बलेसर एक आशा आरो उम्मीद लै केॅ बाहर सें हाथ जोड़ले-जोड़ले बड़ा बाबू के नगीच पहुंची जाय छै। बलेसर केॅ देखथैं बड़ा बाबू ओकरा सें पूछै छै, "की बलेसर, तों तेॅ पटेल सिंह के खेत में काम करै छेलैं।"
"हां हुजूर, हम्में हुनकोॅ खेत के मजूर छेलियै।"
"आरो पटेल सिंह के खेत में तों मैनेजरो छेलैं?"
"हां छेलियै तेॅ, मतरकि आबेॅ हम्में हुनकोॅ खेतोॅ पर काम नै करै छियै।"
"हमरा तेॅ यहू पता छै कि पटेल सिंह नें तोरा मैनेजर बनाय के साथें-साथें खूब सुख-सुविधो देलेॅ छेलौं। फिरू तोरा कौन दरकार पड़ी गेलौ लोन के."
"हुजूर, आबेॅ हम्में आपनोॅ एकड़-दू एकड़ जमीन लै केॅ खेती करै लेॅ चाहै छियै।"
"ठीक कहै छै, तों मजदूर सिनी केॅ केत्तो सुविधा देलोॅ जाय, मन नै भरै छौं। जरियो टा सुविधा मिललौं नै मिललौं कि माथोॅ पर चढ़ै के कोशिश करेॅ लागलौ। अभियो कुछू नै बिगड़लोॅ छौं, तों पटेल सिंह के खेत रोॅ काम नै छोड़ोॅ। लौटी जा खेत में काम करै लेॅ। हम्में तोरा तोरोॅ भलाई वास्तें भी समझाय रहलोॅ छियौं। जहां तोरोॅ बाप-दादा के नाभि गड़लोॅ छौं, वांही काम करी केॅ तोरोॅ मुक्ति मिलतौं। की है लोन-फोन के चक्कर में पड़ी गेलोॅ छैं। नै सकेॅ सकभैं।"
"नै हुजूर, आबेॅ हम्में हुनकोॅ खेतोॅ में काम नै करवै। हमरा लोन मिली जाय तेॅ हम्में करवै तेॅ अपने खेती करवै।" ई कहतें बलेसी के चेहरा पर मन के एक विश्वास भाव झलकी उठलोॅ छेलै।
सुमेर सिंह के बहुत समझैला के बादो बलेसर आपनोॅ बातोॅ पर अडिगे रहै छै। बड़ा बाबू तबेॅ थोड़ा गोस्साय केॅ बोलै छै, "तेॅ ठीक छै। तों पहलें पाँच हजार टका ई टेबुल पर रखी दैं तबेॅ तोरोॅ लोन वास्तें सोचलोॅ जैतौ।"
बलेसर बड़ा बाबू के ई रुख देखी केॅ थोड़ोॅ घबड़ाय जाय छै, मतरकि फेरू हाथ जोड़ी थोड़ोॅ घिघियैतेॅ हुवेॅ बोलै छै, "हुजूर, हम्में पहलें कही चुकलोॅ छियौं कि हम्में ठहरलां गरीब-गुरुवा। हेत्ता पैसा कहाँ सें लानेॅ पारवै आरो फिरू तोरोॅ सिनी रोॅ यदि गरीब-गुरुवा पर किरिण होतै, तेॅ हम्में गरीब तेॅ मरिये जैवै। तों तेॅ हमरोॅ मालिक पटेल सिंह केॅ जानवे करै छौ। ई तेॅ हम्मूं आबेॅ जानी गेलोॅ छियै कि तोहों पटेल सिंह केॅ जानै छौ। हम्में हुनकोॅ खेत पर बहुत दिन तक खटलेॅ छियै हुजूर। जों आपनें कोशिश करवै तेॅ हमरा ई लोन ज़रूरे मिली जैतै।" मतरकि सुमेर सिंह पर ओकरोॅ एत्तेॅ गिड़गिड़ैवोॅ के कोय असर नै होय छै।