गुलबिया, खण्ड-5 / आभा पूर्वे
दत्ता बाबू नें बलेसर के मुँह देखतेॅ हुवेॅ पूछलकै, "मतरकि अखनी तोंय जाय कहाँ रहलोॅ छैं।"
बलेसर आपनोॅ आँखी केॅ गोल-गोल घुमैतेॅ हुवेॅ बोललै, "हम्में ई गाँव के मुखिया पटेल सिंह, जे हमरोॅ खेत के मालिको छेलै, सें मिलै वास्तें जाय रहलोॅ छियै। ओकरा सें लोन मिलै लेली फिरू बात करवै।"
दत्ता बाबू ओकरोॅ बात सुनी केॅ अचकचैतें हुवेॅ एकाएक बोली उठै छै। कुछु गंभीर बात। बलेसर जानै छै, जखनी दत्ता बाबू कोय गंभीर बात कहै छै, तखनी हुनी आपनोॅ बांही के कुर्ता ऊपर-नीचें दस बेरी ज़रूरे करै छै, चश्मा नाकी पर ठीक सें राखै लेली ओकरा पाँच बार संभारै छै। अखनियो दत्ता बाबू ठीक वहेॅ रं करेॅ लागलेॅ छेलै। आरो हठाते फिनु रुकी केॅ बोलै छै, "तों की पगलाय गेलोॅ छैं बलेसर, जे मुखिया पटेल सिंह लग जाय रहलोॅ छैं। आबेॅ तोंही सोचैं, जे सुमेर सिंह नें तोरा लोन नै देलकौ, अब ई पटेल सिंह तोरा लोन की देतौ। आरो तों तेॅ जानबे करै छैं, हमरोॅ देश के सबसें बड़ोॅ दुश्मन छै हमरोॅ जाति-व्यवस्था आरो अमीरी-गरीबी के भेदभाव। आबेॅ तोरोॅ केकरो कन प्रयास करना बेकार छौ। हमरोॅ मानें तेॅ तोरोॅ पास बस एक्के सहारा बची गेलोॅ छौ। तों ओकरोॅ कन जाय केॅ कोशिश करें तेॅ हमरा विश्वास छै कि तोरोॅ खेती लेली पैसा के व्यवस्था होय जैतौ।" एक्के साँस में एत्तेॅ बतैतेॅ-बतैतेॅ दत्ता बाबू के साँस फुलेॅ लागलेॅ छेलै। साँस फुलै के बेमारी हुनका पौर साल सें लगी गेलोॅ छै। ऊ आपनोॅ साँस केॅ स्थिर करै लेली जेन्हैं रुकै छै कि बलेसर के अंदर के बेताबी बढ़ी जाय छै, ई जानै लेली कब, कहाँ ओकरोॅ काम हुवेॅ पारै।
बलेसर के मुँहोॅ पर एक आशा के किरण फुटी जाय छै आरो ऊ बेचैनी में पूछै छै, "ऊ कहाँ दत्ता बाबू?"
दत्ता बाबू के साँस तबतक स्थिर होय गेलोॅ छेलै। ऊ आपनोॅ बात केॅ बोलै लेली बलेसर के सहारा लेतेॅ हुवेॅ बलेसर के कंधा पर आपनोॅ हाथ रखतें ओकरा समझैतेॅ हुवेॅ बोललै, " बलेसर, तोरोॅ तेॅ बाप-दादा केॅ हम्में जानै छेलियौ। जिनगी कटी गेलौ ई भूमि बाबू कन। हुनकोॅ देहरी पर काम करतें आरो रिन-कर्जा लेतें-देतें हुवेॅ। तहूँ कैन्हें नी हुनके कन जाय केॅ करजा मांगै छैं। हम्में जानै छियौ, वें तोरा ज़रूरे रिन देतौ। हुनकोॅ तेॅ पैसा लै-दै के कामे छै। आरो फिरू वहाँ पैसा खरचा-उरचा करै के बात नै उठै छै। कैन्हेंकि तोरोॅ बाप-दादा केॅ वें चिन्हवे करै छेलौ। पूरा गांव-टोला के लोग तेॅ छोड़ी दैं, इलाका-बियान भरी के लोग आवी केॅ हुनका सें करजा लै छै। यही सूद के पैसा सें देखै नै छैं, कत्तेॅ बड़का महल खड़ा करी लेलकै। हमरो बेरा बखत लाख-दू लाख हुनिये भूमिबाबू संभालै छै।
ई बात बलेसर के मनोॅ में धंसी जाय छै। ठीके कहै छै दत्ता बाबू। हमरो बाप-दादा नें हिनके सें पैसा-कौड़ी लै केॅ हमरोॅ फूफीसिनी के शादी-बीहा करनें छेलै। तब ऊ छोटोॅ छेलै। माय-बाबू बोलै छेलै तेॅ ऊ सुनलेॅ छेलै। हम्में आबेॅ भूमियक बाबू कन जैवै। जेना भी होतै रिन-करजा लेना छै आरो हुनके सें लेवै।
बलेसर दूसरे दिन आपनोॅ गांव के महाजन भूमि चाचा के घर पहुंची जाय छै। घर की छै, महल छै। एतेॅ बड़ोॅ हाता तेॅ ओकरोॅ मालिक पटेल सिंह के भी नै होतै, जेत्ता बड़ा में भूमि बाबू के छै। ठीक कहै छेलै दत्ता बाबू। खूब पैसा कमैलेॅ छै भूमि बाबू नें। एक बीघा रोॅ हाता तेॅ ज़रूरे होतै। एक क्षण लेली बलेसरोॅ के मन में आवै छै, जों ऊ केला के खेती में सफल होलै तेॅ यही रं हवेली बनतै। चारो बगल शीशम के आरी बनाय देलेॅ छै। बीचोॅ में महल छै। केत्ता अच्छा रंगोली टीपलोॅ घर छै। बाहर रोॅ मिसतरी नें बनैलेॅ छै। दादा बोलै छेलै। घर के आगू में एगो बड़का रं सीढ़ी छै। ओकरा पर चढ़थैं बड़का गो बरामदा छै। बरामदा के बाद भूमि बाबू के बैठै लेली बड़का ठो बैठकखाना। जेकरा में भूमि बाबू आरो हुनकोॅ मुनीमजी बैठै छै। बलेसर बच्चा में केत्तेॅ आय-जाय छेलै, ई घर मेें आपनोॅ बाप-दादा के साथ। भूमि बाबू के नाम बहुते छै ई गांव में। भूमि बाबू के नाम जी पर ऐथैं हुनकोॅ समूचा बात ओकरोॅ दिमागोॅ में घुरेॅ लागै छै।
भूमि बाबू गोरा रं के लंबा-चौड़ा शरीर वाला लोग छै। रंग हेत्तेॅ गोरा छै, जेना रोज दूधे सें नहैतेॅ रहै। भगवानोॅ के देलोॅ रंगे नै छै, मतरकि मुंहो-कान सुन्दर छै। लम्बा ठारो नाकोॅ पर बड़का-बड़का आँख। मूँछ बड़ोॅ-बड़ोॅ रोबदार। भूमि बाबू केॅ कोय नै कहै कि लेन-देन वाला साहूकार छै।
जखनी सीढ़ी पार करी केॅ बलेसर भूमि बाबू के पास पहुँचै छै, बाहरे सें हाथ जोड़ने-जोड़ने तेॅ ओकरा हठाते आपनोॅ नगीच देखी केॅ भूमि बाबू थोड़ा हतप्रभ होय छै। मतरकि तखनिये हुनी एकरोॅ आवै के बातोॅ सें एकदम तटस्थ होय जाय छै। भूमि बाबू केॅ ई समझतें देर नै लगै छै कि ई हमरा पास कुछु मांगै लेली ऐलोॅ रहै। भूमि बाबू आपना केॅ हेने दिखाय रहलोॅ छै कि ओकरा अभी बात करै के जरियो टा फुरसत नै छै। मतरकि बलेसर मन में पक्का ठानिये केॅ ऐलोॅ छै कि ऊ आय भूमि बाबू सें करजा लैइये केॅ जैतै। होकरोॅ लेली जेत्तेॅ देरी होकरा यहाँ बैठै लेॅ पड़ै, ऊ यहाँ बैठतै। आरो होकरा लेली ऊ गोड़ो पकड़ी लेतै। वें गोड़ पकड़िये लेतै, तेॅ की होतै। पुश्त-पुश्त के जिनगी तेॅ हिनके सिनी के गोड़ोॅ के नीचें कटी गेलोॅ छै। आय हम्में गोड़ पकड़िये लेवै तेॅ की। आरो बलेसर आपनोॅ कोनो बात के ख्याल नै करी केॅ सीधे गोड़ पकड़ी लै छै। भूमि बाबू आपनोॅ गोड़ोॅ केॅ झटकी केॅ हटाय लै छै। फेनू कुछु नरम-नरम होतें हुवेॅ पूछेॅ लागै छै, "की बलेसर, कोनो बात छौ की?" तबेॅ बलेसर अकचकाय केॅ भूमि मालिक के तरफ देखी फेनू हाथ जोड़ी केॅ बोलै छै, "हां मालिक, हम्में आपनोॅ खेती करै के सोचै छियै।"
"मतरकि, तों तेॅ पटेल सिंह के खेत में काम करै छैं, फिर ई कौन खेती के बात करी रहलोॅ छैं।"
"आबेॅ हम्में आपनोॅ केला के खेती करवै।" बलेसर आपनोॅ बात केॅ जोर देतें हुवेॅ कहै छै।
"तों जानै छैं, आपनोॅ खेती करै में कत्तेॅ टका के ज़रूरत होय छै? आरो फिरू ई महीना-दू महीना वाला खेती नै छै। पूरे एक बरस रोॅ खेती छै। तों हेत्ता दिन ई खेती करेॅ पारभैं। बाहरोॅ सें देखै में ई खेती-बारी बढ़िया लगै छै बलेसर, मतरकि भीतर हुलकला सें सब मरम समझै में आबेॅ लागै छै। ई सब खेती-बारी बड़ा-बड़ा लोग वास्तें छै। जे आपनोॅ पैसा केॅ जरियो टा पैसा नै समझै छै, लगैतेॅ रहै छै। तबेॅ ऊ जाय केॅ एक साल में कुछ पैसा बनै छै। खाद-बीज के दाम आबेॅ आकाश छूवी रहलोॅ छै रे बलेसर।" भूमि बाबू नें बलेसर के मनसा केॅ समझतें हुवेॅ होकरा हारै के कोशिश में कहलकै। "हम्में तेॅ यूं कहभौ, तों है सिनी बात दिमागोॅ सें निकाली दैं आरो वही पटेल सिंह रोॅ खेती में ठाठ सें मैनेजरी कर आरो दोनों जून के रोटी खो।"
बलेसर, जे भूमि बाबू के बात केॅ बड़ा ध्यान सें सुनी रहलोॅ छेलै, ओकरोॅ विश्वास केॅ कहीं सें डिगाबेॅ नै पारलकै। बलेसर आपनोॅ मनोॅ के विश्वास केॅ आरो गहरैतें हुवेॅ बोललै, "जे भी हुवेॅ मालिक, आबेॅ हम्में करवै तेॅ आपनोॅ खेती। आरो हम्में पैसा लेली ऐलोॅ छियै, मनोॅ में एगो विश्वास लेलेॅ कि आपनें हमरोॅ बाप-दादा केॅ रिन-करजा दै छेलौ आरो हमरो बाप-दादा चुकाइये केॅ गेलोॅ छै। हम्मूं आपने के ई रिन चुकाय देवै।" भूमि बाबू मनेमन सोचै छैµई बलेसर हमरोॅ पीछा नै छोड़तै, तभियो एक ढेला फेंकी केॅ हुनी टालै के अंतिम परयास करै छै आरो बलेसर सें बोलै छै, "रे बलेसर, तोरोॅ बाप-दादा के बात कुछू आरो छेलै। रिन-करजा लै छेलौ तेॅ यही लेली हमरे द्वारी पर खटतें-खटतें जिनगी काटी देलकौ। आरो फिरू तोरोॅ बाप-दादा रोॅ खैलोॅ-पीलोॅ शरीर छेलौ, जे खेती-बारी सें लै केॅ घर-अंगना तक संभारी दै छेलौ। तोरोॅ तेॅ ई जवानियो में शरीर केन्होॅ रोगिये रं होय गेलोॅ छौ। हम्में चाहबौ करौं कि तोरोॅ देह खटाय केॅ टका वसूली लै तेॅ वहू संभव नै छौ। सब धन बुड़ै वाला ही लगै छै। तों हमरोॅ देहरी पर की काम करभैं। आरो हम्में तोरा कोय काम दियौ नै पारौं बलेसर। फिरू तोंही बतावैं, हम्में तोरा कौन बात लेली रिन-करजा देभौ?"
"मतरकि, हम्में आपना सें वादा करी रहलोॅ छियै मालिक कि हम्में खेती सें जे पैसा होतै, रिन चुकाय देवै।" बलेसर फिरू आपनोॅ बात दुहरावै छै।
"अरे बलेसर, खेती-बारी के कोनो भरोसा छै। साल भरी में की होतै, की नै होतै। आरो कम सें कम हम्में तेॅ भविष्य के बातोॅ पर तनियो टा भरोसा नै करै छियै। कोशी के बाढ़ केॅ, के जानै छै। केकरो घर-बार, खेत-पतार कखनी पानी में समाय जैतै, एकरोॅ लेखा तेॅ भगवानो के पास नै छै कि तोहूँ है नै जानै छैं कि तोरोॅ गांव सेमापुर के नित्यानंद के केला के खेती बारगिये आंधी-बाढ़ में दहाय गेलोॅ छेलै, की करेॅ पारलकै नित्यानंद। हमरा सें तेॅ तों पैसा भविष्य में नै लेभैं, पैसा तेॅ अभी तुरत लेभैं। आरो अखनी पैसा लै वास्तें तोहों की इन्तजाम करलेॅ छैं।" भूमि बाबू आपनोॅ मनोॅ के बात घुमाय-फिराय केॅ बलेसर के नगीच राखै छै।
बलेसर बहुत सोचै-विचारै के बाद ई फैसला करै छै कि ऊ आय जे होतै, केन्हौ करी केॅ पैसा लेतै ज़रूर। ऊ कुछू देर मनोॅ में उपाय सोचै छै आरो फिरू मजबूती साथें कहै छै, "हमरोॅ जर-जमीन आरो खेती-बारी बंधक-रेहन पर राखी लियै मालिक। जबेॅ हमरा पैसा होतै, हम्में छोड़ाय केॅ लै जैवै।"
भूमि बाबू केॅ आभियो तांय है बातोॅ पर विश्वास नै होय छै कि बलेसर आपनोॅ जमीन आरो झोपड़ी रेहन राखी केॅ करजा लेतै। मतरकि जमीन-जग्घा रेहन पर राखी केॅ करजा लै के बात सुनथैं भूमि बाबू के मनोॅ में लावा फूटेॅ लागै छै, जे भाव केॅ छुपैतेॅ हुवेॅ हुनी फिरू कहलकै आरो आपनोॅ विश्वास लेली फिरू पूछै छै, "की हेने मुँहामुँही बोली देलैं आरो हम्में विश्वास करी लियौ। कल जों तों आपनोॅ बात सें फिरी जैभैं तबेॅ।"
"तेॅ ठीक छै मालिक। जों हमरोॅ बातोॅ के विश्वास नै होय छौं, तेॅ हम्में लिखी केॅ दै छियै, आपने रोॅ विश्वास लेली।" भूमिबाबू के ईशारा पावी मुंशी जी दराज सें कजरौटी आरो एकटा सादोॅ कागज बलेसर के तरफ बढ़ैलकै आरो वही सादा कागजोॅ पर बलेसर नें आपनोॅ कजरौटी वाला अंगूठा जेन्हैं बढ़ैलकै, वैन्हें ओकरोॅ अंगूठा जहाँ-के-तहाँ रुकी गेलै।
भूमि बाबू केॅ बलेसर के मनोॅ के बात केॅ समझतें देर नै लागलोॅ छेलै। से हुनी कहै छै, "देख बलेसर, अभियो सोची ले, हम्में तेॅ कहभौ कि करजा-रिन लै के चक्कर में आपनोॅ पुस्तैनी घर-जमीन कोय रेहन पर नै रखै छै। लोग मरियो जाय छै, तहियो कोय आपनोॅ डीह नै बेचै छै, नै रेहन रखै छै।"
बलेसर नें भूमि बाबू के बात सुनलेॅ छेलै आरो मनोॅ के भाव छुपैतेॅ हुवेॅ झट सना कहलेॅ छेलै, "नै, मालिक नै। हम्में तेॅ ई सोची रहलोॅ छेलियैµअंगूठा के टीपा ई कोरा कागज पर कहाँ देलोॅ जाय?" आरो बलेसर मुंशी जी के बतैले अनुसार काजल सें आपनोॅ अंगुली के निशान दै-दै छै। भमि बाबू केॅ जब विश्वास होय जाय छै, तबेॅ ऊ आपनोॅ कोठनुमा बक्सा सें बीस हजार टका निकाली केॅ पाँच बेर हाथ सें गिनतेॅ हुवेॅ फिरू मुंशी जी केॅ गिनै लेॅ दै छै। मुंशी जी तीन बार मुंह अंगुरी छुवाय केॅ रुपया गिनै छै। आरो तबेॅ भूमि बाबू बलेसर के हाथ में देतेॅ हुवेॅ बोलै छै, "ले बलेसर, बढ़िया सें गिनी ले।" आरो जब तक बलेसर रुपया लै केॅ गिनतेॅ रहलै, तब तक भूमि बाबू आँख गड़ाय-गड़ाय केॅ रुपया केॅ देखतें रहलै।
आय केत्ता दिन के बाद बलेसर के मन के बात पूरा होय गेलोॅ छै। ओकरोॅ चेहरा पर पैसा पैला के बाद एगो निश्चिन्ती आवी गेलोॅ छै। आबेॅ मने-मन केत्ता बात सोचतेॅ हुवेॅ वें पैसा केॅ आपनोॅ कमर के अंटी में खोसतेॅ हुवेॅ घर आवी जाय छै। बहुत दिन बाद आय बलेसर केॅ वहेॅ बिछौना, जे कल कांटा नाँखी चुभै छेलै, रुइया नाँखी मुलायम लगी रहलोॅ छै। बलेसर आपनोॅ कमर में बंधलोॅ रुपया केॅ बार-बार छुवै छै आरो मने-मन सोचै छैµई पैसा हम्में केना संभरी केॅ रखियै। जों आय गुलबिया यहाँ रहतियै तेॅ वहीं एकरा संभारी केॅ रखतियै। हर बार बलेसर केॅ गुलाबो के कमी अखरी जाय छै। मतरकि आय नै छै तेॅ की, कल गुलबिये हमरोॅ जिनगी के रानी होतै आरो बलेसर के आंखी में गुलबिया फूलोॅ सें सजली रानी नांखी रंग-रूप में उतरी ऐलोॅ छै। ऊ देखै छभ्, केला खेती में वें एत्तेॅ पैसा कमाय लेलेॅ छै, हेने बुझाय छै जेना बलेसर एक बड़का सेठ होय गेलोॅ छै आरो गुलबिया ओकरोॅ सेठानी। केत्ता रंग के सपना में डूबलोॅ-उतरलोॅ कबेॅ बलेसर केॅ नींद आवी जाय छै, ओकरा पता नै चलै छै।
जोन दिनोॅ सें बलेसर करजा करी केॅ एत्ता-एत्ता रुपया लानलेॅ छै, ओकरोॅ मनोॅ के चिन्ता आरो चिन्तन बढ़ी गेलोॅ छै। तीस साल के बलेसर के आंखी में पचास वर्ष के सपना पलेॅ लागलेॅ छै। ऊ रोज केला खेती के सपना देखी रहलोॅ छै। केला खेती कोय हेनोॅ-तेनोॅ नै, मतरकि खूब बढ़िया फसल तैयार करै के बात सोची-सोची बलेसर मने-मन खुश होतेॅ रहै छै। बलेसर के मनोॅ में दीपक घोष सें लै केॅ हीरक सान्याल के नाम आवै छै। ई सिनी जमीन लीज पर खेती करै वास्तें दै छै। सोचै छै, वें दीपक घोष के जमीन लेतै, कैन्हेंकि हुनकोॅ जमीन बढ़िया दोमट वाला छै। दीपक घोष के पास तीसो-तीस बीघा जमीन छै। पूरे सेमापुर गांव में। दू-तीन जगह हुनका जमीन छै। कुछ बावनगंज में छै आरो कुछ सकरैली में छै। मतरकि हम्में बावनगंजवाला जमीन लेवै। कैन्हेंकि बावनगंज वाला जमीन बहुत बढ़िया छै। खेती करतें-करतें एत्तेॅ तेॅ हम्में जानिये गेलोॅ छी कि केला के खेती वास्तें दोमट मिट्टी होना बहुत ज़रूरी छै। मालिक रोॅ खेती करै के क्रम में कैबार हम्में बावनगंज गेलोॅ छेलियै। वहाँ के जमीन हमरोॅ देखलोॅ-सुनलोॅ छै। ऊ दीपक घोष सें बीघा-दू बीघा जमीन लीज पर लै लेतै। आधा पैसा अभी दै देवै आरो आधा पैसा बादोॅ में देवै, फसल कटला के बाद। आरो जहां तक जोताय के बात छै, जमीन कोड़ै लेली ट्रैक्टर वांही पर मिली जैतै, मुद्दर साव या तांती राम के. मतरकि वें कै दिन सें मनेमन हिसाब लगाय रहलोॅ छै तेॅ लगै छै, नै टैªक्टर सें कोड़ै में बहुत पैसा खरचा होतै। ऊ भुथरी या सीताराम के हल-बैल लैकेॅ खेत जोती लेतै। वहाँ मंगरू सें बात होय गेलोॅ छै। पुत्तल मोतीलाल बाबू कन सें लै लेतै आरो पुत्तल भी ऐन्होॅ लेतै, जे बीट में बीचोॅ सें लिकलतें हुवेॅ, जेकरोॅ जड़ मोटोॅ रहेॅ आरो पत्ती तलवार के समान पतला आरो नुकीला कोनावाला रहै। ऐहनोॅ पुत्तल मोतीलाल बाबू के छै। हुनकोॅ खेती ई गांव में मशहूर छै। बलेसर सोचतें-सोचतें सब किसिम के केला गाछ के बारें में सोचेॅ लागै छै। मालभोग, अमृतसागर, चम्पा, चीनी चम्पा, अल्पना, भीमकेला, नेन्द्रन। मतरकि हम्में लगैवै तेॅ खाली अल्पना आरो मालभोग।
जहां तक खेत में नाइट्रोजन, पोटाश आरो फासफोरस के दरकार पड़तै, ॅऊ सबसें अच्छा कमानी में सें केकर्हौ कोय छै, यें मुत्तलिक वें मोतीलाल बाबू सें ज़रूरे पूछी लेतै, बड़ी अनुभवी किसान छै। मोतियेलाल बाबू सें पूछी केॅ वें आपनोॅ खेत में नाइट्रोजन आरो पोटाश छिटतै। हेना तेॅ फासफोरस के भी ज़रूरत पड़ै छै, मतरकि नाइट्रोजन आरो पोटाश के बेसी ज़रूरत पड़ै छै। खैर अभकी तेॅ खेती के पैहलोॅ बरस छै, तेॅ यै लेली खाद-पानी पौधे के अनुसार करै लेॅ पड़तै। जेना कि केला गाछ के तना केॅ चारो तरफ एक-डेढ़ बित्ता छोड़ी केॅ आधा बित्ता के पट्टी रं करै लेॅ पड़तै। ई सब काम वें आपनो सें करी लेतै, ई सब होकरोॅ करलोॅ होलोॅ छै। जहाँ तक पटवन के बात छै, पानी पटावै लेली दयानंद बाबू के पम्पिंग सेट लै लेतै। ई सब कामोॅ में गुलाबो के साथ बहुते छै, कैन्हेंकि गुलाबो तेॅ नित्यानंद बाबू के खेतोॅ में काम करै छेलै। बलेसर आगू सोचै छै।
जैन्हें-जैन्हें समय आगू बढ़लोॅ जैतै, तेॅ खाद दै वास्तें पुत्तल सें दूरियो बढ़तेॅ जैतै। गुलबिया आरो हम्में मिली-जुली केॅ हेने खेती करवै कि देखैवाला देखतै। हम्में यहू जानै छियै कि बीचो-बीच में सब गाछ कुछु बड़ोॅ होय जैतै तेॅ ओकरोॅ पत्ता काटै लेॅ पड़तै आरो गुलाबो ई सब काम बढ़िया सें जानै छै। बलेसर जानै छै कि केला खेती में देखभाल के बड़ी ज़रूरत होय छै। पुत्तल गाछ बड़ोॅ नै होलौं कि ढेर बच्चा वैसें फुटेॅ लागै छै। यै बच्चा सिनी कि गाछ बढ़ै लेॅ दै छै। मतरकि कोय चिन्ता के बात नै छै। जब-जब शम्स के नगीच दोसरोॅ पुत्तल हुवेॅ लागतै, तबेॅ हम्में आरो हमरी गुलाबो मिली केॅ काटी लेवै।
ई सब खेती-बारी के काम हमरा सें ज़्यादा तेॅ गुलाबो जानै छै। हम्में तेॅ ज़्यादा खाद-बीज लानै में रहवै। खेत पर नहिंयो रहभै, तहियो गुलाबो हेकरा बढ़िया सें संभाली लेतै। खूब मेहनत करवै हम्में आरो गुलाबो मिली केॅµचारो तरफ ओकरोॅ मन मोताबिक गाछ-बिरिछ लहराय रहलोॅ छै। हरा-हरा पत्ता देखी केॅ बलेसर रोॅ मन एत्तेॅ हरा-भरा छै कि कुछु कहलोॅ नै जाय। चारो तरफ खानी फुटी गेलोॅ छै। खानी फुटला के साथें गुलाबो बलेसर सें कहै छै, "यहेॅ रं ठड़ा-ठड़ा आपनोॅ खेती निहारबोॅ कि है खानी बेचै लेली गाड़ियो लानभौ। देखै छौ कि की रं खानी तोरोॅ जवानी नाँखी फुटी गेलोॅ छै।" गुलाबो देखै छै कि बलेसर ओकरोॅ बात सुनतौं अनठियाय देलेॅ छै आरो बात बदलतें हुवेॅ कहै छै, "कोनो की पहलें खेती-बारी नै करलेॅ रहियै।" "बँसबीटीं सें बाँस कीनी लिहौ उरमा के बाबू सें। वें अच्छा बांस देतै आरो सस्ते में देतै।" गुलाबो बलेसर केॅ समझाय छै।
आरो देखतें-देखतें बलेसर के आंखी में पाँच महीना एक क्षण में गुजरी जाय छै। वें देखै छै कि केला के गाछ खूब बढ़ेॅ लागलेॅ छै। बलेसर केॅ देखी खूब आचरज लागै छै। ऊ अचरजे में डूबलोॅ छै कि गुलाबो ओकरोॅ गाल में हलका सें आपनोॅ औंगरी धसैतें हुवेॅ कहै छै, "हेना आचरज सें की निहारै छौ। आखिर हमरोॅ दोनों के मेहनत केन्होॅ रंग लानलेॅ छै। सबके जुवान पर बस एके बात छै कि गुलाबो आरो बलेसर मिली केॅ केत्तेॅ बढ़ियाँ खेती करलेॅ छै। देखै लायक खेती छै। वाह, बलेसर वाह।"
बलेसर केॅ लागै छै कि गुलाबो यहेॅ सब बोललोॅ चललोॅ जाय रहलोॅ छै, जेकरोॅ उत्तर में बलेसर कहै छै, "नै गुलाबो, नै। है सब जे लहलहाय रहलोॅ छै, सब तोरोॅ खून-पसीना के मेहनत छै। तोरोॅ आत्मा के खुशी छै है गाछ-बिरिछ आरो फल।" फिरू बलेसर यहू सपना देखै छै कि ओकरोॅ खेत के पास ट्रक ठेला लागलोॅ छै। एक सौ रुपया खानी सें वें कम में बात नै करतै। एतने नै, ट्रकवाला ओकरोॅ मुँहमांगा दाम दै लेली तैयार छै। कहाँ-कहाँ केरोॅ ट्रक नै लागलोॅ छै। कलकत्ता, बनारस, उत्तर प्रदेश, पटना आरो आजमगढ़ के व्यापारी ठाड़ोॅ छै ओकरोॅ माल लै लेली। बलेसर के भाव बढ़ी गेलोॅ छै। होकरो लगै छै कि वें आज जेत्तेॅ दाम लगैतै, उत्ते टका व्यापारी देतै। मतरकि वें कुछ नै करतै, बिना गुलाबो के पूछलेॅ। से वें खेते के एक कोना में खड़ी गुलाबो के नगीच पहुँची जाय छै।
गुलाबो आपनोॅ लगैलोॅ गाछ-बिरिछ आरो बनकेल केॅ खूब गौर सें छूवी-छूवी केॅ देखी रहलोॅ छै। बलेसर ओकरा है रं बनकेल केॅ छूवी-छूवी केॅ देखला पर टोकै छै, "तों ई सब्जी पतार वाला गाछ लगैनें छौ। फल के कोनो व्यापारी ई गाछ लेतौं?" तबेॅ गुलाबो बोलै छै, "हमरा कोय व्यापारी सें की काम छै। हमरोॅ ई बनकेला केॅ वें व्यापारी लेतै, जे व्यापारी हमरोॅ छै। जे हमरोॅ तन-मन के व्यापारी छै।" गुलाबो के बात सुनी केॅ बलेसर केॅ लागै छै कि ऊ ठठाय केॅ हँसी पड़लोॅ छै आरो सचमुचे में जखनी बलेसर के सपना टुटै छै, ई सब बात याद करी केॅ ऊ जोर सें ठठाय केॅ हँसी पड़ै छै। आपनोॅ आस-पास के सब जगह केॅ गूजैतेॅ हुवेॅ।