गुलबिया, खण्ड-6 / आभा पूर्वे
सबनेॅ देखलकै, सबनेॅ देखी रहलोॅ छै गुलबिया आरो बलेसर के मेहनत। ठीक आपनोॅ सपने रं बलेसर नें खेतियो करी केॅ सेमापुर वाला के सब खेतिहर के आँखी चौंधियाय देलकै। दीपक घोष सें दू बीघा जमीन लेला के बाद वें खेतोॅ में गुलबिया साथें जोन दिन पहलोॅ हर गाड़लेॅ छेलै, वहीं दिनोॅ सें गुलबिया के खून-पसीना ऊ माटी सें सनी केॅ हलफलावेॅ लागलेॅ छेलै। पहलोॅ हर गाड़ै के पहलें बलेसर गुलबिया साथें शिव मंदिर गेलोॅ छेलै। जे मंदिर सत्यनारायण जायसवाल नें आपनोॅ माय-बाबू के स्मृति में बनैलेॅ छेलै।
आरो वहीं में बलेसर गुलबिया के संकेत पावी हेनोॅ पूजा करलकै कि गांव के दूए-चार बड़ोॅ-बड़ोॅ हेनोॅ करेॅ पारतै। धुबनोॅ-गुग्गुल साथें चंदन के टुकड़ा मंगवैलेॅ छेलै गुलबिया नें। मंगवैलेॅ की छेलै, आपने सें एक-एक समान कीनी ऐलोॅ छेलै हटिया सें, बिना कुछ बात सोचलें-विचारलें। होना ई पूजा होकरे घर के छेलै। पंडितो करलेॅ छेलै वें जे ठीक-ठीक सें संस्कृत के पाठ करेॅ पारै। मंतरे पर तेॅ भगवान खुश होय छै। जों मंतरे ग़लत होतै तेॅ भगवान धन-सम्पत की देतै। आरो वहै दिन सें गुलबिया आपनोॅ मालिक नित्यानंद बाबू के काम छोड़ी देलेॅ देलै। मंदिर में पूजा करला के बाद बलेसर मुद्द के हर खेतोॅ में राखलेॅ छेलै। गुलबिया नें बड़ी नेम-धरम सें हरोॅ के पूजा करनें छेलै। खेतोॅ में सब पूजा-पाठ करी लेला के बाद दोनों नें मिली केॅ आपने सें पूरा खेत जोतना शुरू करी देलेॅ देलै। यही नै, दोनों हेने मिली-जुली केॅ खेती करै में जुटी गेलोॅ छेलै, जेना कोय आपनोॅ आवैवाला बच्चा-बुतरू के देखभाल में जुटी जाय छै।
आय एक-डेढ़ महीना बीती गेलोॅ छै। खेत आबेॅ तैयार छै खेती करै लेली। आषाढ़ शुरू होतै। बलेसर नें मोतीलाल बाबू कन सें पुत्तल लानी केॅ लगाय देनें छै। गुलाबो सब जानै छै कि बलेसर खाली आपनोॅ किसिम के गाछ लगैतै, से ऊ आपनें सें खोजी-ढूंढी केॅ आपनोॅ मोस आरो बनकेला केॅ किनारी में लगाय देनंे छै।
समय देखतेॅ-देखतेॅ बीती जाय छै। आबेॅ पुत्तल सें हरा-हरा पत्ता निकली गेलोॅ छै। गुलाबो आपनोॅ सबटा अनुभव के खूब उपयोग ई खेतोॅ में करी रहलोॅ छै। जैन्हें गाछ में कुछू पत्ता निकलेॅ लागलेॅ छेलै, ऊ दौड़-धूप करी केॅ ओकरा में दवाय नाइट्रोजन आरो फास्फोरस छिटी देलेॅ छेलै। ई सब करै वास्तें गुलबिया केॅ कोय गाछ-बिरिछ के डॉक्टर-वैध के नगीच जाय के ज़रूरत नै छेलै। ऊ बचपने सें खेतोॅ में काम करतें ऐलोॅ छै आरो आबेॅ तेॅ ओकरोॅ जिनगी के बीस बरस बीती गेलोॅ छै। बलेसर आपनोॅ खेतोॅ पर बैठलोॅ-बैठलोॅ गुलाबो केॅ देखतें रहै छै। आरो गुलाबो छेली कि दिनभर आपनोॅ काम में भिड़ली रहै छेली। ओकरा अब दिनभर काम करै सें फुरसत नै छेलै। गाछ केॅ केना की करना छै, कबेॅ दवाय देना छै, कबेॅ पत्ता काटना छै, कबेॅ पानी पटाना छै, कबेॅ पुत्तल काटना छै, ई सब काम खाली गुलाबो ही करी रहलोॅ छै।
बलेसर आपनोॅ खेतोॅ में लहलहैतेॅ गाछ-बिरिछ केॅ देखी आचरज करै छै। आरो ओकरा यहो आचरज लागै छै कि ई सब काम गुलाबो नें केत्ता बढ़िया सें संभारी लेलेॅ छै। बलेसर मनेमन सोचै छै ई गुलाबो हमरा पर जरियो टा काम के भार नै पड़ै लेॅ दै छै। हेनोॅ कोय काम नै छै जे गुलाबो नें नै करलेॅ छै। खेत केॅ देखी हेने बुझाय छै, जे आय खेत के रंग-रूप छै, जों वें आपना सें करतियै तेॅ ई रूप-रंग नै होतियै। ई तेॅ गुलाबो छै, जे खेत केॅ आपनोॅ बच्चा सें भी ज़्यादा परेम दै छै। नै आपनोॅ तन के ख्याल छै, नै तेॅ सुध। केत्ता बेसुध होय केॅ काम करी रहलोॅ छै। हम्में जबेॅ-जबेॅ खेती में हाथ बंटाय लेॅ जाय छियै, तबेॅ ऊ हमरोॅ हाथ पकड़ी केॅ हटाय दै छै। हरदम एक्के बात कहै छै, "तों हमरोॅ है छोटोॅ-छोटोॅ बच्चा सिनी केॅ हाथ नै लगैइयौ। केत्ता जतन सें एकरा हम्में बड़ा करी रहलोॅ छियै। जबेॅ ई बड़ा होय जैतौं, तबेॅ तोहें एकरा सें खेलियौ।"
गुलाबो के ई बात पर बलेसर खूब गंभीरता सें सोचै छै आरो एकरोॅ मानें ढंूढ़ै के प्रयास करै छै। कुछू-कुछू मानें वें भी पकड़ै छै आरो जेत्ता मानें पकड़ै छै, ओकरा सें चार गुना ज़्यादा ओकरोॅ बदन में गुदगुदी उठै छै। गुलबिया के बात बलेसर सोचै छै तेॅ सोचतें चललोॅ जाय छै। जबेॅ ऊ दोनों बच्चे छेलै, बकरी चराय वास्तें दोनों खेत-बहियार निकली जाय छेलै। गुलबिया जे कुछू भी आपनोॅ घरोॅ सें लानै छेलै, ऊ सबटा हमरोॅ आगू में राखी दै छेलै। ई कहतें राखी दै छेलै कि दोनों साथे खैबै। तों जे कुछ लानलेॅ छोॅ, एकरा में मिलाय दौ। फेनू गुलबिया तेॅ की खाय, हमरे सबटा बातोॅ-बातोॅ में खिलाय दै, ई कहतें कि सुनै छियै, लड़का जाति केॅ भूख बड़ी लागै छैµकैन्हें कहै छेलै गुलबिया ई, यही सें कि ओकरोॅ हालत गुलबिया सें छिपलोॅ नै छेलै। द्वारी-द्वारी पर माय के नौड़ीपना करला के बादो हमरोॅ सिनी के पेट बड़ा मुश्किल सें भरेॅ पारै छेलै। ऊ तेॅ धन्य छेलै बाबू, जे घर छोड़ी केॅ पंजाब चललोॅ गेलै आरो पैसा लै केॅ लौटलै तेॅ डीह-डाबर बनेॅ पारलै। गुलाबो तखनिये सें हमरोॅ घर आवी रहलोॅ छै। जहिया सें माय मरलै आरो गुलाबो के जुआनी में पानी लागलै, तहिये सें घर आना-जाना बंद होय गेलै। आय वही गुलाबो की रं खेती में तन-मन-धन लगैलेॅ हुवेॅ छै। जेना ओकरे खेत आरो हम्में ओकरोॅ पुरुखµबलेसर ई बात सोचथैं एकबार फिरू सिहरी उठै छै। सोचै छै, आय नै तेॅ कल ई सब बात सच होने छै। वें आपनोॅ चमकतें आंखी सें गुलबिया केॅ निहारै छै, जे केला के कोमल पत्ता नाँखी लहलहाय केॅ खेती कामोॅ में बावली बनी गेलोॅ छै।