गुलबिया, खण्ड-7 / आभा पूर्वे

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आरो रोजे गुलाबो आपनोॅ खेतोॅ में काम-धंधा करी केॅ बलेसर सें अलग होय जाय छेलै, जेना चकवा चकई सें अलग होय जाय छै। रात भर दोनों तड़पै छेलै एक-दूसरा लेली। दोनों केॅ हेनोॅ दुख जिनगी में पहिलोॅ बार अनुभव होलोॅ छेलै।

मतरकि गुलाबो रोज दुगना उत्साह सें फिरू खेत आवै छेलै, जेना कि कोय धरती आकाश सें मिललोॅ प्रतीत होय छै। जेना हहैली कोशी हिमालय सें निकली केॅ गंगा दिश भागै छै, होनै केॅ दोसरोॅ दिन होतैं हहैली गुलबिया बलेसर के खेतोॅ दिश भागी जाय छेलै। आरो फिरू मिली जाय दोनों दिनभर लेली। समय आपनोॅ तेज रफ्तार सें बीतलोॅ चललोॅ जाय रहलोॅ छेलै। देखतें-देखतें आबेॅ गाछ सिनी में खानी फुटेॅ लागलेॅ छेलै। गुलाबो ई सब देखी केॅ खूब खुश होय छेलै, कैन्हें कि पहले साल मेें खेती एत्तेॅ दमदार शायदे होय छै, जेन्होॅ कि अभरी ई खेतोॅ में होलोॅ छै। बलेसर गुलाबो सें कहै छै, "ई सब तोरे मेहनत आरो सूझबूझ के कमाल छै गुलाबो।" बलेसर गुलाबो के हाथ आपनोॅ हाथ में लै केॅ बहुत परेम सें ओकरोॅ तरहथी पर आपनोॅ अंगुरी छुवाय छै, कुछ लिखै के कोशिश में आरो कहै छै, "गुलाबो, ई सब खेती में जे कुछ होलोॅ छै, सब तोरे परेम के कारण।" वें कहबो करै छै, "देखोॅ, हमरोॅ-तोरोॅ ई परेम केत्ता सुन्दर रूपोॅ में खिली गेलोॅ छै। सच कहै छियौं गुलाबोµजों ई रंग खेती हम्में चार-पाँच बरस हम्में करी लेभौं, तेॅ हम्में लखपति ज़रूरे बनी जैभौं। ई रंग खेती तेॅ ई गाँवोॅ में केकरो नै छै, जेन्होॅ हमरोॅ सिनी के. अभरी जे ई खानी मोटावै तेॅ हमरोॅ खानी के डाक लगतै डाक, देखियौ।" यहेॅ रंग के कत्तेॅ बात बलेसर आरो गुलाबो दिनभर करतें रहै छै, आरो गुलाबो के मनोॅ में सपना भुक्का-भुक्का फुलतें रहै छै। एकदम रसभरलोॅ। महुवे नाँखी पागल बनाय दै वाला गंध आरो रसोॅ सें भरलोॅ।

आरो देखतें-देखतें चार महीना बीती जाय छै। सावन महीना आवै में आरो दस दिन रही गेलोॅ छै। गुलबिया आरो बलेसर आँख फाड़ी-फाड़ी आषाढ़ के सरंग केॅ ताकतें ऐलोॅ छै। यै बीचोॅ में कैएक बार सरंग में मेघो उतरलोॅ छै, कड़कवाला मलका साथें, मतरकि असली बरसात तेॅ सावने के. सावन उतरतै, खेत-बहियार खानी के महक सें महमह करेॅ लागतै। आरो सावन के उतरतें ठीके बलेसर के खेत गंध सें बौरावेॅ लागलेॅ छेलै। बिकै वास्तें एकदम तैयार। हेनो खेतिये होलोॅ छै कि केकरो नजर लगी जाय। छोटका किसान सें लै केॅ बड़का किसान तक एक्के बात दोहराय रहलोॅ छै, "जे हुवेॅ, अभरी खूब नफा कमैतै बलेसर।" आरो ई सब बात के चरचा कानो-कान होतें हुवेॅ पटेल सिंह तक पहुंची गेलोॅ छेलै कि बलेसर अभरी बहुत बढ़िया खेती करलेॅ छै। पटेल सिंह ई गांव के मुखिया छेकै आरो कोय हुनकोॅ सामना में हुनके मजदूर के बड़ाय करेॅ, हुनी ई बरदाश्त करै वाला नै छेलै। कैन्हें कि आखिर हुनकोॅ भी कोय इज्जत छै कि नैं? पटेल सिंह ई सब बात खूब मनेमन गुनै छै कि बलेसर ओकरोॅ मुंह चिढ़ाय रहलोॅ छै, आरो हमरोॅ बेइज्जती करी रहलोॅ छै। से हुनी आपनोॅ दिमाग दौड़ावेॅ लागै छै कि हुनका आबेॅ की करना चाहियोॅ। से हुनी सब बात के पहले पता लगाय लै छै कि आखिर बलेसर एत्तेॅ बड़ा कमाल करलकै केना? सब पता लगैतें-लगैतें हुनका पता लगलै कि ई सब काम में कोने-कोने बलेसर केॅ मदद करनें छै।

पटेल बाबू ठहरलै गांव के मुखिया। कभियो केकरो देहरी नै टपै छै, मतरकि आय तेॅ टपै लेॅ पड़तै। कैन्हें कि ई खाली हुनके बात नै छै, एकरा में भूमियो बाबू केॅ फायदा छै। हुनी मनेमन सोचै छै कि छोटका लोगोॅ के सिर पर बैठना बेकारे छै। पछियारी टोला के शेखू नें चमरटोली के बिरना केॅ कत्तेॅ माथा चढ़ाय राखनें छेलै आरो फिनू आखिर में होलै कि वह़ी बिरना ने यूनियन बनाय केॅ शेखू बाबू के सब जर-जमीन तहस-नहस करवाय देलकै। रातों-रात सब फसल-तसल कटवाय लेलकै। यहू नै सोचलकै कि शेखू बाबू नें महीना-महीना तक नै, साल-साल भर ओकरोॅ घरोॅ के परवरिश करनें छेलै। दूसरा लूटतियै तेॅ लूटतियै, कम-सें-कम बिरना केॅ तेॅ है नै करना चाहियोॅ। आरो नै जानेॅ कत्तेॅ बात सोची जाय छै पटेल बाबू नें। जों ई बलेसर केॅ नै रोकलोॅ जाय तेॅ ई हमरोॅ सिनी रोॅ माथोॅ पर बैठी जैतै। आय पटेल सिंह के पैर में घिरनी लागी गेलोॅ छै। ई सब बात हुनी आपनोॅ बरामदा पर टहलतें हुवेॅ सोची रहलोॅ छै। हुनी यदि चाहै आरो भूमि बाबू के घर खबर भिजावाय दै तेॅ कि मजाल छै कि भूमि बाबू हमरोॅ बात काटी देतै। छै तेॅ रिन-करजा दै वाला ही। पैसा कमैलेॅ छै, मतरकि आखिरकार हम्में ई गाँव के मुखिया छियै। मतरकि समय-समय के बात छै। मानलियै कि हम्में जमींदार साथें मुखिया आरो ऊ महाजन। मतरकि शास्त्रा कहै छै, समय पड़ला पर आदमी केॅ समयेनुकूल बात-व्यवहार करना चाहियोॅ। वही होय छै चतुर पंडित। आरो हुनी ई सोचै छै कि अखनिये हम्में जैवै भूमिबाबू कन। आरो हुनी एक पल देरी नै करै छै। अनचोके हुनकोॅ पैर भूमि बाबू के घर दिश उठी जाय छै। रास्ता-पैड़ा के कत्तेॅ लोग आय हुनका ई रंग चलतें देखी केॅ आचरज करै छै। जें पटेल सिंह एक कदम बिना गाड़ी-घोड़ा के नै चललेॅ छै, आय पैदल छै। की बात छै, केकरो कुच्छू समझै में नै आवी रहलोॅ छै। जत्तेॅ लोग, ओत्तेॅ शंका।

आरो मलकलोॅ-मलकलोॅ पटेल सिंह भूमि बाबू के द्वार लग पहुँची जाय छै। आपनोॅ धोती केॅ संभारतें हुवेॅ टनकलोॅ आवाज में पुकारलकै, "अरे भूमि बाबू, कहाँ छौ? छौ की नै।" भूमि बाबू, जे आपनोॅ कोठली में बैठलोॅ हिसाब-किताब में मशगूल छेलै, अनचोके पटेल सिंह के आवाज सुनी केॅ धड़फड़ाय जाय छै। हुनी धड़फड़ाय केॅ आपनोॅ गद्दी पर सें उठी केॅ बाहर आवै छै। द्वारी पर पटेल सिंह खाड़ोॅ छैµऊपरे ताकी रहलोॅ छै। भूमि बाबू आपनोॅ धोती के कोंची ठीक करतें हुवेॅ हड़बड़ैतें हुवेॅ नीचें उतरै छै आरो पटेल सिंह सें परनाम-पाती करै छै। आपनोॅ मनोॅ में उठी रहलोॅ ढेरे प्रश्न के ओझरा में बड़बड़ैतें हुवेॅ पूछै छै, "आय आपने हमरोॅ घर दिस? जों आपनें खबर भिजवाय देतियै तेॅ हम्में आपनें के घोॅर चललोॅ ऐतियै। ई तेॅ हमरोॅ बड़ा भाग छिकै कि आपनोॅ रोॅ गोड़ ई घारोॅ में पड़लै। हमरोॅ घोॅर आय पवित्र होय गेलै।" पटेल बाबू शायद ई सब सुनै लेॅ नै चाहै छेलै, से हुनी सीधे आपनोॅ गोड़ घरोॅ दिश बढ़ाय देलकै। मतरकि हठाते रुकी जाय छै, ई कहतें कि दुआरिये पर आभार करभौ कि भीतर जाय लेॅ भी कहभौ।

भीतर जाय के बात सुनथैं भूमि बाबू एक बार जोर सें खखसलै आरो आपनोॅ नौकर सुगना केॅ 'सब कुछ हटाय ले' वही खखसबोॅ में कहै छै। सुगनाµजे भूमिबाबू के साथ द्वार तक ऐलोॅ छेलै, धड़फड़ैतें ऊपर भागै छै आरो पीछू-पीछू मध्यम गति सें भूमि बाबू पटेल सिंह साथें ऊपर चललोॅ जाय छै।

भूमि बाबू के बहुत कहलौ पर पटेल सिंह नीचें गद्दिये पर पालथी मारी केॅ, जमी केॅ बैठी जाय छै आरो बिना लाग-लपेट के दांत चोभलैतैं-चोभलैतें कहना शुरू करै छै, "भूमि बाबू, तों तेॅ जानवे करै छोॅ बलेसर के, ऊ हमरोॅ खेत के मामुली मजदूर छेलै। हम्में ओकरोॅ मेहनत आरो ईमानदारी देखी केॅ ओकरा आपनोॅ खेतोॅ के मैनेजर बनाय देलेॅ छेलियै। की सुख-सुविधा ओकरा नै देलेॅ छेलियै, मतरकि की बतावौं, ई छोटोॅ लोग केॅ जरियो टा सुविधा दौ तेॅ माथे पर चढ़ी केॅ बैठी जाय छै। केत्ता बढ़िया मैनेजरी करै छेलै, ऊ छोड़ी देलकै। मनोॅ में एकटा भूत सवार होय गेलै कि करवै तेॅ आपने खेती करवै। यहाँ केरोॅ बिलाक सें लै केॅ हमरा तक दौड़ लगैलकै। जब कहीं कोय काम नै बनलै तेॅ आपनें कन करजा लै लेॅ आवी गेलै, आरो आपनें बिना कोय माथोॅ लगैलें करजा दैय्यो देलियै। आबेॅ तोंही सोचोॅ भूमि बाबू, जे मजदूर हमरा शिकस्त दियेॅ सकै छै, ऊ कल तोरा शिकस्त केना नै दियेॅ पारै छै।"

पटेल सिंह के बात सुनी केॅ भूमि बाबू के माथोॅ ठनकी जाय छै। कहै छै, "है तेॅ हमरा सें बड़का गलती होय गेलै, मतरकि आबेॅ की करलोॅ जाय?"

आपनोॅ गोटी के चाल ठीक पड़तें देखी केॅ पटेल सिंह लगलें कहै छै, "यहू सोचौ, जे जमीन आपनोॅ एक्का पर लिखाय लेलेॅ छौ, जों अब वहू आपनें के हाथ सें निकली जाय तेॅ की करभौ। आपनें चाहवै कि ऊ जमीन आपनें के हाथ सें निकली जाय। आय तेॅ दू बीघा में खेती करलेॅ छै, कल जों वें एकरा सें पूंजी बनाय केॅ दस बीघा के खेती करेॅ लागै तेॅ कल वें महाजनी करेॅ पारेॅ। आबेॅ आपनें सोचियै, जों ऊ महाजनी करी रिन-करजा दियेॅ लगै, तेॅ आपनें के टक्कर में आवी जैतै। फिरू आपनें रोॅ ई महाजनी बँटी जैतै। आरो हम्में ई कहियो सें नै चाहै छियै कि आपनें के ई कारोबार बँटी जाय।" भूमि बाबू केॅ लागै छै कि ठीके में ओकरा सें जिनगी के बहुत बड़ोॅ भूल होय गेलोॅ छै आरो पटेल बाबू छोड़ी केॅ ओकरोॅ ई भूल कोय नै सुधरेॅ पारेॅ, से हुनी दुखित स्वर में पूछै छै, "ई भूल के सुधार हुवेॅ पारेॅ? जों कुछ रास्ता छौं तेॅ कहोॅ, हम्में ऊ सब करै लेॅ चाहै छियै, जे तों कहभौ?"

पटेल बाबू के तेॅ जेना मने के बात होय गेलोॅ छेलै, से हुनी भूमि बाबू के कान के नगीच आपनोॅ मुँह लाय केॅ आहिस्ता सें कहै छै, "आपनें तेॅ जानबे करै छियै कि फसल काटै रोॅ समय एकदम नगीच आवी गेलोॅ छै, आरो यही समय छै, जबेॅ बलेसर केॅ मात करलोॅ जावेॅ सकै छै।" बलेसर केॅ मात करै के बात सुनथैं भूमि बाबू के मुरझैलोॅ चेहरा हठाते खिली उठै छै, जेना हुनी आपनोॅ हारलोॅ बाजी एकबार फिनू जीती लेलेॅ रहेॅ। आँखी में चमक फुटी पड़ै छै आरो अभी तक जे हुनी हाथ भर के दूरी सें भूमि बाबू के बात सुनी रहलोॅ छेलै, आपनोॅ मुँह बित्ता भरी हुनकोॅ नगीच लानतें हुवेॅ कहै छै, "बोलोॅ पटेल बाबू बोलोॅ, लागले चोट हमरा की करना छै?"

भूमि बाबू मने-मन सोचै छैµठीक कही रहलोॅ छै ई पटेल बाबू, आबेॅ आपनोॅ वास्तें होकरा कुछु-न-कुछु करै लेॅ लागै। आबेॅ चाहे जे होय जाय, ऊ बलेसर केॅ आगू बढ़ै लेॅ नै देतै।

पटेल बाबू बलेेसर केॅ मात दै के नुस्का बताय छै। बलेसर रोॅ खेतोॅ में फसल आबेॅ कटै लेली एकदम तैयार छै। आय सावन शुरू होय में चार दिन बाकी छै। सबके खेते-खेत घूमी रहलोॅ छै व्यापारी। सबके खेत देखी सुनी रहलोॅ छै। हेना तेॅ सबके फसल अच्छा या खराब तैयार तेॅ होय गेलोॅ छै। मतरकि बलेसर रोॅ खेत देखी केॅ सब्भे व्यापारी फेनू हुन्ने फिरी जाय छै। जेना गरीबदारोॅ में कभी-कभार सुंदर जनानी आबी जाय छै नी, आरो गांव जबार भरी के मरदाना के नजर हुन्ने लटकलोॅ रहै छै, वही रं बलेसर के ई केला खेत होय गेलोॅ छै। आरो एक बात जानै छौ कि नै भूमि बाबू, ओकरोॅ ई केला खेती के राज छेकै जोगबनिया के बहिन गुलबिया। वही छौड़ी के हाथोॅ आरो माथोॅ के चलतें बलेसर के केला के खेती जवानही रङ फुटी पड़लोॅ छै। जों तोहों बलेसर केॅ एक जगह पर मात दौ तेॅ दूसरोॅ जगह पर हम्में ओकरा मात दै देबै। "भूमि बाबू बड़की-बड़की कौड़ी रङ आँख फाड़ी-फाड़ी केॅ पटेल बाबू दिस ताकै छै, जेना हुनी पूछतें रहेॅ," बोलोॅ, हमरा की करना छै। "तबेॅ पटेल बाबू नें पाँच बार आपनोॅ हाथोॅ केॅ जोरोॅ सें दबैतें हुवेॅ कहलकै," तोरा करना ई छौं कि टका के बलोॅ पर सब व्यापारी केॅ भड़काय देना छौं कि ओकरा सें कोय केला नै खरीदै। दाम लगावै तेॅ आधोॅ-आधोॅ, हेने लै बाला केॅ भड़काय दौ कि फसल के दाम तेॅ छोड़िये दौ, खेत के भी दाम नै मिलै। "

"समझी गेलियै। सब समझी गेलियै।" भूमि बाबू कहै छै। "आरो जहाँ तक गुलबिया के बात छै, हम्में ओकरोॅ व्यवस्था करी देबै। ई नट्टिन जब तांय बलेसर के पीछू-पीछू लागलोॅ रहतै, बलेसर के किस्मतो साथें रहतै। हिन्ने बलेसर के खेती जैतै आरो हुन्ने गुलबिया आपनोॅ मरदाना के घोॅर। जोगबनिया केॅ बुलाय केॅ कल्हे हम्में कही दै छियै कि आपनी बहिन केॅ कोय मरदाना के खुट्टा सें बांधी दैं, नै तेॅ तोरहे बांधी केॅ पिटबौ। भूमि बाबू, गुलबिया ससुराल जैतै कि बलेसरो रोॅ किस्मत नरक गेलै। खेती तेॅ जैबे करतै, गुलबिया के बीहा होत्हैं, यहू सारा पगलाय केॅ मरी जैतै।"

एतना कहतें-कहतें पटेल बाबू ठहाका मारी केॅ हांसै लागलै। आरो आपनोॅ इज्जत-प्रतिष्ठा सुरक्षित देखतें भूमियो बाबू 'हो-हो हा-हा' करी केॅ ठठाय पड़लै।