गुलबिया, खण्ड-8 / आभा पूर्वे

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आरो आखिर में बलेसर रोॅ खेती खतमे भै गेलै। जे दिन सें गुलबिया बलेसर रोॅ खेतोॅ में आना-जाना छोड़लकै, वहेॅ दिनोॅ सें खेत जेना तहस-नहस होय गेलै। गुलबिया ऊ खेत लेली लक्ष्मी रहै लक्ष्मी, ऊ खेतोॅ में गुलबिया नै रहै छेलै तेॅ धनो नै रहै छेलै, जेना गुलबिया के गोड़ोॅ में लक्ष्मी के बास छेलै। जे दिनोॅ सें गुलबिया हमरोॅ खेतोॅ वास्तें आपनोॅ जान-परान लगैनें छेलै, वै दिनोॅ सें ऊ खेतोॅ में जेना लक्ष्मी के गोड़ चली केॅ ऐलोॅ रहै।

आय गुलबिया कै रोजो सें खेत नै ऐलोॅ छै। नै जानो की होय गेलोॅ छै। बलेसर आपनोॅ खेतोॅ में बैठलोॅ-बैठलोॅ कत्तेॅ नी बात सोचै छै। मतरकि दिमाग कामे नै करी रहलोॅ छै। सबटा जेना भुतलाय गेलोॅ छै। बलेसर खेतोॅ में कभी हिन्ने कभी हुन्ने घुरै छै। न कोय हिन्नें ताकै छै आरो नै कोय पूछै छै। बस बलेसर घूमतें रहै छै। हेनोॅ कोय लोगो नै भेटावै छै, जेकरा सें गुलाबो के बारे में कुछू पूछै। बलेसर आपना में कत्तेॅ बात सोचै छै। नै जानौ गुलाबो केॅ की होय गेलोॅ छै। मन-तन खराब छै की, हाँ हुवेॅ पारै, एत्ता खटलोॅ छै ई खेतोॅ वास्तें कि कोय की खटतै। मतरकि जों मन-तन खराब होतियै तेॅ खबर ज़रूर भेजवैतियै। नै-नै गुलाबो के मन नै खराब हुवेॅ, बलेसर भगवानोॅ सें मने-मन प्रार्थना करै छै।

बलेसर सोचै छै कि आखिर हुवेॅ की पारै। पहनें ई खेतोॅ पर खाली आदमिये नै, चिड़िया चुनमुन के चहचहैबोॅ होय छेलै। आय कै रोजो सें हेने बुझाय छै जेना ई खेत-खेत नै रही गेलोॅ छैµमुदाघट्टी होय गेलोॅ छै। आरो मुर्दघट्टी में लहाश सांय-सांय जली रहलोॅ छै। ओकरोॅ आग के लपट सें बलेसरो नै बचेॅ पारलेॅ छै। लहाश जरै सें जेना आग के लपट उठै छै, होने केॅ बलेसर के दिल सें आग के लपट उठी रहलोॅ छै। उठतियै कैन्हें नी? बात खाली गुलबिये के तेॅ नै छेलै, बात यहाँ खेतियो के छै। बलेसर केॅ सब्भे कुछ मालूम होय गेलोॅ छै कि ओकरोॅ खेती के मोल गिराय में केकरोॅ-केकरोॅ हाथ छै, मतरकि गामोॅ में कोय नै बोलै छै। असकल्ले ओकरा कुछू बोलै में भय लागै छै। बात कहीं झूठ होय जाय तबेॅ। मतरकि बलेसर मने-मन ई बात मानी रहलोॅ छै कि ई बात केन्हौ केॅ झूठ नै हुवेॅ पारै। ओकरोॅ खेती बरबाद करै में जेत्तेॅ गुनाहगार पटेल बाबू छै, भूमियो बाबू ओकरा सें कम नै छै।

केला के सब टा गाछ-गाछ नांखी नै लगी रहलोॅ छै। हेने बुझाय छै जेना श्मशान में लहाश खाड़ोॅ रहेॅ। सबटा गाछ जीत्तोॅ आदमी रङ आपनोॅ किस्मत पर कानी रहलोॅ छै। ओकरा देखी केॅ बलेसर के अर्न्तमन हाहाकार करी उठै छै। नै जानौं की होय गेलै ई खेतोॅ केॅ। कुछू दिन पहिनें ई खेत सब्भे के नजरोॅ में लक्ष्मी के वासोॅ छेलै। आय अनचोके एकटा शमशान घाट भै गेलै। बलेसर सोची-सोची केॅ हलकान होय रहलोॅ छै, होतोॅ चल्लोॅ जाय रहलोॅ छै। अखनी बलेसर आरो केत्तेॅ बात सोचतियै कि ओकरोॅ आँखी के नगीच चार दिन पहलकोॅ दृश्य खाड़ोॅ होय गेलै। जबेॅ भूमि बाबू दस ठो लठैत साथें होकरोॅ खेतोॅ पर चढ़ी ऐलोॅ छेलै आरो कहलेॅ छेलै, "की बलेसर, तोरोॅ तेॅ पैसा लेलोॅ आय एक बरस सें बेसीये होय गेलोॅ। रूक्का पर तेॅ लिखनें छेलैं कि एक बरस में पैसा सूद समेत घुमाय देभौं। मतरकि तों तेॅ सूद दै के बात तेॅ दूरµहमरोॅ मूल भी नै लौटाय लेॅ ऐलैं। बहुत दिन हम्में तोरोॅ आसरा देखी लेलियौ। सोचलियै कि तोरोॅ केला बिकी जैतौ तेॅ आपने आबी केॅ पैसा घुमाय देभैं। मतरकि तोरोॅ केला फसल बिकला के बादो हमरा एक टा फूटी कौड़ीयो सूंघाय लेॅ नै ऐलैं। आरो अबेॅ हम्में एत्ता इंतजार नै करै सकै छियौ।" आरो कत्तेॅ नी बात भूमि बाबू खाड़े-खाड़ बोललेॅ गेलै, मतरकि बलेसर के कान जेना कुछू नै सुनेॅ पारी रहलोॅ छेलै। सौंसे शरीर जेना पत्थर के होय गेलोॅ रहेॅ। आबेॅ तेॅ बलेसर सिवाय एक टा बूत के आरो कुछू नजर नै आबी रहलोॅ छेलै। नै तेॅ बदन में कोय हरकत होय रहलोॅ छेलै आरो नै तेॅ वें आपनोॅ जगह सें हिली-डुली रहलोॅ छेलै। आखिर में बड़ी मुश्किल सें आपनोॅ सौंसे ताकत लगाय केॅ वें कहनंे छेलै।

बलेसर केॅ याद आबै छै की रङ कनमुहो होतें हुवेॅ वें भूमि बाबू सें कहनें छेलै, "मालिक जे खेती सें चालीस-पचास हजार के नफा होना छेलै, ऊ खेती के व्यापारी दाम लगैलकै बीस हजार आरो एक व्यापारी नै, सबटा व्यापारी। ई टका तेॅ हमरोॅ हाथो नै लगेॅ पारलै कि खेत मालिक आरो खाद मालिक आबी केॅ लै गेलै। आपने केॅ टका दै के बात सोचथैं रही गेलिय, ै आबेॅ तेॅ हम्में यही कहबै हम्में आपनोॅ मकान हारलां।"

तखनी भूमि बाबू आपनोॅ चेहरा पर केन्होॅ बनावटी गुस्सा लानतें हुवेॅ कहनें छेलै, "रे बलेसरा, तोरोॅ ऊ श्मशान लै केॅ हम्में की करबौ, अपनोॅ मुरदा गाड़बै की। मतरकि आबेॅ तेॅ तोरोॅ खालो बेची केॅ हम्में आपनोॅ पैसा वसूल नै करै पारौं। अबेॅ तेॅ तोरोॅ वही मुर्दघट्टी पर संतोष करेॅ पारौं।" आरो की रंग भूमि बाबू तमतमैलोॅ खेतोॅ सें चल्लोॅ गेलोॅ छेलै। बलेसर के आँखी में एक-एक करी केॅ सब दृश्य घूमी जाय छै।

पैहनें तेॅ बलेसर गुलाबो लेली अलगे परेशान छेलै, आरो ऊपर सें ई खेत के करजा। सब मार एक्के बार पड़ी गेलोॅ छेलै। केना बरदास्त करेॅ सकै छेलै बलेसर। ऊपर सें नीचे तांय टूटी केॅ रही गेलोॅ छेलै बलेसर। भूमि बाबू के रूक्का पर लिखलोॅ बातोॅ के अनुसार आबेॅ तेॅ बलेसर के घरो-द्वार सब खतम होय गेलोॅ छेलै। कच्चा माल केॅ बेसी दिन खेत में राखबोॅ ठीक नै छेलै, ओकरा पर सें पाकलोॅ केला। बलेसर आखिर में नौ-छौ करी केॅ भसाय देनें छेलै आपनोॅ खेत। जोन खेतोॅ सें ओकरा पचास हजार टका के फायदा होतियै, वही खेत अठारह-बीस हजार टका में जेना-तेना करी केॅ बिकी-बिकाय गेलोॅ छेलै।

आरो वही दिन सें सब्भे सें बेखबर होय गेलोॅ छेलै बलेसर। नै आबेॅ ओकरा आपनोॅ देहोॅ के होश छेलै, नै आपनोॅ जीवन के. बलेसर के कपड़ा-लत्ता एकदम मैलोॅ-कुचैलोॅ होय गेलोॅ छेलै। कल तक जे बलेसर बाबू रंग बनी संवरी केॅ रहै छेलै, वही अबेॅ दीन-दुखिया-साधु रङ दीखै छेलै। आरो अबेॅ बलेसर कहाँ नहैतै, कहाँ रहतै, यहू बात के होश नै छै। कैन्हें कि नै रहै के घोॅर रहलै ओकरा नै खाय-पीयै के पैसा कौड़ी। सब्भे जेना लक्ष्मी के घर सें जैतैं बिलाय जाय छै, होने केॅ बिलाय गेलोॅ रहै। कहै छै, जेना लक्ष्मी धीरें-धीरें घोॅर आवै छै, होने धीरें-धीरंे घरोॅ सें चल्लोॅ जाय छै। मतरकि बलेसर रोॅ लक्ष्मी तेॅ कबेॅ कौन द्वारी सें ऐलोॅ छेलै आरो कबेॅ कौन द्वारी सें चल्लोॅ गेलोॅ छेलै ओकरे नै पता छेलै। बलेसर तेॅ गुलाबो केॅ ही लक्ष्मी मानै छेलै। जोन दिनां सें गुलाबो ओकरोॅ घोॅर ऐलोॅ छेलै वही दिनोॅ सें जेना सब्भे खुशी बलेसर के घोॅर दिस ऐलोॅ छेलै। आरो जोॅन दिनां सें गुलाबो गेलोॅ छेलै, वही दिनां सें जेना सबटा खुशी बिलाय गेलोॅ छेलै। बलेसर केॅ याद आबै छै कि खेत के फसल बिकै सें आठ रोज पैहनें सें गुलाबो के खेत आना बंद होय गेलोॅ छेलै। जबेॅ ओकरे लक्ष्मी आना छोड़ी देलेॅ रहै तेॅ फसल सें लक्ष्मी केना ऐतियै। आखिर वहू नै ऐलै। अजीब मतछिनतोॅ रङ जिनगी कटी रहलोॅ छै बलेसर के. कुछू देर तांय ऊ खेतोॅ में आबी केॅ फसलहीन केला गाछोॅ केॅ ताकै छै, ताकतें रहै छै, आरो फेनू लौटी जाय छै आँधी-बताशोॅ रङ वहेॅ ठाकुरवाड़ी।

अबेॅ बलेसर खाली ठाकुरवाड़ी में बैठलोॅ रहै छै। ऊ मंदिर के चौखट पर हेने बैठलोॅ रहै छै। बार-बार खाली सूना आँखोॅ सें ठाकुरवाड़ी दिस ताकतें रहै छै। बलेसर मने-मन कुछू-कुछू बड़बड़ैतें भी रहै छै। की बड़बड़ावै छै, कोय नै समझेॅ सकै छै। जों बलेसर समझतेॅ होतै तेॅ समझतेॅ होतै। ओकरा देखी केॅ तेॅ यहू नै बुझाय छै कि वें जे बड़बड़ाबै छै, वहू समझै छै कि खाली हेने बड़बड़ावै छै।

बलेसर के मोॅन होय छै कि ऊ ठाकुरबाड़ी के भीतर जाय भगवानोॅ सें लिपटी केॅ खूब कानै। मतरकि ओकरोॅ गोड़ नै उठै छै। गोड़ उठला सें पैहनें ओकरा ऊ दिन याद आवी जाय छै जबेॅ गुलबिया ओकरोॅ छाती पर आपनोॅ सर राखतें हुवें कहनें छेलै, "हमरोॅ ई छांव हमरोॅ जिनगी सें कभी नै हटै।" आरो एकरोॅ उत्तर में बलेसरो कहलेॅ छेलै कि बस फसल कटै भरी के देर छै, यही ठाकुरबाड़ी में तोरोॅ मांग सिंदूर सें भरी देबै। मतरकि ई सब कुछू नै हुवेॅ पारलेॅ छेलै। फसल लुटलै तेॅ ऊ आपनोॅ दुखोॅ सें बोझिल होय गुलबिया के घोॅर जाय रहलोॅ छेलै। शायद दुख सें मनोॅ केॅ शांति वहीं मिलेॅ पारै छेलै। मतरकि ऊ गुलाबो के घर तांय कहाँ जाबेॅ पारलेॅ छेलै। बीचे में पुरनिया रोॅ भौजी राह रोकी केॅ पूछनें छेलै, "कहाँ जाय छौ दियोर।" पुरैनिया वाली भौजी केॅ पता छेलै कि ई बेरा में बलेसर असकल्ले कहाँ जावेॅ पारै। ऊ दिन बलेसर कुछू नै छुपैलेॅ छेलै। साफ-साफ मनोॅ सें कही देलेॅ छेलै, "गुलाबो कन जाय रहलोॅ छी।" आरो पुरनिया वाली भौजी नें तबेॅ ओकरा सब्भे बात बतैनें छेलै कि गुलाबो अबेॅ ई गांव सें बाहर केकरो कनयांय होय केॅ चल्लोॅ गेलै। सुनथैं बलेसर के होश उड़ी गेलोॅ छेलै। आरो भौजी सबटा बात कहतें चल्लोॅ गेलोॅ छेलै, " जोगबनी पर एक दिन नै जानौं कौन भूत सवार होलै कि गुलाबो केॅ जे पीटना शुरू करलकै तेॅ दू घंटा तांय पीटतें रही गेलै बेचारी के, खलरी उतारी देनें छेलै। ओकरोॅ कहीं ऐबोॅ-जैबोॅ बंद करी देनें छेलै। मतरकि ऊ आपनोॅ जिद पर अड़ली छेलै कि जेना भी होतै, बलेसर सें मिलै वास्तें ज़रूरे जैतै। मतरकि ओकरोॅ सब्भे प्रयास बेकार चल्लोॅ गेलोॅ छेलै। आरो एक दिन तेॅ गुलाबो केबाड़ के सीकड़ तोड़ी केॅ भागै लेॅ चाहै छेलै, मतरकि पकड़ाय गेलै। ओकरोॅ बाद भौजाय बिमली नें गुलाबो के हाथ-गोड़ बांधी केॅ घरोॅ में ठेली केॅ गिराय देनें छेलै। कैन्हें कि जोगबनिया के है हिदायत छेलै आपनोॅ कनयाय केॅ कि अबेॅ गुलाबो काहीं आबेॅ जाबेॅ नै पारै।

लोगें तेॅ बहुते कुछू बोलै छेलै। पुदनिया माय एक दिन हमरोॅ कानोॅ मेंकहनें छेलै कि जोगबनिया केॅ पैसा मिललोॅ छै कि जल्दी सें अपनोॅ बहिन के हाथ पीला करी केॅ गांव सें बाहर भेजी दौ, आरो ई काम एत्ता जल्दी करना छै कि केकरो कानो-कान खबर नै हुवेॅ, नै तेॅ जोगबनिया के ई गाँव भरी में हुक्का-पानी बंद करी देलोॅ जेतै। हेनोॅ खबर गांव में उड़ी रहलोॅ छेलै।

गुलबिया केॅ चार-पांच दिन तांय बांधी केॅ राखलोॅ गेलै। वें अन्न पानी तेॅ त्यागीये देलेॅ छेलै। भौजाय जे अन्न मँुहोॅ में दै छेलै, सब उगली तेॅ देबे करै छेलै, आपनोॅ भौजाय पर थूकियो दै छेलै। एक-दू दिन तांय तेॅ आपनोॅ भौजाय केॅ खूब गारियो देनें छेलै। सबकुछ समझै छेलै गुलाबो। ओकरा यहू खबर होय गेलोॅ छेलै कि ई सब काम ओकरोॅ भाय-भौजाय केकरोॅ कहला पर करी रहलोॅ छै। मतरकि भौजाय बिमली सब कुछ सुनियो केॅ अनसुनी करी दै छेलै। वें जानै छै कि ई सब बातोॅ में कोय दम नै छै। ई सब एगो बुखार छेकै, मियादी बुखार थोड़े नी छै जे कि एक बार होलै तेॅ बार-बार होतें रहतै। ई बुखार वही बुखार छै, जेकरा की कहै छैµएन्फ्लूंजा। जे रहबो करै छै तेॅ एक-दू दिन। बोखार उतरतें सब धीरें-धीरें ठीक होय जाय छै। आखिर कै दिन गाली देतें ई मुँहो सें। एक तेॅ अन्न त्यागी देनें छै, कत्तेॅ शरीरोॅ में जान छै जे भूखलोॅ-प्यासलोॅ चीखतें-चील्लैतें रहतै। आरो यही होलै। एक-दू दिन बीततें-बीततें गुलाबो के बोलबोॅ-बाजबोॅ आरो गारी देबौ बन्द होय गेलै। समय के साथें शरीर के सब्भे ताकत छिन्न-भिन्न हुवेॅ लागलै। एक-दू बार तेॅ अन्न के अभाव में बेहोश भी होय गेलोॅ छेलै गुलाबो।

दू रोज तांय बंधले रही गेलेॅ छेलै आरो वही हालते में जबेॅ ऊ बेहोश होय गेलै तेॅ भौजाय नें हाथ खोली केॅ खटिया पर बिस्तरे नांखी बिछाय देनें छेलै। अबेॅ गुलाबो कुछू नै बोलै छेलै। कि बोलतियै, ओकरोॅ तेॅ देहोॅ के सबटा ताकते छिन्न-भिन्न होय गेलोॅ छेलै। खाली सुन्न नांखी कभी-कभी आँख खोली केॅ ताकी लै छेलै। ओकरा देखी केॅ लोग यही कहै छेलै कि अभी तांय गुलाबो के हुकुर-हुकुर जे जीवी रहलोॅ छै तेॅ केकरो आवै के ही आस में।

आरो तीनो-चार दिन नै बीतलौ होतै कि आपनोॅ चचेरोॅ साला बसंत के साथें गुलाबो के बीहा करी देलेॅ छेलै। गुलाबो के बीहा की होलोॅ छेलै, बसंत खाली आबी केॅ ओकरोॅ मांग में सिंदूर भरलेॅ छेलै। गुलबिया आपनोॅ तन-मन सें एकदम बेकार नांखी होय गेलोॅ छेलै। की होलोॅ छेलै, की नै होलोॅ छेलैµकुछू नै पता छेलै गुलाबो केॅ। कैन्हें की घरोॅ में जे कुछू होय रहलोॅ छेलै, सब एक सुनियोजित ढंग सें रचलोॅ एक नाटक मात्र छेलै। जेकरा भाग में लैवाला जोगबनी और विमली मुख छेलै।

गुलाबो के सबटा अरमानोॅ पर खून के धारा बही गेलोॅ छेलै। कुछू होश नै छेलै गुलाबो केॅ। बेहोशी के अवस्था में बसंत होकरोॅ जीवन के मालिक बनी गेलेॅ छेलै। जों गुलाबो होश में रहतियै तेॅ ई सब आपनोॅ सामना में कभियो नै होय लेॅ देतियै। मतरकि ऊ सब होय गेलोॅ छेलै, जे गुलाबो आपनोॅ मनोॅ में भी नै सोचलेॅ छेलै। आस-पड़ोस के एक दूर जोॅर जनानी आबी केॅ गीत-लाद गैलेॅ होतै, मतरकि सब भीतरे-भीतर डरी रहलोॅ छेलै कि नै जानौं कबेॅ की होय जाय।

पुरनिया वाली भौजी थोड़ोॅ थमी केॅ कहनें छेलै, "यहू रं के बीहा कोय बीहा होय छै। कत्तेॅ बढ़ियां होतियै जे ई घरोॅ में गुलाबो के बारात सजी-धजी केॅ गाजा-बाजा के साथें ऐतियै। गुलाबो गांव भरी में एन्होॅ लड़की छेलै, जे कि सुंदर होय के साथें खूब होशियारो आरो सब्भे कामोॅ में ठोस छेलै। हेनोॅ लड़की के ससुरारो यही गामोॅ में होतियै तेॅ कत्तेॅ नीक्को होतियै। की कहियौं दीयोर, दुखनी नानी नें कहनें छेलै कि गुलाबो के डोली नै जाय रहलोॅ छेलै, ओकरोॅ लहाश जाय रहलोॅ छेलै। डोली राते-रात गामोॅ सें बाहर भै गेलै। चिड़ियो चुनमुन केॅ पता नै लागलोॅ छेलै। हाँ, एतना लोगें ज़रूरे कहै छै कि एक बार राती बड़ी जोर के चीख उठलोॅ छेलै। ऊ चीख आरो केकरो नै, गुलबिया के रहै। तोरे नाम लै केॅ चीखलेॅ रहौं दीयोर। हे दियोर, तोहें जेकरोॅ वास्तें जहां जाय रहलोॅ छौ, ओकरा तेॅ कोय दूसरे बहेलिया लै गेलौं।" कहते-कहतें भौजी के आँख लोराय गेलोॅ छेलै आरो बोली सचमुचे में कलपेॅ लागलोॅ छेलै। आरो वही कलपित्तोॅ सुरोॅ में भौजी दू-चार बात आपनोॅ बातोॅ में आरो जोड़ी देनें छेलै, "जे भी हुवेॅ, बड़का लोग के बातो बड़का रङ होय छै। देखैं, आपनोॅ स्वास्थ्य में धक्का लगला सें कत्तेॅ बड़ोॅ काम करी दै छै ई बड़का लोग। जबेॅ गुलाबो केॅ ई सब बात पता चलतै तेॅ वें कभियो खुश नै रहेॅ पारतै। अखनी तेॅ जोर-जबर्दस्ती सब्भे कराय देलकै बिमली भौजी नेंµमतरकि जे कुछ करलकै ऊ अच्छा नै करलकै। हम्में सिनी तेॅ सब्भे दिन ई लड़का लोगोॅ के दवाब में रहीये जैबै। तोंही सोचोॅ बलेसर, आय ई काम गुलाबो साथें होलै कल ई घटना आरो केकरोॅ साथें हुवेॅ पारै। ई बड़का लोगें आपनोॅ पैसा के आगू केकरो कोय सुख देखै लेॅ नै चाहै छै। बस जे चाहै छै, आपनोॅ लेॅ ही चाहै छै। नै पैसा में कोय ओकरा सें आगू बढ़ै आरो नै कोय प्रतिष्ठा में। तोरोॅ साथें की होलौं? तों हुनकोॅ सिनी के बराबरी तेॅ नहिये नी करैलेॅ चाहै छेलोॅ, खाली आपनोॅ लेली कुछू पैसा कमाय लेॅ चाहै छेलौ। की मिललौं? नै तेॅ पैसा आरो नै तेॅ प्रेम। दोनों चीज चल्लोॅ गेलै एक्के साथ। हम्में छोटोॅ लोगोॅ के कोय मोॅन नै होय छै, कोय इच्छा नै होय छै, कोय अरमान नै होय छै, जों बड़का लोगों सें टकराबै के बात होलौं नै कि हमरोॅ सिनी के सबटा बात हुनकोॅ सिनी के पैसा आगू दबी जाय छै। पैसा जे नै करबावै ऊ बड़का लोगो सें।"

बलेसर केॅ एक-एक करी केॅ सब्भे बात याद आबेॅ लागै छै कि ऊ दस रोजो तांय पटेल बाबू सें लैकेॅ भूमि बाबू के द्वारी तांय पहुंची केॅ ढेर देरी खाड़ोॅ रहै। मिनटो तांय दोनों केॅ सवालिया आंखी सें घूरतेॅ रहै छेलै, कुछू बोलै नै छेलै, आरो फेनू कभी केला खेतोॅ में जाय केॅ ढेर देरी तांय कपसतें रहै आकि ठाकुरवाड़ी के देहरी पर माथोॅ पटकतें रहै। आबेॅ तेॅ ओकरोॅ आंखी के लोरो सुखी गेलोॅ छै कानतें-कानतें। आरो देहरी पर माथा पटकला के बादो ओकरा कोय चोट नै बुझावै छेलै। एकदम सुन्नोॅ-सुन्नोॅ रङ होय गेलोॅ छै बलेसर के देह-हाथ।

नै खाय के सुध रहै, नै पीयै के. नै धरान के प्रति रूचि नै, देहोॅ के ख्याल। गुलबिया के बिना बलेसर के जिनगी सें लै केॅ दुनिया तक बेरथ होय गेलोॅ छेलै, बेमतलब। श्मशान नांखी, जेकरोॅ बीच ऊ एगो जित्तोॅ लाश नांखी बुलतेॅ रहै छै।