गुलबिया, खण्ड-9 / आभा पूर्वे

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जखनी गुलबिया के आँख खुललै, वें अपना केॅ अनचीन्होॅ जगह पर पैलकै। आँख फाड़ी-फाड़ी केॅ सब घर द्वार दिस ताकै छै। मतरकि कोय चीज आपनोॅ पहचानलोॅ के नजर नै आबै छै। तीन-चार दिन के बेहोशी के बाद सौंसे शरीर एकदम निढाल रंग होय गेलोॅ छेलै, मतरकि अपनोॅ बदन के सौंसे ताकत लगाय केॅ वें कोठली सें बाहर ऐंगना में आबै छै। वें सब चीज केॅ गौर सें देखै छै, कोय चीज हेनोॅ नै बुझाय, जे ओकरोॅ घर केॅ रहै। आँख मली-मली केॅ वें सब चीज केॅ चीन्हे के कोशिश करै छै, मतरकि सब बेकार होय जाय छै। जहाँ ओकरोॅ खूंटी होय छेलै, जेकरा पर वें अपनोॅ शृंगार के सामान रखै छेलै। ऊ दिस नजर घुराय छै तेॅ वहाँ पर एकटा फोटो टंगलोॅ दीखै छै। केकरोॅ छैµकुछ जनाय में नै आबै छै।

हिन्हें-हुन्हें देखला के बाद वें जोर-जोर सें चीकरलेॅ भी जाय रहलोॅ छै कि हमरा ई कहाँ लानी केॅ रखी देलकै ई मुँह झौंसा सीनी। ओकरोॅ चीखै-चिल्लावै के आवाज सुनी केॅ गुलबिया के दूल्हा बसंत वहाँ आबी जाय छै। ओकरोॅ हाथ जोर सें अमेठी केॅ बोलै छै। ई राकसिन हेनोॅ की चीकरी रहलोॅ छैं, ई तोरोॅ दूल्हा के घर छौं। आरो तों अखनी ससुरार में छौ। ई तोरोॅ भाय-भौजाय के कोनो द्वारी नै छै जे यहाँ तोहें हेना करी केॅ चीखवोॅ आरो चिल्लैबोॅ। यहाँ तोरोॅ चीख सुनै वाला कोय नै छै। अब चुपचाप अपनोॅ कोठली में जा आरो ई चीखबोॅ-चिल्लैबोॅ बंद करोॅ।

मतर गुलबिया पहले नांखी टांस गल्लोॅ सें कही छै, "नैं तोंहे हमरोॅ मरद छेकौ, न हम्में तोरोॅ जनानी। तों हमरा पर हुकुम चलाय वाला के. तोंहें केना ई समझी रहलोॅ छौ की तोरोॅ हुकुम हमरा पर चली जैतों। आरो वहू में ओकरोॅ, जेकरा सें हमरोॅ कोय रिश्ता नै छै, एक अध्धी पैसा के भी नै। तों हमरा बातोॅ सें बान्है वाला के होय छौ। हम्में केकरोॅ गुलामी आय तलक नै करलेॅ छियै। समझलोॅ की नै।" आरो अपनोॅ हाथ छोड़ाय केॅ फिरू भागै के कोशिश करै छै, मतरकि कमजोर शरीर के कारण वहीं पर धम्म सना बैठी जाय छै। शायद ओकरोॅ माथोॅ चकराय उठलोॅ छेलै।

बसंत जे बहुत देर सें अपनोॅ कनयाय के बात सुनी रहलोॅ छेलै, गुलबिया के बातोॅ सें बसंत के शरीर कांसा के बरतन नाँखी झनझनाय उठै छै आरो वें वही गुस्सा में ओकरोॅ दोनों बांह पकड़ी केॅ ओकरा खाड़ोॅ करी केॅ अपनोॅ आवाज केॅ थोड़ा आरो टांस करतें हुवेॅ बोलै छै, "आय तलक तेॅ तों केकरोॅ गुलामी नै करलोॅ होबोॅ, कैन्हें की तोरा होनोॅ मरदे नै भेटैलौं। मतरकि आय सें तों हमरोॅ सब गुलामी करबौ। आरो हम्में तोरा सें सब गुलामी करभैंभौं। कैन्है की हम्में अब तोरोॅ मरद होलियौं। मरद यानी मालिक। आरो जेना गुलाम आपनोॅ मालिक के गुलामी करै छै, आय सें तहूँ अपनोॅ ई मालिक के गुलामी करभौ। है कान खोली केॅ सुनी लौ।"

गुलबिया ओकरोॅ ई बात सुनथैं अपनोॅ मुंडी, जे नीचेॅ झूकलोॅ छेलै, उठैलकै आरो एक बार बसंत के मुंह दिस गोस्साय केॅ ताकै छै। नै जानौं, फेनू कहाँ सें ओकरा में ताकत घुरी ऐलोॅ छेलै। आरो लगभग चीखै के सुरोॅ में बोलै छै, "की सबूत छै कि तोंहे हमरोॅ मरद छौ, आरो हम्में तोरोॅ जोरू।"

गुलबिया के बात सुनी केॅ बसंत ओकरोॅ मांगोॅ में अपनोॅ औंगरी रगड़तेॅ हुवेॅ बोलै छै, "है जे सीती में लाल टेस सिनूर देखै छौ, वही सबूत छेकै तोरोॅ हम्में मरद छेकियै।"

गुलबिया अपनोॅ आंेगरी आपनोॅ सीती पर राखलेॅ छेलै आरो फिरू आंखी सें आपनोॅ ओंगरी केॅ देखै छै, जेकरा पर लाल-लाल सेनूर उतरी आबै छै। ऊ एक क्षण लेली निस्तेज पड़ी जाय छै आरो दूसरोॅ बार अपनोॅ नजर केॅ चारो तरफ घुराय छै। हठाते ओकरोॅ नजर वाहीं पर अलमुनियम के लोटा पर पड़ी जाय छै, जेकरा में भरलोॅ लोटा पानी छेलै। गुलबिया झपटी केॅ ऊ लोटा केॅ उठाय लै छै आरो अपनोॅ मुड़ी झुकाय केॅ सौंसे माथा धोय लै छै। पानी ढारते सबटा सिनूर भरभराय केॅ धुलाय जाय छै। दहिना हाथ सें पानी ढारी लै छै आरो बायां हाथ सें अपनोॅ माथा केॅ खूब जोर-जोर सें रगड़ी केॅ सबटा सिनूर केॅ साफ करै लेॅ चाहै छै। जेना-जेना अपनोॅ बायां हाथ केॅ रगडै छै, होने-होने आरो सेनूर ओकरोॅ सौंसे बदन पर पानी के साथ मिली केॅ लाल टुह-टुह होय केॅ गिरेॅ लगै छै। अखनी गुलबिया के मुँह-कान सेनुर पानी सें मिली-जुली केॅ एकदम लाल-लाल होय जाय छै। अखनी गुलबिया एकटा शक्ति रूप में ठाड़ोॅ देवी नाखी बुझाय रहलोॅ छै। जेना की लाल जावा के फूल लाल टस-टस रं होय छै आरो भगवती पर चढ़ै छै, होने केॅ लाल रं जावा फूल नांखी भरी गेलोॅ लगै छै। हेने बुझाय छै जेना अखनी गुलबिया अपनोॅ हाथ सें केकरो खून करी देलेॅ रहै आरो खून के सौंसे छींटा ओकरोॅ बदन पर पड़ी गेलोॅ रहै। आरो एक बार होकरोॅ ई रूप देखी केॅ बंसत भी भीतरे-भीतर डरी जाय छै, मतरकि तुंरते अपना केॅ संभाली लै छै। अब गुलबिया के सौंसे माथा एकदम सूनोॅ होय जाय छै। आरो वें सिनूर के बहते घार केॅ देखतेॅ हुवेॅ बोलै छै, "लेॅ, हम्में ई बीहा केॅ बीहा नै मानै छी। केकरो मांग में जबरदस्ती सिनूर भरी देला सें कोय केकरोॅ बिहाता नै बनी जाय छै। हम्में तोरोॅ देलोॅ सबटा सिनूर धोय केॅ गिराय देलियौं, अब तेॅ नै हमरोॅ कोय मालिक आरो नै हम्में केकरो गुलाम। अब तोहों कौन सबूत देभौ कि तोहें हमरोॅ मालिक छेकौ, आरो तोहें हमरोॅ मरद।"

बसंत, जे गुलबिया के ई रूप देखी रहलोॅ छेलै, वें लोटा ओकरोॅ हाथ सें छीनी केॅ एक तरफ फेंकते हुवेॅ गुस्सा सें बोललै, "की होलै, जों तोहें एक बार धोय देबौ तेॅ की हम्में तोरोॅ मालिक नै हुवेॅ पारियै। तोरोॅ मानला नै मानला सें की होय जैते। तों जेत्ता बार सिनूर धोबौ, हम्में ओत्ता बार तोरोॅ मांग सिनूर सें भरी देबौं। आरो हे बेॅ लेॅ भरलियौं।" ई कही केॅ बसंत ओकरोॅ मुंह सें चूते गीला सिनूर केॅ अपनोॅ दायां हथेली पर उतारी केॅ फेनू गुलबिया के सीथी पर राखी दै छै। राखी की दै छै पोती दै छै। एक बार नै दू-चार बार, होने केॅ जैसें गुलाबों के माथा एकदम लाल-लाल होय जाय छै, जेना ओकरोॅ मुंह नै रहै, कोय लाल सुरजे देहोॅ पर उगी गेलोॅ रहै।

आरो बसंत तबेॅ वही गोस्सा में कहै छै, "समझलोॅ कि नै तोंहें, आरो अब तेॅ कोय तोरा हमरोॅ बिहैतो कहतौं।"

गुलबिया अपनोॅ शरीर के सौंसे ताकत लगाय केॅ उठै छै आरो अपनोॅ माथा के बाल पीछू करतेॅ हुवेॅ हठातेॅ बसंतोॅ के कमीज के बटन घींचतेॅ हुवेॅ बोलेॅ लागलै, "तों हजार बार हमरोॅ मांग में सिनूर डालबौ, आरो हम्में हजार बार हेकरा धोय डालबै।" आरो अपनोॅ दांत पीसते हुवेॅ बसंत के कमीज पकड़ी केॅ ओकरोॅ शरीर केॅ खींचै लगै छै। गुलबिया बसंत के कमीज के बटन भी खींचलेॅ जाय छै आरो अपनोॅ भीतर के सौंसे ताकत लगाय केॅ जोर-जोर सें चिल्लैने जाय छै। ओकरोॅ ई चीख-पुकार के आवाज बाहर जाय रहलोॅ छेलै। ई सब दृश्य देखै लेली अंगना में केत्ता लोग जमा होय जाय छै। नयी कनियाय केॅ देखै के उत्साह में सब ऐलौ छेलै, मतरकि ओकरोॅ ई रूप एकटा तमाशा बनी जाय छै। अड़ोस-पड़ोस के सबटा जर-जनानी घुंघटा के भीतर सें आँख फाड़ी-फाड़ी केॅ सब दृश्य देखेॅ लागै छै। बच्चा सिनी हैरत संे जे देखी रहलोॅ छै, तेॅ सबके मुंह दू फांक में बंटी केॅ रही जाय छै। जेना की बसंत आरो गुलबिया के रिश्ता अखनी दू फांक में बंटलोॅ दीखी रहलोॅ छै।

बसंत मुहल्लावाला केॅ सामना में देखी केॅ आरो गोस्सा होय उठै छै। से भीड़ केॅ छांटै लेली ऊ गुलबिया के हाथ पकड़ी केॅ लै जाय लगै छै। मतरकि गुलबिया आरो चिल्लाय-चिल्लाय केॅ बसंत केॅ गारी दै लागै छै कि ई आदमी हमरा सें जबरदस्ती बीहा करलेॅ छै। ई बीहा हमरोॅ होश-हवास में नै होलोॅ छै। एकरोॅ कहला सें की हम्में हेकरोॅ बीहाता होय गेलियै। आरो सब जर जनानी कभी गुलाबिया के तेॅ कभी बसंत के मुंह ताकेॅ लगै छै। हेकरोॅ पहिले की गुलबिया आरो बेसी कुछु बोलतियै, बसंत ओकरा कोठली में लै जाय छै आरो धक्का दै खटिया पर वहीं गिराय दै छै। फेनु झपटी केॅ बाहर आबै छै आरो दरवाजा के कुंडी चढ़ाय दै छै। गुलाबो बिछौना पर गिरी केॅ कपसी-कपसी केॅ कानै लगै छै। ई सब दृश्य देखी केॅ बसंत के माय झनकी बसंत सें बोलै छै, "छोड़ी दै बसंता तों एकरा ई कोठली में। मरै लेॅ छौड़ी देंही दू दिन आरो भूखलोॅ-प्यासलोॅ। अपने माथोॅ ठंडाय जैते। आखिर कबतक ई अपनोॅ ताकत केॅ अजमैतें। बहुत बलवाला केॅ देखलियै। ई कौन सत्ती छेकै जे तपस्या करतें रहती अपनोॅ यार-भतार के. आरो सत्ती नाखी पाबिये लेती अपनोॅ भोला केॅ। ई कलमुंही हमरोॅ घर आबी केॅ हमरा सिनी के नाक में दम करी मारलकै। जों ई सब बात पहिलें जानतियै तेॅ कभियो अपनोॅ बेटा के बीहा ऊ घर में नै करतियै। रहतियै अपनोॅ भाय-भौजाय के कपारोॅ पर। हमरोॅ कपारोॅ पर पटकी देली ई बिमली नें। नै जानोॅ की कही केॅ बसंत केॅ बुलैलकै आरो वहाँ ई आफत केॅ हमरोॅ माथा पर पटकी देलकी। पागल, बताशोॅ केॅ की हमरे लेली रखलकी छेलै ऊ बिमली। आरो कोय घर नै मिललै, जे हमरोॅ बेटा केॅ वहाँ फंसाय देलकी। कब तलक हमरा ई पागल कनयाय केॅ दोही लेॅ लागतै। बिमली केॅ आरो कोय मुड़ै लेॅ नै मिललै तेॅ अपने भाइये मिललै। बहिन होय केॅ डायनपनो उतारलेॅ छै अपनोॅ भाय पर। है बीहा थोड़े करबैलेॅ छै।"

बसंत के माय के आवाज जोर पकड़लोॅ जाय छै, एत्तेॅ जोर की गुलाबो अपनोॅ कपसबोॅ छोड़ी केॅ अपनोॅ सासोॅ के बात सुनेॅ लागै छै। घंटा आध घंटा झनकला के बाद बसंत माय चुप होय जाय छै। बाहर के सबटा हल्ला-गदालो शांत होय जाय छै। सब लोग जाय चुकलोॅ छै। आरो सौंसे घरोॅ में चुप्पी पसरी गेलोॅ छै। गुलबिया अपनोॅ आँख मंुदी लै छै। आरो आँख मुंदतै ऊ कहीं लौटी जाय छै अपनोॅ अतीत में। अतीत के सबटा बात सिनेमा रील नांखी ओकरोॅ दिमाग पर उतरेॅ लगै छै।