गुलबिया / विद्या रानी
गुलबिया नें हिन्नें-हुन्नें देखलकै आरू एक ठो बड़का कटोरा में गरम-गरम भात आरू डबकते दाल राखि केॅ, एकठो मिरचाय लै केॅ घरोॅ के बाड़ी में उगलोॅ मकय के खेतोॅ में छिपाय ऐलै।
जहिया सें गुलबिया ससुराल में बसेॅ लागलेॅ छै, तहिये सें ओकरा भरी पेट गरम भात खाय लेॅ नै मिललोॅ छै। भिनसरवे सें गाय, गोबर, बथान चौका-बरतन करतैं-करतैं दुपहरिया होय जाय छै। ओकरोॅ दुल्हा आपनोॅ घरोॅ में सब्भे सें छोटोॅ छै। सास-ससुर नहिये छै आरू दोसरका भाय नें सरकारी नौकरी करै छै। ऊ आपनोॅ कनियाइन केॅ शहरे में राखै छै। गुलबिया के बड़का भैंसुर खेती-बाड़ी करै छै। हुनका दू बेटी आरू दू बेटा छै। ऊ आपनोॅ गोतनी के व्यवहार सें परेशान रहै छेलै। ओकरोॅ दुल्हा सतीश भाय के साथें खेतोॅ में काम करै छेलै, एकरे कारण ओकरो बड़की गोतनी के हुकुम मानै लेॅ पड़ै छै।
भोरे उठि केॅ भंसा घर बोढ़ि-सोढ़ि केॅ चौका-बरतन करि केॅ अदहन चढ़ाय देना ओकरोॅ काम छै, ओकरोॅ बादें बड़ी गोतनी रांधै छै आरू गुलबिया घास लानै लेॅ खेतोॅ पर जाय छै। दुपहरिया में सब्भे के खैला के बाद ठाड़ पत्थर भात, वहो ज़्यादा नै, ओकरा मिलै छै। वही खाय केॅ ऊ फेनू काम करेॅ लागै छै।
आज खिनी गुलबिया केॅ मौका मिली गेलै। सोचलकै कि अखनी छिपाय दै छी आरू जखनी घास काटै लेॅ जैबै, तखनिये खाय लेबै। वैनें वही करलकै। घास काटला के पहिनें कटोरा लै केॅ खाबेॅ लागलै। अभी आधे कटोरा भाग खैलेॅ छेलै कि जयधी मैनी नें देखी लेलकै आरू चिकरी-चिकरी केॅ माय केॅ पुकारेेॅ लागलै।
"हे गे माय, हे बेॅ देखैं, नयकी चाची नें बाड़ी में चोराय केॅ दाल-भात खाय रहलोॅ छै।"
बड़की गोतनी दौड़ली ऐली बाहर खेतोॅ में आरू कोसेॅ लागली, "तोरोॅ पेटोॅ में आग लगौ, एतना भरि-भरि थारी ठंूसै छौ। आरू तहियो नै भरै छौं। लोगें की कहतै कि कैहनी गोेतनी छै खैइयो लेॅ नै दै छै। आरू गोसांय देवता कुछु होय छै कि नै। अखनी चुल्हो नै पुजलोॅ छियै आरू ई मुंहझौसी गबर-गबर झकोसी रहलोॅ छै। आज तोरोॅ होशे दुरूस्त करी देबौं, आबेॅ दहो सतीश केॅ।"
गुलबिया डरोॅ के मारें कांपेॅ लागलै। बड़ी गोतनी नेॅ तेॅ कै बार मार खिलवैलेॅ छै। ओकरा कहला पर सतीश कुच्छू सुनै नै छै, सीधे लाठिये सें बात करै छै, आज तेॅ सच्चे में चोरी पकड़ाय गेलोॅ छै, आबेॅ की होतै हे भगवान। नैहरा में तेॅ एतना भात कुतवा केॅ दै-दै छेलियै आरू यहाँ यही पर एतना हंगामा मचलोॅ छै।
गुलबिया नें कटोरा में बचलोॅ भात फेकी देलकै आरू कटोरा धोय केॅ राखी देलकै।
बड़की गोतनी दहाड़ी केॅ बोललकै, "आबेॅ खाय छेलौ तेॅ सबटा खाय न लेतिहौ, बरबाद कैन्हें करलौ।" गुलबिया नें कोय जवाब नै देलकै। चुपचाप घास काटेॅ लागलै। आपनोॅ मोॅन के दुःख केकरा कहै, दुन्हो तेॅ ओकरे सिनी के बातोॅ में छै, नया-नया बियाह होलोॅ छै, कोय बालो-बुतरू नै छै कि ओकरा छाती सें लगाय केॅ कानी लेतियै, यही कारण चुपचाप कानै छै आरू काम करै छै।
आज तेॅ ओकरा ठंडो भात के आसरा नै छेलै। ओकरोॅ मोॅन दुःख सें ऊख-बिख करी रहलोॅ छेलै। आज कतना मार लगतै, यही सोची-सोची केॅ बेहाल छेलै गुलबिया।
दुपहरिया में जखनी सब्भे खाय लेॅ घोॅर ऐलै तेॅ बड़की गोतनी नें कहलकै, "हे हो सतीश, कहाँ सें ई चोरनी केॅ उठाय लानलोॅ छौ, हे बेॅ भात-दाल चोराय केॅ खाय छौं। कोय खैलेॅ नै छेलै, चूल्हो नै पुजलेॅ छेलियै आरो ई हरामजादी बाड़ी में नुकाय केॅ खाय छेल्हौं।"
सतीश आव नै देखलकै ताव, लै लाठी मड़वे ठाड़ होय गेलै। तुरते डंटा उठैलकै आरू गुलबिया के तरफ आबेॅ लागलै। सतीश कहलकै, "तोरोॅ ई हिम्मत, तोहें भौजी केॅ बदनाम करभौ।"
गुलबिया नें बचै लेॅ हाथ ऊपर उठाय केॅ डंटा रोकै के कोशिश करतें-करतें बोललकै, "कतना दिनोॅ सें गरम भात नै खैलेॅ छेलियै, से मोॅन होय गेलै, आबेॅ जे करोॅ।"
सतीश ई सुनी केॅ अवाक रही गेलै। देहाती लड़का, वैं नें कहियो ई ध्यान नै देलकै कि कनियाइन केना रहै छै, केना खाय छै, ओकरोॅ साथ केन्होॅ व्यवहार होय रहलोॅ छै। रसोई-पानी के काम मौगी सिनी के छेकै, से सतीश नें कहियो ई जानै के कोशिश नै करलकै कि कनियाइन के की हाल छै। गुलबियो मार के डर सें कहियो शिकायत नै करै छेलै कि मैनी माय तेॅ बिना कारणें मरवैतेॅ रहै छै, शिकायत करवै तेॅ कुटियैइये देतै। से दुःख-सुख झेललेॅ जाय छेलै।
मतरकि आज सतीश के डंटा होकरोॅ हाथें में रही गेलै। ऊ सोचेॅ लागलै कि हम्में तेॅ भैया सें कम मेहनत नै करै छी, भैया के परिवार बड़ोॅ छै, हम्मेॅ तेॅ दुइये आदमी छी आरू गुलबिया भी तेॅ कम नै खटै छै, तहियो अधपेटा खाय केॅ ही छह महीना सें रही रहलोॅ छै। छी-छी, हे भगवान, है दोसरोॅ घरोॅ के लड़की केॅ आनी केॅ मारै-कूटै जे छी, तेॅ करबै करै छी; ई कलछुलिया मार तेॅ बड़ा भयानक छै।
आज तांय जेतना बार मारलेॅ छेलै सतीश-ओकरोॅ लेॅ ओकरा अफसोस होय रहलोॅ छेलै। ऊ मने-मन आपना केॅ धिक्कारेॅ लागलै। फेनू ऊ देखलकै कि भौजी सिनी देखी रहलोॅ छै आरू गुलबियो हाथ हटाय केॅ ताकि रहलोॅ छै कि अभियो तांय डंटा कैन्हें नी चलैलेॅ छै। सतीश भौजी केॅ सुनाय केॅ बोललकै, "खाय के मोॅन छेल्हौं तेॅ भौजी सें मांगि लेतिहौ, चुराय के की काम, आपने तेॅ घोॅर छेकै।"
एतना कही केॅ सतीश डंटा फेकी केॅ हाथ-गोड़ धोय लेॅ चल्लोॅ गेलै। गुलबिया के आँखोॅ में खुशी के लोर छलकेॅ लागलै। मारोॅ के डोॅर सें हाड़ काँपै छेलै, ऊ नै मिललै तेॅ वैंने समझी लेलकै कि भुखलोॅ रहै के बात सतीश केॅ दुखी करी देलेॅ छै, वही सें आबेॅ सब्भे दुःख कहै के समय आबी गेलोॅ छै। राति गुलबिया नें आपनोॅ पति सें सबटा किस्सा सुनाय देलकै कि केना वैं हड़िया नै छुबेॅ पारै छै, केना अधपेटा खाना मिलै छै आरू केना खटै छै।
दोसरा दिन भोरे खेत जाय सें पहिनें सतीश आपनोॅ भौजी के पास गेलै आरू कहलकै, "भौजी, एक गो डेगची, आरू आधा किलो चाउर, गुलबिया केॅ दै दिहौ, ऊ आपनोॅ रान्धि केॅ खैतै।"
मैनी माय बोललकै, "ई की सतीश, तोहें कि हड़िया फरक करै लेॅ कही रहलोॅ छौ।"
सतीश नें जवाब देलकै, "जे समझोॅ" आरू कुदाली लै केॅ खेतोॅ पर चल्लोॅ गेलै।