गुलशन कुमार बायोपिक रोमांचक संभावना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2018
आमिर खान और भूषण कुमार मिलकर गुलशन कुमार बायोपिक बनाने जा रहे हैं। फिल्म का नाम 'मुगल' है। गौरतलब है कि मुगल बादशाह हुए हैं परंतु अनेक क्षेत्रों में शिखर पर पहुंचे व्यक्ति को मुगल कहकर पुकारा जाता है जैसे मूवी मुगल, केला मुगल, व्यापार मुगल और मुगल उद्योगपति इत्यादि। इस तरह भाषा में संज्ञा विशेषण हो जाती है। बहरहाल, टी सीरीज के मालिक भूषण कुमार लंबे समय से अपने पिता गुलशन कुमार पर बायोपिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अक्षय कुमार को अनुबंधित भी किया था। अब मसला यह है कि अक्षय कुमार चालीस दिन से अधिक किसी फिल्म की शूटिंग नहीं करते परंतु आमिर खान की निर्माण शैली में कोई समय सीमा नहीं होती। वे अपनी अभिनीत राजकुमार हिरानी की फिल्म 'थ्री इडियट्स' के नायक की तरह गुणवत्ता का गुरु मंत्र जपते हैं। बहरहाल फिल्म उद्योग में दो कदम आगे बढ़ना या दो कदम पीछे हटने के समझौते होते रहते हैं। बॉक्स ऑफिस सफलता के लिए लचीलापन जरूरी है।
दिल्ली के एक बाजार में गुलशन कुमार फलों का जूस बेचते थे। उन्हें संगीत सुनने का शौक था। कुछ ही दिनों में गुलशन कुमार ने यह महसूस किया कि ग्राहक को फलों के रस पीने से अधिक आनंद फिल्म संगीत सुनने में आता है। इस दौर में फिल्म संगीत बाजार में एक कंपनी का एकाधिकार था। गुणवत्ता के प्रति समर्पित कंपनी के ऑडियो कैसेट महंगे होते थे। गुलशन कुमार ने सस्ते कैसेट बनाने शुरू किए। उनके पास संगीत अधिकार नहीं थे, अत: उन्होंने वर्जन रिकॉर्डिंग प्रारंभ की। साथ ही नए गायकों को अवसर दिया। प्रतिभाशाली सोनू निगम ने मोहम्मद रफी के गाए हुए सैकड़ों गीतों को रिकॉर्ड किया और कॉपीराइट एक्ट के सुराख से निकलने के लिए मूल गीत में थोड़ा-सा फर्क किया गया। उस समय कॉपीराइट एक्ट एक छलनी की तरह था, जिसमें छिद्र ही छिद्र थे। इसी तरह गायिका अनुराधा पौडवाल ने लता के गीतों के 'वर्जन' गाए।
गुलशन कुमार मार्केटिंग के जीनियस थे। वे जानते थे कि धर्म की नाव पर ही बाजार की वैतरणी पार की जा सकती है। अत: उन्होंने हजारों भजन अनुराधा पौडवाल व सोनू निगम से गवाए और ग्रामीण क्षेत्र में अपनी फैक्टरी में बने सस्ते 'ट्रांजिस्टर कम टेप' बेचने प्रारंभ किए। इस तरह संगीत बाजार में एक क्रांति कर दी।
गुलशन कुमार ने दूसरा कदम यह उठाया कि उन्होंने फिल्मों के संगीत अधिकार खरीदना शुरू किए। वे निर्माता को संगीत अधिकार के लिए खूब अधिक धन देते थे। कई फिल्मकारों ने इसी धन से शूटिंग शुरू की और फिल्म के बजट का बड़ा भाग उन्हें संगीत अधिकार से मिलने लगा। संगीत बाजार पर एकाधिकार जमाए रखने वाली कंपनी कभी कोई अग्रिम धन नहीं देती थी परंतु रॉयल्टी की रकम के बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता था। अधिकांश निर्माताओं ने बूंद पर विश्वास खो दिया और जहां से लोटा भर मिल रहा था, वहीं अनुबंध किए। अधिकांश फिल्मकार बिना पेंदे के लोटे की तरह थे। गुलशन कुमार को संगीत क्षेत्र में क्या लोकप्रिय होगा, इसका अच्छा खासा ज्ञान था। अत: उन्होंने अपनी कंपनी द्वारा रिकॉर्ड किए गए गीतों से सजी एक फिल्म का निर्माण किया। फिल्म का नाम था 'लाल दुपट्टा मलमल का'। ज्ञातव्य है कि राज कपूर की बरसात में शंकर-जयकिशन का बनाया गीत 'हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का' अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। गुलशन कुमार की इस संगीत प्रधान फिल्म को निर्देशित किया राज कपूर के सहायक निर्देशक रहे रवीन्द्र पीपट ने। दरअसल गुलशन कुमार राज कपूर की फिल्मों के संगीत के दीवाने थे। उन्होंने राज कपूर को मुंहमांगा धन देने की पेशकश की परंतु राज कपूर ने अपनी पुरानी संगीत कंपनी को नहीं छोड़ा। वे जानते थे की गुलशन कुमार मोटी रकम अग्रिम राशि की तरह देते हैं परंतु उनके अनुबंध में रॉयल्टी का प्रावधान नहीं था। वे एकमुश्त धन देते थे जो फुल एंड फाइनल राशि होती थी। राज कपूर का निर्णय कितना सही था, इसका प्रमाण यह है कि उनकी मृत्यु के तीस वर्ष पश्चात भी प्रतिवर्ष संगीत कंपनी से अच्छी खासी रकम उनकी संतानों को आज मिलती है। वे जानते थे कि अंडे देने वाली मुर्गी को मार देने से एक वक्त का भोजन तो मिल सकता है परन्तु प्रतिदिन अंडे नहीं मिल सकते।
बहरहाल गुलशन कुमार ने नदीम-श्रवण को सफलतम संगीतकार बनाने में अहम भूमिका निभाई परंतु नदीम के गैर फिल्मी गीतों का कैसेट नहीं बिका। इस असफलता ने दरार पैदा की। एक दिन गुलशन कुमार मंदिर से पूजा करके बाहर निकले तो कुछ लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस घटना के बाद नदीम लंदन भाग गए। शंका के आधार पर एक संगीत कंपनी का मालिक पकड़ा गया। कुछ लोगों को सजा हुई परंतु साजिश रचने वाले की जानकारी नहीं मिली। अत: इस बायोपिक में संगीत है, प्रेम-कथा है और एक हत्या भी है। इस कारण यह एक मनोरंजक, संगीत प्रधान और रहस्य रोमांच से भरी फिल्म साबित हो सकती है।