गुलशन कुमार : संगीत बाजार का धूमकेतु / जयप्रकाश चौकसे

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गुलशन कुमार : संगीत बाजार का धूमकेतु
प्रकाशन तिथि :16 सितम्बर 2015


टी-सीरीज संगीत कंपनी की स्थापना गुलशन कुमार ने की थी और उनकी हत्या के पश्चात उनका सुपुत्र भूषण कुमार अपने पिता से बेहतर ढंग से कंपनी चला रहा है। उसने अपने पिता के संगीत व्यवसाय के एकल माला भवन को बहुमंजिला बना दिया है। उसके पास कुशाग्र व्यवसाय बुद्धि है। ज्ञातव्य है कि अत्यंत साधारण मध्यम वर्ग के गुलशन कुमार को संगीत सुनने का शौक था और वे अपनी जूस की दुकान पर सारा समय संगीत सुनते थे। कभी कोई ग्राहक उनसे उनकी पसंद के गीतों का डुप्लीकेट कैसेट बनाने को कहता तो वे सहर्ष कर देते थे। जब ऐसी मांग बढ़ी तो उनके मन में इस डुप्लीकेशन को बड़े पैमाने पर करने का विचार आया। धंधा चल पड़ा परंतु इस अवैध धंधे को वैध करने के लिए उन्होंने फिल्मों के संगीत अधिकार खरीदना प्रारंभ किया और अपनी पसंद के मौलिक गीतों की रचना करके रवींद्र पीपट के निर्देशन में 'हवा में उड़ता जाए, लाल दुपट्‌टा मलमल का' फिल्म बनाई, जिसकी असफलता के बाद उन्होंने यह बयान दिया कि फिल्म के संगीत की बिक्री से न केवल फिल्म का घाटा पूरा हुआ है वरन दस गुना मुनाफा भी मिला है। इससे फिल्म उद्योग को ज्ञात हुआ कि फिल्म संगीत का बाजार कितना बड़ा है। भारत में 'हिज मास्टर्स वॉइस' संगीत कंपनी का दशकों तक एकाधिकार रहा और जब वे ऑडियो कैसेट 50 रुपए में बेचते थे तब गुलशन कुमार की टी सीरिज का कैसेट मात्र 15 रुपए में उपलब्ध था। एचएमवी की लाभ लोलुपता एवं हेकड़ी के कारण बाजार में आए शून्य को गुलशन कुमार ने भर दिया। एचएमवी के बिक्री केंद्र केवल बड़े नगरों में थे, गुलशन कुमार ने अपने बिक्री केंद्रों का जाल ग्रामीण भारत में फैला दिया गोयाकि, जो श्रेष्ठि वर्ग का क्षेत्र था, उसे फैलाकर सच्चे अर्थ में अखिल भारतीय स्वरूप दिया।

उन दिनों 'टू-इन-वन' अर्थात रेडियो और रेकॉर्ड प्लेयर का एक ही यंत्र में लाना मध्यम वर्ग की सहूलियत थी। गुलशन कुमार ने इस महंगे यंत्र के सस्ते स्वरूप का कारखाना लगाया और सस्ते 'टू-इन-वन' सारे ग्रामीण भारत व कस्बों में फैला दिया। इस घटना से संगीत व्यापार का क्षेत्र व्यापक हो गया। फिर उन्होंने फिल्म संगीत के स्वर्ण युग के महान संगीत के वर्जन रिकॉर्डिंग बाजार में प्रस्तुत किए। यह उस समय मौजूद ढीले से कॉपीराइट कानून के बारीक छिद्र का कमाल था कि मूल रचना में केवल बाल बराबर परिवर्तन करने पर उस रचना पर नकल का आरोप नहीं लगता था। अनेक महान गायकों को वर्जन रिकॉर्डिंग पर एतराज था कि एक दिन वर्जन रिकॉर्डिंग का यह खोटा सिक्का बाजार में असली सिक्के को निकालकर बाहर फेंक देगा। इस वर्जन रिकॉर्डिंग की पतली गली से कई प्रतिभाशाली पार्श्व गायक लाइम लाइट में आए जैसे अपार प्रतिभा का धनी सोनू निगम। लता मंगेशकर को वर्जन रिकॉर्डिंग से चिढ़ थी। शास्त्रीय संस्कार में ढलीं लता तो सुर में मामूली परिवर्तन को भी पाप ही मानती थीं। उन्होंने जीवन में कभी गलत सुर नहीं लगाया। बहरहाल, यह 'टू इन वन' महज संगीत सुनने का यंत्र नहीं रहा, इसने 'सोफ कम बेड' का चलन फर्नीचर में लाया और उसी काल खंड में सामाजिक व्यवहार में सेक्रेटरी कम मिस्ट्रेस का चलन भी प्रारंभ हुआ, जिसे गुजरात में जन्मे 'मैत्री करार' ने रिश्तों के इस घपले को कानूनी मान्यता दिला दी। आर्थिक घपले और रिश्तों के घपले इत्यादि सब भी उसी अनैतिकता से जुड़े हैं, जो कालेधन का बाय प्रोडक्ट है और इसी का विस्फोट इंद्राणी मुखर्जी कांड है। समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हर काल खंड में क्षीण धारा की तरह रहा है परंतु अब वह विराट जलप्रपात में बदल गया और मुझे शंका है कि अवाम को भ्रष्टाचार पसंद है। इसका ही एक उदाहरण यह है कि वाकपटुता और चतुराई को बुद्धिमानी भी मान लिया गया है। चुटकुलों को विट भी माना गया है।

बहरहाल, गुलशन कुमार ने ही नदीम-श्रवण को अवसर दिलाए और उनकी हत्या का संदेह नदीम पर हमेशा रहा है, क्योंकि नदीम के एक प्रायवेट अलबम की असफलता के लिए वह अपने गॉडफादर गुलशन को दोषी मानता था। गुलशन की सफता से प्रेरित वीनस और टिप्स बाजार में आईं परंतु भूषण कुमार का एकछत्र राज्य है। गुलशन का उदय और अस्त धूमकेतु की तरह हुआ। उनके कारण समाज में कई मूल्य बदले, जिनका गहन अध्ययन जरूरी है।