गुलाब की महक / सुधा भार्गव
एक माली था!वह रोज सुबह गुलाब अपनी टोकरी में चुन लेता!एक दिन झाडी के पीछे से आवाज आई _
'-माली भाई-- -तुम मेरे फूल ही क्यों चुनते हो!उनके साथ कांटे भी तो हैं!'
'मैंने जिसके लिए इन्हें तोड़ा है,उसे फूल ही पसंद हैं!'
'दूसरों के तो वह कांटें चुभोता रहता है! इस बार फूलों के साथ कांटे भी ले जाओ! काम आयेंगे!!
माली ने गुलाबराज की बात मान ली और बनिए को फूलों की पुड़िया दे आया!पूजा करते समय उसने उसे खोला और भगवान् के चरणों में सुगन्धित पुष्प चढाये!
ऐसा करते वक्त उसकी अँगुलियों को काँटों ने छेद दिया!पीडा से वह तिलमिला उठा!
दूसरे दिन माली के आने पर बनिया बोला -तुम्हे कल के फूलों के पैसे नहीं मिलेंगे!पुडिया में कांटे भी थे!'
'कांटे आपके लिए नहीं,दूसरों के लिए लाया था!'
'दूसरों के लिये! क्यों?'
'कभी -कभी आप दूसरों के कांटे चुभोते हो!इसलिए ले आया,न जाने कब इनकी जरुरत आनपड़े!'
'तेरा दिमाग घास चरने चला गया है क्या!मैंने कब किस के कांटा चुभोया है!'
-'कांटें चुभोने के लिए जरूरी नहीं कि इसी तरह के कांटें हों दूसरों से कटु बोलना,धोखा देना,सफलता के मार्ग में रोड़े अटकाना भी तो शूल सी चुभन देता है आपने जाने अनजाने --कितने ही लोगों को लाइलाज घाव दिये हैं अब वे आपको नुकसान पहुँचाने की टोह में रहते हैं! न जाने दर्द देने -दर्द उठाने का सिलसिला कब तक चलेगा! ऐसे में केवल घर के गुलाबों से क्या होता है!
दिल में प्यार की इमारत खड़ी करनी पड़ेगी जिससे बाहर भी फूलों की महक मिल सके।