गुलामगीरी / परिशिष्ट / जोतीराव गोविंदराव फुले

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[1] A most remarkable and striking corroboration of these views is to be found in the religious rites observed on some of the grand festivals which have a reference to Bali Raja, the great king who appears to have reigned once in the hearts and affection of the Shoodras and whom the Brahmin rulers displaced. On the day of Dushhara, the wife and sisters of a Shoodra, when he returns from his worship of the Shumi Tree and after the distribution of its leaves, which are regarded on that day as equivalent to gold, amongst his friends, relations and acquaintances, he is greeted at home with a welcome " अला बला जावे और बली का राज आवे" "Let all troubles and misery go, and the kingdom of Bali come." Whereas the wife and sisters of a Brahmins place on that day in the foreground of the house an image of Bali, made generally of wheaten or other flour, and when the Brahmin returns from his worship of the Shumi Tree he takes the stalk of it, pokes with it the belly of the image and then passes into the house. This contrariety, in the religious customs and usages obtaining amongst the Shoodras and the Brahmins and of which many more examples might be adduced, can be explained on no other supposition but that which I have tried to confirm and elucidate in these pages

[2] . समर्थ रामदास − मराठी संत कवि। ब्राह्मण जाति में पैदा हुए और बे ब्राह्मणवाद के कट्टर समर्थक थे।

[3] अनार्य, वह मानव-समाज, जो ब्राह्मणों के चातुर्वर्ण्य समाज से बाहर का है।

[4] हिंदुओं में (ब्राह्मणों में) पितरों के सम्मान और उनकी तृप्ति के लिए शास्त्र के अनुसार या धार्मिक रस्म-रिवाजों के अनुसार किया जानेवाला धार्मिक अनुष्ठान, जैसे-तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मणों को भोजन कराना। यह श्राद्ध सांस्कृतिक परंपरा नही, बल्कि हिंदुओं की धार्मिक विधि है। इसका प्रारंभ ब्राह्मण-पुरोहितों ने अपने स्वार्थ के लिए किया था।

[5] मांगलिक − मराठी में इसके लिए, 'सोंवळे ओवळे' शब्द का प्रयोग किया जाता है।

[6] बुटेलर - अंग्रेजों के घर में खाना पकानेवाला - खानसामा।

[7] लिंगायत - एक शैव संप्रदाय, जिसका प्रसार दक्षिण भारत में हुआ है।

[8] विप्रिय - अप्रिय, धोखेबाज, छली-कपटी, दुष्ट।

[9] मावला - मराठी में मावळा। महाराष्ट्र के अंतर्गत पूना के इर्द-गिर्द का प्रदेश।

[10] जेजोरी का खंडोबा − महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध देवस्थान है। यह स्थान पूना की आग्नेय दिशा में करीबन तीस मील की दूरी पर है। जेजोरी की पहाड़ी पर कई पठार और गढ़कोट हैं। इन दो जगहों पर खंडोबा के मंदिर हैं। इनमें कई शिलालेख है। यहाँ सबसे पुराना शिलालेख ई0 सं0 1246 का है। जेजोरी में चंपाषष्ठी, सोमवती अमावस्या, चैत्री, श्रावणी, पौपी और माघी पूर्णिमा को विशेष उत्सव होते है। चंपापंष्ठी यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव है।

[11] मल्हारी − शिव का एक अवतार माना जाता है। एक देवता।

[12] मार्तंड − इस देवता को 'मल्हारी मार्तंड' नाम से भी जानते पुकारते है। महाराष्ट्र की लोककलाओं में यह नाम बहुत ही प्रचलित है।

[13] हर-हर - इस शब्द का अपभ्रंश 'हुर्रा-हुर्रा' है, यह निकलता है, क्योंकि अँग्रेज लोगों में एक पुराना रिवाज है कि वे 'हुर्रा-हुर्रा' करके चिल्लाए बगैर दुश्मन पर टूँट पड़ने की आज्ञा ही नहीं देते। यह बात उनके इतिहास में कही गई है। "Hurrah Boys! Loose the saddle or win the horse!"

[14] . बली − (बरि, बेदगु) बली कन्नड़ शब्द है। इसका तामिल अनुवाद 'बरि' तथा तेलुगु 'बेरगु' है। इसका अर्थ है बाहरी जाति। बलि का उल्लेख अनेकों बार ऋग्वेद में एक देवता तथा एक राजा के रूप में हुआ है। बलि एक प्रसिद्ध दानव राजा था। उसने तीनों लोकों को जीत लिया था। देवता (ब्राह्मण) उसने त्रस्त थे। पुराणों में कहा गया है कि बली राजा दान देने के लिए प्रसिद्ध था। विष्णु दया करके कश्यप और आदि से वामन रूप में उत्पन्न हुए और ब्राह्मण का रूप धारण कर बली राजा के पास गए। वामन ने छल-कपट से बली राजा से तीन पग भूमि माँगी।

[15] गायत्री मंत्र − 'गायत्री' ऋग्वेद में एक छंद का नाम है। गायत्री का अर्थ है 'गायंत त्रायते इति' अर्थात 'गानेवाले की रक्षा करनेवाली'। सभी द्विजों के लिए प्रात: और संध्याकाल की प्रार्थना में इस मंत्र का पाठ करना अनिवार्य माना गया है।

[16] कुनबी - हिंदुओं की एक शूद्र जाति जो प्राय: खेती करती है।

[17] भराडी के पूँगी और वाध्या के भंडारी को काला धागा है, उसे देखिए। जाणाई देवी को सटवाई, मायराणी, कालकाई की तरह शूद्र देवी कहते हैं।

[18] आसरा - जलदेवी। ये सात हैं।

[19] बाणासुर की कन्या उषा कृष्ण के प्रद्युम्न नाम के पुत्र को दी गई थी। परभू या प्रभु, गैर ब्राह्मणों की एक जाति - जिसको महाराष्ट्र में सी. के. पी. कहते हैं। यही उत्तर-पूर्व भारत की कायस्थ जाति है। ब्राह्मण लोग इस जाति के लोगों से भी शूद्र जैसा ही व्यवहार करते थे।

[20] पँवाड़ा - गीरगाथा।

[21] म्हसोबा − अर्थात म्हषासुर, महिषासुर। देवी द्वारा मारा गया एक दैत्य। महिष एक असुर का नाम, जो तमोगुण का प्रतीक है और दुर्गा अपनी शक्ति से इसी का छेदन करती है।

[22] कई यूरोपियन ग्रंथकारों की भी यहीं मान्यता है।

[23] उमा जी रामोशी - महाराष्ट्र नाईक नाम का एक आदमी था। वह बड़ा लड़वैया था। उसने अंग्रेजों से भी मुकाबला किया था। लेकिन उमा जी नाईक रामोशी शूद्र जाति में पैदा हुआ था, इसलिए उसको कोई शहीद नहीं मानता। लेकिन जो ब्राह्मण सही में डाकू थे और अँग्रेजों से लड़े, उन्हें शहीद माना गया।

[24] देशस्थ - महाराष्ट्र के ब्राह्मणों में देशस्थ ब्राह्मण नाम की एक उपजाति है।

[25] पार्वती - पूना का पार्वती देवस्थान, एक संस्थान। इसकी पूजा द्वारा प्राप्त आय केवल ब्राह्मणों पर खर्च होती थी। यहाँ हमेशा ब्राह्मणों को दान दिया जाता था। यहाँ हमेशा ब्राह्मण भोज-चलता था।

[26] कुलकर्णी - कुलकर्णी, कर्णिक, पटवारी, तलाटि आदि शब्द समानार्थक हैं। गाँव के चौधरी या प्रधान का कारकुन। गाँव की जमीन और उसके लगान का हिसाब रखनेवाला एक छोटा सरकारी कर्मचारी। कुल का मतलब जमीन (खेत) का हिस्सा और कारण का मतलब है मेहनताना। उस समय ऊँची जाति के ही लोग कुलकर्णी, पटवारी आदि होते थे। आज ब्राह्मणों तथा कायस्थों में कुलकर्णी, कर्णिक सरनेम (कुलनाम) हैं।

[27] Chapter IV, The Sepoy Revolt by Henry mead.

[28] महाराष्ट्र में मराठा शासनकाल में और खास तौर पर पेशवाई के काल में खोती-पद्धति का उदय हुआ है। इसमें खोत ब्राह्मण होता था जो एक गाँव या इस तरह कई गाँवों की भूमि का स्वामी होता था। इस खोत का काम यही था कि शूद्रों को जमीन जोतने-बोने के लिए देना और फसल के समय किसानों से तीन चौथाई अनाज जबरन ले लेना। शूद्र किसानों पर इसका अपना वर्चस्व चलता था। इतना ही नहीं, बल्कि यह भी कहा जाता है कि शूद्र किसानों की बहुओं को शादी के बाद की पहली रात इसी खोत के बंगले पर गुजारनी पड़ती थी। इसलिए इस अमानवीय खोती-प्रथा के विरुद्ध म. जोतीराव फुले से ले कर शाहू महाराज तक सभी ने आवाज बुलंद की थी और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने बंबई असेंबली में इस खोती-प्रथा के विरुद्ध कानून बनवाया था।

[29] टॉम्स पेन एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी विचारक। उनके 'मनुष्य के हक (राइट ऑफ मॅन) नाम के ग्रंथ से म. जोतीराव फुले बहुत ही प्रभावित थे।

[30] गरदन हिलानेवाले नंदी बैलों की तरह।

[31] पूना शहर की एक बस्ती का नाम।

[32] प्रस्तुत पत्र के संबंध में अखबारवालों के जो−जो अभिप्राय प्राप्त हुए हैं, उनकी योग्यता जानने के लिए उनको हम अपने पाठकों के लिए यहाँ दे रहे हैं: पूना, शनिवार, ता0 4 जनवरी, 1873