गुलामगीरी / भाग-10 / जोतीराव गोविंदराव फुले
[दूसरा बलि राजा, ब्राह्मण धर्म की दुर्दशा, शंकराचार्य की बनावटी बातें, नास्तिक मान्यता, निर्दयता, प्राकृत ग्रंथकर्ता, कर्म और ज्ञानमार्ग, बाजीराव पेशवा, मुसलिमों से नफरत और अमेरिकी तथा स्कॉच उपदेशकों ने ब्राह्मणों के कृत्रिम किले की दीवारें तोड़ दीं, आदि के संबंध में।]
धोंडीराव : तात, अब तो चरम सीमा हो गई, क्योंकि आपने शिवाजी के पँवाड़े की प्रस्तावना में यह लिखा था और सिद्ध किया था कि चार घर की चार ग्रंथकर्ता ब्राह्मण लड़कियों ने मिल कर घर की कोठरी में झूठ-फरेबी का खेल खेला।
जोतीराव : किंतु आगे जब एक दिन (दलितों) का दाता; समर्थक, महापवित्र, सत्यज्ञानी, सत्यवक्ता बलि राजा इस दुनिया में पैदा हुआ, तब उसने हम सभी को पैदा करनेवाला, हम सबका निर्माणकर्ता महापिता जो है, उसका उद्देश्य जान लिया। निर्माणकर्ता द्वारा दिए गए सत्यमय पवित्र ज्ञान और अधिकार को उपभोग करने का समान अवसर सबको प्राप्त हो, इसलिए उस बलि राजा ने अपने दीन, दुर्बल और शोषित भाइयों को सभी ब्राह्मणों की अर्थात बनावटी, दुष्ट, धूर्त, मतलबी बहेलियों की गुलामी से मुक्त करके, न्याय पर आधारित राज्य की स्थापना करके अपनी जेष्ठ महिलाओं के भविष्य की आकांक्षाओं को कुछ हद तक पूरा किया, यह कहा जा सकता है। तात, जहाँ मिस्टर टॉम्स पेंस जैसे बड़े-बड़े विद्वानों के पूर्वजों ने इस बलि राजा के प्रभाव में आ कर अपने पीछे की सारी बलाएँ दूर करके सुखी हुए, अंत में जब उस बलि राजा को (ईसा मसीह) चार दुष्ट लोगों ने सूली पर चढ़ाया, उस समय सारे यूरोप में बड़ा तहलका मच गया था। करोड़ों लोग उसके अनुयायी हो गए और वे अपने निर्माणकर्ता के शासन के अनुसार इस दुनिया में केवल उन्हीं का सत्ता कायम हो, इस दिशा में रात और दिन प्रयत्नशील रहे। लेकिन इसी समय इस क्षेत्र में कुछ स्वस्थ वातावरण होने की वजह से यहाँ के कई बुद्धिमान खेतिहरों और किसानों ने उस घर की कोठरी के अंदर की नादान लड़कियों के झूठ-फरेबी खेल को ही तहस-नहस कर दिया। मतलब सांख्यमुनि जैसे बुद्धिमान सत्पुरुषों ने ब्राह्मणों के वेदमंत्र, जादूविधि के अनुसार चमत्कार का प्रदर्शन किया। उसने उन ब्राह्मणों को भी अपने धर्म का अनुयायी बनाया जो पशुओं की बलि चढ़ा करके उत्सव यात्रा के बहाने गोमांस-भक्षण करते थे। उसी प्रकार जो ब्राह्मण घमंडी, पाखंडी, स्वार्थी, दुराचारी आदि दुर्गुणों से युक्त थे और जिन ग्रंथों में जादूमंत्रों के अलावा और कुछ नहीं था, ऐसे ग्रंथों पर तेल काजल का लेप लगा कर अर्थात् उन ग्रंथों को नकारते हुए उसने अधिकांश ब्राह्मणों को होश में लाया। लेकिन उनमें से बचे-खुचे शेष कुतर्की ब्राह्मण कर्नाटक में भाग जाने के बाद उन लोगों में शंकराचार्य नाम अपना कर एक तरह से वितंडावादी विद्या जाननेवाला महापंडित पैदा हुआ। उस ब्राह्मणवादी पंडित ने जब यह देखा कि अपने ब्राह्मण जाति के दुष्ट कर्म की धूर्तता की सभी ओर निंदा हो रही है, थ-थू हो रही है और बुद्ध के धर्म का चारों ओर प्रचार हो रहा है, तो उसने यह भी देखा कि अपने लोगों का (ब्राह्मण-पंडित-पुरोहित) पेट पालने का धंधा ठीक से नहीं चला रहा है, इसलिए उसने नया ब्रह्मजाल खोज निकाला। जिन दुष्ट कर्मों की वजह से उनके वेदों सहित सभी ग्रंथों का बौद्ध जनता ने निषेध किया था, उसका उस शंकराचार्य ने बड़ी गहराई से अध्ययन किया और बौद्धों ने जिन बातों के लिए ब्राह्मणों की आलोचना की थी, उसने उनमें केवल गोमांस खाना और शराब पीना निषिद्ध मान लिया। लेकिन उसने बाद में अपने सभी ग्रंथों में थोड़ी बहुत हेराफेरी करके उन सभी में मजबूती लाने के लिए एक नए मत-वाद की स्थापना की। शंकाराचार्य की उस विचारधारा को वेदांत का ज्ञानमार्ग कहा जाता है।
बाद में उसने वहाँ शिवलिंग की स्थापना की। इस देश में जो तुर्क आए थे, उसने हिंदुओं के एक वर्ण क्षत्रियों में उन्हें शामिल कर लिया। फिर उसने उनकी मदद से मुसलिमों की तरह तलवार के बल पर बौद्धों को पराजित किया और फिर पुन: उसने अपनी उस शेष जादू-मंत्र विद्या और भागवत की व्यर्थ की पुराण कथाओं का प्रभाव अज्ञानी शूद्रों के दिलों-दिमाग पर थोप दिया। शंकराचार्य के इस हमले में उसके लोगों ने बौद्ध धर्म के कई लोगों को तेली के कोल्हू में ठूँस-ठूँस करके मौत के घाट उतार दिया। इतना ही नहीं, शंकराचार्य के लोगों ने बौद्धों के असंख्य मौलिक और अच्छे-अच्छे ग्रंथों को जला दिया। उसने उनमें से केवल अमरकोश जैसा ग्रंथ अपने उपयोग के लिए बचाया। बाद में जब उस शंकराचार्य के डरपोक चेले पंडित-पुरोहितों की तरह दिन में ही मशालों को जला कर, डोली में सवार हो कर, चारों ओर सधवा नारी की तरह नोक-झोंक करके नाचते हुए घूमने लगे तो ब्राह्मणों को नंगा नाच करने की पूरी स्वतंत्रता मिल गई। उसी समय मुकुंदराज, ज्ञानेश्वर, रामदास आदि जैसे पायली के पचास ग्रंथकार हुए और बेहिसाब, बेभाव बिक गए। लेकिन उन ब्राह्मण ग्रंथकारों में किसी एक ने भी शूद्रादि-अतिशूद्रों के गले की गुलामी की जंजीरे तोड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई, क्योंकि उनमें उन सभी दुष्ट कर्मों का खुलेआम त्याग करने की हिम्मत नहीं थी। इसलिए उन्होंने उन सभी दुष्ट कर्मों को कर्म मार्ग और नास्तिक मतों का ज्ञानमार्ग - इस तरह के दो भेद करके उन पर कई पाखंडी, निरर्थक ग्रंथों की रचना की। इस तरह उन्होंने अपनी जाति के स्वार्थों का जी-जान से रक्षण किया और अज्ञानी शूद्रों से लूट-खसोट करके अपनी जाति को खूब खिलाया-पिलाया। लेकिन बाद में उन्होंने पूरी लज्जा-शर्म छोड़ दी और हर रात को जो कुकर्म नहीं करना चाहिए, उसको भी करने लगे। फिर ब्राह्मण लोगों को दिन के एक चौथाई समय गुजरने तक मुसलिमों का मुँह न देखना चाहिए, रजस्वला स्त्री की तरह घर में ही मांगलिक अवस्था में रहनेवाले ऐसे लोग बाजीराव के दरबार में इकठ्ठे होते थे। लेकिन अब समय ने करवट ले ली थी। पहले दिन के बीतने और दूसरे दिन के प्रारंभ में सभी मेहनतखोर ब्राह्मणों को ऐयाशी और गुलछर्रे उड़ाने के लिए जो सुख−सुविधाएँ मिलनेवाली थीं, उसके पहले ही अंग्रेज बहादुरों का झंडा चारों ओर लहराने लगा। उसी समय उस बलि राजा के अधिकांश अनुयायी अमेरिकी और स्कॉच उपदेश ने (मिशनरी) अपने-अपने देश की सरकारों की किसी भी प्रकार की परवाह न करते हुए इस देश में आए। बलि राजा ने जो सही उपदेश दिया था, उसे सभी नकली, दुष्ट, धूर्त ब्राह्मणों को प्रमाण द्वारा सिद्ध करके दिखाया और उन्होंने कई शूद्रों को ब्राह्मणों की इस अत्यंत अमानवीय गुलामी से मुक्त किया। उन्होंने शूद्रों के (शूद्रादि अतिशूद्र) गले में ब्राह्मणों द्वारा सदियों से टाँगी हुई गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया और उन गुलामी की बेड़ियों को ब्राह्मणों के मुँह पर फेंक मारा। उस समय अधिकांश ब्राह्मण समझ गए कि, अब वे ख्रिस्ती उपदेशक (मिशनरी) उनका प्रभाव अन्य शूद्रों पर बिलकुल टिकने नहीं देंगे। वे उनके सारे ढोल के पोल खोल के रख देंगे, यह उनकी पक्की समझ हो गई थी। इसी डर की वजह से उन्होंने बलि राजा के अनुयायी उपदेशकों और अज्ञानी शूद्रों में साँठ-साँठ, मेल-मिलाप हो और उन दोनों में गहरी पहचान बने, इससे पहले ही बलि राजा के अनुयायी उपदेशकों और अंग्रेज सरकार को इस देश से ही भगा देने के इरादे से कई हथकंडे अपनाए। कई ब्राह्मणों ने अपनी खानदानी पाखंडी (वेद) विद्या कि मदद से अज्ञानी शूद्रों को उपदेश देना शुरू कर दिया, जिससे उनके मन में अंग्रेज सरकार के प्रति घृणा और नफरत की भावना जाग जाए। लेकिन दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मणों ने विद्या प्राप्त की और उसके माध्यम से ब्राह्मणों के कुछ लोग बाबू, क्लर्क हुए और अन्य अन्य सरकारी सेवाओं में गए। इस तरह से ब्राह्मण लोग कई प्रकार का सरकारी काम अपना कर सभी प्रकार की सरकारी नौकरियों में पहुँचे। अंग्रेजों का सरकारी या घरेलू ऐसा एक भी काम नहीं है जहाँ ब्राह्मण न पहुँचे हों।