गुलामगीरी / भाग-14 / जोतीराव गोविंदराव फुले
[यूरोपियन कर्मचारियों का निष्क्रिय बनना, सामंतों (ब्राह्मण खोत) का वर्चस्व, पेंशन ले कर सरकारी नौकरी से मुक्त हुए यूरोपियन कर्मचारियों द्वारा सरकार के दरबार में गाँव-गाँव की हकीकत बताए जाने की आवश्यकता, धर्म और जाति के अहंकार आदि के संबंध में]
धोंडीराव : तात, यदि इस प्रकार का अर्थ सभी सरकारी विभागों के ब्राह्मण कर्मचारियों का वर्चस्व होने की वजह से हो रहा हो, तब यूरोपियन कलेक्टर वहाँ बैठ कर क्या कर रहे हैं? वे ब्राह्मणों की लुच्चागीरी के संबंध में सरकार को रिपोर्ट क्यों नहीं कर रहे हैं?
जोतीराव : अरे, इन ब्राह्मण कर्मचारियों के इस रवैये के कारण उनकी टेबल पर इतना काम पड़ा हुआ रहता है कि वे लोग उसमें कुछ जरूरी काम कर लेते हैं? केवल मराठी कागजातों पर दस्तखत करते-करते उनकी नाक में दम आ जाता है। इसलिए उन बेचारों को इन तमाम अनर्थों की खोज-बीन करके उस संबंध में सरकार को रिपोर्ट करने के लिए समय भी कहाँ हैं? इतना सब होने पर भी, मैं यह सुन रहा हूँ कि कोंकण के अधिकांश दयालु यूरोपियन कलेक्टरों ने अज्ञानी शूद्रों पर ब्राह्मण जमींदारों (खोत) [28] की ओर से जो जुल्म ढाए जा रहे हैं, उन्हें समाप्त करने के लिए अज्ञानी शूद्रों के पक्ष में स्वयं ब्राह्मण जमीदारों के (खोत) प्रतिवादी हो कर वे सरकार में उस संबंध में प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इसी समय सभी ब्राह्मण जमीदारों ने (खोत) अमेरिकी स्लेव्ह (गुलाम) होल्डर का अनुकरण करते हुए अपने मतलबी धर्म की सहायता से अज्ञानी, अनपढ़ शूद्रों में सरकार के विरोध में गलत-सलत बातें प्रचलित कीं। इसकी वजह से अधिकांश अज्ञानी शूद्रों ने यूरोपियन कलेक्टरों के विरोध मं संघर्ष करने की तैयारी की। उन्होंने सरकार को कहा कि हम लोगों पर ब्राह्मण जमीदारों का (खोत) जो अधिकार है, उसको वैसे ही रहने दिया जाए। यहाँ के ब्राह्मण जमीदारों ने अज्ञानी, अनपढ़ शूद्रों को शैतानों की तरह अपनी मुठ्ठी में रखा और अपनी इस भोली-भाली सरकार को अज्ञानी, अनपढ़ शूद्रों के विरोध में मानसिक रुप में खड़ा कर दिया। ब्राह्मण खोतों की इस तरह की चालबाजी की वजह से उस परहितकारी यूरोपियन कलेक्टर पर किस तरह की स्थिति गुजर रही है, वह देखिए।
धोंडीराव : इस तरह अज्ञानी शूद्र ब्राह्मणों के बहकावे में आ कर अपना चारों ओर से नुकसान कर लेते हैं, यह अच्छी बात नहीं है। इसी तरह से आगे किसी समय उन्होंने ब्राह्मणों के बहकावे में आ कर सरकार के विरोध में अपना हाथ खड़ा किया तब उनकी बड़ी हानि होगी, क्योंकि शूद्रों को ब्राह्मण-पंडित-पुरोहितों की दासता से मुक्त होने का इससे अच्छा मौका पुन: प्राप्त होना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए शूद्रों के हाथ से इस तरह का अनर्थ न हो, इसलिए आपको कुछ उपाय सूझ रहे हों, तो एक बार जा कर अपनी दयालु सरकार को समझा कर देखिए, क्योंकि अज्ञानी अनपढ़ शूद्रों को बताने से कोई फायदा नहीं। यदि इसके उपरांत भी शूद्र समाज के लोग मूर्ख के मूर्ख ही बने रहना चाहते हैं तो उसके लिए आप भी क्या करेंगे?
जोतीराव : इसके लिए उपाय के तौर पर मेरा यह भी कहना नहीं है कि अपनी दयालु सरकार को सबसे पहले ब्राह्मण समाज की (जन) संख्या के अनुपात में सभी विभागों में ब्राह्मण कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करनी चाहिए, लेकिन मेरा कहना यह है कि यदि उसी अनुपात में शेष सभी जातियों के कर्मचारियों न मिलते हों तो सरकार को चाहिए कि वह उनके स्थान पर केवल यूरोपियन कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करे। मेरे कहने का मतलब यह है कि फिर सभी ब्राह्मण कर्मचारियों को सरकार और अज्ञानी शूद्रों का नुकसान करने का मौका भी नहीं मिलेगा। दूसरी बात यह है कि सरकार को केवल उन यूरोपियन कलेक्टरों को, जिन्हें अच्छी तरह से महाराष्ट्र भाषा (मराठी भाषा) बोलना आता है, उन सभी को उम्र भर के लिए पेंशन दे कर वहीं तमाम गाँव-खेड़ों में रहनेवाले अज्ञानी, अनपढ़ डरपोक और ब्राह्मण-पंडित-पुरोहितों के हाथ के खिलौंने बने हुए शूद्रों में मिल-जुल कर रहने के लिए प्रेरित करना चाहिए और फिर उन्हें सभी ब्राह्मण कुलकर्णी आदि कर्मचारियों की चालाकी पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। पेंशन प्राप्त आदि अधिकारियों के द्वारा हमेशा वहाँ की छोटी-मोटी गतिविधियों की रिपोर्ट मँगवानी चाहिए। इसका परिणाम यह होगा कि वहाँ के सरकारी शिक्षा विभाग के ब्राह्मण कर्मचारियों की लुभावनी चालाकी का तो पर्दाफाश हो ही जाएगा, साथ ही पिछले कुछ दिनों में सारे शिक्षा विभाग की जो भी दुर्दशा हुई है, उसका भी पूरी तरह से बंदोबस्त हो जाएगा। इस तरह तमाम अज्ञानी शोषित शूद्रों को यथार्थ का पता चलते ही वे लोग इन ब्राह्मण पुरोहितों के कुतर्की अधिकारों का पूरी तरह से निषेध करेंगे और ये अज्ञानी शूद्र लोग अपनी अंग्रेजी सरकार के उपकारों को कभी भूलेंगे नहीं, इस बात का मुझे पूरा विश्वास है। क्योंकि हम शूद्रों के गले में सदियों से इन ब्राह्मण-पंडित-पुरोहितों द्वारा बाँधी गई गुलामी की जंजीरे जल्दी ही किसी के द्वारा खुल जाना संभव नहीं है।
धोंडीराव : तात, फिर आप अपने बचपन में अखाड़े खेलने और निशाने पर गोली दागने की कसरत किसलिए कर रहे थे?
जोतीराव : अपनी दयालु अंग्रेज सरकार को मार भगाने के लिए।
धोंडीराव : तात, लेकिन आपने इस तरह की दुष्ट मसलहत कहाँ से सीखी?
जोतीराव : दो-चार पढ़े-लिखे, सुधरे हुए ब्राह्मण विद्बानों से ले कर आज के सुधारणावादी (लेकिन घर में चूल्हे के पास) ब्राह्मणों तक सभी लोग इसका इसका कारण यह बताते हैं कि 'अपने में ही अधिकांश जाति के लोग अनादि सिद्ध धर्म के बारे में अज्ञानी हैं। इसलिए अपने सभी लोगों की एकता समाप्त हो गई है। इसी की वजह से अपने ही कई प्रकार के जाति भेद पैदा हो गए। अपने में ही इस तरह का बिखराव आने की वजह से अपना राजकाज अंग्रेजों के हाथ में चला गया और वे लोग अब हमारे अज्ञानी भोले-भाले लोगों का अपने देश के प्रति जो अभिमान है, वह समाप्त हो, इसलिए उनको अपने मतलबी धर्म का आधार दिखा कर अपने गुरुभाई (धर्मबंधु) बना रहे हैं। इसलिए हम सभी जाति के लोगों में अपनी एकता कायम होनी चाहिए। इसके बगैर इन अंग्रेज लोगों को अपने देश से निकाल बाहर करने की शक्ति हम लोगों में आएगी नहीं और इस तरह किए बगैर हम लोगों का अमेरिकी, फ्रांस और रशियन लोगों की बराबरी में आना कदापि संभव नहीं है।' यह उन्होंने मुझे टॉम्स पेन्स [29] आदि ग्रंथकारों की किताबों के कई वाक्य उद्धरण स्वरुप दे कर सिद्ध करके दिखाया है। इसी की वजह से इस तरह से मूर्खतापूर्ण आचार कुछ दिनों तक अपने बचपन में करता रहा था। लेकिन बाद में उन्हीं ग्रंथों के सहारे गंभीर रुप से सोचने लगा, तब कहीं इन पढ़े-लिखे ब्राह्मणों से मतलबी मलहमपट्टी का सही अर्थ मेरे ध्यान में आया। वही सही अर्थ यह है कि 'हम सभी शूद्र लोग अंग्रेजों के गुरुभाई (धर्मबंधु) होते ही उनके पूर्वजों के तमाम ग्रंथों का (धर्मशास्त्रों) का निषेध करेंगे और उससे उनके जाति अहंकार को ठेस पहुँचेगी। इस तरह का उसका तुरंत परिणाम यह होगा कि उनके हरामी लोगों को हम शूद्रों के श्रम की रोटियाँ खाने को नहीं मिलेंगी। इस प्रकार ब्रह्मा के बाप को भी यह कहने कि हिम्मत नहीं होगी कि शूद्रों से ब्राह्मण ऊँचे वर्ण के हैं। अरे, जिन लोगों के पूर्वजों को ही देशाभिमान शब्द बिलकुल मालूम नहीं था, उन लोगों ने उस शब्द का इस तरह से अर्थ किया, इसके लिए हमको बहुत आश्चर्य करने की आवशयकता नहीं है। अंग्रेज लोगों ने वास्तव में बलि राजा के आने के पहले देशाभिमान शब्द का अर्थ ग्रीक लोगों से पढ़ा था। लेकिन बाद में जब वे उस बलि राजा के अनुयायी हुए, तब से उनमें यह सद्गुण इतना बढ़ा कि उनकी बराबरी अन्य किसी भी धर्म का स्वाभिमानी व्यक्ति नहीं कर सकता था। यदि उनको देखना ही है तो अमेरिका के बलि राजा के मतानुयायी जॉर्ज वाशिंगटन की तुलना (योग्यता) का आदमी देखना चाहिए। यदि ऐसे महापुरुष की योग्यता आदमी देखना संभव न हो तो तब उन्हें फ्रांस के बलि राजा के मतानुयायी लफेटे की योग्यता का आदमी देखना चाहिए। अरे, यदि इन पढ़े-लिखे विद्वानों के पूर्वजों को स्वदेशाभिमान वास्तव में मालूम होता, तो अपनी किताबों में, अपने धर्मशास्त्रों में अपने ही देशबंधुओं (शूद्रों) को पशु से भी नीच समझने के बारे में लेख नही लिखे होते। वे ब्राह्मण-पंडित-पुरोहित वर्ग के लोग मैला खानेवाले पशु का गोमूत्र पी कर पवित्र होते हैं, लेकिन शूद्रों के हाथ का साफ-सुथरा झरने का पानी पीने से अपने-आपको अपवित्र समझते हैं। देखिए, इन पढ़े-लिखे विद्वानों के पूर्वजों द्वारा क्रिश्चियन लोगों के पवित्र देशाभिमान के विरुद्ध उपस्थित किया हुआ अपवित्र देशाभिमान! हमको यदि किसी की बदौलत समझा होगा, तो वह अंग्रेजों की बदौलत। और ऐसे परोपकारी लोगों को मतलब, हम सबी को ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त करनेवाले लोगों को, अपने देश से भगा देने की उन ब्राह्मणों की कसरत में ऐसा कौन है जो शामिल होना चाहेगा? अरे, ऐसा कौन मूर्ख आदमी है जो अपने रक्षकों के विरुद्ध ही अपना हाथ उठाने की हिम्मत करेगा? लेकिन मैं तुमको इतना स्पष्ट रुप से बता देना चाहता हूँ कि अंग्रेज लोग आज हैं, कल नहीं रहेंगे। वे लोग हमेशा-हमेशा के लिए हम लोगों का साथ देंगे, ऐसी बात नहीं है। इसलिए जब तक उन अंग्रेज लोगों की सत्ता इस देश में है, तब तक हम सभी शूद्र लोगों को जितनी जल्दी हो सकी उतनी जल्दी ब्राह्मण-पंडित-पुरोहितों की पंरपरागत (धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक) गुलामी से मुक्त होना चाहिए, और इसी में हम सभी की बुद्धिमानी है। भगवान ने एक बार शूद्रों पर दया करके अंग्रेज बहादुरों के हाथ से ब्राह्मण नाना साहेब पेशवा के विद्रोह को चकनाचूर करवा दिया, यह अच्छा हुआ, वरना उन शादावल के लिंग के इर्द-गिर्द रुद्र करनेवाले पढ़े-लिखे ब्राह्मणों ने आज तक कई महारों को ब्राह्मणी ढंग की धोती पहनने की वजह से या कीर्तनों में संस्कृत श्लोकों का पठन-पाठन करने की वजह से काला पानी दिखा दिया होता, इसमें कोई संदेह नहीं।