गूँज / सुकेश साहनी
"डार्लिंग! दिल अभी भरा नहीं।" उसने दोबारा लता को बाहों में समेटे हुए शरारत से कहा।
"पागल हुए हो क्या! अब विक्की किसी भी समय दरवाज़ा खुलवाने की ज़िद कर सकता है।" अपने कपड़े ठीक करते हुए लता ने बहुत प्यार से कहा, "मैं तुम्हारे लिए गर्म-गर्म कॉफी बनाकर लाती हूँ।"
बरामदे में विक्की पढ़ रहा था, 'क' से कबूतर 'ख' ... से खरगोश 'ग' ...से। तभी उसे लगा रवि की माला चढ़ी फोटो में कहीं कोई हरकत हुई है।
उसने ध्यान से देखा-कहीं कुछ भी नहीं था। फिर भी उसके मुँह का ज़ायका बिगड़ गया।
"कॉफी।"
उसने अपनी प्रेमिका के हाथ से कप ले लिया। कप से उठती हुई भाप को एकटक देखते हुए, वह दिन उसकी आँखों के आगे घूम गया... कुएँ की जगत पर रवि और लता बैठे हैं, वह रवि के पीछे बिल्कुल तैयार खड़ा है। लता रवि को बातों में उलझाने की कोशिश कर रही है। रवि को कुएँ में धकेलते ही, उसका और लता का ध्यान एक साथ अपनी परछाइयों की ओर चला गया था और लता के मुँह से तो आश्चर्यभरी चीख निकल गई थी। डूबते हुए सूरज की ओर इन तीनों की पीठ थी। इन तीनों की लंबी-लंबी परछाइयाँ उनके सामने फैली हुई थीं। धक्का दिए जाते समय, रवि एकटक उन परछाइयों को देख रहा था। उसने साफ़ देख लिया था कि वह उसे कुएँ में धकेलने ही वाला है, फिर भी उसने अपने बचाव की कोई कोशिश नहीं की थी। बिना चीखे-चिल्लाए किसी बेजान वस्तु की तरह वह कुएँ में जा गिरा था... छपाक्, फिर पानी में हल्की बुदबुदाहट और फिर गहरे कुएँ से उठती छपाक् की प्रतिध्वनि।
"छपाक्" -उसे लगा कप में कुछ गिरा है।
"तुमने कुछ सुना?" उसने लता से पूछा।
वह जल्दी से उसके नज़दीक आई।
"नहीं तो।"
"अभी-अभी मेरी कॉफी में कुछ गिरा है, छपाक् की आवाज़ हुई है...-" कमाल है। ज़रूर कुछ गिरा है। "
उसके माथे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूँदें चमकने लगी थीं।
"क्या हुआ है तुम्हें? कहीं कुछ नहीं गिरा है।" लता भी घबरा गई। उससे कॉफी पी नहीं गई।
"इसे यहाँ से हटा दो।" उसने रवि के फोटो को घूरते हुए लता से कहा।
दस्वाज़ा खोलकर बैडरूम से बाहर आते ही उसकी नज़रें विक्की से मिलीं। पहली बार उसे लगा बच्चे की आँखें बिल्कुल अपने पिता जैसी हैं।
विक्की पढ़ रहा था... 'क' से कबूतर... 'ग' से गमला। बिच्छू के डंक—सी दो आँखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह उससे नज़रें मिलाए बगैर तेजी से बाहर के दरवाज़े की ओर लपका। उसे लगा अब विक्की ज़ोर-ज़ोर से कह रहा है... 'क'
से कमीना... 'क' से... कातिल!
[ रैनिक ट्रिब्यून, 4 मार्च, 1992]