गृहलक्ष्मी का उल्लू / ललित शर्मा
सभी देवताओं एवं देवियों के पास निजी वाहन हैं, वाहन के विषय में सबकी अपनी-अपनी पसंद है। किसी को गरुड़, किसी को भैंसा, किसी को शेर, किसी को चूहा, किसी को नंदी बैल, किसी को मोर, किसी को एरावत पसंद है। संसार को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है, धन की देवी लक्ष्मी को उलूक वाहन पसंद आया। तब से उल्लू की प्रतिष्ठा में चार चाँद लग गए। उल्लू धन की देवी के सानिध्य में रहकर प्रतिष्ठा पा रहा है। उल्लू के साथ उल्लू का पट्ठा और फ़िर उसका पट्ठा अर्थात पूरा खानदान ही धन तक पहुंचने का स्रोत बन गया। धन तो हर किसी को चाहिए।
किसी बड़े मंत्री-संत्री का चालक महत्वपूर्ण होता है, सबसे नजदीक और विश्वसनीय वही होता है। अगर किसी को कोई काम हो मंत्री-संत्री से तो उस तक पहुंचने का उपयुक्त साधन निश्चित ही चालक है। अगर किस्मत ने साथ दिया तो बड़े-बड़े कार्य भी चालक के माध्यम से सध जाता है। लक्ष्मी जी का वाहन स्वचालित है उसके लिए चालक की आवश्यकता नहीं। इसलिए विचार करके जब से लक्ष्मी ने उल्लू को अपना वाहन बनाया। तब से उल्लू भी उलूकनाथ देव हो गए। चतुर देव उल्लू बनाकर अपना मतलब साध रहे हैं। लक्ष्मी स्तूति के साथ उलूक स्तुति भी हो रही है।
लक्ष्मी को उल्लू पसंद आने का प्रमुख कारण उसका उल्लू होना है। प्रत्येक गृहलक्ष्मी को स्वचालित उल्लू ही पसंद है, जो उंगली के इशारे पर नाचता फ़िरे। अलाद्दीन के चिराग के जिन्न की तरह "क्या हुक्म है मेरे आका" की तर्ज पर हाजिर रहे। गृहलक्ष्मी चाहती है कि उसका उल्लू सिर्फ़ उसके लिए ही उल्लू हो, पर संसार के लिए न हो। उल्लू के गुण उसे गृहलक्ष्मी के प्रिय बनाते हैं।
सिर्फ़ सुनने वाले और जवाब न देने वाले उल्लू की बाजार में मांग अधिक है। बाजार में उल्लुओं की लाईन लगी है, दीवाली डिस्काऊंट पर मनचाहा उल्लू किश्त में भी बुक कराया जा सकता है, लेकिन उल्लू की डिलवरी देव उठनी एकादशी के बाद प्रारंभ होती है। क्योंकि एकादशी के पूर्व सभी साक्षी देव निद्रा में होते हैं और साक्ष्य होश-ओ-हवास में लिया-दिया जाता है। ताकि सनद रहे वक्त जरुरत पर काम आवे। उल्लू के कार्यों को देखते हुए कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए इसकी पूजा का विधान भी बनाया गया है। साल भर पूजा न हो पर करवा चौथ के दिन सभी गृहलक्ष्मियाँ अपने-अपने उल्लू की दीर्घायु की कामना करते हुए पूजा कर लेती हैं। इससे उल्लू भी निहाल हो जाते हैं और गृहलक्ष्मी भी प्रसन्न, चलो एक बार फ़िर उल्लू को खुश करके उल्लू बनाया।
कुछ उल्लू बने बनाए होते हैं, कुछ बनाने पड़ते हैं। सूर्योदय होते ही उल्लू बनने और बनाने का सिलसिला प्रति दिन शुरु हो जाता है। दूध वाला पानी मिला कर ग्राहक को उल्लू बना जाता है, जब तक दूध में से मेंढक निकल कर बाहर नहीं आए तब तक पता नहीं चलता कि दूध वाला उल्लू बना गया। काम वाली बाई डुबकी मार जाती है तो गृहलक्ष्मी बड़बड़ाती है कि आज फ़िर उल्लू बना गयी। दफ़्तर में बाबू सोचता है कि साहब एक दो फ़ाईलों पर बिना पढे ही साईन कर देते तो कुछ नगद का इंतजाम हो जाता। बस कंडक्टर को सवारी उल्लू बनाने के चक्कर में रहती है तो दुकानदार ग्राहक को डुप्लीकेट सामान थमा कर। ग्राहक दुकानदार को चूरन नोट देकर उल्लू बनाने की कोशिश में रहता है। लड़का बाप को उल्लू बना जाता है, स्कूल में फ़ंक्शन के नाम पर पैसे वसूल कर दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा होता है। लड़की सहेली के घर जाने के नाम पर मुंह पर स्कार्फ़ बांध कर अपने ब्वायफ़्रेंड के साथ लांग ड्राईव पर निकल जाती है। सब्जी वाला कम तोल कर ग्राहक को उल्लू बनाता है तो ग्राहक भी सब्जी वाले को फ़टा नोट पकड़ा कर उल्लू बनाने के जुगाड़ में रहता है।
उल्लू बनना बनाना सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुछ उल्लू होने के स्वाभाविक गुणों के कारण उच्च पदों पर विराजमान हैं। अगर उल्लूपना नहीं होता तो उनकी सात पुश्तें भी कुर्सी पर बैठना तो दूर, उसके नजदीक भी नहीं फ़टक सकती थी। राजनीतिज्ञों की भी प्रिय पसंद उल्लू ही हैं। जो भी आदेश मिले पार्टी का, उसे शिरोधार्य करके काम में लग जाओ। अगर किसी बिना तनख्वाह के उल्लू ने उल्लूपना छोड़कर बंदा बनने की कोशिश की तो उसको ऐसा वनवास दिया जाता है कि वापसी की सम्भावनाएं ही खत्म हो जाती हैं।
उल्लू बनने के लिए लोग तैयार खड़े हैं बस बनाने वाला चाहिए। देश की जनता तो 65 बरस से उल्लू बन रही है, मंहगाई कम करने का वादा करके 10 गुनी मंहगाई बढा दी जाती है। उल्लू बनाकर नेता अपना घर भर रहे हैं, सरकार भी दो चार नेताओं को जेल में डाल कर जनता को उल्लू बना रही है। जनता उल्लू जैसे आँखे फ़ाड़ कर देख रही है दिल्ली की तरफ़, इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं है। उल्लू बनना जो किस्मत में लिखा है।
कोई उल्लू बनाने में कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहता। विभिन्न उत्पादों के उल्लू बनाने वाले विज्ञापन अखबारों से लेकर चौक चौराहे पर लगे हुए हैं। दीवाली के अवसर पर लोग उल्लू बनने सज-धज के बाजार में निकलते हैं, आधे से अधिक लोगों को विज्ञापन ही घर से बाहर खरीदी के लिए निकालते हैं। कभी जरुरत होने पर ही सामान खरीदे जाते थे, अब गृहलक्ष्मी उल्लू को उल्लू बनाने लिए कुछ भी खरीद लाती है और एक के साथ एक या दो सामान फ़्री में मिलता हो तो फ़िर क्या कहने। रुमाल की जरुरत हो तो फ़्री में पाने के लिए साड़ी खरीद लो, बैग की जरुरत हो तो सूटकेश खरीद लो। टूथ ब्रश की जरुरत होतो, पेस्ट खरीद लो, कैमरे की जरुरत हो तो लैपटॉप खरीद लो, बेचारा उल्लू क्या करेगा? बस आँखे फ़ाड़-फ़ाड़ कर देखेगा। बर्दास्त से बाहर हो जाएगा तो फ़ेसबुक पर दो लाईन लिख कर भड़ास निकाल लेगा। कोई कितना भी उल्लू बनने से बचना चाहे पर लेकिन लक्ष्मी की कृपा से उल्लू बनने और बनाने का सिलसिला जारी रहेगा।