गैस रिसाव त्रासदी के साइड इफेक्ट्स / जयप्रकाश चौकसे

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गैस रिसाव त्रासदी के साइड इफेक्ट्स
प्रकाशन तिथि : 09 मई 2020


विशाखापट्टनम के रासायनिक कारखाने में गैस रिसाव से बड़ी दुर्घटना घटी है। जो सन् 1984 की भोपाल गैस त्रासदी की कड़वी यादों को ताजा कर देती है। इस तरह के कारखानों में बचाव प्रणाली होती है कि गैस रिसाव के समय पानी के फव्वारे चालू हो जाते हैं और हानि नियंत्रित हो जाती है। बचाव संयंत्र का प्रतिदिन निरीक्षण नहीं किया जाता और इस चूक से दुर्घटना घट जाती है। इसलिए फायर ब्रिगेड नियमित ड्रेस रिहर्सल करता है। शेक्सपियर का कथन याद आता है कि ‘ट्रेजडी ऑफ एरर्स, गॉड फॉर, द एनिमी लाइस विदिन द मैन’ अर्थात त्रासदी का कारण प्राय: मानवीय गफलत होती है, जिसके लिए ऊपर वाले को दोष देना अनुचित है। भोपाल गैस त्रासदी के समय कारखाने के मालिक को तत्कालीन मुख्यमंत्री के विभाग से सुरक्षित जगह भेज दिया गया था। व्यवस्थाएं हमेशा पूंजीवाद की सहायक रही हैं। जब विदेशी कंपनी ने मुआवजा देना स्वीकार किया तब रिश्वत लेकर कम मुआवजे के दस्तावेज बनाए गए। विदेशियों को हैरानी थी कि इस तरह के प्रकरण में भी मनुष्य की कीमत कम आंकी जाती है? भोपाल में अवाम नीचे नगर में रहता है। मंत्री और अफसर ऊंचे नगर में रहते हैं। गैस रिसाव निचले स्तर पर रहने वालों के लिए घातक सिद्ध हुआ। बिपाशा बसु अभिनीत मधुर भंडारकर की फिल्म ‘कॉर्पोरेट’ में दिखाया गया है कि औद्योगिक घराने जासूस तंत्र भी रचते हैं। एक प्रोडक्ट को बाजार में लाने से पहले ही प्रतिद्वंद्वी उद्योग उसी तरह का माल बाजार में भेज देता है। फिल्म ‘कॉर्पोरेट’ में बिपाशा बसु अभिनीत पात्र प्रतिद्वंद्वी के अफसर को शराब पिलाकर, शबाब की झलक दिखाकर उसके कम्प्यूटर का डाटा चोरी कर लेती है। फिल्म के क्लाइमैक्स में कंपनी दावा जीत जाती है कि उनका प्रोडक्ट डिज़ाइन चोरी कर लिया गया है। बिपाशा बसु के मालिक सारे कांड का भांडा बिपाशा बसु के सिर पर फोड़ देते हैं और स्वयं बच निकल जाते हैं। ज्ञातव्य है कि कुंदन शाह की ‘जाने भी दो यारों’ में भी ऐसा ही होता है।

इस घटना में एक पेंच यह भी था कि बिपाशा बसु और अन्य कंपनी का अफसर कभी एक-दूसरे से प्रेम करते थे। प्रेमी अपनी भूतपूर्व प्रेमिका के खिलाफ गवाही देता है। दिलीप कुमार ने भी निर्माता का पक्ष लेते हुए मधुबाला के खिलाफ गवाही दी थी। जाने क्यों हमारे बहुबली सुपर सितारे हमेशा व्यवस्था के पक्ष में खड़े रहते हैं, जबकि उनकी स्क्रीन छवि भ्रष्ट व्यवस्था को तोड़ने वाले नायक की रहती है। यह सिलसिला आज भी जारी है।

जंगल के शेर और सर्कस के शेर में भारी अंतर होता है। जुड़वां जन्मे शेरों की रोचक फिल्म का नाम ‘टू ब्रदर्स’ है। ज्ञातव्य है कि अमेरिका में जो मजदूर अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने और वेतन वृद्धि को लेकर हड़ताल कर रहे थे, उन पर गोली चलाई जाती है। मामला गंभीर हो जाता है। सीनेटर वेगनर ने बीच-बचाव किया और मजदूरों को यूनियन बनाने की इजाजत दिला दी। सीनेटर वेगनर ने कारखाने के मालिकों को आश्वासन दिया कि मजदूर यूनियन के चुनाव में ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि उनके अपने लोग ही यूनियन का चुनाव जीतें। ऋषिकेश मुखर्जी की ‘बैकट’ से प्रेरित फिल्म ‘नमक हराम’ में भी इसी पैंतरे का इस्तेमाल दिखाया गया है। पूंजीवाद की महाभारत समझे जाने वाले मारियो पुजो की ‘गॉडफादर’ में भी यह कहा गया है कि औद्योगिक घरानों की नीव में कंकाल गढ़े होते हैं।

गुरु दत्त की धर्मेंद्र और तनुजा अभिनीत फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ का विषय एक कारखाने की मालकिन और मजदूर यूनियन के नेता की प्रेम कहानी से प्रेरित है। गुरु दत्त की इस फिल्म को उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई ने पूरा किया था। सलीम-जावेद की ‘दीवार’ में भी नायक के पिता मजदूर नेता थे और उन्हें फंसाया गया था। मजदूर अपनी पीठ पर उद्योग खड़े करता है। उसकी लहूलुहान पीठ पर मालिक का हंटर प्राय: कहर ढाता है। ज्ञातव्य है कि भोपाल गैस त्रासदी पर किताबें लिखी गई हैं। डाॅक्यू ड्रामा भी बनाए गए हैं। कुछ लोग त्रासदी प्रेरित किताबें और फिल्में बनाने के मौके को चूकते नहीं। इस तरह डिजास्टर साहित्य और सिनेमा भी रचा जाता है। भविष्य में कोरोना कालखंड प्रेरित किताबें लिखी जाएंगी और फिल्में भी बनेंगी, जिन्हें हम पॉपकॉर्न खाते हुए देखेंगे।