गोदावरी / लावण्या नायडू

Gadya Kosh से
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ट्रेन अपनी तेज़ गति से चल रही थी। मध्यरात्रि कोई 1 बजे सारे यात्री सुकून की नींद सो रहे थे। ट्रेन गोदावरी नदी को पार करने को आतुर अपने वेग में बढ़ चली, ठीक उसी वेग में वह भी ट्रेन के दरवाज़े के पास आ खड़े हुए जैसे उन्हें भी गोदावरी नदी के दर्शन करने हों पर ये क्या वह तो गोदावरी की गोद में समा जाने को व्याकुल थे।

"कितने साल हो गये आपकी शादी को?"

पीछे से आते हुए इस सवाल ने उन्हें जैसे किसी गहरी निद्रा से जगाया हो, वह दरवाज़े से झटके से पीछे आ गये और टकरा गये पास में लगी वॉशबेसिन से।

बिना उत्तर दिये वह अपनी सीट की तरफ बढ़ चले।

ट्रेन भी अपनी रफ़्तार को कम कर ब्रिज के शुरू होने से पहले ही रुक गई।

वो फिर हिम्मत करके दरवाज़े पर आये, इधर उधर नज़र दौड़ाई। अपने माथे के पसीने को बार-बार पोछते हुए अपने मोबाइल को देख रहे थे। फिर उसमें कुछ टाइप करने लगे। अचानक पीछे से किसी ने आकर उनसे मोबाइल छीन कर उनका टाइप किया मैसेज ज़ोर से पढ़ने लगा

"प्रिय नंदिनी, ये मेरा आखरी संदेश है तुम्हारे लिये। जबतक तुम सुबह उठकर इसे पढ़ोगी तबतक मैं गोदावरी की गोद में हमेशा के लिये सो चुका होउंगा। मुझसे बहुत बड़ी गलती"

लड़का उन्हें संदेह भरी निगाहों से देखने लगा, फिर बोला "गलती? आपको देखकर तो लगता है आप 55-60 साल के होंगे और इस उम्र में गलती! क्या अंकल?"

"तुम कौन हो? बड़े बदतमीज़ लग रहे हो, माँ बाप ने यही संस्कार दिये हैं?" कहते हुए उन्होंने अपना मोबाइल वापस उस लड़के के हाथ से छीन लिया और तेज़ी से ट्रेन के डिब्बे के दुसरे दरवाज़े की तरफ चल दिये।

"जो भी गलती हो उसकी माफी मांग लिजिये"

"तुम होते कौन हो मुझे सलाह देने वाले और जानते क्या हो मेरे बारे में?" कहते हुए उनकी सांस तेज़ चल रही थी।

"कोई गलती आपके जिंदगी से बढ़कर नहीं होगी इतना जरुर जानता हूँ" लड़के ने बड़े ही सरल लहजे में कहा।

"कुछ नहीं जानते तुम, चले जाओ यहाँ से। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे।"

"ठीक है आपकी मर्जी पर अभी ट्रेन रुकी हुई है, नदी भी दिख नहीं रही तो तबतक ‍आप ही बता दीजिये की आपने क्या गलती की?" लड़के की वजह जानने की उत्सुकता साफ छलक रही थी।

"हे भगवान क्या मुसीबत है! देखो भगवान के लिये मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और जाओ यहाँ से।"

"अंकल इतनी देर में तो आप कहानी बता दिये होते। जाने दो छोड़ो जा रहा हूँ मैं" बोलकर वह वहाँ से चल दिया।

उस बुजुर्ग व्यक्ति ने फिर अपना फोन निकलकर टाइप करना शुरू किया। बार-बार फोन पर किसी का कॉल आ रहा था जिसे वह काटे जा रहे थे।

कुछ देर बाद फिर वह लड़का वापस आया और फिर उसने मोबाइल छीन कर मैसेज पढ़ने लगा। मैसेज पढ़कर उसने मोबाइल वापस उस बुजुर्ग व्यक्ति को दिया और पसीना पोछते हुए वह दरवाज़े पर बैठ गया।

"देखा तुम्हें ही पसीना छूटने लगा तो मेरी क्या हालत हो रही होगी!"

"सही कहा अंकल, बैठो बैठो" बोलकर उसने उन्हें अपने साथ दरवाज़े पर बिठा लिया।

ट्रेन अब चलने लगी।

"एक बात बताइये ये सब हुआ कैसे?"

"क्या बताउं बेटा, सब मेरी ही गलती है। पता नहीं कौनसे जन्म का पाप है। मजबूरी नहीं होती तो इतने पैसों का जोखिम मैं कभी नहीं उठाता। कल मेरे दोस्त की बेटी का ऑपरेशन है, क्या मुंह दिखाउं उसे?" बोलते हुए वह रोने लगे।

उनका फोन फिर बजने लगा।

"मेरा बेटा फोन किये जा रहा है, जबसे मुझे ट्रेन में बिठाकर गया है थोड़ी-थोड़ी देर में फोन करके पूछ रहा है मैं ठीक हूँ ना। उसके पूछने का मतलब होगा पैसों का बैग ठीक है ना। वह तो बहुत मना कर रहा था पैसे ऐसे ले जाने से, कहा भी था उसने की वह ऑनलाइन ट्रांसफर कर देगा" कहते हुए वह फिर रोने लगे

"तो फिर आप पैसे क्यों अपने साथ ले आये?"

"मेरे बचपन का दोस्त महेश उसकी बेटी का कल सुबह बहुत बड़ा ऑपरेशन है। महेश ने मुझे मेरे अच्छे बुरे वक़्त में कभी अकेला नहीं छोड़ा, मेरे बेटे की पढ़ाई और नौकरी लगाने में भी उसने बहुत मदद की। ऑपरेशन के लिये जितनी रकम चाहिए थी उसका कुछ वह बंदोबस्त कर पाया और अब उसके लिये खड़े रहने की बारी मेरी थी। वह तो अपना घर बेचने निकला था मैंने उसे रोका और अपने बेटे से मदद मांगी। वह बेचारा भी आज शाम ही पैसों का इंतजाम कर पाया। अब ना बैंक में डालने का समय था ना कल सुबह बैंक से निकालने का वक़्त। सुबह 6 बजे तक अगर पैसे जमा नहीं हुए तो ऑपरेशन नहीं हो पायेगा फिर पता नहीं कब अगली तारीख़ मिले और तब तक उसकी बेटी" बोलते हुए वह फिर रो पड़े।

ट्रेन फिर रुक गई।

"अरे भैया ये ट्रेन इतनी क्यों रुक रही है?" पीछे से किसी सहयात्री की आवाज़ आयी

"पता नहीं भैया, शायद गोदावरी माँ अभी अपने पास बुलाना नहीं चाहती" बोलते हुए वह बुजुर्ग व्यक्ति की तरफ देखने लगा।

बुजुर्ग व्यक्ति भी प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखने लगे।

"आपने वह बैग आखरी बार कब देखा था?"

"ट्रेन चढ़ने के बाद।"

"आपको यकीन है?"

"हाँ"

"चलिये आपकी सीट पर देखते हैं।"

"मैं दस बार देख चुका हूँ, नहीं है।"

"चलिये तो, उठिये"

दोनों सीट पर पहुँचकर हर तरफ देखने लगे, बुजुर्ग का एक सूटकेस था उसे भी खोलकर देख लिया पर वह बैग नहीं मिली।

"आपके साथ वाली सीट पर कौन बैठा था? क्या वह अभी भी यहीं है?"

"नहीं वह तो दो स्टेशन बाद ही उतर गया। उसके बाद ही मेरे बेटे का फोन आया, मैने उसे कहा सब ठीक है और जब अपने बैग को सहलाने के लिये हाथ टटोला तो पता चला बैग नहीं है"

"तो आपने शोर क्यों नहीं मचाया?"

"मैंने टीटी को बताया, साथ वाले लोग भी हर तरफ ढंढने लगे पर उससे क्या होता! टीटी ने अगले स्टेशन पर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने को कहा है।"

"तो करिये ना शिकायत पुलिस में, वह रिज़र्वेशन लेकर चढ़ा हो तो शायद कोई रास्ता मिल जाये उस तक पहुँचने का।"

"क्या ये सब कल सुबह 6 बजे तक हो जायेगा? नहीं ना, तो मैं किस मुंह से अपने दोस्त के पास जाकर कहूँ की तू अपनी बेटी जो तेरे पत्नी की आखरी निशानी है उसको खोने के लिये तैयार हो जा!"

"और आपकी पत्नी? उनका क्या? उन्हें किस गलती की सजा मिलेगी? वह तो आपके मरने की खबर मिलते ही मर जायेंगी। आपका बेटा जिसने पिता के कहने पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम किया, उसे क्या मिला? कुछ नहीं, उल्टा अपने सिर से पिता का साया भी खो दिया?"

बुजुर्ग अभी भी दुविधा में दिख रहे थे।

लड़का उन्हें उनके मन में उठ रहे सवाल-जवाब के साथ छोड़कर जाने लगा, एक पल पलटकर देखा और कहा "एक और बात अंकल, आपके दोस्त हर अच्छे बुरे में आपके साथ खड़े रहे है और अब बारी आपकी है" बोलकर वह चला गया।

इस अंतर्द्वंद्व के बीच ट्रेन ने अपनी रफ़्तार पकड़ गोदावरी नदी को पार कर लिया था। बुजुर्ग का फोन फिर बजा, इसबार उन्होंने फोन उठा लिया, दुसरे तरफ से आवाज़ आयी ' क्या पापा आप फोन क्यों नहीं उठा रहे थे? आपने पैसों का बैग स्टेशन में गलती से मेरे बैग में डाल दिया था वह ही बताने के लिये रातभर आपको कॉल लगाता रहा पर आपने उठाया ही नहीं और ना ही व्हाट्सएप पर मेरा मैसेज देखा"

"क्या? क्या वह बैग सच में तेरे पास है? तो जब हमारी आखरी बार बात हुई थी तब क्यों नहीं बताया मुझे?"

"पापा मैं तभी घर पहुँचा था, जैसे ही बैग खोला आपका बैग नज़र आया। शायद ट्रेन चलने से पहले मेरे रहते हुए आप बाथरूम जा रहे थे तब ऐहतियात के तौर पर साथ रखे मेरे बैग में डाल दिये और वापस निकालना भूल गये"

"ओह! चलो अच्छा हुआ मैने अभी पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवायी, पर महेश अंकल को पैसे?"

"चिंता मत कीजिये पापा मैं दोस्त के साथ गाड़ी में आ रहा हूँ, आपसे पहले अस्पताल पहुँच जाउंगा"

"पर बेटा तेरे कमर में तो दर्द है और डॉक्टर ने लंबा सफर करने से मना किया है इसलिए तो मुझे आना पड़ा था"

"कोई बात नहीं पापा, अभी श्रुति की जान बचाना जरूरी है और इतने कम समय में मुझे और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।"

"खुश रहो बेटा" बुजुर्ग की आँखों में गर्व और आंसू दोनों थे।

"चलिये अस्पताल में मिलते हैं पापा।"

"आराम से, तुम भी अपना ध्यान रखते हुए पहुँचना बेटा" कहकर फोन रख दिया।

अब बुजुर्ग की निगाह उस नौजवान को ढूँढ रही थी। वह तेजी से दरवाज़े की तरफ बढ़े।

"क्या हुआ अंकल? अब कोई नदी नहीं आने वाली। अब आयेगा आखरी स्टेशन, आपका स्टेशन।"

बुजुर्ग ने उसे गले लगा लिया।

"पैसे मिल गये बेटा और आज मैं जिंदा हूँ तो तुम्हारी वजह से।"

"मैने कहा था ना अंकल गोदावरी माँ इतनी जल्दी नहीं बुलाना चाहती और जिस तरह से आप जाना चाहते थे वैसे तो बिल्कुल नहीं।"

"खुशकिस्मत है तुम्हारे माता पिता, उन्हें तुम जैसा बेटा मिला।"

"सिर्फ माँ, पापा ने ट्रेन से कूदकर अपनी जान देदी थी, वजह आज तक नहीं पता। उनकी जगह ही मुझे नौकरी मिली है रेलवे में" कहते हुए उसने अपने शर्ट से आंसू पोंछे और वहाँ रखी चादर को तय करने लगा।

बुजुर्ग ने उस लड़के के सिर पर हाथ फेरा और भारी मन के साथ अपने सीट पर आकर बैठ गया।