गोपी चंद्र / धनन्जय मिश्र
गोपी चन्द्र रोॅ कथा कोनोॅ काल्पनिक नै छै मतुर एक ऐतिहासिक कथा छेकै। जेना कि विद्वान इतिहासकार बुकानन आरोॅ ग्रियर्सन ने स्वीकार करने छै कि गोपी चन्द्र रोॅ पिता मानिकचन्द्र रोॅ सम्बंध पालवंशी राजा सें छेलै। आरोॅ हौ पालवंशी राजा संभवतः धर्मपाल ही रहै। ग्रियर्सन ने मानिकचन्द्र रोॅ सम्बंध बंगाल सें जोड़ी के हुनका रंगपुर रोॅ बतैने रहै।
बलुक डॉॉ अमरेन्द्र नें हमरा जानकारी देने रहै कि गोपी चन्द्र के पिता मानिकचन्द्र रोॅ सम्बंध पालवंशियों सें जोड़ना तॉ ठीक छै, मतुर हुनको शासन स्थान बंगाल सें दिखाना तर्क सम्मत नै लागै छै। इतिहास साक्षी छै कि पालवंशी राजाओं रोॅ शासन सफलता में भागलपुर के कहलगाँव रोॅ पालवंशी राजा रोॅ खास भूमिका रहै। हौ समय कहलगाँव में बंगाल के प्रशासन रोॅ चलती छेलै जेकरो चलते गोपीचन्द्र केॅ बंगाल रोॅ ऐतिहासिक पात्र दिखलाय देने छेलै। नै तॉ बेसी तर्क सम्मत आरोॅ ऐतिहासिक बात यहा लागै छै कि गोपीचन्द्र रोॅ जन्म अंगप्रदेश रोॅ ऐखिनको जिला बांका, अमरपुर रोॅ चिता भूमि जेठौर क्षेत्र ही रहलोॅ होतै। जेठौर शब्द जेष्ठ गौड़ रोॅ अपभ्रंश रूप छै, जेकरोॅ अर्थ होय छै बड़ा बंगाल। हौल सकै छै कि बुकानन रोॅ इशारा यहा बड़ो बंगाल लेली रहै।
है तॉ इतिहास प्रसिद्ध बात छै कि अंगप्रदेश रोॅ बर्त्तमान रूप सिद्धों-नाथोॅ रोॅ जनम स्थान छेलै। बिक्रमशिला बौद्ध महाविहार रोॅ कत्ते नी सिद्धनाथों में बदली गेलो छेलै जेकरा में गौरखनाथ भी एक रहै। जबेॅ गौरखनाथ रोॅ आध्यात्मिक प्रभाव सौसें देश में फैले लागलै तॉ हुनकै साथै हुनको परम प्रिय शिष्य गोपीनाथ रोॅ कथा भी अंगप्रदेश रोॅ भूमि सें निकली के बंगाल सें लैके पंजाब तक फैली गेलै, आरोॅ फैली गेलै हुनको साहस, धैर्ज आरू कर्त्तव्योॅ रोॅ बीचों के कसमकस के भी।
गोपीचन्द्र रोॅ कथा है छै कि मानिकचन्द्र रोॅ मरण हौ समय में होय गेलै रहै जोन समय में हुनका कोनो बाल-बुतरू नै होलो रहै। मानिकचन्द्र रोॅ पत्नी मैनावती है देखी केॅ खुब दुःखी रहै। मैनावती बड़ो तंत्र साधिका रहै। पति रोॅ जीवन फेरू सें घुराय लेली हुनी तंत्र साधना बलो पर यमलोक के घेरी के बंधक बनाय लेलकै। है देखी के यमराज ने मैनावती के ढ़ेरौ प्रलोभन देलकै, मतुर हुनी टस सें मस नै होलै। होकरोॅ नतिजा ई होलै कि यमराज केॅ मानिकचन्द्र रोॅ जीवन के लौटाय लॉ पडलै आरोॅ गोपीचन्द्र रोॅ रूप में मैनावती केॅ पुत्र प्राप्ति होलै। बचपनै सें गोपीचन्द्र रोॅ मोॅन सांसारिक कामोेॅ लेली नै लागै रहै, जेकरा मैनावती खुब्बे परखी रहली रहै। गोपीचन्द्र रोॅ मोॅन घोॅर बार में लागलो रहै हेकरा लेली गोपीचन्द्र रोॅ बियाह कमसीन उमरोॅ में ही मैनावती ने एक नीकोॅ कुलशील बाली 'आदिमा' नाम रोॅ किशोरी सें करी देलकै। तैय्यै गोपीचन्द्र रोॅ मोॅन घर गृहस्थी लेली उदासीन ही रहै। है देखी केॅ आरोॅ पैर में बेड़ी डालै लै हुनको माता मैनावती ने आदिमा रोॅ छोटी बहिन रोॅ भी बियाह गोपीचन्द्र सें करी देलकै जेकरोॅ नाम पदमा रहै। आबे दोनों पत्नी रोॅ भार कंधा पर ऐला सें कुछ दिनों तक तॉ गृहस्थी ठीक ढंग से चललै मतुर फेरू गोपीचन्द्र रोॅ मोॅन दुनियाँ सें मुक्त होय लागलै। यै पर माता मैनावती ने सोचलकै कि कैन्हें नी पुत्र रोॅ मोॅन संन्यास लेली मोड़ी दियै जेकरा से हौ योगी नै बनै। मतुर गोपीचन्द्र योगी ही बनी केॅ घर-द्वार त्यागी कॉ बैरागी बनी गेलै।
आगु रोॅ कहानी है छै कि घरोॅ सें निकली के गोपीचन्द्र जोन गुरु रोॅ पास आध्यात्मिक ज्ञान लेली गेलो रहै हौ गुरु आध्यात्मिक रूप से शुद्ध नै रहै। हौं गुरु ने गोपीचन्द्र केॅ एक 'रूपाश्रिता' नामक वेश्या रोॅ हाथों में है कहीं के सोंपी देलकै कि गुरु ने गोपीचन्द्र रोॅ परीक्षा लैल चाहै छै। मतुर हौ वेश्या ने गोपीचन्द्र के रं-रं सें प्रताड़ित करना शुरू करलकै। है बातों रोॅ खबर जबे माता मैनावती के लागलै तॉ हुनी खुब्बे व्याकुल होय के तंत्र साधना में बैठी केॅ हौ वेश्या रोॅ आतंक सें गोपीचन्द्र केॅ मुक्त करै लेली अनुष्ठान शुरू करी केेॅ मुक्त करी केॅ ही दम लेलकै।
गोपीचन्द्र रोॅ जोन कथा मिलै छै हौ अलग-अलग जग्घा पर कुछछु-कुछछु भिन्नता लेने मिलै छै। प्रचलित तॉ है कहानी मिलै छै कि गोपीचन्द्र ने योगी रोॅ पंथ धारण नै करने रहै, बलुक सन्यासी होलोॅ रहै। मतुर हम्में लोगों सें जे कहानी सुनने छियै, होकरा सें तॉ यहा पता चलै छै कि गोपीचन्द्र योगी ही छेलै, आरोॅ जों नाथपंथियों रोॅ परम्परा में गोपीचन्द्र नै आवैय छै तॉ गोरखपंथ रोॅ योगी आपनोॅ सारंगी पर हुनको कथा केॅ गावी-गावी कॉ कैन्है सुनाय छेलै।
एक समय छेलै जबेॅ अंगप्रदेश में नाथपंथ खुब फली-फूली रहलोॅ छेलै। हौ समय है क्षेत्र में नाथो रोॅ बड़का-बड़का जमाबड़े होय छेलै। होकरा लेली बड़का-बड़का स्थल आरोॅ कत्ते नी नगर भी बसलो छेलै। होकरा में चम्पानगर रोॅ नाथनगर नाथों रोॅ नगर छेलै आरोॅ देवघर रोॅ प्रसिद्ध शिव मंदिर केॅ आसपास भी नाथों रोॅ नगर बसलो छेलै। अंगजनपद में जत्ते भी आय शिव मंदिर छै हुनका साथें नाथों रोॅ जुड़ना है बात रोॅ पक्का सबूत छै कि है क्षेत्र जेकरा त्रिलिंग क्षेत्र भी कहलो जाय छै नाथों रोॅ प्रमुख गढ़ रहै आरोॅ वहीं नाथ परम्परा में गोपीचन्द्र भी छेलै।
एक समय छेलै जबे अंग प्रदेश में गेरूवा कपड़ा रोॅ पहनलो धोती-कुरता, बही कपड़ा रोॅ चादर सें बंधलोॅ पगड़ी आरोॅ बड़का लटकलो झोला साथें सारंगी बजैते कत्ते नी योगी रोॅ संख्या देखलोॅ जाय छेलै। हौ घरोॅ-घरोॅ में आबी के सारंगी बजैते गोपीचन्द्र रोॅ कहानी सुनैते लोगों रोॅ मनोरंजन करै छेलै आरोॅ बदला में भिक्षा लै छेलै। होकरा बड़का झोला देखी केॅ प्रायः लोगों मेंहै अंधविश्वास छेलै कि हौ सारंगी बाबा बच्चा बुतरू केॅ बहलाय-फुसलाय केॅ हौ झोला में बंद करी केॅ लै भागै छै आरोॅ हौ बच्चा सिनी कॉ योगी बनाय कॉ कामरू कामाख्या में राखी के भिक्षाटन कराय छै। जें वहाँ से भागैल चाहै छै होकरा सिनी कॉ भेढ़ बकरी बनाय केॅ बाँधी दै छै, जेकरा सें लोग डरै भी खुब छेलै। एतनै ही नै गोपीचन्द्र रोॅ कहानी सिरिफ योगी ही नै गावै छेलै, बलुक शायद घरोॅ में कोनों बूढ़ी पुरानी नै होतै जें गोपीचन्द्र रोॅ कहानी बच्चा बुतरू केॅ नै सुनैते होतै आरोॅ नै हुनकोॅ गीत भी गैते होतै। हेकरा सें है साफ पता चलै छै कि गोपीचन्द्र अंग प्रदेश के ही रहै आरोॅ यहाँ खुब चर्चित भी रहै।