गोरी डायन / रेखा राजवंशी
आज का दिन कुछ ज़्यादा ही लम्बा था, कस्टमर्स रोज़ की अपेक्षा कुछ अधिक थे, कैश, चैक लेते, उनकी अन्य समस्याओं को सुलझाते पूरा दिन बैंक में कब बीत गया, पता ही नहीं चला। थकन महसूस होने लगी थी, कॉफ़ी की तलब थी पर मन को काबू किया। आफ्टर स्कूल केयर से आर्नव को भी पिक करना था, देखते-2 कब सात साल का हो गया, पता ही नहीं चला। ट्रैफिक देखते हुए हिसाब लगाया कि करीब छह बजे तक घर पहुँचूंगी।
कार पार्क तक जाते हुए सारी योजनाएँ बनने लगीं, खाने में क्या बनेगा? चलो अच्छा हुआ कि इतवार को कुछ खाना बना कर फ्रीज़ कर दिया था, रोटी की जगह लेबनीज़ ब्रेड से काम चल जाएगा, पर आर्नव के लिए? ठीक है... जल्दी से राईस कुकर में चावल बना दूँगी। मन को कुछ तसल्ली हुई कि सारे दिन के काम के बाद जाते ही रसोई की खिट-खिट में नहीं लगना होगा। यही ज़िन्दगी है यहाँ। ऐसे में कमला बाई की बहुत याद आती है, कम से कम खाने और चाय का तो सुख था" सोचते-2 कब कार तक पहुँच गई पता ही नहीं चला, बिना देखे ही कार का पिछला दरवाज़ा खोला, बैग कार में डाले ही थे कि बगल वाली कार ने हार्न मारा। सकपका कर देखा तो ड्राइवर कार रिवर्स कर रहा था और मेरे बिना ध्यान दिए दरवाज़ा खोल देने से विक्षुब्ध था। 'सॉरी' बोलकर मैंने शीघ्रता से दरवाज़ा बंद किया। बगल वाली कार ने गुस्से में तेजी से गाड़ी निकाली और चला गया। शुक्र है इतने से ही बच गई, वर्ना ये युवा ऑस्ट्रेलियन लोग। … बिलकुल सहनशील नहीं हैं, एक मिनट में बीच की ऊँगली (मिडिल फिंगर) दिखाने लगते हैं, बहुत चिढ़ है मुझे उससे और फिर कार का दरवाज़ा ठुक जाता तो बीमा कंपनी पांच-छह सौ डॉलर झाड़ लेती। मन को संयत किया और कार की चाबी लगाई। मन फिर आर्नव पर जा पहुँचा। पता नहीं खाना खाया या नहीं, वैसे तो वह खुश मिजाज़ बच्चा है, कोई नखरे नहीं हैं, यहीं पैदा हुआ है। मेरे और रवि कि आँखों का तारा है आर्नव, उसके गोल-मटोल भोले चेहरे की याद आते ही मन में ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है।
मैं और रवि इसी शहर में नौ साल पहले मिले थे, मैं मास्टर्स कर रही थी और रवि होटल मैनेजमेंट का कोर्स। हमारी एक पार्टी में मुलाकात हुई थी, जाने कब मुलाक़ात प्यार बनी और शादी में बदल गई। रवि एक होटल में शेफ बने और मैं बैंक में टेलर बन गई। दो साल बाद आर्नव आया। रवि तो रात के ग्यारह बजे तक ही घर पहुचेंगे। सोचते-2 चाइल्ड केयर पहुँच गई, आर्नव को गोद में उठाया तो सारी थकान जाती रहीदो साल बाद आर्नव आया। कितनी सारी बातें थीं उसके पास मुझे बताने के लिए-
‘मम, यू नो मैंने आज ड्राइंग बनाई तो मेरी टीचर ने मुझे स्टार दिया, देखो न मेरा स्टिकर, आज हमने नया खेल भी खेला, टीचर ने एक कहानी भी सुनाई’ वह चैटर बॉक्स की तरह बोलता जा रहा था। मैंने उसे प्रोत्साहित किया, ‘अच्छा, कौन-सी वाली?’ उत्तर में उसने मुझसे पूछा ‘आपको पता है मम, एबोरीजनल्स की, हमने विडियो भी देखा। वह जंगल में रहते हैं, अपनी बॉडी पेन्ट करते हैं, डांस करते हैं और डीजरी-डू बजते हैं। आपको पता है न कि डीजरी-डू क्या होता है? वो... लम्बा वाला बाजा।‘ आर्नव ने अपने हाथ उठाकर जब इतना लम्बा कहा, तो मैं मुस्कुराहट न रोक सकी ‘हाँ बेटा, पता है मुझे एबोरीजनल्स का, वह बाज़ार के किनारे खड़ा आदमी डीजरी डू ही तो बजाता है।‘
इतने सालों में ऑस्ट्रेलिया का इतना इतिहास तो जान ही गई हूँ कि एबोरीजनल्स यहाँ के मूल निवासी हैं, ये ज़मीन, ये आसमान, ये हवा, ये प्रकृति सब उनके ही थे, जब तक सत्रहवीं शताब्दी में अंग्रेज़ यहाँ नहीं आए थे। किस तरह उनकी ही ज़मीन पर उन्हें गोलियों का निशाना बनाया गया, कैसे उनसे गुलामी कराई गई, शराब और नशे का आदी बना दिया गया और कैसे उनके बच्चों की एक पूरी पीढ़ी पढ़ाने-लिखाने और तहजीब सिखाने के नाम पर उनके माता पिता से छीन ली गई, सब मैंने डाक्यूमेंट्री में देखा है। क्यों हर साल यहाँ 'सॉरी डे' मनाया जाता है, ये भी पता है मुझे, एबोरीजनल्स के दर्द में मुझे गुलाम भारत नज़र आता है।
उसकी कहानी सुनते-2 घर पहुँच गई. दरवाज़ा खोल कर अंदर पहुँची, "बैग इन योर रूम आर्नव। गो एँड चेंज" आवाज़ लगाते हुए मैंने भी जल्दी से कपड़े बदले और हाथ-मुंह धो चावल चढ़ाए। एक कप दूध माइक्रोवेव में रखा और चाय की केतली ऑन कर दी। मुझे ऐसे काम करते देखकर रवि कहते हैं, ‘महिलाएँ 'मल्टी टास्किंग' में अच्छी होती हैं’ आर्नव को दूध देकर, चाय का कप हाथ में लिए टी वी खोला। वैसे तो यहाँ के टी वी में कोई दिलचस्प कार्यक्रम होता नहीं, पर देखने से पता रहता है कि अगले दिन मौसम कैसा रहेगा और दुनिया में क्या हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया वैसे भी एक कोने में बसा है, जहाँ कुछ ख़ास घटित नहीं होता, हाँ...लोग इसे स्पोर्ट्स कंट्री कहते हैं। जब टेनिस या क्रिकेट होता है तो भीड़ उमड़ पड़ती है। टी वी पर मेलबर्न कप घुड़दौड़ देखने के लिए सारा ऑस्ट्रेलिया थम-सा जाता है, बिलकुल उसी तरह जैसे दूरदर्शन पर रामायण देखते समय हमारे देश में होता था और हाँ, यहाँ ऑस्ट्रेलियन लोगों का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर अच्छा है।
सोच ही रही थी कि अचानक टी वी की एक ख़बर ने मुझे चौंका दिया, "एक भारतीय महिला ने अपने पति को पैट्रोल डाल कर जला डाला, नब्बे डिग्री जाली हुई हालत में उसे अस्प्ताल ले जाया गया, परन्तु करीब तीन घंटे बाद अस्प्ताल में उसकी मृत्यु हो गई, दम्पति के दो बच्चे हैं और पुलिस ने महिला को अरेस्ट कर लिया है"। टी वी की ख़बर में एक सीधी सादी महिला थी जो बदहवासी कि स्थिति में दिखाई दे रही थी। लगा कि मैंने उसे पहले कहीं देखा है।… कहाँ ... ? अरे ... ये तो रमा है, वह जो कभी-कभी मुझे पार्क में मिल जाती थी, अपने दो बच्चों को लेकर आती थी। मैंने याद करने की कोशिश की, एक ऐसी औऱत का नक़्शा आँखों के सामने आया जो दुबली, पतली, सांवली और शांत नज़र आती थी। उसे तो ऑस्ट्रेलिया में रहन सहन की तहज़ीब का भी पता नहीं था, ऐसी औरत अपने पति को कैसे जला सकती है, लगता था, ये झूठ है।
मैंने पिछले साल उसे पहली बार पार्क में ही देखा था, कुरता, सलवार पहने, बालों को बाँधे वह बच्चों को झूला झूला रही थी, जल्दी ही आर्नव उसके बच्चों के साथ घुल मिल गया। मैंने उसे 'हेलो' कहा, वह मुझे देख कर शर्मीली हंसी हंस दी। मैंने पूछा 'क्या अभी ऑस्ट्रेलिया आई हो?’
हाँ में सर हिलाते हुए बोली ‘पति तो दो साल पहले आ गए थे, हम लोग एक हफ्ते पहले ही आए है।‘
उसके बोलने के लहजे से साफ़ झलक रहा था कि वह यू पी या बिहार से है। तभी रवि का फ़ोन आ गया और ज़्यादा बात नहीं हो सकी। हफ्ते में शनिवार और इतवार, दो ही दिन ऐसे थे कि मैं आर्नव को लेकर पार्क आ पाती थी, रवि तो सप्ताहाँत होने के कारण बहुत व्यस्त हो जाते थे। होटल में ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक खाने वालों की भीड़ होती थी और रवि को लगता था कि इन दो दिनों डेढ़ गुने पैसे मिलते हैं, कुछ कस्टमर खुश होकर टिप भी दे देते हैं। वे अपनी ड्यूटी इन दो दिनों ज़रूर लेते थे।
दिन भर घर का काम निबटने के बाद आर्नव को पार्क तक लाना मुझे भी अच्छा लगता था, कुछ सहेलियाँ भी बन गई थीं मेरी। हम पास पड़ी बैंच पर बैठ कर गप्प मारते और बच्चे आपस में खेलते रहते। अगले दिन मैंने रमा को फिर वहीँ देखा, उसने आगे आकर 'हेलो' कहा, बात हुई तो पता लगा वह यू पी के एक गाँव से है, बी ए पास है। अगले कुछ हफ़्तों में उसमें बदलाव आया, उसके चेहरे पर ख़ुशी दिखने लगी, हुलिया भी धीरे-धीरे बदलने लगा।
एक दिन जब वह स्कर्ट पहन कर, लम्बे बाल खुले रख कर आई तो पहले तो मैंने उसे पहचाना ही नहीं। पास आई तो मैंने कहा ‘रमा तुम… अच्छी लग रही हो। कैसी हो?’
वह शर्मीली-सी मुस्कान फेंकते हुए बोली' ‘आई एम गुड, अब मैं इंग्लिश क्लासेज़ में भी जाती हूँ, नौकरी तो करनी ही पड़ेगी न यहाँ’ वह हंसती हुई कह गई । एक दिन वेस्टफील्ड में उसे शॉपिंग करते देखा। जब आमना-सामना हुआ तो मुस्कुरा दी, पहली बार मैंने एक आत्मविश्वास उसके चेहरे पर देखा, ख़ुशी हुई। मैं आगे बढ़ने ही लगी थी कि उसने रोक दिया ‘दीदी, इनसे मिलिए, ये मेरे पति हैं सुनील’ मैंने नज़र घुमाई, एक खूबसूरत, गोरे चिट्टे करीब पांच फीट ग्यारह इंच लम्बे जवान को देखकर विशवास ही नहीं कर पाई कि वह रमा का पति है। अपने भावों को छिपा ही रही थी कि सुनील ने कहा, ‘रमा आपकी बहुत तारीफ करती है, आपका बेटा भी बहुत प्यारा है, आर्नव नाम है न उसका?’ मैंने सहमति में सर हिलाया और रमा के नए माहौल में एडजस्ट होने की तारीफ़ की। रमा खुश हो गई, सुनील ने उसे प्रशंसा भरी नज़रों से देखा। 'बाय' कहती हुई मैं अपनी शॉपिंग में लग गई।
कभी-कभी पार्क में रमा मिल जाती, मुस्कान का आदान-प्रदान होता, कभी छुट-पुट बात हो जाती। कभी वह नहीं भी आती, मुझे लगता, नया देश है, घूम फिर रहे होंगे। फिर हम भी एक महीने एक लिए भारत चले गए। आने के बाद व्यस्तता रही, कुछ महीनों के बाद जब रमा मिली तो कुछ उदास दिखी, न मैंने कुछ पूछा, न उसने कुछ बताया। फिर ये तो नॉर्मल है, अपने देश और परिजनों की याद में दिल तो उदास हो ही जाता है। फिर जब वह कई दिन तक नहीं दिखी तो लगा शायद इंडिया गई होगी। या शायद उसकी नौकरी लग गई होगी और ... आज ये न्यूज़? मन कैसे विशवास करता? लैपटॉप खोलकर बैठी कि कुछ पता करूँ, तभी मेरा मोबाइल बज उठा। स्मिता का फ़ोन था, ‘खबर सुनी तुमने? जानती हो रमा ने अपने पति पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी’
‘पर क्यों? ...’ व्यथित मन से मैंने पूछा।
‘अरे तुम्हें नहीं मालूम, उसके पति का अफेयर चल गया था अपने ऑफिस कि एक गोरी के साथ, रमा को पता लग गया, पति को समझाया, लड़ी-झगड़ी, पर वह न माना। गोरी लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं, जिसे पसंद करती हैं, उसके पीछे ही पड़ जाती हैं। रमा कब तक झेलती, देखो, जला डाला अपने पति को गुस्से में।‘ अचानक मन में एक कचोट-सी उठी। तो इसलिए रमा उदास थी, तो यही वज़ह थी कि वह पार्क में नहीं आ रही थी। अपमान और तिरस्कार के घूँट वह अकेले पी रही थी, आख़िर बताती भी किसे? और कोई क्या कर पाता? अपना देश होता, तो माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी कुछ समझौता करा देते, या ये स्थिति आती ही नहीं। रिश्तों की ये दरार इतनी न बढ़ जाती और वहाँ लुभाने के लिए ये गोरी लड़कियाँ भी तो न होती। सब सोच-2 कर मन बहुत खिन्न हुआ । पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया है, अब बच्चों का क्या होगा? दुखी मन से आर्नव को खाना खिलाया, मेरा कुछ खाने का जी नहीं किया, तो आर्नव को सुलाते-2 जाने कब सो गई। रवि के पास दूसरी चाबी थी ही, वह दरवाज़ा खोल कर जाने कब अंदर आए और सो गए।
अगले दिन सोकर उठी तो शरीर शिथिल था, हलकी हरारत महसूस हुई। ऐसे में अच्छा यही था कि छुट्टी ले लूँ। आर्नव को तैयार करके स्कूल भेजा और बुखार की दवाई खा कर सो गई। रवि की आवाज़ से नींद खुली, ‘गरम-गरम चाय और टोस्ट खाइये बेगम साहिबा और हाँ छुट्टी ही मारनी थी तो बुखार का बहाना क्यों?’ मैंने नाराज़गी में रवि को देखा तो तुरंत बोले, ‘गरम चाय पियोगी, कुछ खाओगी तो बेहतर फील करोगी और मेरे जैसे शेफ के हाथ का खाना खाने के लिए तो लोग तरसते हैं। तो उठिए क्वीन विक्टोरिया और कुछ खा लीजिये। पर हाँ टिप तो देनी ही पड़ेगी’ कहते हुए रवि ने जब आँख मारी तो बरबस मुझे हंसी आ गई।
मैंने उन्हें रमा के बारे में बताया तो उन्होंने लैपटॉप पर सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड खोलकर मेरे सामने रख दिया। रमा की तस्वीर और स्टेटमेंट उसमें दर्ज था। हेड लाइन थी, ‘हिज़ पीनिस शुड बिलोंग टू मी" अपनी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में जो कुछ उसने कहा था, वह ज्यों का त्यों आपके सामने रख देती हूँ-
‘मैंने अपने पति को नहीं मारा, आप सब कहते हैं कि मैंने उन्हें जला दिया, आप कहते हैं कि जब वे सो रहे थे तो मैंने बेरहमी से उनके ऊपर पैट्रोल डाला और आग लगा दी, वे जल कर मर गए और यही मैं चाहती थी। नहीं जनाब … , हरगिज़ नहीं ... मैं अपने पति से बहुत प्यार करती थी, सबसे ज्यादा। मुझे उन पर बहुत नाज़ था, जब लोग कहते थे कि इतने सुन्दर आदमी ने मुझ जैसी गंवार औरत से शादी कैसे कर ली, मैं तब नाराज़ नहीं होती थी, मुझे गर्व होता था ख़ुद पर। आप कहते हैं कि मेरा पति जलता रहा और मैं तमाशा देखती रही। नहीं जनाब, असलियत तो ये है कि पिछले सात महीनों से मैं जल रही हूँ, मैं जलती रही हूँ, तड़पती रही हूँ, रात-रात भर जग कर अपने पति का इंतज़ार करती रही हूँ। वह आते, मैं उनसे लड़ती, उनसे नाराज़ हो जाती, शुरू में वह सुन लेते। पर धीरे-धीरे उस गोरी डायन ने मेरे पति पर ऐसा जादू चलाया कि वे उसके साथ घूमने लगे। मैं जलती रही, मेरा दिल जलता रहा, मेरी दिमाग़ पागल हो गया। बच्चे चुप से हो गए, मैं उनसे क्या कहती कि जिस पिता के पास वे आए हैं, उसके पास बच्चों के लिए वक़्त ही नहीं है...और... एक रात जब वह शराब पीकर लौटे, तो मैं जाग रही थी, गोरी डायन की कार की लाइटें खिड़की से दिख रहीं थीं, वे शराब के नशे में थे। मैं गुस्से से पागल हो गई। मैंने पूछा, "कहाँ थे अब तक? क्या कर रहे थे उस चुड़ैल के साथ?" उन्होंने गुस्से से मुझे देखा और बोले, "सेक्स! सेक्स कर रहा था उसके साथ। यही सुनना चाहती है न तू? बोल तू क्या करेगी? अनपढ़, गंवार, जाहिल औरत, तुझे तो से करना भी नहीं आता’ कहते-2 उन्होंने मुझ पर हाथ उठा दिया, उनके तमाचे से मैं हिल गई।
ये सुनते ही मेरे तन-बदन में आग लग गई जनाब। मेरा पति, उसका सब कुछ मेरा है, उसका शरीर, उसका मन, उसका धन, सब कुछ मेरा है, यही वचन लिए थे हमने शादी में। उसका सेक्स, उसका लिंग ये सब मेरे हैं, मेरे हिस्से के, किसी और के लिए नहीं हैं, उस गोरी डायन के नहीं हैं। गुस्से में मैं बेकाबू हो गई। जब वे सो गए तो मैंने उनसे बदला लेने की योजना बनाई। मेरे हिस्से का जो सेक्स, वह गोरी चुड़ैल को दे रहे थे, मैंने सोचा कि उसका नाम ही न रहे। जो सुख मुझे नहीं मिलता वे दूसरी औरत को भी क्यों मिले। तो जनाब, गुस्से से उगलती हुई मैं कार गैरेज में गई, कोने में रखे पैट्रोल के डिब्बे पर मेरी नज़र पड़ी। मैंने पैट्रोल का डिब्बा हाथ में लिया और बेडरूम की ओर चल दी, मैंने धीरे से बेडरूम में झाँका, शराब के नशे में धुत वे गहरी नीद सो रहे थे। मेरी नज़र उनके नंगे जिस्म से होती हुई उनके लिंग पर पड़ी, पता नहीं उस वक़्त मुझे क्या हुआ? मैंने आव देखा न ताव, पैट्रोल उनके लिंग पर उलट दिया। बहुत जलाया था उन्होंने मुझे, अब न होगा बांस न बजेगी बांसुरी। एक मिनट भी नहीं लगा होगा कि मैंने माचिस जला दी। अगले ही क्षण मैंने देखा वे चीख रहे थे, रो रहे थे, तड़प रहे थे, ये देखकर मेरे होश उड़ गए। वे इधर-उधर भागने लगे, आग तेजी से फैलने लगी, मैं घबरा गई, लोगों को बुलाने मैं बाहर भागी, बच्चे शोर सुनकर मेरे पीछे भागे आए. कमरे में आग लग चुकी थी, बिस्तर जल रहा था, वे ज़मीन पर गिरकर तड़प रहे थे। किसी ने पुलिस को फ़ोन कर दिया। फायर ब्रिगेड ने आकर जब तक आग बुझाई, वे काफ़ी जल चुके थे, मैं यह नहीं चाहती थी जनाब। मैं तो सिर्फ़ उन्हें सबक सिखाना चाहती थी, उनको बेवफाई की सजा देना चाहती थी। बताइये भला कोई पत्नी अपने पति को क्यों जलाएगी। वे मेरे थे, उनका सेक्स, उनका लिंग सब कुछ मेरा था, उन पर किसी और का अधिकार नहीं था और उस गोरी डायन का तो कभी भी नहीं।‘
मैंने रमा का बयान पढ़ा, समझ में आया कि रमा ने ऐसा क्यों किया। सोच रही हूँ जिस अग्नि में वह महीनों जलती रही थी, या जिस अग्नि ने सुनील को जला डाला, क्या उसकी चिंगारी कभी बुझ सकेगी? उस गोरी डायन पर भी सबको क्रोध था। कुछ महीनों बाद रमा का केस फिर छपा, रमा को 'मेन स्लाटर' में छह साल की सजा मिली। मन में दुःख था, परेशानी भी थी कि बच्चों का क्या होगा? कुछ महीनों बाद शनिवार को जब पार्क गई तो पार्क में खेलते बच्चों पर नज़र पड़ी, आर्नव ख़ुशी से चिल्लाया ‘मम, लुक दे आर हियर’ मैंने आगे जाकर देखा, रमा के दोनों बच्चे बड़े सलीके के कपड़े पहने झूला झूल रहे हैं। आर्नव दौड़ कर उनसे लिपट गया। सोच ही रही थी कि वे अकेले यहाँ कैसे आ गए कि पास की बैंच पर बैठी गोरी लड़की पर नज़र पड़ी। पहचानने में दो मिनट ज़रूर लगे, पर गलती नहीं हुई । अख़बार में छपी इतनी तस्वीरों में मैंने रमा की उस गोरी डायन को देखा था। ओह...! तो अब वह यहाँ बस गई है? सोच ही रही थी कि आधे घंटे बाद उसने दोनों बच्चों को आवाज़ दी, बच्चे भागे आए, उसने उनका हाथ पकड़ा और बड़े प्यार से घर की तरफ़ चल दी।
पास खड़ी महिला ने बताया कि गोरी डायन ही बच्चों की देखभाल कर रही है। रमा के कोर्ट केस का सारा बिल भी उसी ने चुकाया था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खाने-पीने का ख़्याल वही रखती है। हर हफ्ते दोनों बच्चों को रमा से मिलाने जेल भी ले जाती है। मैं मूक बनी सुनती रहती हूँ। गोरी डायन बच्चों से कुछ बात कर रही है, वे हंस रहे हैं, धीरे-धीरे वह दृष्टि से ओझल हो जाती है। सोच रही हूँ कि इस पूरे प्रकरण में सही कौन था, ग़लत कौन? और अंत में किसने क्या खोया? क्या पाया? तो क्या, गोरी डायन और रमा दोनों का ही प्यार सच्चा था? और अनायास, कहीं अंतस में गोरी डायन के प्रति सहानुभूति उमड़ पड़ती है।