गोलमाल / शुभम् श्रीवास्तव
चंदर की संभल में नई-नई नौकरी लगी थी संचार विभाग में। नौकरी अस्थायी थी लेकिन उसने हाँ कर दी तुरंत क्योंकि कई बार अस्थाई नौकरी वाले लड़को को भी ज़रूरत के हिसाब से स्थाई कर दिया जाता है। कहाँ खाने को नहीं थे उसके पास कहाँ उसे कोई 15 हज़ार महीना दे रहा था संभल जैसी जगह पर। यहाँ पर 5 भी काफी थे। घर में ख़ुशी का वातावरण छा गया। पिता जी थोड़े चिंतित हुए की बेटा रोज 56 किलोमीटर एक तरफ से जाएगा मतलब 3 घंटे सिर्फ़ आने जाने में कम से कम।
एक हफ्ते बाद
दफ्तर पर किसी तरह से पहुँचकर, वह बाहर के कमरे में बैठे कर्मचारी से कहता है कि मुझे अभियंता से मिलना है यहाँ के मुझे अवर अभियंता ने भेजा है उनसे मिलने के लिए, कर्मचारी ने चश्मा नीचे किया उसे देखा फिर कागज़ पढ़ा उसमे सच में अवर अभियंता के हस्ताक्षर थे। पहले चपरासी से कहता है पानी पिलाए. इतने भर में पूछता है 'कहाँ से आए हो?'
'सर रामपुर से'
'मेरा नाम रघु है लगभग सारी ज़रूरी बुक कीपिंग मैं ही करता हूँ। तुम्हारा नाम क्या है?'
'जी, चंदर'
रघु–'क्या करते है माता-पिता और यहाँ क्या काम करने आए हो?'
चंदर–'साहब मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी है और माता गृहणी मुझे यहाँ पर निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया है।'
रघु–'भई वाह तुम तो बड़े मज़े में रहने वाले हो यहाँ पर।'
चंदर– 'मतलब'
रघु–'मतलब, मौसम के साथ खुद ही बदल लोगे अपने आप को, लो, लो, पानी पियो और यहाँ से सीधा जो आखिरी कमरा है वहाँ पर किसी से भी पूछना वह बता देंगे की अभियंता कहाँ पर बैठे है।'
चंदर पानी पीकर चल देता है। मुलाकात के बाद एक हफ्ते तक यूँ ही चला। वह अकेला निरीक्षक नहीं था वहाँ पर पहले से दो और थे जो उसका अच्छा-खासा काट रहे थे।
कोई मेहनत नहीं करके वह खुश हुआ लेकिन अन्दर ही अन्दर शिकायत और झाड़ पड़ने के बाद उसके दिमाग के घोड़े खुले की मामला इतना आसान नहीं होने वाला ये। तहसील में 390 गाँव थे। उसे 120 गाँव का स्वतंत्र प्रभार दिया गया। गाँव में किस-किस के घर फ़ोन लगा है किसके घर नहीं अथवा तार की लाइन तो कहीं से नहीं टूटी है, सब का निरिक्षण।
पहला महिना तो पता नहीं चला हो क्या रहा है बस वह गाँव भर घूमता कहीं लोगो ने तार उतार लिए थे तो कही लाइन टूटी थी। किसी गाँव में उसे सत्कार मिलता तो कहीं लोगों डरा-धमकाकर भगा देते। गर्मी शुरू हुई थी हालत ख़राब धूप में पैदल पूरे गाँव में घूमकर, अदोल्हा में तो अजब ही धमाल हुआ गाँव में गुरूजी घुसे एस0डी0ओ0 के साथ को लेकर तो गाँव वाले ही लठ लेकर खड़े हो गए गाँव के बाहर। न किसी को फ़ोन चाहिए था ना किसी को लगवाना था जिन बचे-खुचे के घर में लगा भी था उन्होंने बिल देने से मना कर दिया।
अगले 3 महीने खूब गली-गली गाँव-गाँव घूमकर निरिक्षण किया सिर्फ़ 20% भोगकर्ता बड़े। चंदर समझ गया की अब इससे ज़्यादा नहीं बढेंगे। तो उसने लाइनमेन से दोस्ती करनी शुरू की 120 गाँव में कुल 102 लाइनमेन थे। वह लेकर आते की नए उपभोगता होंगे और कहाँ नहीं।
संदीप (लाइनमेन) -'साहब। जब हम आपको चाय-पानी दे देते है तब आप क्यों नहीं लेते। उपभोगता ने जब हमे दिया ही इसलिए तो आप क्यों नहीं लेते।'
चंदर–'नहीं तुम ही रखों मुझे नहीं चाहिए.'
संदीप–'अरे साहब! चलता है, 21वी सदी है कोई हरिश्चंद्र का जमाना थोड़े है।'
चंदर–'रे भाई तुम ही रखो मुझे 10 मिलता है तुम्हें बस 5. पता नहीं इतने में कैसे घर चला लेते हो।'
संदीप–'का बताए जनाब बिलकुल मज़बूरी में करते है। सुने थे आपका 15 था फिर 10 कैसे?'
चंदर–'अरे ससुर का नाती 15 बोलके 10 ही देता है। बाकी सब जा रहा है घूंस तोहार बड़े बाबु की जेबों में।'
संदीप- 'मतबल'
चंदर–' अरे मतबल ई है कि जो तुहार अभियंता बाबू की गाडी गिफ्ट में मिलता है न वह हमार लोगन के पैसे से होता है। जिनके वजह से हम यहाँ है वह टेंडर वालो एनो को पैसा पहुँचाते है ऊपर तक तोहफे के तौर पर।
संदीप–'अरी ससुरा।'
चंदर–'कभी-कभी मन करता है पकड़वा दे।'
संदीप–'न न ई ना करना कबी, एक लड़का को मरवा दिए रहे डकैतों से मरवा के. डकैत वैसे ही सरकार के दुश्मन, तो सरकारी कर्मचारी को कैसे जाने देते।'
चंदर–'अरे हम तो ऐसे ही कह रहे थे बोल न देना किसी से थोड़ा भड़ास निकाल रहे थे मन का।'
संदीप-'चलो फिर मिलेंगे'
एैसे ही सब एक दूसरे को अपना दुखड़ा सुनाते और फिर मजे से रहते। एक-दुसरे के गोल-माल के तरीके को सुनकर दंग रहते थे।
'यार। यह 18 नए कनेक्शन करने है ये लो फॉर्म और कर देना ध्यान से और ये रही मिठाई'-रघु ने ये चंदर से पेड़ के नीचे बुलाकर कहा।
चंदर–'नहीं, काका आप ही रखो।'
रघु–'इ बतावा। हम सब से सुनत तू एक रुपया भी घूस नहीं लेहत। माजरा के से?'
चंदर–'ईश्वर की कृपा हुई तो नैय्या पार हो जाएगी अपने को ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। पर आपके तो मौजा ही मौजा है सुने है तार और खम्बे तक में आपने कमाए है।'
रघु–'हाँ, हुम! सही बोल रहे हो लेकिन असली मौजा तो भटोला के जूनियर इंजिनियर की है साले ने 65 लाख रूपये में अपनी बेटी की शादी की है।'
चंदर–'क्या?' आँखे बड़ी करते हुए.
रघु–'सही सुन रहे हो बेटा, लोगों के बिल माफ़ी में उसकी आमदनी होती है। पहले फ्रंट से करता था अब लाइनमेन से करवाता है। तुम मिठाई नहीं लेते ज़रा संभल के रहना संभल में सत्यवादी नहीं टिकते ज़्यादा देर तक।'
चंदर–'काका ऊ नौबत ही नहीं आने देंगे हम।'
रघु–'बढ़िया, चलो ई कनेक्शन रजिस्टर कर देना आज।'
चंदर–'हाँ काका।'
थोड़ी देर बाद
चंदर–'अरे भैया, इहाँ लाइन में खड़े होकर क्या कर रहे हो?'
मुनीब (लाईनमेन) -'साहब हमारे एरिया में दो ही गाँव आते है। हर रोज वहाँ जाकर क्या करेंगे तो जिन लोगों के पास समय नहीं होता यहाँ आकर बिल भरे। ऊँ हमें दो-चार सो रूपये आकर भर देते है और हम उनकी जगह आकर बिल भर देते है।'
चंदर–'बढ़िया है। ऐसा तो कभी हमने सोचा ही नहीं था।'
मुनीब–'यहाँ रहकर सब बुझने लगोगे देखते रहो। बस।'
1 साल बाद
चंदर–'का हाल बा, संदीप बाबु, के हाल से?'
संदीप–'चल रा है। हमार बताओ क्या कर रहे हो आप?'
चंदर–'कुछ ख़ास नहीं, हमार हिस्सा कुछ देबो के नाही।'
संदीप की आँखे बड़ी हो गई वह हैरत में पढ़ गया। 'भाई आज उलटी गंगा कैसे?'
रघु पीछे से आते हुए–'कल तोहार बाबू की शादी है बुझे की नहीं, अब इहे संन्यास छोड़ मगजमारी करेंगे हम सब के संग और हाँ चाय-पानी पहुंचना चाहिए बिलकुल प्रॉपर।'
संदीप ने चैन की साँस ली क्योंकि यह अक्सर माना जाता है कि ईमानदार आदमी एक न एक दिन रोड़ा बनता है कपट वाले के रास्ते में संदीप ने उसे पैसे दे दिए.
चंदर ने सोचा चोरी एक रूपये की हो या 100 रूपये की चोरी तो चोरी ही है पर वह कब तक अपने को रोक सकेगा। उसे विवाह करना है और ज़िन्दगी में आगे बढ़ना है। वह आख़िरकार खुदा को याद किया उसके अन्दर बहुत कुछ टूट गया था उसने एक लम्बी सांस ली और आगे बढ़ गया।
पीछे से रघु ने मोबाइल पर गाना चलाया–'गोल-माल है भाई सब गोल-माल है।' चंदर पीछे मुड़कर मुस्कुराया।