गोल्डेन बीच / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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जाल को मजबूती से पकड़े वे तट की ओर झपटती लहरों से भिड़ जाते हैं, फिर एक के बाद एक तट की ओर उछलकर आती लहरों पर फिसलते नजर आते हैं। लहरों की समुद्र में वापसी से पहले उनका फेन तट की रेत पर दूर-दूर तक बिखर जाता है, लहरों के इसी पॉज के दौरान वे दोनों जाल का निरीक्षण करते हैं। कभी-कभार जाल की बारीक बुनावट में कुछ फंसा नजर आता है जिसे वे मिट्टी की हंड़िया में डाल लेते हैं। दूर से समझ नहीं पाता कि वे क्या इकट्ठा कर रहे हैं।

नज़दीक से देखने पर उन लड़कों की उम्र आठ-दस साल से अधिक नहीं लगती-अस्थिपंजर-सी काया, कुपोषण की शिकार पीली आँखें। मेरी उपस्थिति से वे ठिठक जाते हैं। इस बार उनके जाल में कुछ फँसा है। मैं उनकी भाषा नहीं जानता, वे मेरी भाषा नहीं जानते। मेरे पास खड़ा लड़का मेरी आँखों से मन की बात पढ़ लेता है और जाल में फंसी वस्तु निकालकर मेरे हाथ पर रख देता है।

एक नन्ही-सी मछली मेरी हथेली पर छटपटाने लगती है। पानी के अभाव में तड़पना मुझसे देखा नहीं जाता, मैं उसे जल्दी से लहरों के हवाले कर देता हूँ।

लड़के के चेहरे पर गुस्से की लपट-सी दौड़ जाती है, वह मुझे घूरकर देखता है। पता नहीं उसे मेरे चेहरे पर क्या दिखाई देता है कि उसकी गुस्से से तनी मांसपेशियाँ ढ़ीली पड़ने लगती हैं। वह फीकी हंसी हंसता है। शायद यह उसका मछली के नुकसान को भूलने का प्रयास है या फिर मुझे माफ कर दिए जाने का संकेत। वह अपने साथी को इशारा करता है। वे दोनों जाल को सम्हालकर फिर लहरों की ओर दौड़ पड़ते हैं।

लहरों की पहुँच से दूर वह हंड़िया पड़ी हुई है जिसमें उनकी दिनभर की कमाई नन्ही मछलियों के रूप में जमा है।

अचानक हवा काफी तेज हो जाती है। रेत के उड़ते कण चेहरे और शरीर के दूसरे खुले भागों पर सुइयों से चुभने लगते हैं। लगता है जैसे जिस्म को छलनी कर देंगे। लहरें पहले से कहीं अधिक तेजी से गरजती, फुफकारती अपना फेन तट पर उगलने लगी हैं। कहीं यह सुनामी लहरों के आने का संकेत तो नहीं? पिछली तबाही के दृश्यों को याद कर शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ जाती है। जल्दी से जल्दी किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाना चाहता हूँ। ...पर वे दोनों अभी भी बेखौफ़ लहरों से भिड़े हुए हैं। मुझे हैमिंग्वे का बूढ़ा मछुआरा याद आता है जो शेरों के सपने देखा करता था। सोचता हूँ सोनामी के बाद यह नन्हें मछुआरे अपने सपनों में क्या देखते होंगे।