गोविंदा की 'कॉमेडी का चक्रव्यूह'/ जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 सितम्बर 2014
गोविंदा आजकल सख्त नाराज हैं कि कोई उनके खिलाफ अफवाहें फैला रहा है। यह सही है कि अपनी सफलता के दौर में उनके देर से स्टूडियो पहुंचने के कारण निर्माताआें को बहुत घाटे सहने पड़े। उनकी हिमाकत तो यह थी कि सीनियर कलाकार अरुणा ईरानी की फिल्म में, उनके कमरे में वह धरना दे देती थी तो उन्होंने होटल ही बदल दिया था। उस दौर की बदनामी आज भी उनका पीछा कर रही है। 'दस का दम' कार्यक्रम में डेविड धवन ने कहा कि वे ही जानते हैं कि उन्होंने सलमान खान आैर गोविंदा के साथ 'पार्टनर' कैसे पूरी की कि गोविंदा लेट आता था तथा सलमान खान आकर भी नहीं आता था। दरअसल गोविंदा की दूसरी पारी 'पार्टनर' से शुरु हुई परंतु उनके देर से आने की आदत कामयाबी के साथ लौट आई आैर फिर उन्हें काम मिलना बंद हो गया। कुछ समय पूर्व ही उन्हें अनुराग बसु ने 'जग्गा जासूस' में चरित्र भूमिका दी, कुछ आैर भी इसी तरह की भूमिकाएं उन्हें मिल रही है। वह एक प्रतिभाशाली कलाकार है आैर आज इतनी विविध फिल्में बन रही हैं, टेलीविजन पर भांति-भांति के शो हो रहे हैं।
गोविंदा आज 10-15 करोड़ रुपए सालाना आसानी से कमा सकते हैं। गोविंदा की परेशानियां उनकी अपनी बनाई हुई हैं। संभवत: वह आज भी अपने शिखर दिनों में बजी तालियों की अनुगूंज सुन रहे हैं आैर सफलता की जुगाली भी अपच कर सकती है। फिल्मी दुनिया की चकाचौंध शिखर से नीचे गिरते समय भी बिजलियों के कौंधने की तरह याद आती हैं। इस उद्योग में अनेक सुपर सितारे उम्र के साथ बदलते हैं, अशोक कुमार ने कितनी सहजता से चरित्र भूमिकाएं कितने लंबे समय तक कीं आैर आज ऋषि कपूर, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ चरित्र भूमिकाएं कर रहे हैं। गोविंदा भी यह सब सहज ही कर सकते हैं। यह उन्हें वहम है कि उनकी प्रतिभा का सम्मान लोग नहीं करते। गोविंदा के पिता भी फिल्म उद्योग में थे आैर एक असफलता के कारण उन्हें पाली हिल का मकान बेचकर विरार आना पड़ा था। उनकी असफलता के परिणाम आज भी गोविंदा के अवचेतन में दर्ज हैं आैर यही कारण है कि एक दौर में उन्होंने दर्जनों फिल्मों कीं। काम की अधिकता के कारण उनका फोकस नहीं रहा आैर फिल्में पिटती रहीं। दिलीप कुमार ने पचास वर्ष के करियर में लगभग साठ फिल्में अभिनीत की आैर गोविंदा ने उनसे बहुत कम अवधि में संभवत: ढाई सौ फिल्में की हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा के सिक्के को स्वयं चिल्लर में बदल दिया, बाजार में अपने खप जाने की चिंता किए बिना वे 'चवन्नियां' बटोरते रहे। वे हिरण की तरह सुगंध की तलाश में दौड़ते रहे आैर आज भी उन्हें अपने भीतर की 'कस्तूरी' का भान नहीं है।
गोविंदा ने पाली हिल से विरार आैर विरार से जुहू वापसी करने में सफलता पाई है। अब विरार वापस जाने की कोई संभावना नहीं है परंतु फिर भी विरार एक भय के रूप में उनके अवचेतन में बैठा है। मुंबई के बाहर के पाठकों के लिए यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि पाली हिल श्रेष्ठि वर्ग का रिहाइशी इलाका है आैर किसी जमाने में विरार निम्न मध्यम वर्ग के रहने की जगह माना जाता था। मुंबई सामाजिक दृष्टि से आैर शहराें के अपने मिथ्या गुरूर के पैमाने पर कई भागों में बंटा है। दक्षिण मुंबई अर्थात मलाबार हिल, वाल्केश्वर, नेपियन सी रोड, पेडर रोड इत्यादि अत्यंत धनवानों के रहने की जगह हैं आैर वे बांद्रा में रहने वालों को कभी हेय दृष्टि से देखते थे। अब बांद्रा की ख्याति कुछ आैर हो गई है। मुंबई में एक आैर विभाजन है पश्चिम मुंबई आैर पूर्व मुंबई आैर संस्कृति की दृष्टि से यह कमोबेश पूर्व आैर पश्चिम की तरह है। बहरहाल गोविंदा चरित्र भूमिकाआें के प्रस्ताव को जाने क्याें हेय दृष्टि से देख रहे हैं। वे अपनी प्रतिभा का लोहा पुन: मनवाने के लिए अपने धन से 'कॉमेडी चक्रव्यूह' नामक फिल्म बना रहे हैं।
उन्हें यकीन है कि इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद वे फिर शिखर सितारा होंगे। माना कि वे चुस्त-दुरुस्त दिखाई दे रहे हैं तो अनिल कपूर भी बहुत 'फिट' हैं। आजकल फिटनेस फैशन है। यह उनकी संतान के सितारा बनने का समय है। बहरहाल हर व्यक्ति अपने विश्वास, अपने वहम चुनने के लिए स्वतंत्र है, इसी तरह मुगालते पालने की भी आजादी है। 'कॉमेडी चक्रव्यूह' की सफलता गोविंदा को बहुत कुछ दिला सकती है परंतु अब नायिका के पीछे भागने की उनकी उम्र नहीं है। हर व्यक्ति अपने लिए अपने निजी चक्रव्यूह रचता है जिससे बाहर निकलने का तरीका वह नहीं जानता। मकड़ी जाला बुनती हैआैर उसका शिकार स्वयं उस जाले में उलझता है। जीवन के तमाशे में मकड़ी आैर शिकार एक ही व्यक्ति हो सकते हैं।