गोविंदा की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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गोविंदा की वापसी
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2013

गोविंदा आदित्य चोपड़ा की निर्माण की जाने वाली शादअली निर्देशित फिल्म 'किल दिल' में खलनायक की भूमिका में नजर आएंगे। आजकल गुजरे जमाने के नायक खलनायक की भूमिका में नाम और दाम कमा रहे हैं। ऋषि कपूर और संजय दत्त यह कर चुके हैं और अब गोविंदा भी करने जा रहे हैं। गुजरे जमाने के नायक प्राय: चरित्र भूमिका करते रहे हैं और अशोक कुमार ने दोनों रूपों में सबसे अधिक संख्या में फिल्में की हैं। प्राण ने खलनायक के रूप में अनेक फिल्में कीं, परंतु उन्होंने राज कपूर की 'आह', मनोज कुमार की 'उपकार' और 'शहीद' तथा ब्रिज सदाना की 'विक्टोरिया नं २०३' में चरित्र भूमिकाएं भी सफलता से की हैं। प्राय: प्रसिद्ध नायक चरित्र भूमिकाएं करते रहे हैं, मसलन अजीत, ओमपुरी और नसीरुद्दीन शाह तथा परेश रावल। अनुपम खेर ने खलनायक के साथ ही अनेक चरित्र भूमिकाएं अभिनीत की हैं। इसी तरह प्रेमनाथ ने भी नायक, खलनायक और 'बॉबी' तथा मनोज कुमार की 'शोर' में चरित्र भूमिकाएं अभिनीत की हैं।

गोविंदा ने १९८६ से अभिनय यात्रा प्रारंभ की और अपने पहले दशक में वे फिल्मी सैकड़ा मार चुके थे। उनकी अनुशासनहीनता एवं देर से सैट पर आने की आदतों के कारण निर्माताओं ने उनसे मुंह फेर लिया था। सलमान खान के साथ 'पार्टनर' की सफलता से उनके लिए दूसरी पारी की संभावना बन गई थी, परंतु अपने सनकीपन के कारण वह अवसर उन्होंने गंवा दिया।

आदित्य चोपड़ा अत्यंत सजग फिल्मकार हैं और प्रतिभा की उन्हें अच्छी-खासी पहचान है। यह भी सुना है कि ऋषि कपूर के साथ उन्होंने प्रतिमाह मेहनताने का अनुबंध किया है, क्योंकि वे उनकी तीन निर्माणाधीन फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं। आज के दौर में यह पहली घटना है कि एक चरित्र अभिनेता और शिखर निर्माण संस्था के बीच ऐसा अनुबंध हुआ। ज्ञातव्य है १९४१ में 'सिकंदर' की सफलता के बाद पृथ्वीराज कपूर पहले अभिनेता थे, जिन्होंने स्टूडियो में मासिक वेतन पर काम करने से इनकार किया और स्वतंत्र कलाकार हुए। एक ही परिवार के पुरोधा ने स्टूडियो व्यवस्था भंग की और उन्हीं का पोता वर्तमान मेें उसी व्यवस्था को पुनर्जीवित कर रहा है।

बहरहाल, गोविंदा अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार है और वह स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु रहा है। अब यह आशा की जाती है कि आदित्य चोपड़ा के संस्थान में वह अनुशासनबद्ध होगा। दरअसल, लंबे अरसे तक सफल नायक के रूप में जमे रहने वाले व्यक्ति के लिए चरित्र भूमिकाओं का काम कठिन हो जाता है, क्योंकि एक जमाने में चरित्र कलाकार समय पर पहुंचकर, मेकअप करके तैयार बैठते थे और उन्हें नायक का इंतजार करना होता था तथा निर्देशक भी नायक द्वारा दिए गए समय में उसका सोलो काम पहले पूरा करते थे, फिर अन्य कलाकारों के साथ उसके दृश्य शूट किए जाते थे। अब इंतजार करने की बारी उसकी होती है और गुजरे हुए वक्त के अहंकार को ठेस लगती है।

इस दौर से सभी को गुजरना होता है। शम्मी कपूर ने भी 'याहू' दिनों के बाद चरित्र भूमिकाएं अभिनीत कीं। बतौर नायक उन्होंने सफल पारी खेली थी और चरित्र भूमिकाओं में भी सुभाष घई की 'विधाता' रमेश बहल की 'हरजाई' तथा अमिताभ बच्चन के साथ कुछ फिल्में की हैं।

भारत में अनेक नायकों ने उम्र की ढलान पर चरित्र भूमिकाएं स्वीकार की हैं और गजब का अभिनय भी किया है। इनमें रहमान और मोतीलाल का उल्लेख अनिवार्य है। मोतीलाल अनेक फिल्मों में नायक रहे और इस कदर फैशनपरस्त थे कि सप्ताह के सात दिनों के लिए सात रंग की कारों और उन्हीं शेड्स के सूट पहनते थे। बिमल रॉय की 'देवदास' और राज कपूर की 'जागते रहो' तथा ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनाड़ी' में बतौर चरित्र अभिनेता उन्होंने कमाल का अभिनय किया। मोतीलाल अभिनय में स्वाभाविकता के स्कूल के पुरोधा थे तथा इसी स्कूल के संजीव कुमार ने खूब ख्याति अर्जित की। आज ओमपुरी, परेश रावल, नसीरुद्दीन शाह और नवाजुद्दीन भी उसी स्कूल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भूमिका का परिवर्तन समाज के हर क्षेत्र में प्रभाव डालता है। जब एक पुत्र अपने पिता से अधिक पैसा कमाने लगता है, तब परिवार में उसकी भूमिका बदल जाती है। इसी प्रकार राजनीति में सारी उम्र अपने दल की सेवा करने वाला एक युवा लोकप्रिय नेता के सामने अपने आपको लाचार पाता है और उसे हाशिये में डाला जाना अच्छा नहीं लगता।