गौ हत्या / सुरेश सर्वेद
ननकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस पर इतना बड़ा आरोप मढ़ दिया जायेगा। अंधेरी कोठरी में वह बैठा था। कोठरी के अंधियारे से कही अधिक अंधेरापन उसे अपने भीतर महूसस हो रहा था। यह अंधेरापन उसे खाया जा रहा था। उसके मन में विचार उठ रहा था - क्याक सेवा सुश्रवा का ऐसा परिणाम निकलता है? क्या वह उसकी हत्या कर सकता है जिससे उसे असीम लगाव हो? क्याऐ वह अपने सबसे प्रिय को ही अपने से दूर करने का पाप कर सकता है? ऐसे अनेक प्रश्न उसके दीमाग में कुलबुलाने लगे थे, पर इन प्रश्नों का उत्तर वह नहीं खोज पा रहा था।
ननकी इस बात पर भी सहजता पूवर्क विश्वास नहीं कर पा रहा था कि जो समाज और परिवार उसकी गौ सेवा की प्रशंसा करने से जरा भी नहीं चूकता था। वही परिवार, वही समाज उस पर गौ हत्या का आरोप मढ़कर हिकारत की दृष्टि उस पर डालेगा। दूसरों की बातें तो छोड़ों, उसकी पत्नी - रमशीला, वह पत्नी जिसने सात फेरे लेकर अग्नि के समक्ष् सात जन्मों तक सुख - दुख में साथ निभाने की सौगंध ली थी, वह भी दोषारोपण करने से नहीं चूक रही थी। जब छाया ही साथ न दे तो व्यक्ति कर भी यिा सकता है? उसकी पत्नी रमशीला उसकी छाया ही तो थी. वह भी उसका साथ देने के बजाय उसके विरूद्ध चली गई थी। गाय की मृत्यु की जिम्मेदारी उस पर मढ़ने से जरा भी नहीं चूकी थी। ननकी आखिर करें तो करें क्या।? उसके हिस्से में तो परिवार समाज ने पश्चाताप को सौंप दिया था। वह प्रतिकार करें भी तो करें कैसे ! उसका सुनने वाला कौन था ! एक भी उसके साथ होता तो वह प्रतिकार करने या फिर अपनी सफाई देने का साहस कर सकता था पर यहां तो सब के सब उसके कृत्य को घिनौना बताने, प्रमाणित करने से नहीं चूक रहे थे।
अंधेरी कोठरी में उसे गुढ़ी चौंरा में आयोजित बैठक में जुरयाये ग्रामीणों के चेहरे दिख रहे थे। उस बैठक में जुरयाये ग्रामीणों की आवाजें सुनाई दे रही थी। गांव के ऐसे - ऐसे लोग भी उस बैठक में आ पहुंचे थे जिन्हें कभी गांव की बैठक से कोई सरोकार नहीं होता था। बैठक में जुरयाये ग्रामीण उस पर गौ हत्या का आरोप लगाने कोताही नहीं बरत रहे थे और घृणित दृष्टि डालने से बाज नहीं आ रहे थे।
गुड़ी चौंरा में जुड़ी बैठक में दोनो पक्ष् प्रस्तुत हुए। राम्हू ने कहा - ननकी गौ प्रेमी है मगर इसके कृत्य से ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी गौ प्रेम महज दिखावा और छलावा है। मैं समझता हूं जहां ननकी का कर्म गौ हत्या ही है बाकी पंचायत का निणर्य .....।
अवसर मिला था तो जगनू भी बोलने से यिों चूकता। उसे उस दिन की याद हो आयी जब उसकी गाय ननकी की खेत की फसल चर गयी थी और ननकी ने उसे खेत से हकालने के बाद जगनू को समझाइस दी थी - देख जगनू जब तब तेरे जानवर खेत में घुस आते हैं। फसल की बबार्दी करते हैं। तुम इन्हें अपने घर में बांधकर रखा करो या फिर च रवाहे को हिदायत दो कि गाय बरदी छोड़कर न भागे वरना मुझे विवश होकर कांजी हाऊस ले जाना पड़ेगा।
जगनू के जानवर भोगोड़े थे। बरदी से छंटकर कब खिसकते च रवाहा भी नहीं समझ पाता था। तब भला चरवाहा करता भी यिा? एक दो बार जगनू ने चरवाहे से कहा तो चरवाहे का जवाब य ही था कि पूरे गांव के जानवर एक तरफ तो तुम्हारे जानवर एक तरफ। पलक झपकते ही बरदी से छंट जाते हैं। वापस बरदी में लाने दौड़ो तो हाथ नहीं आते। अब तुम्हीं बताओ एक जानवर के पीछे मैं कहां तक दौड़ लगाऊ। बेहतर तो यही है कि इन्हें अपने घर पर ही बांध के रखो।
चरवाहे की बात से जगनू तिलमिला गया था पर करता भी क्या ? उसके एक जानवर का यह हाल होता तो घर में सम्हाल कर रख लेता मगर उसके दो बैल, दो गाय ऐसे चार जानवर थे। इन्हें भला वह घर में बांधकर रखता तो रखता कैसे ! आलम यह था कि इन चारों जानवरों में से एक भी ऐसा नहीं था जो बरदी में पूरा दिन रहे। वे बरदी से ऐसे खिसकते मानों सुनियोजित कायर्क्रम हो। ननकी की भाषा और कई ग्रामीण बोल चुके थे। मगर जगनू करे तो करे क्याइ? उसे जानवरों के कारण आये दिन सुनना ही पड़ता था। आज जगनू को सुनाने का अवसर मिला था। उसने कहा - राम्हू का कहना अनुचित नहीं लगता। वास्तव में यदि ननकी के मन में जानवर प्रेम रहता तो मुझसे यह कभी नहीं कहता कि तुम अपने जानवरों को घर में बांध कर रखो वरना कांजी हाऊस में डलवा दूंगा। मेरी तो सलाह है ननकी के अपराध को सामान्य अपराध न माना जाये। इसे कड़ा दण्डक ही दिया जाये। जहां तक इसकी गाय की मौत का सवाल है तो मुझे लगता है इसने जानबूझ कर गाय को इतनी जोर से धक्का दिया कि गाय वहीं पर ढ़ेर हो गई।
जगनू की बात ननकी को चुभ गई पर चार समाज के बीच अपनी सफाई दे तो दे कैसे। पत्नी, जो उसकी हमसफर थी। सुख - दुख में साथ देती थी वह भी आज पंचायत के मध्य उसके विरूद्ध च ली गई थी। फिर उसकी सफाई का असर समाज पर होने का प्रश्न ही नहीं उठता था। उसने सिर नीचा करके पंचाय त से कहा - मैं अपनी सफाई में क्याह कहूं? कहूं भी तो क्योंस? पंचायत मेरी सफाई पर गौर करेगी ऐसा मुझे कहीं नहीं लगता। पंच परमेश्वर यहां उपस्थित हैं जो निणर्य होगा, मुझे स्वीकार हैं।
पंचायत में जुड़े लोगों के बीच कानाफुसी हुई। निणर्य सुनाने के लिए सलाह मश्विरा हुआ और पंचायत ने अपना निणर्य सुनाते हुए कहा -चाहे ननकी से यह पाप अनजाने में ही हुआ हो, पर अपराध तो अपराध ही होता है। समाज में गौ हत्या की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। मूक पशुओं के प्रति हमारी संवेदनाएं मरती जा रही है। अपने पालतू पशुओं को हम जिस माहौल में बांध कर रखते हैं, वह कितना अमानवीय , क्रूर और कष्टलप्रद होता है इसका अहसास हमें भी होना चाहिए। पालतू पशुओं के प्रति हमारी संवेदनाएं जागृत होना चाहिए। ननकी से जो अपराध हुआ वह गौ हत्या की कड़ी में आता है। गौ हत्या महापाप है। इसके प्रायश्चित का भी हल हमारे समाज ने निकाला है। ननकी को इक्कीहस दिन तक उसी कोठे में काटने होंगे। इस इक्कीास दिन की अवधि में न वह कोठे से बाहर आयेगा और न ही कोई उससे कोठे में मिलने जायेगा। सिर्फ उसकी पत्नी उसे समय पर भोजन परोस दिया करेगी वह भी परदे की ओट में .....। इस अवधि में जिस किसी ने ननकी को देखा तो वह भी द•ड का भागीदार होगा, चाहे उसकी पत्नी रमशीला ही क्योंी न हो?
पंचायत के निणर्य के बाद उसे कोठे में धकेल दिया गया। जहां उसे उन दिनों की याद आने लगी जब उसने मालती को पहली बार अपने कोठे में लाकर बांधा था। मालती को जब वह सरजू से खरीदने गया तो सरजू की मर्जी चली , उसी के ही भाव पर खरीदना पड़ा था। उसने मालती को घर लाया तो रमशीला फूली न समायी। उसकी स्वयं की इच्छा थी कि उसके घर भी एक गाय हो। गाभीन हो और बछड़े हो। घर का ही दूध, दही, मठा खाने को मिले। जाने वह कोठा कब से वीरान पड़ा था। जब वह पहली बार बिहा कर आयी थी तो उस कोठे में एक मरियल सी गाय बंधी थी जो कुछ ही दिन बाद चल बसी थी। तब से उसने कोठे की ओर झांक कर देखने की आवश्यकता महसूस नहीं की थी पर अब तो मालती आ गयी थी। पहले तो उसे आंगन में बांधा गया फिर कोठे की साफ - सफाई कर उसे वहीं बांध दिया गया।
मालती की देखरेख में न कभी रमशीला चुकती थी और न कभी ननकी। समय बार दानापानी मिलते रहा और मालती फुनाती गयी। दिन सरका और एक अवसर ऐसा आया जब मालती गाभिन हो गई तब ननकी के साथ रमशीला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने समय पर एक स्वस्थ बछड़े को जन्म दिया। अब तो मालती की देखरेख और सेवा और भी बढ़ गयी। मालती दूध देने लगी। दूध से दही और मठा तो बना ही साथ ही घी का भी स्वाद चखने को मिलने लगा।
ननकी खेती - किसानी से थक मांद कर आता। रमशीला उसे भोजन परोस खाने के लिए चिल्ला ती रहती पर ननकी मालती के बछड़े के साथ खेलने लग जाता। फिर वह मालती के लिए कोठे में घास डालने चला जाता। रमशीला कहती रहती - मालती तो शाम को बरदी से लौटेगी। वह भी घास चर कर फिर इतनी जल्दी भी क्या- है? पहले स्वयं तो भोजन कर लो फिर मालती के लिए घास डालते रहना परन्तु वह कोठे से ही चिढ़कर पत्नी से कहता - तुमसे एक काम भी नहीं किया जाता. कोठे को देखो कितनी गंदगी फैली है। मुझे तो लगता है तुम्हारा जरा भी ध्यान कोठे की साफ - सफाई पर नहीं रहता. तब रमशीला ताना मारती। कहती - ठीक है ... ठीक है। पहले भोजन कर लो फिर खुद कोठे को साफ कर लेना। और होता भी यही था। भोजन के तुरंत बाद ननकी झाड़ू लेकर कोठे में घुंस जाता और सफाई करने लगता पर वहां गंदगी रहे उसे तो वह साफ करे? पूरी सफाई की जिम्मेदारी रमशीला निपटा चुकी होती। ननकी झाड़ू लेकर कोठे से बाहर हो जाता।
जहां सुबह - शाम हरी घास देने की जिम्मेदारी ननकी पर थी वहीं गोबर उठाने कोठे की साफ - सफाई करने में रमशीला जरा भी आलस नहीं दिखाती थी। रात में जब ननकी सोता तो मालती के बछड़े को अपने खाट के खुर से बांध रखता था। रात भर वह जितना ख्याल उस बछड़े का रखता था उतना ही ख्याल मालती का भी रखता था। जब - जब रात में उसकी नींद उचटती वह जरूर एक नजर कोठे में बंधे मालती पर डाल लेता। उसे सुकून मिलता कि मालती पगुराती आराम कर रही है। सुबह होते ही चरवाहा पहुंच जाता। चरवाहे की आने की भनक बछड़े को लग जाती थी। वह हम्मा - हम्मा चिल्लातने लग जाता। कोठे में बंधी मालती भी आवाज देने लगती। च रवाहा बछड़े को खोल देता। बछड़ा दौड़ कर माँ के पास पहुंच ता और दूध पनपाने थन को चूसने लगता। कुछ देर बाद चरवाहा बछड़े को माँ से दूर कर देता और कसेली भर दूध दूहकर बछड़े को छोड़ देता तब बछड़ा माँ का दूध पीने लगता।
ननकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि गौ सेवा की उसे यह सजा मिलेगी पर अब करता तो करता क्यास भी? उस पर तो गौ हत्या का आरोप लग गया था और पंचायत ने उसे इक्कीनस दिन तक बंद कोठे में सजा काटने का निणर्य भी दे दिया था। जैसे ही उसने कोठे में प्रवेश किया, मालती की तस्वीर उसकी आंखों के सामने झूलने लगा। उसे लगने लगा, मालती मरी नहीं जीवित है। पर सच्चाउई यही थी कि अब मालती इस आसार - संसार से विदा ले चुकी थी। ननकी को इस बात का भी पश्चाताप था कि यदि मालती के खुर से उसका पैर दब गया तो हकालकर उसे दूर क्यों नहीं किया? क्यों उसने मालती को परे धकेला जिससे मालती गिर गयी और उसका प्राणांत हो गया? मगर अब जो होना था हो चुका था, अब कुछ किया नहीं जा सकता था। इक्कीगस दिन की अवधि उस कोठे में काटना जहां उसकी थोड़ी सी लापरवाही से मालती की मौत हो गयी थी उसके लिए कठिन परीक्षा ही थी। इक्की स दिन .... पूरे इक्कीगस दिन, उसे तो इक्कीकस जन्म के समान लगने लगा था। बाहर बछड़े की हम्मा - हम्मा उसके हृदय को तार - तार कर रहा था। माँ से बछड़े को बिछुड़ाने में वह स्वयं का दोष मान रहा था। इच्छा तो हो रही थी जा कर बछड़े को गले से लगा ले। उसे दुलारे - पुचकारे पर यह संभव कहाँ था। कोठे से निकलना तो दूर कोठे में किसी का प्रवेश भी वजिर्त था। उसकी पत्नी बाहर से ही कोठे के भीतर भोजन ढ़केल देती थी और चली जाती थी। दो तीन दिन तो ननकी से भोजन भी नहीं किया गया पर भूखा पेट रहता भी तो कब तक अभी तो उसे पूरे इक्कीोस दिन काटने थे।
समय चलता गया। दिन सरकता गया। दिन की गिनती होती गयी। एक ... दो... तीन... बीस... पूरे बीस दिन हो गये ननकी को अंधेरे कोठे में कैद। वह रोशनी की तलाश में था। बाहर की रोशनी नहीं, उसे उस रोशनी की तलाश थी जो इक्कीकस दिन बाद उसे अपने कर्मों के पश्चाताप बाद मिलनी थी। पाप धुलने के बाद मिलने वाली रोशनी। बीसवां दिन और बीसवी रात के अंतिम पहर में उसकी नींद उचट गयी। उसे लगा - यहीं कही मालती खड़ी है और अपने मालिक की इस दुदर्शा को देखकर बेहद दुखी है। उसकी आँखों में आंसू और ननकी उसे पोछने का प्रयास करने के बाद भी पोंछ नहीं पा रहा है।
सूयोर्दय को अभी कुछ क्षण बाकी था कि ननकी ने मालती के बछड़े की आवाज सुनी। उसकी पत्नी आंगन में झाडू मार रही थी। अचानक मालती के बछड़े ने गले में बंधी रस्सी तोड़ लिया। रमशीला उसे पकड़ पाती इसके पहले वह दरवाजे को धक्काल देकर कोठे के भीतर प्रवेश कर गया। सूयोर्दय हो चुका था। दरवाजा खुलते ही सूर्य की रोशनी कोठे में प्रवेश कर गया। बछड़ा जाकर ननकी के समीप खड़ा हो गया और उसे चांटने लगा। ननकी को लगा - उसके सारे पाप धुल गये। उसकी आंखें छलछला आयी। वह बछड़े से लिपट गया। ननकी को लगा - उसने जो अनजाने में अपराध किया था, उसकी सजा उसने भोग ली है। उसके मन में जो अपराध बोध था वह खत्म हो गया था। उस पर पोता गया कालिख, दिन के उजाले के साथ मिटने लगा था। अब आंगन भर सूर्य की रोशनी फैल चुकी थी।