ग्रामीण पृष्ठभूमि का सिनेमाई फॉर्मूला / जयप्रकाश चौकसे

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ग्रामीण पृष्ठभूमि का सिनेमाई फॉर्मूला
प्रकाशन तिथि : 19 सितम्बर 2013


करण जौहर मुंबई के श्रेष्ठी वर्ग के क्षेत्र मलाबार हिल में जवान हुए और फिल्मों के श्रेष्ठी वर्ग यश चोपड़ा के फिल्म स्कूल में प्रशिक्षित हुए तथा उन्होंने अब तक की सारी फिल्में महानगरीय पृष्ठभूमि पर बनाईं, जिनमें अधिकांश विदेश में फिल्माई गईं, गोया कि वे पूरी तरह पश्चिमी और महानगरीय व्यक्ति हैं। यहां तक कि कई मायनों में लंदन उनका दूसरा घर है। संभवत: उनका बनियान-कच्छा भी डिजाइनर है और किसी अंतरराष्ट्रीय ब्रांड का है। उनके पासपोर्ट पर उतने ही पृष्ठ होंगे, जितने मिल्स एंड बून्स के औसत उपन्यास में होते हैं और संभवत: उनका एक सूटकेस हमेशा घर में विदेश यात्रा के लिए तैयार रहता होगा, क्योंकि वे चंद लम्हों के नोटिस पर लंदन चले जाते हैं। उनके व्यक्तिगत खर्च में सबसे अधिक धनराशि विदेश यात्राओं की मद में होगी और मुंबई की गलियों से बेहतर वे लंदन और न्यूयॉर्क की लेन्स को जानते हैं। ऐसे व्यक्ति ने अपने जीवन में पहली बार एक ऐसी फिल्म का निर्माण किया है, जिसकी पृष्ठभूमि ग्रामीण क्षेत्र है और उसका नाम है 'गोरी तेरे प्यार में'। यह संभव है कि इसके गांव का डिजाइन और सेट करण जौहर ने लंदन या अमेरिका से आयात किया हो। इसमें अभिनय करने वाले इमरान खान और करीना ने भी भारतीय गांव नहीं देखा है।

ज्ञातव्य है कि हिंदुस्तानी सिनेमा का पहला फॉर्मूला यह रहा है कि गांव पवित्र हैं, शहर पाप का संसार हैं। गांव के लोग भोले होते हैं और शहर के लोग बदमाश। इस फॉर्मूले के जन्म पर भी महात्मा गांधी का गहरा असर है, जो हमेशा गांव की प्रगति के लिए चिंतित रहते थे। आजादी के समय देश की संपदा का 60 प्रतिशत कृषि से प्राप्त होता था, परंतु अभी यह महज चौदह प्रतिशत है। भारत का अर्थशास्त्र कृषिप्रधान नहीं है। अब गांव में भी 58 प्रतिशत उत्पाद गैर कृषि गतिविधियों से प्राप्त होता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग शहरों के लोगों की तरह सोचने लगे हैं और ग्रामीण जनजीवन से उन मूल्यों का लोप हो गया है, जिसके आधार पर उन्हें पवित्र व मासूमियत का स्वर्ग माना जाता था। गांवों का यह शहरीकरण कोई आदर्श नहीं है, क्योंकि यह छद्म शहरीयत है, जो गांवों में दबे पांव घुस आई है और यह किसी सरकारी विकास योजना का हिस्सा नहीं है वरन टेक्नोलॉजी की क्रांति द्वारा संचार एवं परिवहन के सुगम साधनों के कारण संभव है। जिस तरह हमारे महानगरों में कुछ गांव बस जाते हैं, ठीक उसी तरह शहरीयत गांवों में घुस आई है। तथाकथित विकास ने शहरों को शहर और गांवों को गांव नहीं रहने दिया।

आज गांव के मिट्टी के मकान जस के तस हैं, परंतु उनकी चार दीवारों के भीतर की दुनिया बदल गई है। आज विचारहीनता एवं संकीर्णता के मामले में शहरों और गांवों में कोई अंतर नहीं रह गया है और जहालत की जंगल-घास कब, किस सरहद को पहचानती है? क्षोभ की बात यह है कि गांव में यह परिवर्तन या तथाकथित आधुनिकीकरण अत्यंत सतही है और भीतरी बुनावट में जाति तथा धर्मगत भेदभाव के सारे विचार सदियों पुराने हैं। खाप पंचायतें आज भी सर्वोच्च अदालत की तरह हैं और प्रेम, अपराध इसलिए हैं कि प्रेम से उदात्त विचार जन्मते हैं और संकीर्णता का नाश होता है। प्रेम महज व्यक्तिगत विचार नहीं है, वह सामाजिक व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

बहरहाल, आज के गांव मुंशी प्रेमचंद के गांव नहीं हैं और अंचल भी फणीश्वरनाथ रेणु के अंचल नहीं हैं। अब कहीं होरी या हीरामन नहीं है, इसी तरह धनिया या हीराबाई भी खोजने पर मिलेंगे। सबसे भयावह बात यह है कि धार्मिक असहिष्णुता शहरों और गांवों में अब समान धार रखती है, जबकि कुछ दशक पूर्व गांव इससे अछूते थे। हाल ही में हुए मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगे भी यही बात रेखांकित करते हैं।

यह सोचने की बात है कि क्या धार्मिक असहिष्णुता आर्थिक खाई की कोख से जन्मी है? क्या गांवों में मनरेगा तथा अन्य योजनाओं द्वारा लाए गए आर्थिक परिवर्तन राजनीतिक हकीकत में बदलेंगे या धार्मिक असहिष्णुता उन्हें लील जाएगी। अब शहरों के सारे मध्यमवर्गीय पूर्वग्रह और कट्टरता गांवों में पहुंच चुकी हैं। व्यावसायिक फिल्मकार एक्शन के दौर में उसे पराजित करने के लिए सेक्स का सहारा लेते हैं, सिताराविहीन सेक्स फिल्में सितारा जडि़त फिल्मों पर भारी पड़ती हैं।

इसी तरह आर्थिक सुधार या सामाजिक परिवर्तन पर धार्मिक असहिष्णुता भारी पड़ सकती है। करण जौहर की 'गोरी तेरे प्यार में' की कथा शहर से शुरू होकर गांव में जाती है, परंतु उसमें कोई गहरे संकेत संभव नहीं हैं, क्योंकि करण जौहर के पास शूजित सरकार की राजनीतिक दृष्टि नहीं है और इमरान तथा करीना अभी हीरामन या धनिया अभिनीत नहीं कर सकते।