ग्रामोफोन / हरि भटनागर
जाफर मियाँ शहनाई के लिए मुहल्ले क्या, अपने पूरे कस्बे में मशहूर थे। तीन-चार बजते ही वे शहनाई लेकर चबूतरे पर आ बैठते और धूप निकलने तक बजाते रहते। वे शहनाई बजाते और ढोल पर साथ देता उनका दोस्त, सम्भू। सम्भू शहनाई के बजते ही उठ बैठता और जाफर मियाँ के साथ ताल भिड़ाता। बताने वाले बताते हैं कि शहनाई का ऐसा बजैया और ढोल का ऐसा पिटैया कस्बे क्या, दूर-दूर के इलाके में दूसरा न था। सवेरे शहनाई और ढोल न बजे तो मुहल्ले के लोगों की आँखें न खुलती थीं। लगता कि रात है, अभी सोये रहो।
लेकिन अब न शहनाई है और न ढोल की आवाज़। लम्बे समय से सब कुछ ख़ामोश है जैसे सज़ा दे दी गयी हो। और वास्तव में सजा दे दी गयी थी। ढोल और शहनाई को नहीं, जाफर मियाँ को। उस सजा से जाफर मियाँ इतने ग़मगीन हुए कि उन्होेंने शहनाई बजाना ही छोड़ दिया। शहनाई से जैसे उनका कभी कोई ताल्लुक ही न रहा हो! और जब शहनाई नहीं बज रही थी तो ढोल क्यों बजेगा? सम्भू ने मारे अफ़सोस में ढोल खूँटी के हवाले कर दिया।
रहे शहनाई और ढोल के आदी लोग, उन्हें लगता है कि शहनाई और ढोल की आवाज़ बस उठने ही वाली है। ऐसा वे सोच तो लेते पर तुरन्त ही अपनी गलती महसूस करते। शहनाई क्या, जाफर मियाँ ने तो दर्जीगिरी तक छोड़ दी। कुछ नहीं करते वे। चबूतरे पर हर वक़्त ग़मगीन से बैठे रहते। न किसी से बोलते; न बतियाते। बीवी सामने खाना रख देती तो खा लेते, नहीं भूखे बैठे रहते। लोग कहते कि दिमाग़ पर असर होने से उनकी बोलती बन्द हो गयी है। अब खुदा ही उन्हें बचा सकता है।
एक सम्भू ही है जो कहता फिरता है कि जाफर मियाँ को कुछ नहीं हुआ, सिवाय सदमे के।
खैर, उस सजा की एक छोटी-सी कहानी है।
जाफ़र मियाँ का कुन्दन शाह नाम का एक दोस्त था। वह सुनार था और जाफर मियाँ के घर के ठीक सामने रहता था। जाफर मियाँ ने चोरी के डर से अपनी बेटी के शादी के जेवर और नगदी कुन्दन शाह की तिजोरी में रखवा दिये थे। इस ख्याल से कि उसके पास सुरक्षित रहेंगे और निश्फिकर हो गये थे। मगर जब बेटी की सगाई हुई और वे जेवर और नगदी लेने गये तो कुन्दन शाह ने साफ इनकार कर दिया कि उसके पास उसने कभी कुछ रखा ही नहीं!
जाफर मियाँ चीखे-चिल्लाये। लड़े-झगड़े। इन्साफ के लिए लोगों को बटोरा लेकिन कोई असर नहीं। कुन्दन शाह टस से मस न हुआ। जाफर मियाँ की बीवी की जलती गाली से भी नहीं। आखिर में जाफर मियाँ ने अपना माथा चौखट से फोड़ लिया और दाढ़ी नोच डाली जिसका मतलब सब्र से था और इस बद्दुआ से कि गरीब-गुर्बा का जेवर पैसा मारा है, हजम नहीं होगा; ख़ाक में मिल जायेगा!
मगर कुन्दन शाह ख़ाक में मिलने की बजाय दिन पर दिन तरक्की करता जा रहा था। कच्चा कवेलू वाला मकान तोड़वाकर उसने पकका मकान बनवाना शुरू कर दिया था। दरवाजे़ पर लोहे का फाटक लगवा दिया था। और रोशनी के लिए एक लट्टू लटका दिया था। जाफर मियाँ के लिए यह सब तकलीफदेह था। पर गाली देने, बाल-दाढ़ी नोचने के सिवा कुछ भी करने में असमर्थ थे।
उस दिन दोपहर को जाफर मियाँ जबरदस्त तकलीफ में थे। इसकी वजह कुन्दन शाह न होकर वह इक्का था जिस पर लाउडस्पीकर में तीखी आवाज़ में फिल्मी गाना बज रहा था। यह आवाज़ इतनी तीखी और कानफोड़ थी कि जाफर मियाँ बेचैन हो उठे। उन्होंने इक्केवाले को भद्दी गालियाँ देनी शुरू कर दीं जो गाने की धुन पर मटकता हुआ गन्दे इशारे करता जा रहा था।
कान में उँगलियाँ रखकर तीखी आवाज़ से बचा जा सकता था मगर गुस्से के आगे यह सूझ दुम दबाये कहीं दुबकी थी। तकरीबन हजार-एक गा़लियाँ दे चुके होगे जाफर मियाँ; फिर चुप हो गये जैसे थक गये हों। लेकिन तीखी आवाज़ के साथ कान के रास्ते होती हुई एक बात उनके जेहन में जा पहुँची जिससे कि वे अदृश्य में कहीं देखते हुए खोये रहे, फिर मुस्कुरा उठे। एकाएक फुर्ती से उठे और अन्दर आकर बीवी से पूछा कि ग्रामोफोन कहाँ है? बीवी ने इशारा तो कर दिया मगर यह नहीं पूछ पायी कि ग्रामोफोन का क्या करेंगे। वह घबरा-सी गयी। अभी तक तो ठीक थे, चुप रहते थे, अब...ग्रामोफोन मांग रहे हैं, इसका मतलब है, कहीं कुछ गड़बड़ है। नहीं, इतने पुराने कूड़े-कबाड़ की क्या जरूरत थी?
वह जाफर मियाँ को डरी निगाहों से देख रही थी और जाफर मियाँ थे कि कूड़े-कबाड़ को उठा-उठाकर बाहर फेंकते जा रहे थे। पुराने ज़ंगखाये टीन के कनस्तर, सड़ी रजाइयाँ, सड़े-गले कपड़ों की कतरनें, पुराने टूटे छाते, खाट के पावे, बाध वगैरह-वगैरह बाहर चबूतरे पर फेके जा चुके थे, गर्द के साथ जिनकी तीखी गन्ध नथुनों में बेतरह चुनचुनाहट मचा रही थी। मगर जाफर मियाँ को इस तीखी गन्ध का तनिक भी अहसास नहीं हो रहा था। वे हड़बड़ी में थे और ग्रामोफोन को ढूँढ रहे थे। कुछ और सामनों को उलटने-लटकने के बाद ग्रामोफोन मिल गया था। खु़शी से वे फूले नहीं समा रहे थे।
बीवी ने पूछा कि ग्रामोफोन का क्या करेंगे तो उनका जवाब था - आग बरसायेंगे।
- आग बरसायेंगे।
- हाँ।
- ग्रामोफोन से कहीं आग बरसती है! - बुदबुदाते हुए बीवी ने कहा।
- ऐसी आग बरसेगी कि दफन हो जायेगा साला! अपने में बड़बड़ाते हुए जाफर मियाँ ने हवा में एक भद्दी गाली उछाली और बाहर चबूतरे पर बैठकर ग्रामोफोन के कल पुर्जों को साफ करने लगे।
बीवी ने सिर पर आँचल डाला और आसमान की ओर हाथ और आँखें कर अल्ला ताला से जाफर मियाँ पर रहम की भीख माँगी।
जाफर मियाँ बुरा-सा मुँह बनाकर बड़बड़ाये कि अल्ला ताला से दुआ माँगने की जरूरत नहीं! आग तो बरसकर रहेगी, अल्ला ताला भी नहीं रोक पायेंगे।
काफ़ी देर तक जाफर मियाँ कल पुर्जों को साफ़ करते रहे। आखिर में जब मामला जमता नहीं दिखा तो उन्हें कुछ याद आया। अन्दर आये और उस चादरे को ढूँढने लगे जिसमें गरम कपड़े बँध्ो थे जिसे कभी वे ओढ़ा करते थे। चादरा जब मिल गया तो उन्होंने सारे गरम कपड़े ज़मीन पर पटक दिये और कल पुर्जों को समेट बाज़ार आये, अपने दोस्त, दीना के पास जो कभी ग्रामोफोन दुरुस्त करता था, अब लाउडस्पीकर वगैरह दुरुस्त करता है।
दीना ने ग्रामोफोन देखा और हँस पड़ा। एकाएक उसने काम में डूबकर गम्भीरता से कहा - कबाड़ी की दुकान पीछे है!
जाफर मियाँ ने उसे गुस्से से देखा।
दीना ने कहा - अबे, ऐसे क्या देखता है! मैं कबाड़ी हूँ जो मेरे पास कबाड़ ले आया।
जाफर मियाँ ने बताया कि इसे दुरुस्त कराना है तो दीना ठठाकर हँस पड़ा - अबे, इसे ठीक कराकर सुहागरात मनायेगा?
- हाँ, सुहागरात मनाऊँगा! जाफर मियाँ ने कहा और उनकी आँखें गीली हो गयीं। उन्होंने अपने साथ हुए जुल्म का बयान किया और ग्रामोफोन को ‘राइट' कराने की वजह बतायी।
यह बाल सुलभ हरकत थी, फिर भी दीना ने जाफर मियाँ का दिल नहीं तोड़ा और न ही किसी तरह की बहस की। ग्रामोफोन की जगह उसने एक टेपरिकार्डर और बहुत सारे सामानों के साथ बड़ा-सा लाउडस्पीकर दिया ताकि वे अपना काम बखूबी कर सकें।
इस सामानों को लिए हुए खुशी से भरे जाफर मियाँ जब अपने दरवाजे़ इक्के से उतरे तो बीवी ने मत्था पीट लिया; मुहल्ले के लोगों ने उन्हें आश्चर्य से घेर लिया।
थोड़ी देर में तेज़ आवाज़ में गाना बजा तो पूरे जश्न का माहौल था। तकरीबन पूरा मुहल्ला इकट्ठा था। बच्चे गाने की धुन पर थिरक रहे थे। उनके बीच जाफर मियाँ थे जो अनेकानेक भाव-मुद्राएँ बना मटकते जाते थे।
एकाएक जाफर मियाँ ने देखा, बीवी नदारद है। यहाँ तक कि मुहल्ले के सारे लोग जा चुके हैं। सिर्फ़ बच्चे हैं जो थिरक रहे हैं। समझ गये कि पागल हरकत मानकर सब सरक गये! उन्होंने सिर झटका और सोचा कि कोई मुज़ायका़ नहीं। कोई रहे या न रहे, वे अपना काम करेंगे, पूरी ताक़त से करेंगे।
बाहर वे काफी देर तक खड़े रहे। गली में अंध्ोरा छाया था। मच्छर कानों से टकरा रहे थे। किसी-किसी घर के लोगों के खाँसने, बोलने-बतियाने और बर्तनों की आवाजें आ रही थीं। कोई कुत्तेो को दुरदुरा रहा था। सुभावन के घर का पल्ला शायद खुला था जिसमें लालटेन की पीली, मरी-सी रोशनी सड़क पर पड़ी थी। लेकिन फौरन ही वह ग़ायब हो गयी। लगता है कि किसी पे पल्ला भेड़ दिया। किसी-किसी घर के सामने चिनगियाँ चमक रही थीं। लोग बीड़ियाँ पी रहे थे।
जाफर मियाँ ने कुन्दन शाह के घर की ओर देखा। अँध्ोरे में ढँका था उसका घर। लट्टू भी कई दिन से नहीं जल रहा था। किसी के बोलने-बतियाने की आवाज़ भी नहीं आ रही थी। शायद सब सो गये थे।
जाफर मियाँ ने साँस खींचकर सिर झटका जैसे कह रहे हों कि सो, चैन से सो! देखता हूँ, कब तक सोते हो!
गली के छोर पर जब कुत्ते रोने लगे, वे लम्बे डग बढ़ाते, अपने चबूतरे पर
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आये और गाने की तीखी आवाज़ का मुआयना करने लगे।
गाने की तीखी आवाज़ कुछ ऐसे गूँजती जैसे हज़ारों-हज़ार मोर एक साथ चीख-चिल्ला रहे हों। लाखों-लाख कौवे हों जो किसी एक कौवे पर हुए जुल्म पर चीत्कार कर जुल्मी पर टोंट-पंजे मार रहे हों। ऐसा भी लगता जैसे करोड़ों की तादाद में मुसलमान ‘हाय हसन' करते हुए छाती पीट रहे हों। उन्हीं के साथ बड़े-बड़े नगाड़े, ड्रम, तासे मानो हाय छोड़ रहे हों।
जाफर मियाँ ठठाकर हँसे।
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जिस वक़्त तीखी आवाज़ में गाना बजना शुरू हुआ, कुन्दन शाह खाना खा रहा था। उसने झाँककर देखा, जाफर मियाँ उसकी तरफ़ भद्दे इशारे करते हुए मटक रहे थे। उसे लगा कि यह सब उसे तंग करने के लिए है। क्रोध में पागल होते हुए उसने थाली उठाकर नाली पर फेंक दी। दरवाज़े पर लात मारी। बीवी को भद्दी गालियाँ देते हुए जो उस पर बड़बड़ाने लगी थी, खाट पर लेट गया, दाँत पीसते हुए। एकाएक मन हुआ कि उठे और जाफर मियाँ के मुँह पर तेजा़ब डाल दे। वह उठा लेकिन ऐसा करने की हिम्मत न जुटा पाया। काँप गया।
एकाएक सोचा कि वह इतना परेशान क्यों है? क्यों मान बैठा कि जाफर मियाँ का गाना-बजाना उसे तंग करने के ख़ातिर है। जाफ़र तो पागल है, पागल! उसकी पागल हरकत पर वह क्यों परेशान होता है? उसने ऐसा सोचा मगर दूसरे पल फिर परेशान हो उठा। जाफर उसे देखकर भद्दे इशारे कर रहा था और मटक रहा था, क्यों? उसे तंग करने के लिए ही! हे भगवान!!! उसने सोने की कोशिश की लेकिन वह रात भर सो न सका। बुरी तरह करवटें बदलता रहा। रह-रहकर उठ बैठता और गालियाँ बकता।
सवेरे वह बेतरह बौखलाया हुआ था। उसने जोरों से दरवाजा खोला। अगल-बगल देखा, कोई न दिखा तो बाहर आ खड़ा हुआ लेकिन तुरंत ही घर में तेज़ी से घुसा और जो़रों से दरवाज़ा बन्द किया। फिर पता नहीं क्या सोचकर उसने उतने ही जो़रों से दरवाजा खोला और बाहर आ खड़ा हुआ। बेचैनी उसकी और बढ़ गयी थी। वह लड़ने के पूरे मूड में दिख रहा था। एकाएक वह किसी पागल की तरह बड़बड़ाता हुआ फाटक का खटका सरका नल की ओर फुर्ती से बढ़ा जहाँ पानी भरनेवाले लोगों की भीड़ थी। उनके पास पहुँचकर वह हाथ लहरा-लहरा कर लोगों से कुछ कहने लगा। सुनायी तो पड़ नहीं रहा था। सिर और छाती पीटने से लग रहा था कि वह अपने ऊपर होने वाले जुल्म की शिकायत कर रहा है।
जाफर मियाँ बेहद खु़श थे उस दिन। उनका निशाना सही जगह पर लगा था।
दो-चार रोज़ कुन्दन शाह नहीं दिखा। जाफर मियाँ की बेचैनी बढ़ी। उन्होंने लोगों से पूछा तो पता चला कि पास के शहर में पायलें खरीदने गया है। हर वक़्त तो वे उस पर निगाह रखे हैं; कब निकल गया? फिर सोचने लगे कि हो सकता है अँध्ोरे में निकल गया हो!
खै़र, कुन्दन शाह घर में हो या न हो, जाफर मियाँ ने तीखी आवाज़ में मन्दी नहीं आने दी।
एक दिन जाफर मियाँ की बीवी बाजा़र से सौदा-सुलुफ़ लेके लौटीं तो उन्होंने बताया कि कुन्दन शाह तो कहीं नहीं गया, लोग झूठ बोलते हैं। वह तो बिस्तर पर पड़ा है। कहते हैं कि उसके सिर में बेपनाह दर्द रहता है। बीवी-बच्चे पैरों से कचरते हैं तब भी चैन नहीं मिलता...
- किसी वैद-हकीम को क्यों नहीं दिखाता? जाफर मियाँ ने संजीदगी ओढ़ते हुए कहा।
- मुए ने जैसा करा है, वैसा तो भरेगा! इसमें वैद-हकीम क्या कर लेंगे।
- वैद-हकीम तकलीफ की दवा देंगे! जाफर मियाँ कुटिलता से मुस्कुराये - तुम जाकर कहो न कि इलाज कराये।
- हाँ, मैं कहूँगी उस कमीन, मुँहजले से। बीवी ने कुढ़कर कहा, - मर जाये तो अरथी पर थूकूँ तक नहीं।
- ये दर्द क्यों हो गया उसे? जाफर मियाँ ने निहायत ही संजीदा होकर पूछा।
- पता नहीं। पान की पीक थूकते हुए उन्होंने कहा, - भाड़ में जाये। यकायक उन्होंने आँखें गोल करके पूछा, - तुम इतनी पूछ ताछ क्यों कर रहे हो?
- कुछ नहीं, बस यूँ ही पूछ रहा था। कुछ भी हो, आखिर अपना पुराना दोस्त ही तो है - उन्होंने बीवी को बहकाना चाहा।
बीवी यकायक भावुक हो गयीं, बोलीं - यही तो मैं भी सोच रही थी। पूरी बात तो नहीं, इत्ता जानती हूँ कि उसे नींद नहीं आती रात-रात। जागता रहता है। हर वक़्त उसे लगता है कि बड़ी-बड़ी टीन की चादरें, बड़े-बड़े ड्राम कोई छत पर पटक रहा हो...
जाफर मियाँ मुस्कुराहट छिपाये उठे और बाहर आ खड़े हुए जहाँ तीखी आवाज़ के सिवा कुछ न था। उस तीखी आवाज़ में उन्हें लगा कि हज़ारों-हज़ार आदमी औरत-बच्चे चीख-चिल्ला रहे हों। जैसे भीषण आग लगी हो, सब चीत्कार कर रहे हों। कोई बचाने वाला न हो। उन्हें लगा कि यह रोने-चीखने, चीत्कार करने वाले और कोई नहीं, वे खुद ही हैं! वे सोचने लगे कि उन्हें कहीं का न छोड़ने वाला क्या चैन से बैठ सकता है! नहीं! क़तई नहीं!!! यकायक वे गुस्से में भर उठे और उन्होंने मुटि्ठयाँ भींचकर तेज़ आवाज़ में कई गालियाँ बुलन्द कीं।
इस बीच एक रिक्शा कुन्दन शाह के दरवाजे पर आकर रुका। रिक्शावान ज़मीन पर उकड़ूँ बैठकर बीड़ी पीने लगा। थोड़ी देर में एक बीमार-सा आदमी जो गन्दे कपड़े में लिपटा-सा था, जिसे कोई औरत पकड़े हुए, सँभालती ला रही थी, रिक्शे की ओर बढ़ा। जाफर मियाँ ने गौर से देखा यह आदमी और कोई नहीं कुन्दन शाह था और उसको सँभालने वाली कुन्दन शाह की बीवी थी। कुन्दन शाह का हुलिया बदल गया था। चेहरे पर पीलापन छा गया था और उसमें सिकुड़न बासी मूली जैसी थी। सिर और दाढ़ी के बाल ज़रूरत से ज़्यादा सफे़द और बेतरतीब हो रहे थे।
रिक्शेवान ने कुन्दन शाह को रिक्शे में बैठाने में मदद दी और रिक्शा आगे बढ़ा ले चला।
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कुन्दन शाह डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने उसकी नब्ज़ पर उँगलियाँ रखीं। पलकें फाड़ीं और उनमें टार्च की रोशनी मारी। जीभ बाहर निकलवायी और मुँह बड़ा सा फड़वाया। जब वह ठीक से मुँह नहीं फाड़ पाया तो डॉक्टर ने मुँह नहीं देखा। पीठ और छाती पर आला फेरा और घुटनों पर उँगलियाँ बजायीं।
यकायक कम्पाउण्डर पर किसी बात पर चीखते हुए डॉक्टर ने दवा की पर्ची लिखी और पाँच दिन के बाद आने को कहा।
कुन्दन शाह ने दवा खायी और पाँच दिन के बाद डॉक्टर के पास पहुँचा। इस बार डॉक्टर ने सरसरी नज़र उस पर डालकर पहले लिखीं दवाइयाँ फिर से खाने को लिख दीं और पाँच दिन के बाद आकर हाल बताने को कहा।
डॉक्टर की हिदायत मानते हुए कुन्दन शाह पाँच दिन के बाद काँखता-कूँखता फिर किसी तरह पहुँचा। इस बार हालत पहले से ज़्यादा पस्त थी। पहले से ज़्यादा टूटा था। डॉक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और माथा सिकोड़कर सामने खड़ा हो गया। जैसे मर्ज को फिर से जाँचने का विचार कर रहा हो। और बाएँ हाथ की उँगलियाँ होंठों पर दौड़ाने लगा। यकायक उसने उसकी जाँच शुरू कर दी। पलकें फाड़कर देखीं। जीभ बाहर निकलवायी। नाखून देखे। सीने और पीठ पर आला फेरा और गहरी साँस छोड़कर कुर्सी पर पसर गया। माथे पर उसके बल था। आँखें सिकुड़ी थीं और होंठ भिंचे। लगता था जैसे अभी-अभी चिल्ला पड़ेगा। लेकिन चिल्लाया नहीं। बस इतना बोला कि तुम्हें कोई बीमारी नहीं।
- कोई बीमारी नहीं! कुन्दन शाह काँखते हुए चुधी आँखें मिचमिचाता किसी तरह उठकर बैठता हुआ, रोनी आवाज़ में बोला - कोई बीमारी नहीं तो तो हालत क्यों पतली है?
इस प्रश्न पर डॉक्टर कुछ नहीं बोला, एकटक उसे देखता रहा।
पत्नी कुछ बोलने को हुई कि कुन्दन शाह ने आगे कहा- रात-रात भर नींद नहीं आती, कहीं उस दर्जी, उस मुँहजले जाफर की कारस्तानी तो नहीं...
- कौन जाफर, कौन दर्जी? डॉक्टर ने सख़्त नज़रों से उसे देखा और गुस्से में कहा - मैं किसी दर्जी-बर्जी को नहीं जानता!
सहसा कुन्दन शाह की बीवी कड़कती आवाज़ में हाथ लहराती बोली- जाफर मुआ दर्जी है, मुँहजला! दिन-रात बाजा आग की तरह फूँके रहता है, उसका नाश जाये!
डॉक्टर सख़्त होकर बोला- आप क्या चाहती हैं कि मैं जाकर उसका बाजा बन्द कराऊँ! डॉक्टर झल्ला उठा यकायक और मेज़ पर मुक्के पटकने लगा- आप दोनों पाग़ल हो गये हैं, पागल! चले जाइये यहाँ से!!!
- लेकिन साब, मेरी तबीयत तभी से गड़बड़ है- कुन्दन शाह काँपते पैरों पर खड़ा अपने दोनों हाथ सिर पर रखे बुदबुदाया,- उसी ने टेप बजा-बजाकर...
इधर डॉक्टर दोनों की बातों पर सिर पीट रहा था, उधर जाफर मियाँ से एक पड़ोसी ने पूछा, - क्यों मियाँ, आज तुम्हारी दूकान ठण्डी क्यों है? कोई गाना बाना नहीं हो रहा है?
जाफर मियाँ ने सिर हिलाते हुए कहा- बजाऊँगा, बजाऊँगा, परेशान न हो! कुन्दन शाह को डॉक्टर के यहाँ से तो लौटने दो!