ग्लोबल विलेज / सुकेश साहनी
आज नगर पंचायत के सदस्य और अध्यक्ष पद हेतु उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न आवण्टित किए जाने थे। मेरी डयूटी निर्वाचन अधिकारी के रूप में लगी थी। मैं और मेरे दोनों सहायक प्रारम्भिक तैयारियों में जुटे हुए थे! तभी सदस्य पद का एक उम्मीदवार मेरे नजदीक आकर फुसफुसाया, "सर! मुझे 'कार' दे दें, मैं कलेक्टर साहब का रिश्तेदार हूँ।"
मुझे उसका इस तरह नजदीक आकर फुसफुसाना अपमानजनक लगा। मैंने सर्द आँखों से उसकी ओर देखा, तो वह पीछे हट गया।
"सभी ध्यान से सुने," मैंने वहाँ खड़े सभी उम्मीदवारों को सुनाते हुए जोर से कहा, "चुनाव चिह्ननों का आवण्टन चुनाव आयोग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ही होगा।"
पहले वार्ड के तीनों उम्मीदवारों की पहली पसन्द 'कार' ही थी। हमें लाटरी (पर्ची) डालकर फैसला करना पड़ा। जिनको कार नहीं मिली, वे बहुत मायूस नजर आ रहे थे। उन्हें अपनी दूसरी या तीसरी पसन्दजीप या मोटरसाइकिल से संतोष करना पड़ा। प्रतीक चिह्नों के आवण्टन की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही थी, यह स्पष्ट होता जा रहा था कि उम्मीदवार हवाई जहाज, पानी का जहाज, हैलीकाप्टर, कार, जीप, मोटरसाइकिल, फोन, टीवी, कैमरा जैसे चिह्न ही प्राप्त करना चाहते थे। सबसे ज्यादा मारामारी 'कार' के लिए थी। अधिकतर मामलों में लॉटरी द्वारा ही चुनाव चिह्न आवण्टित किए जा सके।
सभी उम्मीदवारों को चिह्न आवण्टित करने के पश्चात हमें डमीमत-पत्र तैयार करने थे। आवण्टित चिह्नों को बड़ी-बड़ी शीटस् से काट-काटकर उम्मीदवारों के नाम के आगे चिपकाया जा रहा था। कार्य पूर्ण हो जाने के पश्चात् जब मेरी नजर मेज पर पड़े बचे-खुचे उन चुनाव चिह्नों पर पड़ी, जिनमें किसी भी प्रत्याशी ने रुचि नहीं दिखाई थी, तो मैं सोच में पड गया।
मुझे लगा उगता सूरज, फसल काटता किसान, कुआँ, हल, बैल, खुरपी, फावड़ा, कुदाल, कुल्हाड़ी, ट्रेक्टर किताब, चश्मा, तराजू जैसे चुनाव चिह्न अब भी आशा-भरी नजरों से उम्मीदवारों की बाट जोह रहे हैं।