घघ्घोॅ रानी कत्तेॅ पानी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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घाव ही घाव दै रहलोॅ छेलै भगवानें जैवा केॅ। समय बीतलोॅ जाय रेल्होॅ छेलै आरो समय के साथें जैवा के दुख भी बढ़लोॅ जाय छेलै। पति सुख की होय छै वैं नै जानलेॅ छेलै, यही लेलोॅ अपना जीवन में पुरुष के नै होना केॅ हुनी नियति के अभिशाप मानी केॅ स्वीकार करी लेलकै मतुर जै भतीजा शलिगराम साथें हुनी बाग-बगीचा हट्टोॅ-हट्टोॅ होलोॅ छेलै, रौदी-बतासोॅ में हुरसा-हुरसी खेललोॅ छेलै, ओकरा भूलाय लेॅ चाही केॅ भी नै भूलै पारै छेलै जैवा। बाप सोनमनी जें ओकरोॅ सूनोॅ-अजवारी मांग देखी केॅ कानै-कपसै उ$ याद एैतें जैवा व्याकुल होय जाय छेलै।

कुइयाँ के कजरी पर ससरी केॅ बूढ़ी सास के गिरला पर जबेॅ सेवा के ज़रूरत होलै तबेॅ मोसमास पुतोहू के याद एैले ससुराल वाला केॅ। बाप सोनमनी के मरला के दू बरस बाद विदाय कराय केॅ जैवा केॅ ससुराल लानलेॅ छेलै।

ससुरारी में जैवा केॅ ई चौथोॅ बैशाख छेलै। चौबीस-पच्चीस बरसोॅ के भरभाभूत जवान जैवा ससुराल आवी के महसूस करलकै कि एक स्त्राी वासतें पति के होवोॅ कतना महत्त्व राखै छै। बिना पति रो खासकरी केॅ ससुराल कतनां सुनों, उदास आरो दुख सें भरलोॅ होय छै ई बातोॅ केॅ जैवा समझी रेल्होॅ छेलै। दुख, दरद के बारें में कोय पूछै वाला नै, खाली ओकरा काम, सेवा आरो टहल सें मतलब। खैलेह नै खैलह कोय पूछै वाला नै। थरिया-वासन, भंसा-भात करी केॅ, सबकेॅ खिलाय-पिलाय केॅ अपना खाय लेली हड़िया देखै लेॅ जबेॅ जैवा जाय तेॅ दाल, तरकारी नदारत, छूछ्छे भात

धरलोॅ छौं, कभी-कभी तेॅ वहो नै। पेटोॅ में कपड़ा बान्ही लोर पीवी के सूती जाय जैवा। तोसक-तकिया पर सूतै वाली जैवा जबेॅ सुन्नोॅ, अन्हार कोठरी में असकल्ली चिथ्थी-चिथ्थी होलोॅ गेनरा बिछाय केॅ जमीनोॅ पर सूतै तेॅ कानतें लोरोॅ सें अंचरा भींगी जाय।

उमर पर नीन्द भी बिना पूछलें-टोकलें आबै छै। भियानी नीन टूटै में जौं देर होय जाय तेॅ सासू के चींखना, चिल्लाना, गरियाना शुरू।

हौ दिन ननद सुरजी जादा तेवर में छेलै। राते में जैवा केॅ माथा में बड़ी जोरोॅ सें दरद होय गेलोॅ रहै। बुखारोॅ सें देह जरकी रहलोॅ छेलै। अंग-अंग में अंगफोड़ दरद के कारण जैवा के देहोॅ में उठी के थरिया-वासन करै के शक्ति नै छेलै। सब ठो काम घरोॅ में छोटोॅ होय के कारण तेॅ सुरजी ननदे के करना छेलै। बस गोस्सा में थरिया पटकी-पटकी जरलोॅ-जरलोॅ गारी देना शुरू करलकै। भियान होलें बहुते देर होय गेलोॅ रहै। बैशाखोॅ रो सुरुज आगिन बरसा करनें छपरी पर चढ़ी गेलोॅ छेलै।

लाचार जैवा उठलै। गोरोॅ मुँह आरो देह बुखारोॅ सें लाल होय रहलोॅ छेलैं। कुइयां सें घैला में पानी लैकेॅ आवी रेल्होॅ सुरजी ताना मारलकै-"आवेॅ उठलै महारानी। सोनमनी मड़रोॅ रो करम। है सूतै के बेर छेकै।"

बेटी सब चीज सहेॅ पारै छेॅ मतुर बापोॅ केॅ गारी देना नै। बापोॅ केॅ गारी वरदाश्त नै होलै जैवा केॅ। बुखारोॅ से कांपी रहलोॅ हाथोॅ से भीती के सहारा लेतें हुअें बोललै-"जे कहना छौं हमरा कहोॅ, हमरा बापोॅ केॅ गारी नै देॅ।"

घैलोॅ धरी केॅ सुरजी दोनों हाथ चमकैतें जबाव देलकै-"बड़का बापोॅ के बेटी छेलैं तेॅ राखलकोॅ कैन्हेॅ नै। विदा कैन्हेॅ करी देलकौ। अरे कुलछनी, सही साँझें सांय खैतें तेेॅ तोरा देरे नै लागलौ। डरें सें भैवा विदा करी केॅ भगैलकोॅ कि काहीं वहाँ केकरोह नै खाय जाहीं। ड़ांड़ मौगी सांढ़ होय छै, बात लड़ावै छैं हमरा सें। राती पेट भर कोंची केॅ सुतलैं तेॅ भियानी उठी केॅ काम-काज के करतौ। के तोरोॅ मरलका बापोॅ रो नौकर छेकौ।"

सुरजी के गारी सुनी केॅ अकबकाय गेलै जैवा। अतनै टा बोलेॅ सकलै उ$-"बिहैली बेटी छोॅ तोंय सुरजी. आय नै काल विदा होयकेॅ ससुराल जैभेॅ। बड़ी भौजाय माय दाखिल होय छै। भगवानोॅ सें डरोॅ।"

जैवा रो बोली सुनतैं सुरजी देहोॅ में आगिन लागी गेलै। ओसरा पर माय दिवाली सें ओंगठी केॅ बैठली छेलै। सुरजी माय के सखियारतें बोललै-"सुनलैं की नै गे माय, तोरा पुतोहू हमरा सराप दै छौ। भगवानोॅ सें डरै लेॅ कहै छौ। मुँह संभारे लेॅ कहीं यै छिनारोॅ केॅ, नै तेॅ हमरोॅ हाथ छूटी जैतोॅ।"

युद्ध मुद्रा में साड़ी के दोनोॅ फेंटोॅ डाड़ा में खोंसलेॅ जैवा आगू में खाड़ी सूरजी माय तरफें स्वीकृति पावै के आशा से ताकलकै। मैयो भी बिना कोय कारण रोॅ दू-चार रोज पैन्हेॅ सें लहरलोॅ छेलै। सौसे परिवारोॅ में जैवा के खटकै रोॅ सबसे बड़ोॅ कारण ओकरोॅ मोसमास होवोॅ छेलै। लागै छेलै जेनां वहीं कुलदीपोॅ के मारी देनें रहै। है भरमभूत के कोय इलाज नै छेलै। सासू ने लहरला आगिन में घी दैकेॅ काम करलकै-"तोंय बिहे राती हमरोॅ बेटा खाय गेलैं। तोंय अपसगुनाही छोॅ तोरा देखवोॅ अपशगुन, तारोॅ छाया तक अपशगुन सें भरलोॅ, तोंय छुताही छोॅ। तोरोॅ एक-एक शब्द विष बुझलोॅ तीक्खोॅ वाण बनी केॅ हिरदय केॅ छेदै छै। तोंय हमरा बेटी केॅ सराप कौन लाजें दै छोॅ। ड़ाड़ें चाहें सौसे दुनिया ड़ाड़ होय जाय।"

सासू के उलटी बातोॅ सें जैवा रो रहलोॅ सहलोॅ आशा रो बांध भी टूटी गेलै। उम्मीद छेलै कि सासू सोची-समझी केॅ उचित ही बोलतै मतुर उलटे सासू ने बेटी के पक्ष लै लेलकै। "हे भगवान कत्तेॅ दुख देभेॅ" कही केॅ जैवा कानै लागलै। अब तांय जैवा है रंग दुखोॅ सें बिनाय-बिनाय केॅ नै कानलोॅ छेलै। कानबोॅ सुनी केॅ दुआरी पर सें सब मरदाना भी हड़बड़ैलोॅ जे जहाँ छेलै दौड़ी के ऐंगना आबी गेलै। पड़ोस के सबसें बूढ़ी हरिया माय हफसली ऐंगना में आबी केॅ खाड़ी होय गेलै।

अत्तेॅ लोगोॅ केॅ ऐंगना में देखतैं जैवा लजाय गेलै। कानतै की बेचारी लाजोॅ सें चूप होय गेलै। केकरोॅ बोलै के पैन्हेॅ हरिया माय अपना हाथोॅ रो बसठ्ठी लाठी हवा में लहरैतें बोललै-"हम्में वाजिब बात बोलवौ। आय चार-पाँच सालोॅ सें देखी रेल्होॅ छियो हम्में, कुलदीप मरी केॅ धरमोॅ में गेलै, ई बुतरू मोसमास होय गेलै, यै में ई बेचारी के की दोष? दैवोॅ ने डांगोॅ से ऐनहोॅ डंगैलेॅ छै ई जनानी केॅ की सौसे जिनगिये ऐकरोॅ अकारथ में चल्लोॅ गेलै; तोंय सीनी कैनहेॅ मिली के डंगावै छै।"

हरिया माय रोॅ सभ्भें टोला भरी लिहाज करै छेलै। ओकरा सें बतकुटरी में सच्चे कोय नै पारै छेलै। भांगी-फोड़ी केॅ सच बोलै में ओकरा केकरोह सें डोॅर नै लागै रहै मतुर सुरजी के बापोॅ केॅ काकी हरिया माय रोॅ हे रंग ऐंगना में आबी केॅ बोलबोॅ अच्छा नै लागलै।

"मुखियैन नै बनोॅ दोसरा ऐंगना में आबी के काकी। तमाशा नै बनावोॅ, हमरोॅ ऐंगना खाली करोॅ, ड़ाड़-रहिया रो घोॅर नै छेकै ई." सुरजी बाप धन्नो मड़र तड़पी केॅ बोललै।

काकी कहाँ वरदाश्त करै वाली छेलै-"अत्तेॅ दिनोॅ से सलटै के रोॅग नै छेलोॅ। आय जबेॅ नाकोॅ पर सें पानी बहेॅ लागलो, तबेॅ सूझलोॅ छौ। अरे, कुल-खानदान घरोॅ के बेटी छेकोॅ जे सबकेॅ देखतें सकपकाय केॅ चूप होय गेलै। अच्छा-खराब, उँच-नीच, तोंय गाँव भरी के मड़र छेकैं तोंय नै समझवैं, तेॅ के समझतै। मोसमासो के आय तांय टोला भरी बोली नै सुनलै छियै आरो तोरो बेटी आरो तोरोॅ भंसिया के गारी-बात रोजे रामायण नांकी सुनै छियै। मोसमासोॅ केॅ राखबोॅ जौं भारी लगै छोॅ तेॅ बेचारी केॅ नैहरोॅ पहुँचाय दहीं।"

काकी के तेवर सामना में मड़र नरम पड़ी गेलै। सबके समनां में नाक कटै के स्थिति छेलै। फड़ियाबै के अंदाज में काकी सें बोललै-"आखिर सबेरे उठी केॅ घरोॅ के काम-काज जबेॅ मोसमासै केॅ करै लेॅ लागै छै तेॅ हुनका वेर तांय सुतलोॅ नै रहना चाहियोॅ।"

मड़रोॅ के बात सुनी केॅ काकी मोसमासोॅ हिन्नें निरयासी केॅ ताकलकै। जैवा केॅ तेॅ मुकमुकी लागी गेलोॅ छेलै। बुखारोॅ सें तपी रहलोॅ देह केॅ खाड़ोॅ रहेॅ के ताकत नै छेलै। देह, हाथ झांपी-पोती केॅ चुकुमकु वही ठिंया बेजान बैठी गेली रहै। काकी तेजी सें मोसमासोॅ ठिंया जबाबतलब करै केॅ स्थिति में पहुँचलै-"केकरा में गलती छै अखनिये साफ होय जैतेॅ। नठियाल जौं मोसमास होलै तेॅ मारी के आइये मिरजापुर भगाय देवै।"

काकी आपनोॅ बात खतम करी केॅ मोसमास के मुँहोॅ परकोॅ घोघोॅ हटाय केॅ कुछ्छु पूछै लेॅ हाथ पकड़लकै। काकी केॅ लागलै कि हुनको हाथ आगिन पर रखाय गेलोॅ रहेॅ। धड़ाक सें माथा पर हाथ राखलकै आरो सब स्थिति समझी केॅ दूध रो दूध आरो पानी रो पानी बोललै-"अरे, मोसमास बेचारी तेॅ बुखार सें बेहोश छै।"

"ऐकरा बोलना चाहियोॅ न।" सासू, काकी ठिंया आबी केॅ अचरज सें बोललै।

"ऐकरा बेचारी केॅ बोलै के मौका देतियोह तोंय दूनू माय-बेटी तबेॅ नी। अरे, सब रो जान एक रंग समझोॅ। आखिर यहोॅ बेचारी आदमिये छेकै।"

काकी सच पर सें परदा उठाय देनें रहै। आरो विजयी योद्धा नांकी अकड़लोॅ ऐंगना सें बाहर जाय रहलोॅ छेलै। मड़रोॅ केॅ काटोॅ ते खून नै। धोपी केॅ सुरजी माय सें कही रहलोॅ छेलै-"तोरा कहियो लूर नै होतौं। सब गूड़ोॅ के गाछ केतारी तोंही छोॅ। समांग देखी केॅ बात विचार करना चाहियो। जा, मोसमासोॅ केॅ बिछौना पर लै जाय। पानी रो पट्टी माथा पर दहोॅ। बुखारोॅ से तड़पी रहलोॅ छै बेचारी। हम्में हकीम साहबोॅ केॅ बुलाबै छियौं।"

हकीब साहब ऐलै। निमोनिया बुखार बतैलकै। सेवा आरो परहेज नै होला पर मियादी बुखारें भी दस्तक दियै पारै छै। महिना सें पैन्हेॅ बुखार ठीक होवोॅ मुश्किल। मरीज मरौेॅ सके छै। समूचा घर मरघट शांति में बदली गेलै। ऐंगना बोढ़ै लेली हाथों में बोढ़नी लेनें सुरजी सोची रहलोॅ छेलै-"तोरा छोड़ी केॅ आबै ई सीनी काम के करतौ सुरजी." आरो सुरजी चुपचाप भंसा-भातोॅ में भिड़ी गेलै।

हिन्ने जैवा के बुखार तारेपरमानें एक रंग छेलै। बुखारोॅ से बेहोश जैवा अंटसंट बक्केॅ। "घघ्घोॅ रानी कत्ते पानी" , ... ढ़ेरी पानी ... लाल-लाल, भर मरद डुबाव पानी, घघ्घोॅ रानी ... घघ्घोॅ रानी ... हे गे ... माय ... हे बम भोलेनाथ ... हे मैया पारवती ... आबेॅ कत्तेॅ दुख देभेॅ भगवान। हे घघ्घोॅ रानी ... कत्तेॅ दुख ... कत्तेॅ पानी ...? पानियेपानी, नजर भर लाल-लाल पानी ... हेलाव पानी... डुबाव पानी । " जैवा बोली केॅ चिहाय उठलै। सौसे घोॅर डरी गेलै। रात भर उ$ नै सुतलै आरो कुहरतें, कानतें रहलै।

सप्ताह भर जबेॅ यहेॅ रंग बीतलै तेॅ एक रात के सुरजी ही मुँह खोललकै-"बापोॅ कन ऐकरा भेजवाय दहीं। भाय-भौजांय सेवा करतै। मरतै-बचतै आपनों माय-बापोॅ देहरी पर।"

बापें गोस्साय केॅ कहलकै-"ऐकरा भाय-भतीजा आबेॅ नै दै छेलै।"

"... तेॅ ऐकरा ई रंग जोगतौं के." सुरजी रो माय अंसाय केॅ कहलकै।

"नौड़ी नांकी दिन-रात खटीकेॅ जे सुख मोसमासें देनें छौं, ऐकरा नै भूलोॅ। एक ठो नौकरोॅ राखभोॅ तेॅ ऐकरा से महंगे पड़थौं सुरजी माय।"

बात माथा में धसलै सुरजी माय केॅ मतुर कुछ सोची केॅ बोलले-"जे हुओं मतुर ऐकरोॅ पैरा ठीक नै छौं। ऐकरा उजरोॅ-सफेद बस्तर में देखतैं हम्में डरी जाय छियौं। यही बुखारोॅ के माथा जौं ई आफत मरी जाय तेॅ सब बलाइये टली जाय। तोंही तेॅ बोलै छेलौह मालिक कि जमीन-जायदाद में मोसमासोॅ के हिस्सा होतै।"

"कानूनन तेॅ हिस्सा होवेॅ करतै।"

"... तेॅ ऐकरा मरलै सें फायदा छै। हमरोॅ बेटे नै तेॅ ई निकोखी रही केॅ की होतै।" सुरजी माय बोललै। "कहै तेॅ ठीक छोॅ मतुर ।"

"मतुर की ...?" सुरजी माय प्रश्न करलकै।

"मिर्जापुरोॅ में सबसें सनतानीक परिवार छै मोसमासोॅ रोॅ। दू-दू भतीजा पहलवानी करै छै। पचासोॅ बस्ती में ऐकरा सें वेशी सनगरोॅ परिवार नै छै। राती जे महेन्द्र गोप एैलोॅ छेलौं गांमोॅ में, जेकरा डरें सौसे बस्ती में टटिया-केवाड़ लागी गेलोॅ रहै उ$ लालजी मड़रोॅ के बेटा चकरधरोॅ रो ममिया ससुर छेकै। देशोॅ के सुराजोॅ लेली लड़ै छै। पाँच सौ सें बेसिये लडं़का कट्ठाफार जवानोॅ के दलो रो महेन्द्र गोप सरदार छेकै। सौ-सौ फिरंगी अंग्रेज सिपाही के बीचोॅ सें घोड़ा पर चढ़ी केॅ गोली चलैतें निकली जाय छै। जायजोॅ वास्तें लड़ै वाला वें आदमी नाजायज वरदाश्त नै करै छै। कथी लेॅ यै पचड़ा में पड़भेॅ। आपनोॅ गाँव बाजा गोपजी के गाँव रामपुर भरको से दू-तीन कोस के ही दूरी पर छै। दैवोॅ के मारली छै बेचारी, ऐन्हों बात सोचवोॅ नै करिहोॅ।"

"महेन्द्र गोपोॅ केॅ ई मालुम केना होतै?" सुरजी तर्क देलकै। "पाप छिपै नै बेटी. लालजी मड़रो के दू बेटा चकरधर आरो गजाधर गोप जी के गूटोॅ में शामिल छै। ऐकरा से तकरार ने करौ। बेशी जौं मोसमास भारी लागै छौं तेॅ हिनका नैहरोॅ गेला के बाद विदाय कराय केॅ लानवे नै करौ। हिनका बापोॅ-माय केॅ अतनै संपत छै कि कहियो अपन्हें आबेॅ नै दैतौं।" धन्नोॅ मड़रें समझैतें दूनोॅ माय-बेटी केॅ कहलकै।

सच्चे दूनो माय-बेटी के आँखी में डोॅर समाय गेलोॅ छेलै। बापोॅ के गेला के बाद सुरजी बोललै-"बुखारोॅ सें ठीक होला के बाद अतना उत्पात देना छै कि ई बाजा गाँव के नामें भूली जाय।" दूनो माय-बेटी आँखी-आँखी में बात करलकै आरो कामोॅ में भिड़ी गेलै।