घटते हुए दर्शक और कथाओं का अकाल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 मार्च 2017
सिनेमा उद्योग के विचारवान लोगों की चिंता यह है कि दर्शक-संख्या निरंतर घट रही है। आज मनोरंजन के अनेक विकल्प हैं। कानून-व्यवस्था ढीली है, अत: घर से बाहर निकलने में भय लगता है। क्या यह कम दुख की बात है कि हमारी सबसे अधिक सफल फिल्म को भी चार करोड़ से अधिक लोगों ने सिनेमाघर में नहीं देखा है। टेलीविजन पर प्रदर्शन को ही अधिक लोग देख पाते हैं। बड़े शहरों में बनने वाली बहुमंजिला इमारत में एक सिनेमाघर होने पर रहवासी सुविधा से फिल्म देख सकते हैं और भीड़भरी सर्पीली सड़कों पर चलने से बच सकते हैं। आजकल बहुमंजिला में स्वीमिंग पूल और खेलकूद की सुविधाएं बनाई जाती हैं, तो एक सिनेमाघर भी बनाया जा सकता है।
इस समस्या का दूसरा हल यह भी हो सकता है कि सलमान खान और शाहरुख खान एक ही फिल्म में काम करें अौर उसका मुनाफा बतौर मेहनताना आपस में बांट लें। इस तरह की फिल्म का निर्देशन आदित्य चोपड़ा, कबीर खान या आनंद एल. राय में से किसी एक को दिया जा सकता है। इसी तरह अजय देवगन और अक्षय कुमार एक फिल्म में काम करें, जिसका निर्देशन रोहित शेट्टी या स्वयं अजय देवगन करें। रणवीर कपूर और रनवीर सिंह इम्तियाज अली के निर्देशन में फिल्म बनाएं।
इसी तरह प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, कंगना रनोट और अनुष्का शर्मा ये चार देवियां एक साथ प्रस्तुत हो सकती हैं। सितारों के कई समीकरण बनाए जा सकते हैं। राज कुमार हिरानी, कबीर खान और आनंद एल. राय भी एकजुट हो सकते हैं। जब कोई व्यवसाय अपने अस्तित्व के संकट में आपसी मतभेद और लोभ-लालच छोड़कर एकजुट हो जाता है तो मरणासन्न उद्योग को प्राणवायु मिल जाती है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में अवाम के एकजुट होने के कारण ही अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्रता दी, क्योंकि अपनी लगभग दो सदियों की हुकूमत में केवल तीस हजार अंग्रेज ही भारतीय लोगों की सहायता से भारत पर राज करते रहे। उन्होंने ऐसी व्यवस्था रची कि कोड़े भी हिंदुस्तानियों के हाथ में थे और पीठ भी भारतीय लोगों की थी।
उनकी इंडियन सिविल सर्विस अफसर रचती थी, जो पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष और न्यायप्रिय थे। अाज़ादी के बाद उसी संस्था को इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के नाम से बहाल रखा गया परंतु विगत दशक में इस संस्था में भयावह परिवर्तन यह आया है कि वहां से निकले अफसर धर्मनिरपेक्ष नहीं रहे। इससे भी भयावह यह है कि भारतीय फौज में जाने किस पतली गली से धर्मांधता प्रवेश कर रही है। इस तथ्य पर राहुल बोस अभिनीत 'शौर्या' फिल्म बनी है। ये सब सूक्ष्म संकेत गृहयुद्ध की भूमिका की ओर इशारा कर रहे हैं। 1857 की क्रांति के पूर्व रोटी और कमल संकेत स्वरूप भेजे जाते थे परंतु अब रोटी हटा दी गई है। वह तो अवाम की थाली से भी हटाई जा रही है। यूं भी हमें भूख ने बड़े प्यार से पाला है (शैलेंद्र, 'श्री 420)।'
एक अमेरिकन फिल्म में चांद पर ले जाने का विज्ञापन दिखाया गया है। आवेदनकर्ता से मोटी रकम ली जाती है और धरती पर ही सुनसान जगह को चांद के भ्रम के तौर पर रचा गया था और वहां उनसे यह कहकर परिश्रम कराया गया कि वे चांद को मनुष्य के रहने योग्य बना रहे हैं। भ्रम और सपने बेचना कला है, जो फिल्म उद्योग की पाठ्यपुस्तक का पहला पाठ है। आजकल राजनीति क्षेत्र में इसी कला में महारत हासिल की जा रही है। थुलथुले नेता भूख मिटाने पर भाषण दे रहे हैं। शिखर नेता को एक चरित्र अभिनेता ने भाषण-कला सिखाई थी।
स्टूडियो में वातानुकूलित मेकअप रूप होते थे परंतु विगत दो दशकों से सितारा अपनी वातानुकूलित वैन में आता है। इस वैन में शयन-कक्ष और बाथरूम होता है। टेलीविजन सेट भी होता है। इस व्यवसाय को सर्वप्रथम पूनम ढिल्लों ने प्रारंभ किया था। उनकी वैन किराये से बुलाई जाती थी। अब हर सितारे ने अपनी वैन बना ली है। अत: उसी स्टूडियो में शूटिंग होती है, जहां इस तरह की चार-पांच वैन के लिए पार्किंग की जगह हो गोयाकि स्टूडियो में आधुनिकतम उपकरण नहीं वरन पार्किंग स्पेस के आधार पर शूटिंग होती है। सारे साध्य और साधन बदल दिए गए हैं।
अपने प्रारंभिक दौर में शाहरुख खान प्राय: सलमान खान के घर जाते थे। सलीम खान और सलमा को अपने माता-पिता की तरह आदर देते थे। ऋतिक रोशन अभिनय में आने के पहले सलमान खान के जिम में रियाज करते थ। लोकप्रियता मिलते ही सितारा तन्हा हो जाता है। उनके गिर्द चमचे आ जुटते हैं, जो झूठ-सच बोलकर सितारों के आपसी संबंध बिगाड़ते हैं। कालांतर में चमचे बड़े होकर अपनी ही 'प्लेट' तोड़ने लगते हैं। चमचे कांटे (भोजन करने का फॉर्क) हो जाते हैं। सितारा छवि ही फिल्म उद्योग के बॉक्स ऑफिस पर कलदार की वर्षा कराती है और सितारा छवि को सत्य मान बैठता है। अमेरिका में बहुसितारा फिल्में बहुत बनी है। भारत में अपसी सहयोग से बहुसितारा फिल्में बन सकती है।। मसलन सुभाष घई की 'सौदागर' में दिलीप व राजकुमार अभिनीत भूमिकाएं शाहरुख अौर सलमान अभिनीत कर सकते हैं। महाभारत प्रेरित फिल्म में तो सारे सितारे काम कर सकते हैं। तुलसीदास बायोपिक भी संभव है। खाकसार ने दिलीप कुमार को अमृतलाल नागर के 'मानस का हंस' का सारांश सुनाया था। पूंजी निवेशक जीएन शाह के निधन के कारण फिल्म नहीं बन पाई। ऐसी फिल्में सिनेमाघर में दर्शक ला सकती है।